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पिछले साल हंसल मेहता की पहली वेब सीरीज़ ‘स्कैम 1992’ जो हर्षद मेहता उर्फ The Big Bull पर बेस्ड थी - ने OTT स्क्रीन पर धूम मचा दी थी। क्या बच्चे क्या बूढ़े, SONY LIV पर इस वेब सीरीज़ को सबने देखा था। असल हर्षद मेहता को याद करूँ तो, उस वक़्त भी जब हर्षद ने स्कैम किया था तब जो लोग स्टॉक मार्केट में दिलचस्पी नहीं रखते थे, वो भी इस स्कैम की जानकारी बहुत रुचि से पढ़ते थे। अनजाने लोगों को भी पता चल गया था कि हर्षद मेहता कौन है।/mayapuri/media/post_attachments/5248c28bc37ebb34c5d8c203041f51c05b49bbbfbe3e2414eced27f49a7d716e.jpg)
अजय देवगन फिल्म्स द्वारा निर्मित अभिषेक बच्चन की The Big Bull यूं तो 2020 में ही तैयार हो गई थी लेकिन कोरोना के चलते एडिटिंग फाइनल नहीं हो सकी थी। हालांकि कोरोना काल में फंसी हर फिल्म के साथ यही हुआ है पर अजय भी नहीं जानते होंगे कि उनके बिग बुल का लेट होना कितना नुकसानदायक साबित होने वाला है।/mayapuri/media/post_attachments/f12509a4804f2f117f1129618bd3e8ced5bc09c94cc74ddb8a233eb58e6a1354.jpg)
जी हाँ, कहानी की बात करूँ तो अगर आपने स्कैम 1992 नहीं देखी है, तो आपको अच्छी लग सकती है। सीनियर जर्नलिस्ट मीरा रॉय (इलियाना डि क्रूज़) एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को सबोधित कर रही हैं और वहाँ एक किताब रखी दिखाई दे रही है ‘The Big Bull’/mayapuri/media/post_attachments/05eedd564c30e6da6fe7da7154be93d92bedf93e9a363f833574d8042e31bc94.jpg)
अब यहाँ से कहानी फ्लैशबैक में पहुँचती है जहाँ हेमंत शाह (अभिषेक बच्चन) को उसके दफ्तर में कोई टिप देता है कि बॉम्बे टेक्सटाइल के शेयर उछलने वाले हैं। तभी पता लगता है कि उसका भाई विरेन (सोहम शाह) ने किसी बोगस कंपनी के नाम पर डेढ़ लाख के शेयर बाज़ार से उधार लेकर खरीद लिए थे और अब वसूली वाले उसे पीट रहे हैं।/mayapuri/media/post_attachments/e83a608c065e1f3a8f412c8d13ecc5f082708d2ca7aec49f9f312ab1bdd6b68c.jpg)
यहीं से हेमंत की राइज़िंग शुरु होती है। वो एक के बाद एक लॉजिकल और रिसर्चड डील करता है, ब्रोकर के अंदर काम करता है और मिल मजदूरों से सेटिंग करके अच्छा पैसा बनाने लगता है और देखते ही देखते वो शेयर मार्केट का The Big Bull बन जाता है।
फिर वही बैंक फ्रॉड और फलाने ढिमकाने का चक्कर शुरु होता है।
इसकी कहानी तो हर्षद मेहता पर ही बेस्ड है लेकिन स्क्रीनप्ले बहुत क्लीशै यानी बेढब है। कूकी गुलाटी के डायरेक्शन की ये चौथी फिल्म है और इससे पहले तीन में से दो फिल्में (प्रिंस और प्यारे मोहन) उन्होंने बहुत वाहियात बनाई हैं। अपने रेकॉर्ड को न तोड़ते हुए इस बार The Big Bull में भी उन्होंने बहुत बुरा डायरेक्शन किया है। स्क्रीनप्ले लचर है और आधी फिल्म देखते-देखते नींद भी आ सकती है।
लेकिन एक्टिंग की बात करूँ तो अभिषेक बच्चन छा गए हैं। आप उनकी तुलना प्रतीक गांधी से न कीजिए क्योंकि प्रतीक के पास कैरेक्टर डिवेलप करने के लिए दस एपिसोड थे, अभिषेक को वही काम सवा दो घंटे में करना था और उन्होंने बहुत खूबसूरती से वो किया भी है।/mayapuri/media/post_attachments/f413ddb66de9c4c8af6c339a947df659147aae6652b477b56f6c52034634381e.jpg)
उनके बाद इलियाना औसत रही हैं। उनकी न हिन्दी अच्छी है, न वो बांग्ला बोलती या ऐक्सेन्ट पकड़ती नज़र आई हैं। फिर भी दो एक सीन में वो अच्छी लगी हैं। हेमंत के भाई बने सोहम शाह औसत से भी नीचे नज़र आए हैं। यही सोहम शाह तुम्बाड़ में लीड रोल करते हुए छा गए थे पर यहाँ सेकंड लीड में नहीं जम सके। सौरभ शुक्ला का रोल कम है लेकिन उनके डायलॉग असरदार है।
राम कपूर भी लुक वाइज़ अच्छे लगे हैं पर उनका रोल बहुत सीमित है। महेश मांजरेकर मात्र डेढ़ सीन के लिए हैं। निकिता दत्ता भी औसत लगी हैं। कुछ ऐसा नहीं है जो याद रखा जाए। सुमित व्यास ज़रूर अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहे हैं पर उनका रोल ही कितना है। ज़रा बहुत स्क्रीन समीर सोनी को भी मिली है।/mayapuri/media/post_attachments/0e7cdb80d3e1bf2957eb9a275d561d83f87516bf84a5651feb69426d32d7adfd.jpg)
फिल्म की सबसे कमज़ोर कड़ी उसका म्यूजिक है। टाइटल ट्रैक The Big Bull कानों में शोर लगता है। बैकग्राउन्ड म्यूजिक भी बेअसर है। साउन्ड का ये आलम है कि सोहम पेपर वेट फेंकते हैं तो आवाज़ ग्लास टूटने की आती है। /mayapuri/media/post_attachments/e9c09e357b7ec3cc957ddfe8b236c5743c4eebb35d1bd458dd8b1c49b2eafbe9.jpg)
कुलमिलकर ये फिल्म सिर्फ और सिर्फ अभिषेक बच्चन की एक्टिंग के लिए एक बार, उठते-बैठते खाते पीते देखी जा सकती है। लेकिन उसमें भी डायरेक्शन और एडिटिंग की वाहियातगिरी ये है कि हेमंत शाह को जेल में मारने से पहले घंटों गाड़ी के पीछे बांधकर भगाया गया है। उस शहर की सड़कों पर जो शहर कभी सोता नहीं है। देश के सबसे अमीर आदमी को पुलिस सड़क पर जीप से बांधकर इसलिए दौड़ा रही है ताकि उसे हार्ट अटैक आ जाए? क्या सोचकर, या बल्कि मैं पूछूँ कि क्या सूंघकर ये सीन लिखने की साजिश की गई है ये शायद अजय देवगन खुद भी नहीं समझ पाए होंगे। हालांकि ये सीन भी क्लियर नहीं है, क्लिप्स में दिखाया गया है।
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