होली पर नटखट गीतों का चलन आज से नहीं बल्कि द्वापर युग से चला आ रहा है। शरारती कान्हा का अपनी राधा और गोपियों के साथ नटखट होली गीत और नृत्य आज भी कृष्ण लीला के रूप में हमें मोहित करती है। तब से अब तक होली के चंचल गीतों से मन की तरंग में आनन्द का ज्वार उछाले मारकर सबके मन को लुभाती और गुदगुदाती है। बॉलीवुड में होली के चुलबुलाते गाने उस जमाने से चले आ रहे हैं जब फिल्में बोलती नहीं थी। 'आलम आरा' के बाद जो फिल्में बनी उसमें भी होली के दृश्य और गीत जरूर होते थे लेकिन बॉलीवुड की बदकिस्मती से उन गीतों को सहेजे ना जाने की वजह से वो सारे गीत गुम हो गए। लेकिन शुक्र है कि 1940 के बाद की फिल्मों के गीतों को सहेजा गया, जिसमें उस जमाने के फ़िल्मी होली गीत, आज की होली गीतों से कम नटखट नहीं थी। तब से अब तक कई होली के सुंदर शरारती गीतों की बानगी जरा देखिए
1940 की फिल्म औरत के दो चुलबुले गीत 'जमुना तट श्याम खेले होरी' और 'आज होली खेलेंगे साजन के संग', दोनों गीतों में श्रृंगार रस होली के रंग पर भारी है,
फ़िल्म जोगन (1950) का होली गीत 'डारो रे रंग डारो रसिया' उस ज़माने में प्रेम जोगन द्वारा अपने रंग रसिया का आह्वान अद्भुत है। 1953 की प्रथम टेक्नि कलर फिल्म 'आन' की शरारती होली गीत 'खेलो रंग हमारे संग' में दिलीप कुमार और निम्मी की मस्ती और शोख अदायें देखने लायक है जिसमें पहली बार होली के सारे रंग साफ़ पर्दे पर चमकते दिखते है।
1953 की एक और होली गीत (फ़िल्म राही) 'होली खेले नंदलाल बिरज में' इस त्योहार के नटखट रंग को दुगना करती दिखाई देती है। 'बात चलत नई चुनरी रंग डाली' (1953 फ़िल्म लड़की) और 'होली आई प्यारी प्यारी' (फिल्म पूजा 1954) में होली त्यौहार अपने सारे रंग रूप और शरारतों में मुखर है। 'मत मारो श्याम पिचकारी' (1956 दुर्गेश नंदिनी) होली में रोमांस की छटा बिखेरती गीत है।
'होली आई रे कन्हाई रंग बरसे' (मदर इंडिया 1958) भी प्रेम, ख़ुशी और मदमस्ती को इंगित करती है। 'अरे जा रे हट नटखट' (नवरंग 1959) 'तन रंग लो जी आज मन रंग लो' (कोहिनूर 1960) होली की जबरदस्त छेड़खानी और मस्ती भरा खेल तथा रॉयल होली की झलक प्रस्तुत करती है। 'होली खेलत नंदलाल' (गोदान 1963), ऐसी फ़िल्मी होली गीत नृत्य है जिसमें कोई भी स्त्री पात्र नहीं होते हुए भी उसमें होली की शोखी है।
'बबम बबम बम बम लहरी' (दो दिल 1965) में होली की नटखट मस्ती, लड़कियों से छेड़खानी और उनपर रंग डालने की दौड़ा दौड़ी उस ज़माने में खूब चली थी। 'लायी है हज़ारों रंग होली (फूल और पत्थर 1966) में जवान विधवा नायिका को नायक द्वारा रंग लगाने की गुजारिश और नायिका का अपने धड़कते दिल पर काबू पाने का दृश्य उस जमाने में चर्चा का विषय बनी थी। कुछ उसी तर्ज़ पर 'आज ना छोड़ेंगे बस हमजोली' (कटी पतंग 1970) में भी विधवा नायिका पर रंग डालने की जिद, नायिका के इंकार को ना मानने की हिमाकत और होली की मस्ती में कुछ भी कर गुज़रने का प्लेफुल मूड सनसनी जरूर पैदा क्र गयी थी।
'होली आई रे होली आई' (1970 होली आई रे) में युवाओं के मन में शरारती होली के रंग साफ नजर आते हैं। 'नंदलाला होली खेले बिरज में धूम मचाये' (1970 मस्ताना) गीत भी नन्दलालाओं और गोपिकाओं की छेड़छाड़ की होली का दृश्य उकेरती है। 'होली रे होली रंगो की टोली' (पराया धन 1971) में होली खेलने वालों द्वारा यौवनाओं को छेड़ना, जंगलों में उसका पीछा करते हुए रंग डालने का हुड़दंग, उस ज़माने में होली पर की जाने वाली हुड़दंग को उजागर करती है।
'फागुन आयो रे' (1973 फागुन) में पति द्वारा पत्नी को छेड़ते हुए उसकी पीहर की महंगी साड़ी में रंग डालकर अपराधी बन जाने का अद्भुत दृश्य होली के रंग में भंग की कहानी कहती है।
'होली के दिन' (शोले 1975) की इस ब्लॉकबस्टर होली नृत्य में गुलाल, पिचकारी, नाच, मस्ती धूम के ऐसे नज़ारे है जो आज तक किसी फ़िल्म में आज तक नहीं फिल्माया गया। 'कर गई मस्त मुझे' (दिल्लगी 1978) में होली की आपाधापी ना होकर चुपचाप दो दिलों को धड़काने वाली होली के रंग में दबे छिपे भावनाओं का ज्वार है।
'रंग बरसे भीगे चुनरवाली रंग बरसे,' (1981सिलसिला) बॉलीवुड का वो होली गीत है जो होली की आड़ में, भांग के नशे में, शादीशुदा नायक का अपनी शादीशुदा पूर्व प्रेमिका से खुल्लम खुल्ला फ्लर्ट करने, छेड़खानी करने और पास बैठे प्रेमिका के पति को एक तरह से ललकारने की सीना जोरी, आम जिंदगी में होली के दौरान होने वाले ऐसे ही प्रसंगो में फिट बैठने की वजह से आज भी आइकॉनिक होली सॉन्ग बन गयी है।
'भागी रे भागी ब्रिजबाला' (राजपूत 1982), 'जोगीजी हाँ' (नदिया के पार), मल दे गुलाल मोहे (कामचोर 1982), 'होली आई, होली आई (1984 मशाल), ये सारे होली गीत, होली उत्सव की पुरजोर मस्ती, शरारत और नटखट अदाओं को प्रकट करती है। 'सात रंग में खेल' (1985 आखिर क्यों) होली नृत्य में होली के पर्दे के पीछे पनपते अनैतिक संबंधो की बू दिखाती है।
'अंग से अंग लगाना' (1993 डर) में होली की मस्ती, शरारत, छलकते यौवन की मादकता के साथ साथ होली के रंगों में छिपे डरावने चेहरों से आम जनता को आगाह करने वाली ये होली गीत रोंगटे खड़ी करती है।
'सोनी सोनी' (2000 मुहब्बतें) में छात्रों और गुरु के बीच की दोस्तीपूर्ण होली दिखाई गयी तो वहीं 'होली खेले रघुवीरा अवध में' (2003 बागबान) में बुजुर्ग पति पत्नी के बीच होली की मस्ती, शरारत, धूम की ऐसी छवि चित्रित हुई कि युवाओं की मस्ती इनके आगे फीकी पड़ गयी।
'देखो आई होली (2005 मंगल पांडे) की मस्ती और नटखट नृत्य वाली होली गीत भी इस देशभक्ति फ़िल्म में होली की छटा बिखेरती है। नए ज़माने के साथ साथ होली गीतों के लिरिक्स भले ही पुरानी फिल्मों के होली गीतों से ज्यादा बोल्ड नहीं हो पायी लेकिन होली के दृश्य जरूर बोल्ड होते चले गए।
'डू मी अ फेवर, लेटस प्ले होली (वक्त- - -2005) में नायिका अपने प्रेमी को रंग लेकर पीछा करने से मना करती है और उसकी चोली को हाथ ना लगाने की विनती करती है पर नायक मानता ही नहीं।
'बलम पिचकारी जो तूने मुझे मारी' (ये जवानी है दीवानी, 2013) में भी वही प्रेमी द्वारा छेड़े जाने, पकड़ कर पुरे शरीर में मल मल के रंग लगाने और नायिका की भीगी क्लीवेज में झाँकने की नटखट दृश्य होली की मादकता को बढाती है।
लहू मुँह लग गया' ( - - - राम लीला, 2013 ) में होली उत्सव के सारे रस और रंग के साथ नायक नायिका के मादक और मदहोश करने वाले ऐसे दृश्य है जो इसे आज तक के सबसे सनसनी पैदा करने वाली होली गीत करार देती है।
'बद्री की दुल्हनिया' (बद्रीनाथ की दुल्हनिया 2017) होली गीत, उस पुरानी क्लासिक 'मुनिया' वाली होली गीत में नए अंदाज़ के साथ फन, शोखी मस्ती, शरारत, नटखट का डबल तड़का, वाकई होली त्यौहार का परफेक्ट सांग बन गया है।
'गो पागल' (जॉली एल एलबी 2017) के होली गीत में नायिका द्वारा नायक को पीछे ना पड़ने की गुजारिश करना और नायक द्वारा ' होली पर नाराज़गी ना चलना और इस त्योहार पर सब जायज है, वाली ऐटिट्यूड आम जीवन में भी ऐसी स्थिति की छवि दिखाती है। होली त्यौहार आती रहेंगी और बॉलीवुड में ऐसे गीतों की बहारें छाती रहेंगी और हम सब गाते रहेंगे 'बुरा ना मानों होली है।'