पुण्यतिथि स्पेशल / इन फिल्मों ने मीना कुमारी को बनाया ट्रैजडी क्वीन

महज़बीन बेग़म से मीना कुमारी और मीना कुमारी से ट्रैजडी क्वीन बनने तक का सफर…
सिनेमा जगत के इतिहास में एक दौर उन अभिनेत्रियों का भी रहा जिन्होने हीरो की पिछलग्गू बनकर नहीं बल्कि खुद अपनी अदाकारी के बलबूते वो मुकाम हासिल किया जिससे उनका नाम इतिहास में दर्ज हो गया। इनमें से एक थीं मीना कुमारी। जिनका महज़बीन बेग़म से मीना कुमारी और मीना कुमारी से ट्रैजडी क्वीन बनने तक का सफर बेहद दिलचस्प और उतना ही दिलों को छूने वाला है।
मीना कुमारी की मृत्यु केवल 38 साल की उम्र में ही हो गई था। लेकिन ये अपने आप में चमत्कार ही है कि 38 साल की उम्र तक वो 90 फिल्मों में काम कर चुकी थीं। और इन्ही 90 फिल्मों से कुछ ऐसी थीं जिन्होने उन्हें फिल्म इंडस्ट्री की ट्रेजडी क्वीन बना दिया। ये वो चुनिंदा फिल्में थीं जिनमें मीना बेबस, बेसहारा और लाचार महिला के किरदार में नज़र आई थी। आज उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें याद करना बेहद ज़रूरी है तो चलिए जानते हैं उनकी उन पांच फिल्मों के बारे में जिन्होने मीना कुमारी को बनाया ट्रैजडी क्वीन।
1. शारदा
Source - Wikipedia
यही वो फिल्म थी जिसमें पहली बार मीना कुमारी ने किसी दुखयारी महिला का किरदार निभाया।
प्रसाद के डायरेक्शन में बनी इस फ़िल्म ने वो चेहरा हिंदी सिनेमा को दिया जिसमें भारतीयता की झलक भरपूर थी। खास बात ये थी कि इस फिल्म में मीना पहली बार राजकपूर के साथ काम करती नज़र आई थीं
2. साहब, बीवी और गुलाम
Source - Amazon
साल 1962 में अबरार अल्वी ने एक बंगाली उपन्यास साहेब बीबी गोलाम को बड़े पर्दे पर उतारा तो उन्हे इसके लिए अपनी ‘छोटी बहू’ मीना कुमारी में ही नज़र आई। इस फिल्म को गुरुदत्त ने प्रोड्यूस किया था। जिसमें मीना कुमारी के अलावा गुरु दत्त, रहमान, वहीदा रहमान और नासिर हुसैन लीड रोल में थे। ये फिल्म बड़ी सुपरहिट साबित हुई थी। जिसने ना केवल चार फिल्मफेयर पुरस्कार जीते जिनमें से एक मीना को बेस्ट एक्ट्रेस के लिए मिला था। बल्कि इस फिल्म को 13वें बर्लिन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में गोल्डन बियर के लिए भी नॉमिनेट किया गया था। ये फिल्म मीना को एक अलग मुकाम पर ले गई।
3. दिल एक मंदिर
Source - Pinterest
साहेब, बीवी और गुलाम ने मीना कुमारी को वाकई बॉलीवुड की ट्रेजडी क्वीन बना दिया। उनके इस फिल्म में अभिनय देखकर अगले ही साल उन्हें ‘दिल एक मंदिर’ में लीड रोल मिला। 1963 में आई इस फिल्म का निर्देशन
सी वी श्रीधर ने किया था। जिसमें राजेंद्र कुमार, राज कुमार और महमूद ने लीड रोल निभाया था। इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता के झंडे गाडे थे।
4. पाकीज़ा
Source - Dainik Bhaskar
फिल्म में नरगिस नाम की एक ऐसी लड़की की कहानी बयां की गई थी जो कोठे पर रहती है और बेहद खूबसूरत है। मीना कुमारी ही वो लड़की नरगिस बनी थी। जिनसे नवाब सलीम अहमद खान यानि राज कुमार को बेइंतहा मोहब्बत हो जाती है। इस कहानी में ट्रैजडी की भरमार थी। एक दुखयारी लड़की जो संपूर्ण घराने से होकर भी कोठे पर बदनामी की जिंदगी बिताती है और प्यार से भी मोहताज हो जाती है। इस कहानी में बहुत दर्द था
5. काजल
Source - IMDB
1965 में आई इस फिल्म को उस साल की टॉप 20 फिल्मों में शामिल किया गया था।
जिसमें मीना कुमारी के साथ धर्मेंद्र, राज कुमार, पद्मिनी, हेलेन, महमूद और मुमताज़ भी थे। इस फिल्म में मीना कुमारी की अदाकारी का जादू छाया उन्हे उनके करियर का चौथा और आखिरी फिल्मफेयर पुरस्कार मिला।
अक्सर कहा जाता है कि सिनेमा जगत की दुनिया बाहर से जितनी चकाचौंध से भरी नज़र आती है असल में अंदर से उतनी ही अंधेरदार है। चेहरों पर भले ही नूर रहा हो लेकिन उन चेहरों के पीछे की हकीकत दर्द सहने वाला ही जानता है। वो इस चकाचौंध का अंधेरा ही था जो नाम, शोहरत, पैसा सब कुछ होते हुए भी मीना कुमारी को ले डूबा। आज ही वो मनहूस दिन था जब मीना ने मौत को गले लगा लिया। लेकिन लगता है इस ट्रैजडी क्वीन को अपनी मौत का अनुभव पहले ही हो गया था। तभी तो मीना कुमारी अपनी कब्र पर लिखवाना चाहती थीं..
'वो अपनी ज़िन्दगी को
एक अधूरे साज़,
एक अधूरे गीत,
एक टूटे दिल,
परंतु बिना किसी अफसोस
के साथ समाप्त कर गई'
औरपढ़ेंः गुलजार जो गुलजार ना बन सके...