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क्रिस्टोफर नोलन के चाहने वाले पूरी दुनिया में हैं. मगर क्रिस्टोफर जो दिखाना चाहते हैं वो पूरी दुनिया के लिए ही समझना बहुत मुश्किल होता है. हालाँकि, उनकी ऐसी कोई फिल्म नहीं है जो बड़ी हिट न हुई. फिर चाहें वो बैटमैन सीरीज़ हो, मिस्ट्री थ्रिलर प्रेस्टीज हो, सपनों दुनिया में बसी इन्सेप्शन हो. क्रिस्टोफर की फिल्मों की कमाई शायद इसलिए भी ज़्यादा होती है क्योंकि दर्शक एक बार देखकर फिल्म समझ ही न पाते हैं.
- सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर'
ज़रा बताओ तो कहानी क्या है?
फिल्म की कहानी एक स्पेशल ऑपरेशन से शुरु होती है जिसको 'नायक'/Protagonist (जॉन डेविड वाशिंगटन) लीड कर रहा है. इसका कोई नाम नहीं है. इसकी बस यही पहचान है कि ये नायक है. मगर बदकिस्मती से ये उसी मिशन के दौरान रूसियों द्वारा पकड़ा जाता है और लम्बे टॉर्चर के बाद, अपने साथियों के नाम बताने कि बजाए मरना पसंद करता है. यहीं कहानी में ट्विस्ट आता है. इसे बचा लिया जाता है और इसे भविष्य से आने वाले ख़तरे 'टेनेट' के बारे में जानकारी दी जाती है. इसके बाद नायक ऐसी गोलियों से रूबरू होता है जो सामने जाने की बजाए वापस लौटकर आती हैं.
इसके आगे कुछ भी बताना सस्पेंस के साथ अन्याय करना होगा.
क्रिस्टोफर का डायरेक्शन कैसा लगा?
डायरेक्शन और स्क्रीनप्ले ऐसा है कि आप जैसे ही फिल्म देखकर ख़त्म करोगे, उसके दस मिनट बाद ही आपका दिल चाहेगा कि आप दोबारा देखनी शुरु कर दो. क्रिस्टोफर ने Tenet की ऐसी बारीकियों पर भी ध्यान दिया कि आप reverse चलते एक भी scene की आधी ग़लती भी न निकाल सकोगे.
फिल्म के डायलॉग्स बहुत ख़ूबसूरत हैं. 'We live in a twilight world. There are no friends at dusk' इसकी टैग लाइन है जो अपने आप में फिल्म का सार बयां कर देती है.
एक्टिंग किसकी कैसी लगी? सुना डिम्पल कपाड़िया भी हैं इसमें?
डिम्पल कपाड़िया की बात करूँ तो क्रिस्टोफर नोलन के सामने ऑडिशन देते वक़्त डिंपल लाइन्स भूल गयी थीं, फिर भी क्रिस ने उन्हें हौसला दिया और ये जता दिया कि उनके टेनेट (TENET) की प्रिया तो यही बनेगीं.
डिंपल ने बहुत शानदार एक्टिंग की है. नायक बने डेविड एक्शन सीन्स में छा गए हैं. लेकिन क्रिस्टोफर की अमूमन हर फिल्म की तरह इसमें भी स्टार अट्रैक्शन सेकंड लीड ने खींच लिया है. जी हाँ, मैं ट्वाईलाईट फेम रोबर्ट पैटिंसन की बात कर रहा हूँ. उनका स्क्रीन प्रेसेंस और ह्यूमर टाइमिंग ज़बरदस्त है.
एलिज़ाबेथ डेबेकि और केनेथ ब्रनाग भी अपने रोल में बहुत जमे हैं. बैटमैन सीरीज़ के 'अल्फ्रेड' माइकल केन क्रिस्टोफर की फिल्म में न हो ऐसा हो ही नहीं सकता था. माइकल केन ने भी एक सीन किया है जिसके डायलॉग बार-बार सुनने लायक हैं.
धुन थोड़ी सी छूट रही है
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हॉलीवुड के मशहूर संगीतकार, वहाँ के 'ए.आर. रहमान' हैंस ज़िमर ने क्रिस्टोफर नोलन के साथ मिलकर बैटमैन डार्क नाइट में जो म्यूजिक दिया था, उसकी तारीफ कुछ जगह फिल्म से भी ज़्यादा हुई थी. क्रिस्टोफर इस बार भी हैंस के साथ काम करना चाहते थे पर हैंस किसी दूसरे प्रोजेक्ट में बिज़ी थे इसलिए टेनेट (Tenet) का म्यूजिक लुडविग (Ludwig Göransson) ने दिया. लुडविग का म्यूजिक कुछ जगह बहुत लाउड है और कुछ जगह बहुत अच्छा है. अगर किसी अन्य से तुलना न करें तो म्यूजिक अच्छा है पर तुलना न करना ही तो सबसे मुश्किल काम है.
सिनेमेटोग्राफी, वीएफएक्स और एडिटिंग की बात ही निराली सनम
एक और मैं कॉमन फैक्टर बताता हूँ क्रिस्टोफर की फिल्मों का, उनकी अमूमन फिल्मों की शुरुआत किसी लूट डकैती या चेज़ (chase) से ही होती है. Tenet में भी आप पहले सीन से सिनेमेटोग्राफी (by Hoyte Van Hoytema) के साथ-साथ ख़ुद को बाँध लेंगे। इनवर्टेड टाइम के दौरान वीएफएक्स शानदार हैं.
एडिटिंग पक्ष ज़रा कमज़ोर ज़रूर लगता है क्योंकि तकरीबन ढाई घंटे तक खिंचने वाली इस फिल्म में क्लियर कुछ भी नहीं करा गया है. स्टोरी फिलर्स के वक़्त, डिटेलिंग का समय भी कोई न कोई ऐसा एक्शन सीन डाल दिया है जो न भी होता तो बेहतर लगता।
कुलमिलाकर बात कुछ ऐसी है कि......
फिल्म यकीनन बुरी नहीं है, फिल्म अच्छी है. कुछ जगह इंटरेस्टिंग भी है और कुछ जगह सोचने पर मजबूर भी करती है. बस समस्या ये है कि क्रिस्टोफर नोलन से जो उम्मीद जोड़े हम सब बैठे होते हैं, उसके पासंग भी नहीं है. बादबाकी एक बार देखने से क्या होता है, क्या पता दो बार देखने पर ज़रा बहुत नज़रिया बदल जाए.
Tenet हर उस शख्स के लिए तो देखनी ज़रूरी है जो क्रिस्टोफर नोलन का फैन है, वो भी देख सकते हैं जो फिजिक्स में, साइंस में गहरी रुचि रखते हैं. हाँ, जिनका इन दोनों से लेना-देना नहीं है पर फिल्म का नाम बहुत हो रहा है ये सोचकर देखने का मन बना रहे हैं तो............ उनकी इच्छा!
रेटिंग 7/10*
कुछ मेरे मन की भी.............
टेनेट एक भविष्य और भूतकाल के बीच झूलती एक ऐसी कहानी है जो एक बारगी ये भ्रम दे सकती है कि 'नायक' दुनिया ख़त्म होने से रोक सकता है. ऐसी पचपन फ़िल्में तो मैं देख चुका हूँ जिसमें भविष्य से भूतकाल में घुसकर अपना वर्तमान सुधारने की कोशिशें करते दिखाया गया है. हम आप अक्सर बैठे ऐसा सोचते भी हैं. मगर सच क्या है?
सच ये है, कि हर एक बीतता पल भूतकाल में तब्दील हो रहा है और हर सांस लेता पल हमारा वर्तमान है. हमें अपनी हर एक साँस को बस इतनी किफ़ायत से ख़र्चना है कि भविष्य में आने वाला कोई पल हमें अफ़सोस करने का मौक़ा न दे.
ये समीक्षा आपको कैसी लगी ये कमेंट कर ज़रूर बताएं।