ये इतना मुश्किल दौर है कि बहुत सी जान कोविड की वजह से नहीं बल्कि घबराहट की वजह से, हिम्मत हार जाने की वजह से जा रही हैं. covid से ठीक हुए पेशेंट को हार्ट अटैक लील रहा है. किसी को इस बात की घबराहट है कि कहीं ऐसा न हो वो कल को मर जाए, इसलिए उसने आज जीना छोड़ दिया है.
लेकिन इस दौर में भी फैज़-अहमद-फैज़ का वो शे’र याद आता है कि –
दिल नाउम्मीद तो नहीं, नाकाम ही तो है.
लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है.
हमें ये सोचना होगा कि जिन मरीज़ों की दुर्भाग्य से जानें जा रही हैं, जो covid से रिकवर नहीं हो पा रहे हैं उनके लिए दुःख होने के साथ-साथ हमें उनके लिए हिम्मत भी रखनी पड़ेगी जो ज़िन्दा हैं, जो लड़ रहे हैं, जो हर एक सांस को कीमती मानकर अगली सांस खींच रहे हैं. दिल नाकाम हुआ हो तो कोई बात नहीं, फिर कामयाब जो जायेगा, बस नाउम्मीद नहीं होना चाहिए. शाम कितनी भी लम्बी हो, शाम ही रहेगी, आख़िर तो ख़त्म होगी. ऐसे ही ये मुसीबत, ये covid भी आख़िर कबतक रहेगा? रोज़ पिछले दिन से ज़्यादा पेशेंट रिकवर हो रहे हैं, शायद इसी दौर के लिए जावेद अख्तर ने सन 1994 में विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म 1942 अ लव स्टोरी के लिए ये गाना लिखा था, जिसे हमारे पंचम दा आपके आर-डी बर्मन ने अपने म्यूजिक में पिरोया था और शिवाजी चटोपाध्याय ने अपनी आवाज़ दी थी –
ये सफ़र बहुत है कठिन मगर
ना उदास हो मेरे हमसफ़र
ये सितम की रात है ढलने को
है अन्धेरा गम का पिघलने को
ज़रा देर इस में लगे अगर, ना उदास हो मेरे हमसफ़र
नहीं रहनेवाली ये मुश्किलें
ये हैं अगले मोड़ पे मंज़िलें
मेरी बात का तू यकीन कर, ना उदास हो मेरे हमसफ़र
कभी ढूँढ लेगा ये कारवां
वो नई ज़मीन नया आसमान
जिसे ढूँढती है तेरी नजर, ना उदास मेरे हमसफ़र
तो मित्रों ज़रा देर लगेगी, सबका साथ लगेगा, कोशिश में आख़िरी सांस तक की बाज़ी लग सकती है लेकिन मेरी बात का यकीन कीजिए, हम जल्द ही इस मौत और मुसीबत के दौर से सुरक्षित निकल चुके होंगे