देवानंद की आत्मकथा के पीछे की कहानियां

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By Mayapuri Desk
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देवानंद की आत्मकथा के पीछे की कहानियां

अली पीटर जॉन

अपने जीवन के अंतिम 10 सालों में देवानंद के पास कई लेखक आयें जो उनके जीवन पर किताब लिखना चाहते थे. इनमें से कुछ भारत के थे और कुछ दूसरे देश के .पर देवानंद किसी को भी अपने ऊपर किताब लिखने की अनुमति नहीं देना चाहते थे. वो हमेशा मेरे से पूछते थे कि कौन उनके ऊपर किताब लिख सकता है,सिवाय उनके?

एक सुबह उन्होंने मुझे फोन किया और मुझसे कहा कि मैं उनके ऑफिस आ जाऊं,क्योंकि वो मुझे कुछ सरप्राइज़ देना चाहते थे. उन्होंने मुझे बहुत से किताबों के ढेर और रंग-बिरंगे कलम दिखाएं.देवसाहब ने कहा कि वो चाहते हैं कि मुझे यह बात सबसे पहले पता हो कि वह अपने जीवन के ऊपर किताब लिखने जा रहे हैं. उन्होंने एक पन्ना उठाया और जो लिखना शुरू किया वो फिर अगले 3 महीने तक नहीं रुका. उन सभी कॉपियों को उन्होंने अपनी हैंडराइटिंग से भर दी जिसमें प्रत्येक अक्षर कैपिटल में थे.

देवानंद की आत्मकथा के पीछे की कहानियां

मुझे बीच-बीच में अपने द्वारा लिखे गये कुछ पन्नें भी भेजा करते थे पढ़ने को, और मेरा यह सौभाग्य है कि मुझे उस इंसान के बारे में इतनी रुचिकर बातें पढ़ने को मिल रही थी जिस इंसान का कैरियर छह दशक से भी ज्यादा का रहा है. उन्होंने यह किताब 3 महीने और 20 दिन में खत्म की, जो मुझे लगता है कि सबसे कम समय है जिसमें किसी लेखक ने हजार पन्नों की एक किताब लिखी होगी. उन्हें किसी पब्लिशर को ढूंढने की भी जरूरत नहीं थी क्योंकि देश के सभी पब्लिशर्स उनकी किताब छापने के लिए मर रहे थे.

और इन सभी पब्लिशर में विजेता हुए हार्पर एंड कॉलिन्स पब्लिशर. उन्होंने थोड़ा समय लिया और जब किताब का एडिटेड वर्जन उन्होंने देव साहब को दिया तो देव साहब बहुत निराश हुए.पर पब्लिशर ने कहा कि वो इस किताब को दो भाग में रिलीज करेंगे. किताब का नाम रखा गया 'रोमांसिंग विद लाइफ' जो देव साहब ने खुद रखा था.

देवानंद की आत्मकथा के पीछे की कहानियां

देव साहब ने मुझे बताया कि उन्होंने इस किताब में अपने जीवन और अपने काम से जुड़े सभी बातों को बड़ी सच्चाई के साथ लिखा है. पर अपने जीवन से जुड़ी महिलाओं के बारे में उन्होंने नहीं लिखा है क्योंकि वो अपने जीवन के इस पड़ाव पर किसी को दुख नहीं पहुंचाना चाहते हैं.
किताब के अनावरण की तिथि तय की गई. वो चाहते थे कि अमिताभ बच्चन इस किताब को रिलीज करें. पहले तो मुझे लगा कि वो मजाक कर रहे हैं पर उन्होंने कहा नहीं मैं मजाक नहीं कर रहा. मैंने उनसे कहा कि आप अमिताभ जी को फोन करें और इससे पहले कि वो कुछ सोचते मैंने अमिताभ जी को कॉल किया और देवानंद को मोबाइल दे दिया. सिर्फ 2 मिनट लगे अमिताभ बच्चन को देवानंद की विनती को स्वीकार करने में और मैं बहुत ही आश्चर्यचकित था अमिताभ बच्चन की स्वीकृति पर देव साहब के चेहरे की खुशी को देखकर.

बुक का अनावरण मुंबई के लीला होटल में अमिताभ बच्चन द्वारा हुआ और अतिथि के रूप में वहां देवानंद की कुछ पसंदीदा अभिनेत्रियाँ जैसे वहीदा रहमान, हेमा मालिनी, राखी और तब्बू थी. देव के लिए राखी और हेमा के दिल में बहुत प्यार और सम्मान था. वो उनके जन्मदिन अौर उनके किसी भी फिल्म के रिलीज से पहले पर पूजा किया करती थी.

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अब इस किताब को दिल्ली में रिलीज करने का समय था उन्होंने मुझसे कहा कि प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से इस बुक का अनावरण करवाया जाए पर प्रधानमंत्री जी से उनकी ऐसी कोई खास बतचीत थी नहीं तो मैंने उनसे उनका नंबर डायल करने को कहा और प्रधानमंत्री ने उनके इस प्रस्ताव को बहुत खुशी के साथ स्वीकार किया. उन्होंने कहा कि 26 सितंबर (जो देव का जन्मदिन भी है)को इस किताब का अनावरण वो अपने घर पर ही करना चाहते है. और क्या भव्य अनावरण था वो.

मैं अब सोचता हूं कि उन सभी पन्नों का क्या हुआ जो पब्लिशर ने छापा नहीं था. मैं सोचता हूं कि उस वादे का क्या हुआ जो पब्लिशर ने देव साहब से किया था कि वो किताब का दूसरा भाग भी छापेंगे. मैं सोचता हूं कि उन सभी आधुनिक वाद्य यंत्रों का क्या हुआ जो देव साहब ने कुछ ही साल पहले खरीदा था ताकि वो अपने स्टूडियो को एशिया का सर्वश्रेष्ठ स्टूडियो बना सकें. मैं सोचता हूं कि उन किताबों के ढेर का क्या हुआ जो देव साहब के लाइब्रेरी में रखा होता था.

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अब मैं यह भी सोच कर परेशान होता हूं कि क्या होगा देव साहब के आइरिस पार्क,जुहू वाले बंगले का? मैं कब तक उस इंसान के बारे में सोचता रहूंगा जो मेरे जीवन के महानतम चमत्कार में से एक थे.

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