'3 idiots' के रियल लाइफ ''Sonam Wangchuk'' को कितना जानते है आप ?

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By Chhaya Sharma
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'3 idiots' के रियल लाइफ ''Sonam Wangchuk''  को कितना जानते है आप ?

'3 idiots' के रियल लाइफ '' 'Sonam Wangchuk'' को कितना जानते है आप ?

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सोनम  वांगचुक('Sonam Wangchuk) एक इंडियन इंजीनियर है। जो इंजीनियर ,इनोवेटर और शिक्षा सुधारक भी है। सोनम वांगचुक (Sonam Wangchuk) को लाइमलाइट तब मिली ।जब 2009 में आयी आमिर खान(Aamir khan) स्टार्रर '3 idiots' रिलीज़ हुई जिसका निर्देशन राज कुमार हिरानी (Raj kumar hirani) ने किया। जिसमे आमिर खान(Aamir khan) ने रनछोड दास चांचड़ (Ranchod das chanchad)का रोल प्ले किया था।

बॉलीवुड की फिल्म '3 इडियट्स' का ये गाना ''All Is Well'' शायद ही कोई नहीं जानता हो । इस फिल्म ने पढ़ाई करने के तरीके को एक नए रूप में पेश किया । दर्शकों द्वारा इस फिल्म को बहुत सरहाया गया।  इस बात को कम ही लोग जानते हैं कि यह फिल्म लद्दाख के एक असल व्यक्ति से इंस्पायर्ड है।

सोनम वांगचुक  से प्रेरित इस फिल्म को तो आपने परदे पर खूब सरहाया है, लेकिन आज असली हीरो की जिंदगी के बारे में जानना दिलचस्प रहेगा।

जानते हैं  Sonam Wangchuk के बारे में जिन्होंने सिर्फ इंजीनियरिंग छोड़कर, एक टीचर के रूप में अपना पूरा जीवन बिताना चुना-

रटने वाली विद्या से हमेशा रहे असंतुष्ट

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सोनम वांगचुक का साल 1966 में जन्म लेह में हुआ. वह अपनी नौ साल की उम्र तक स्कूल की सीढियाँ नहीं चढ़ पाए थे । इसकी वजह यह है कि उनके गाँव अलीची में कोई स्कूल था ही नहीं।

जब Sonam wangchuk नौ वर्ष के हुए तो, तब उनका दाखिला श्रीनगर के एक स्कूल में हुआ था। पहली बार स्कूल गए सोनम का मन वहां नहीं लगता था. वह वहां बहुत अकेलापन महसूस करते थे. चूँकि, वह खुद को वहां की संस्कृति से अलग-थलग महसूस करते थे। उन्होंने अपने अंकल के घर रहकर करीब 18 महीने स्कूल में पढ़ाई की. वह नन्ही उम्र में पढ़ाई के रटाने वाले पैटर्न से बहुत नाखुश रहे।

12 साल की उम्र में अकेले ही पहुंच गए दिल्ली

सोनम वांगचुक  चूँकि लेह से थे, तो उनका रहन-सहन श्रीनगर के लोगों से भी काफी अलग था। लोगों का भी उनके प्रति व्यवहार अलग रहता, क्लास में लोग उनका मजाक उड़ाया करते थे। वहां बिताये तीन सालों में अगर सोनम ने कुछ सीखा था, तो वो हिंदी और अंग्रेजी।

वहां से तंग आकर उन्होंने 12 साल की उम्र में ही दिल्ली की ओर अपना रुख कर लिया। वह पहली बार अकेले यात्रा कर रहे थे। दिल्ली जाने का उनका एक ही मकसद था, विशेष केंद्रीय विद्यालय में दाखिला लेना. यह विद्यालय बॉर्डर क्षेत्र पर रहने वाले बच्चों के लिए था।

अब परेशानी ये हो गई थी कि जिस समय वह दिल्ली गए, उस समय दाखिला नहीं हो रहा था लेकिन, ये भी सोनम थे उन्हें वहीं दाखिला चाहिए था।

उन्होंने जाकर प्रिंसिपल के सामने प्रार्थना इतनी मासूमियत से की गयी प्रार्थना को प्रिंसिपल इनकार नहीं कर पायीं. उन्होंने वांगचुक को दाखिला दे। दिया।

दिल्ली के इस स्कूल में उनका मन लग गया. यहाँ उनका कोई भी मजाक नहीं बनाता था।  यहाँ के टीचर उन्हें पढ़ाई में ज्यादा मदद किया करते, उन्हें प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए प्रेरित करते।

ग्लेशियर 'स्तूप' रहा एक अनोखा आईडिया

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लद्दाख में पानी की बहुत कमी रहती है। जिसकी वजह से वहां के लोगो को खेती समेत कई कामों के लिए पानी की किल्लत का सामना करना पड़ता है. इस बात ने सोनम का ध्यान ख़ासा तौर पर खींचा।

उन्होंने इस समस्या के हल के बारे में सोचना शुरू कर दिया। एक दिन उन्होंने यह भांपा कि पुल के नीचे जमी हुई बर्फ जल्दी नहीं पिघलती. इसका मतलब ये था कि ग्लेशियर पर सीधी धूप पड़ने से ही वह पिघलती है ।

बस, फिर क्या था! उन्हें अपना आईडिया मिल चुका था । इस बार उन्होंने इस बात को ध्यान रखते हुए पूरा तालाब पिघलने से बचा लिया।

सोनम  वांगचुक ('Sonam wangchuk ) साल 2013 में सर्दियों के दौरान, अपने छात्रों के साथ मिलकर 1.5 लाख लीटर पानी की बर्फ से 6-फुट का प्रोटोटाइप स्तंभ बनाया। तकरीबन 3,000 मीटर की ऊंचाई पर अपनी टीम की मदद से वह नदी के बहाव के दबाव के जरिए इस स्तम्भ से पानी का फव्वारा निकालने में सफले रहे. इसके बाद पानी के बाहर निकलते ही और जमीन पर गिरकर बर्फ में तब्दील हो जाता है।

जब बसंत का मौसम आता है तब पानी पिघलने लगता है. इसी पानी को वो टैंक में इकट्ठा कर लेते हैं । फिर अपनी जरुरत के अनुसार पानी का इस्तेमाल किया जाता है। बता दें, लद्दाख का ये आइस कोन अब तक 10 लाख लीटर पानी सप्लाई कर चुका है। इन कृत्रिम ग्लेशियरों को लद्दाख में 'स्तूप' कहा जाता है।

इस प्रकार उन्होंने इतनी बड़ी समस्या का बहुत खूब समाधान निकाला। इसके अलावा, उन्होंने कभी अपना निजी स्कूल नहीं खोला. उनका कहना था कि, बच्चों को तालाब के पानी में उतारने से उनकी उड़ान सीमित हो जाती है, उन्हें समुद्र के पानी में उतरने देना चाहिए, जहां वह ज्यादा बेहतर तैर सकते हैं।

सोनम  वांगचुक (Sonam wangchuk )  को रेमन मैगसायसाय पुरस्कार से भी नवाजा गया है. उनकी सोच और शिक्षा को समझाने का तरीक इतना अच्छा है कि आज उन्हें पूरी दुनिया जानती है. उनके हर विचार को सराहती है । उन्होंने शिक्षा देने के तरीके को भी अलग ढंग से पेश किया । जिससे बच्चे भागते नहीं हैं बल्कि खुद आगे बढ़कर खेल-खेल में सीखते है।

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