नाम बदलने का सिलसिला फिर चल निकला है – मेजर ध्यानचंद खेल रत्न अवार्ड By Siddharth Arora 'Sahar' 06 Aug 2021 | एडिट 06 Aug 2021 22:00 IST in ताजा खबर New Update Follow Us शेयर भारत सरकार के बदलने पर सबसे पहला काम जो ज़ोर शोर से शुरु हुआ था वह जगह के नाम बदलने का था। प्रदेश के सबसे बड़े शहर इलाहबाद का नाम प्रयागराज हो गया था और रेलवे के सबसे बड़े स्टेशन (आउटर सहित) मुग़लसराय का नाम दीनदयाल उपाध्याय नगर कर दिया गया था। फिर दिल्ली की मशहूर सड़क औरंगज़ेब रोड का नाम बदलकर अब्दुल कलाम रोड कर दिया गया था। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के आने के बाद फैज़ाबाद जिले का नाम अयोध्या जी कर दिया गया है। अब लेटेस्ट नेम चेंजिंग रिपोर्ट ये कहती है कि बरसों से चले आ रहे ‘राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार’ का नाम भारत के बेस्ट हॉकी प्लेयर मेजर ध्यानचंद के नाम पर कर दिया गया है। एक नज़र में देखें तो ये तब्दीली गैरज़रूरी लगती है। भला किसी भी चीज़ का कोई भी नाम हो, उससे क्या फ़र्क पड़ता है। आख़िर मशहूर साहित्यकार विलियम शेक्सपियर ने भी तो कहा है कि ‘व्हाट इज़ इन दी नेम?’ यानी नाम में क्या रखा है लेकिन, अपने इस कथन के नीचे भी शेक्सपियर ने अपना नाम ही लिखा है। यूपी के मुख्यमंत्री योगीआदित्य नाथ की मानें तो वह नाम बदल नहीं रहे हैं बल्कि सही नाम वापस ला रहे हैं। मुग़लों और अंग्रेज़ों ने भारत पर आक्रमण कर बहुत से मंदिर तोड़े और बंद किये थे। इसके बाद कई जगहों के नाम अपने हिसाब से रखे थे। मसलन, अंग्रेज़ कानपुर नहीं बोल पाते थे इसलिए उन्होंने कानपुर जिले को ‘कौनपौर’ (Cawnpore) कर दिया था। जबकि सही नाम – कान्हापुर था, जो सचेंदी के हिन्दू सिंह और रमईपुर के घनश्यामसिंह ने रखा था। पर अंग्रेज़ कान्हापुर बोल नहीं पाते थे, इसलिए उन्होंने इसे अपने हिसाब से, कौनपोर लिखना और बोलना शुरु कर दिया लेकिन अब लोकल लोग कौनपोर नहीं बोल पाते थे इसलिए यह बिगड़-बिगड़कर कानपुर ही हो गया और अंग्रेज़ों के जाने के बाद इसका नाम ऑफिशियल तौर पर कानपुर कर दिया गया। अब आप बताइए, क्या आप कान्हापुर से कानपुर तक के सफ़र की कहानी जानते थे? क्या आपके मन में कभी ये सवाल नहीं आया कि भला किसी शहर का नाम शरीर के अंग पर क्यों रखा गया है? जबकि असल नाम भगवान श्रीकृष्ण के नामपर था। इसी तरह इलाहबाद की भूमि सदियों पहले प्रयागराज ही कहलाती थी। इसकी भी एक कहानी है। PrayagRaj जिस जगह दो नदियाँ मिलती हों उस स्थान पर पूजा करना, यज्ञ करना उत्तम माना जाता था। वहीं जहाँ गंगा नदी यमुना से मिले वह प्रकृष्ट याज्ञ कहलाता था, यानी वह स्थान जो यज्ञों में सबसे उत्तम है। यह प्रकृष्ट याज्ञ आम भाषा में पहले प्रकृष्टयाग और फिर प्रयाग कहलाया जाने लगा। लेकिन इस स्थान पर दो नहीं बल्कि तीन पवित्र नदियाँ मिलती हैं, यानी गंगा, यमुना और सरस्वती की त्रिवेणी निकलती है इसलिए यह स्थान सारे प्रयागों में सबसे ऊपर, उनका राजा, प्रयागराज कहलाया। लेकिन मुग़लिया काल में सबसे ज़्यादा दिक्कत हिन्दू धार्मिक स्थलों से ही थी सो उन्होंने इसका नाम बदलकर इलाहबाद कर दिया। इलाहबाद का अर्थ अल्लाह का बसाया नगर होता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण वो शहर है जिसका नाम मौजूदा सरकार ने नहीं बदला बल्कि बरसों पहले, लड़-झगड़कर, छीनकर बदला गया है. जी हाँ मैं मुंबई की बात कर रहा हूँ जो भारत की वाणिज्य राजधानी है. इसका नाम अंग्रेज़ों के समय बोम्बे था और फिर बिगड़कर बम्बई हो गया था. लेकिन पहले हम ये जानते हैं कि नाम बॉम्बे कैसे पड़ा था! 16वीं शताब्दी में हमारे देश में पुर्तगालियों का बहुत आना जाना हुआ था. पुर्तगाली मुम्बई को ‘बोम बेइम’ कहते थे जिसका अर्थ था – छोटी सी सुन्दर खाड़ी, वह जगह जो समुन्द्र से जुड़ी है. लेकिन ये बोमबेइम बिगड़कर बोमबेन और बोमबेय भी बना. फिर अंग्रेज़ों ने अपनी सहूलियत के लिए इसका नाम बॉम्बे कर दिया जिसे फिर 1995 में शिवसेना ने सत्ता में आने के बाद ‘मुम्बई’ किया. मुम्बई का अर्थ है – मुम्बा-आई, यानी मुम्बा देवी जो आई मतलब माँ हैं. मुम्बा आई को महाराष्ट्र में बहुत पूजा जाता है. शायद इन्हीं कारणों से पिछले बीस साल से लगातार लोगों की मांग थी कि जब पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी कभी किसी खेल का हिस्स्सा नहीं थे तो उनके नाम पर खेल रत्न पुरस्कार क्यों रखा गया है? आज सुबह इसी का जवाब देते हुए भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने इसका नाम बदलते हुए ‘मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार’ कर दिया। अब ये तब्दीली भले ही अभी समझ न आए लेकिन आने वाली पीढ़ी कम से कम याद तो रखेगी कि एक मेजर ध्यानचंद हुआ करते थे और जिस वक़्त हॉकी प्लेयर्स को कोई ख़ास पैसा नहीं मिलता था, वह रेलवेज़ या आर्मी में जॉब पाने के लिए स्पोर्ट्स कोटे से एंट्री किया करते थे; तब मेजर ध्यानचंद का खेल देखकर जर्मनी के तानाशाह अडोल्फ़ हिटलर ने उन्हें तिगुने वेतन, जर्मनी की सिटिज़नशिप सहित आर्मी में कर्नल रैंक ऑफर की थी और आप जानते हैं कि मेजर ध्यानचंद ने क्या जवाब दिया था? उन्होंने गर्व से कहा था कि “भारत बिकाऊ नहीं है” इंडिया इज़ नॉट फॉर सेल' अब ऐसी ग्रेट पर्सनालिटी, ऐसे देशभक्त स्पोर्ट्सपर्सन के नाम पर खेलरत्न पुरस्कार रखे जाने के चलते आपको आपत्ति होती है, तो यकीनन आपको ख़ुद से सवाल करना चाहिए। बाकी उम्मीद है आने वाले समय में ऐसे दर्जनों नाम पेंडिंग है जिन्हें बदला जायेगा, या मैं यह लिखूं ही वह नाम किया जायेगा जो नाम उस पोजीशन के लिए हक़दार है। -सिद्धार्थ अरोड़ा ‘सहर’ हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article