कहते हैं ऊपर वाला जब भी देता है छप्पड़ फाड़ के देता है, पर क्या हम जो मिले उसका एक अंश भी ख़ुश होकर, निःस्वार्थ कहीं किसी को दे पाते हैं? हम सब कोई न कोई काम ऐसा कर ही रहे हैं जिससे हम पैसा कमा सकें, उसी कमाए पैसे से हम कभी किसी भिखारी की ओर सिक्का भी उछाल देते हैं तो कभी किसी मंदिर गुरूद्वारे में पर्ची कटवा लेते हैं। लेकिन एक गायिका ऐसी है जिसने गाना गाने की शुरुआत ही इसलिए की कि उसे एक बच्चे का ऑपरेशन कराना था।
हम बात कर रहे हैं पलक मुछाल की जो इंदौर में जन्मीं ज़रूर थीं लेकिन अब उनके पाँव बादल पर रहते हैं। वह अपने भाई पलाश के संग पूरे देश में शो करती हैं, बॉलीवुड के लिए भी गाती हैं लेकिन इनका गाना सिर्फ पैसा कमाने के लिए नहीं होता।
पलक जब छोटी थीं तभी से गाना गाने लगी थीं। उन्होंने सात साल की उम्र से ही लोगों की मदद करनी भी शुरु कर दी थी।1999 में नन्हीं पलक ने कहा कि कारगिल युद्ध में शहीद हुए जवानों के घरवालों के लिए वह रुपए इकठ्ठा करेगी। उनके पिता एक प्राइवेट नौकरी करते हैं पर उन्होंने हमेशा अपने बच्चों को सपोर्ट किया। मजे की बात ये हुई कि सन 99 में पलक ने एक दो नहीं बल्कि 25000 से ज़्यादा जवानों के लिए बटोर लिए। इस बात की तारीफ हर जगह हुई। यहीं उनके स्कूल से एक लोकेश नामक लड़के की ख़बर मिली जो दिल की एक घातक बिमारी से जूझ रहा था।उसके पिता ऑपरेशन का ख़र्च नहीं उठा सकते थे। सो उन्होंने पलक से कहा, पलक के माता-पिता भी राज़ी हो गए। सोचा छोटे-छोटे तीन-चार शो करेंगे तो 55000 के करीब इकठ्ठा हो जायेगा और बच्चा बच जायेगा। अब पलक के पास ज़्यादा पैसे तो थे नहीं, सो उसने एक ठेले को ही अपनी स्टेज पर रखकर पोडियम की तरह सजा लिया और शो किया। उस शो में उसने करीब 40 गाने गाये।
जब उन्होंने दान-पेटी खोली तो उसमें देखा कि तकरीबन 55000 रुपए इकट्ठे हो चुके हैं। लेकिन साथ ही, एक ताम्बे की अंगूठी भी मिली जिसे एक अन्य ठेले वाला डाल गया था। उस बिचारे के पास भले ही पैसे नहीं थे, पर नीयत में उसकी की भी कोई कमी न थी।
अब पलक लोकेश का इलाज कराने ले गयी तो उनकी बात मशहूर डॉक्टर देवी प्रसाद शेट्टी से हुई। देवी प्रसाद ने उनसे कहा कि अगर पलक लोकेश को बंगलौर ले आए तो मैं बिना किसी ख़र्च के इसका इलाज कर दूंगा। पलक बंगलौर ले गयी और वाकई बिना किसी ख़र्च के पूरा इलाज हो गया। अब इलाज हो गया, ख़र्च भी न हुआ तो सोचा पैसों का क्या करें? तो पलक के पिता ने अख़बार में एक विज्ञापन दे दिया कि किसी बच्चे के दिल में कोई तकलीफ हो और पैसों की वजह से आप इलाज न करवा पा रहे हों तो हमसे संपर्क करें।
अगले ही दिन 7 बच्चों की तरफ से जवाब उन्हें मिले और हफ्ता बीतते ये आंकड़ा 33 पर पहुँच गया। अब ख़र्च तो सिर्फ एक ही बच्चे के लिए था। सो पलक ने और शो करने शुरु किए और सवा दो लाख रुपए साल भर में जुटा लिए। अब यहाँ इंदौर के फेमस हॉस्पिटल टी चोइथराम का ज़िक्र भी ज़रूरी है। इस हॉस्पिटल ने 80,000 के ख़र्च में होने वाली सर्जरी के लिए मात्र 40,000 मांगे और यहाँ के सबसे क़ाबिल सर्जन धीरज गांधी ने पलक द्वारा लाने वाले हर बच्चे के ऑपरेशन की फीस लेने से मना कर दिया।
तो ये है पलक मुछाल, जिसने इंदौर में रहते हुए 2001 में आया गुजरात भूकंप और ओड़िसा में प्राकृतिक आपदा के लिए भी ख़ूब डोनेट किया।
पलक की ख़ास बात ये है कि वह काम करके डोनेशन नहीं करतीं बल्कि वह काम करती ही इसलिए हैं कि चैरिटी कर सकें। उन्होंने 2006 तक किसी से कोई फाइनेंसियल मदद नहीं ली। जो किया उनके और उनके भाई ने अपने बूते पर किया।
पलक के गायन की बात करूँ तो वह भारत की 17 भाषाओँ में गाना गा सकती हैं जिनमें हिन्दी, संस्कृत, गुजराती, उरिया, बंगाली, असमी, राजस्थानी, हरयाणवी, भोजपुरी, पंजाबी, मराठी, तमिल, तेलगु, कन्नड़ और मलयालम तक शामिल है।सलमान, खान, अमिताभ बच्चन, आमिर खान आदि बड़े-बड़े सारे स्टार्स खुले मंच पर उनकी जमकर तारीफ कर चुके हैं। वह सिर्फ सर्जरी ही नहीं कराती बल्कि इंदौर में होने वाले हर ऑपरेशन में वह खुद ppe किट पहने मौजूद रहती हैं। पलक मुछाल हार्ट फाउंडेशन के लिए इंदौर के भंडारी हॉस्पिटल ने 10 लाख रुपए तक का ओवरड्राफ्ट अलाऊ किया हुआ है।
अब जो सबसे ख़ुशी की बात है वो भी आपके साथ शेयर करना चाहता हूँ –
पलक मुछाल के नाम से एक चैप्टर बच्चों के पाठ्यक्रम में भी आ चुका है। हाल ही में पलक ने अपने ट्विटर हैंडल से ये ट्वीट किया कि वह ये सम्मान पाकर अभिभूत हैं। उसमें मराठी टेक्स्ट बुक की कुछ फ़ोटोज़ भी थीं जिनमें हम देख सकते हैं कि पलक का कैरिकेचर भी बना हुआ है।
आज पलक सौ से अधिक बॉलीवुड सोंग्स गा चुकी हैं जिनमें आशिकी 2, किक और प्रेम रत्न धन पायो जैसी नामी फिल्में भी शामिल हैं। ‘तू ही ये मुझको बता दे, चाहूं मैं या न’ कई हफ़्तों तक टॉप ऑफ द चार्ट भी रह चुका है।
पलक अबतक 2200 बच्चों की ज़िन्दगी बचा चुकी हैं और उनकी उम्र अभी मात्र 29 साल है। सोचिए, अगर इरादे नेक हों तो कहाँ से कहाँ रास्ते निकल आते हैं। पैसा तो बहुत लोग कमाते हैं पर, ख़र्च भी बहुत लोग करते हैं, दान पुण्य भी शायद सभी के हिस्से आता होगा पर पलक जैसा दिल, पलक जैसी नीयत हमने पहले कभी किसी की नहीं देखी।
मायापुरी ग्रुप पलक के जज्बे को सलाम करता है।