हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय, सरोजनी नायडू के छोटे भाई जिन्होंने अशोक कुमार को एक अमर गीत दिया और मुझे एक नया नाम

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By Siddharth Arora 'Sahar'
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हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय, सरोजनी नायडू के छोटे भाई जिन्होंने अशोक कुमार को एक अमर गीत दिया और मुझे एक नया नाम

मैंने स्कूल में पहली बार उनके बारे में सुना था, जब उनकी लिखी अंग्रेज़ी कविताएं हमारे कोर्स में शामिल थीं। उनकी अंग्रेज़ी कविताएं वैसी नहीं थीं जैसी इंग्लैंड में लिखी गयी हो, बल्कि उनकी कविताएं हमारे भारत के विभिन्न काल और हालात पर केंद्रित होती थी। मेरे गुरु के-ए अब्बास ने मुझे विस्तार से हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय के बारे में बताया था था। मैं उनके छोटी-छोटी टिप्पणियों के रूप में लिखी कविताओं को पढ़कर बहुत इम्प्रेस हुआ। उनकी लेखनी में एक आज़ादी का आभास था जो देश और समाज में घुली बुराइयों के ख़िलाफ़ एक आंदोलन सी लगती थीं। अब्बास साहब ही थे जिन्होंने मुझे हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय के सक्रीय राजनीति में उतरने और कम्युनिस्ट पार्टी की तरफ से उनका पहला लोक सभा इलेक्शन के बारे में बताया। हरिंद्रनाथ विजयवाड़ा, आँध्रप्रदेश से सन 1951 में चुनाव लड़े थे और बहुत बड़े मार्जिन से जीते थे।

हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय, सरोजनी नायडू के छोटे भाई जिन्होंने अशोक कुमार को एक अमर गीत दिया और मुझे एक नया नाम  लेकिन, मैंने उन्हें तब जाना जब वो एक एक्टर के रूप में हिन्दी फिल्म्स में अलग-अलग तरह के रोल्स निभाते हुए देखा, वो भी दिग्गत फिल्मकारों की फिल्मों में जिनमें देव आनंद, विजय आनंद, गुरु दत्त और हृषिकेश मुखर्जी जैसे नाम भी शामिल थे। इनमें भी मैंने उनका बेस्ट रोल हृषि'दा की बावर्ची में देखा जिसमें वो घर के मुखिया में एक बूढ़े-खूसट का रोल निभा रहे थे। वो एक ऐसा करैक्टर था जो किसी तरह से समय या किसी शख्स में हुए बदलाव को स्वीकारने या कोम्प्रोमाईज़ तक करने को राज़ी नहीं होता है। उन्होंने बावर्ची के मशहूर गाने - 'भोर आई, गया अँधियारा' में अस्सी साल की उम्र में भी अपनी आवाज़ दी थी। ये गाना पूरे परिवार के साथ गाया गया था।

हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय ने एक जानी-मानी सोशल वर्कर संग की थी शादी

हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय, सरोजनी नायडू के छोटे भाई जिन्होंने अशोक कुमार को एक अमर गीत दिया और मुझे एक नया नामउन्होंने कुछ फ़िल्में सत्यजीत रे के साथ भी की थीं और उन्होंने मशहूर गाना 'रेल गाड़ी' भी लिखा था जो अशोक कुमार पर फिल्माया गया था। इसी गाने से अशोक कुमार दादा मुनि कहलाने लगे थे। वो शायद पहले शख्स थे जिन्हें भारतीय सरकार द्वारा पद्म भूषण से नवाज़ा गया था। थिएटर, संगीत और कला (पेंटिंग) में दिया गया उनका योगदान इतिहास के पन्नों में उनका अलग स्थान स्थापित करता है। उनकी जीवन शैली अपने समय के हिसाब से बहुत एडवांस थी और उनकी ये भी ख़ूबी थी कि वो बदलते वक़्त के हिसाब से ख़ुद को ढालने में माहिर थे।

हरिंद्रनाथ ने एक नामी सोशल वर्कर साहित्यिक महिला कमला देवी से शादी की और फिर उनका तलाक भी हो गया। उनके तलाक को लेकर बहुत चर्चा हुई क्योंकि उस दौर तलाक लेना कोई आम बात नहीं हुआ करती थी। पर चट्टोपाध्याय दंपत्ति ने अपनी शादी और फिर तलाक से बहुत कुछ सीखा और तलाक के बाद भी वो दोनों अच्छे दोस्त बने रहे।

हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय, सरोजनी नायडू के छोटे भाई जिन्होंने अशोक कुमार को एक अमर गीत दिया और मुझे एक नया नामवो बहुत ज़िंदादिल इंसान थे और ताउम्र वैसे ही रहे। शायद ये उनकी ज़िन्दगी के प्रति सकारत्मकता ही थी कि उन्होंने सन 90 में खुद एक हिन्दी फिल्म बनाई। फिल्म 'किस्मत' को बनाने में उनकी अहम् भूमिका थी जिसमें शबाना आज़मी लीड रोल में थीं (मज़े की बात, वो उस वक़्त जिस बिल्डिंग में रहती थीं उसका नाम भी किस्मत ही था), ये भी कहा जाता है कि वो शबाना के साथ उस वक़्त साथ रहते थे जब शायद लिव-इन अभी लोगों की डिक्शनरी में आए भी नहीं थे पर हरिंद्रनाथ उस किस्म के आदमी ही नहीं थे जिन्हें लोग समाज या मीडिया के कुछ कहने-सुनने का कोई फ़र्क पड़ता था।

उनकी 'किस्मत' फिर आगे न बढ़ सकी, वजह न तब किसी ने जाननी चाही और न अब किसी को परवाह बाकी है।

हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय, सरोजनी नायडू के छोटे भाई जिन्होंने अशोक कुमार को एक अमर गीत दिया और मुझे एक नया नाममैं उनसे पहली बारे फिल्मालय स्टूडियो में मिला जहाँ उनकी फिल्म 'किस्मत' लॉन्च होनी थी। फिर जब मैंने उन्हें अपना नाम बताया तब वो तपाक से बोले 'क्यों लोग राष्ट्रिय एकता की बात करते रहते हैं उसपर ज्ञान बांटते रहते हैंजबकि वो इसका एक शब्द भी समझ नहीं पाते, अगर अली पीटर जॉन राष्ट्रिय अखंडता का सूचक नहीं है तो फिर कुछ भी नहीं है।'

मैं उस फिल्म की शूटिंग में भी गया था जहाँ मुझे शूटिंग देखने से ज़्यादा आनंद मुझे उनकी संगत में आया। उस फिल्म को एल.डी मनोहर डायरेक्ट कर रहे थे और ये मेरी ख़ुशनसीबी थी कि मैं उनके डायरेक्शन को देख सका और उनकी कम्पनी एन्जॉय कर सका क्योंकि ये शूट ज़्यादा दिन तक नहीं चली, वो फिल्म आगे न बढ़ सकी जिसका कारण न तब किसी ने जानना ज़रूरी समझा और न आज ही कोई जानने का तमन्नाई नज़र आता है।

और फिर 23 जून 1990 को, हर अख़बार इसी सुर्खी से भरा था कि देश में आज़ादी से पहले के गिने-चुने महान लोगों में से एक ने आज हमारा साथ छोड़ दिया। हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय नहीं रहे।

मेरी ज़िन्दगी में बहुत से बेहतरीन और नामी लोग आये हैं और बहुत से बिना किसी कोशिश के मेरी ज़िन्दगी में अहम किरदार की तरह रहे हैं, अगर मैं एक लिस्ट बनाऊं जिसमें बेहतरीन शख्स शामिल हों तो ये जीनियस, महान और ख़ूब शरारती आइकोनिक कलाकार और कथावाचक हरिद्रनाथ चटोपाध्यय यकीनन उनमें एक होगा।

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'>सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर' 

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