आखिर ममता दीदी की अंगुली पकड़ ही ली बाबुल ने। पिछले अगस्त महीने में जब बाबुल सुप्रियो ने राजनीति से सन्यास लेने की बात कही थी और उनके बीच की नज़दीकियों ने कयास लगाया था कि बाबुल यह सब प्रचार पाने के लिए कर रहे हैं, तभी 'मायापुरी' में हमने बताया था कि बाबुल की यह सोशल मीडिया की उठक बैठक ना सन्यास के लिए है ना प्रचार पाने के लिए है। बॉलीवुड का यह गायक राजनीति में आकर सधा खिलाड़ी बन चुका है और वह कोई छलांग लेने की तैयारी में है। और, दो महीने के अंदर ही बाबुल ने छलांग लगा दी है। उन्होंने बीजेपी छोड़कर बंगाल की सत्तासीन ममता बनर्जी की तृणमूल (TMC) पार्टी ज्वॉइन कर ली हैं। - शरद राय
भारतीय जनता पार्टी में अपने घटते कद से हिंदी और बंगला फिल्मों का यह गायक परेशान था, ऐसा कहना था उनके समवर्ती राजनयिकों का। यह जानने के लिए हमें बाबुल के कैरियर को थोड़ा पीछे चलकर देखना होगा। बाबुल सुप्रियो बंगाल से हैं और फिल्मों में वह एक कामयाब प्लेबैक सिंगर के रूपमे स्थापित हो चुके थे। 2014 के आम चुनाव के समय बंगाल में कई कलाकारों को मैदान में उतारा गया था। बीजेपी ने फिल्मी गायक के रूप में प्रसिद्ध होने की वजह से बाबुल सुप्रियो पर दाव लगाया था। बाबुल आसनसोल संसदीय क्षेत्र से विजयी हुए थे। उनके तेज तेवर वाले अंदाज को देखकर पार्टी ने उनको केंद्रीय मंत्री मंडल में राज्य मंत्री (mos) अर्बन डेवलोपमेंट, हाउसिंग,अर्बन पावर्टी 2014 से 2016 तक फिर 2016 से 2019 तक mos हैवी इंडस्ट्रीज एंड पब्लिक एंटरप्राइसेज का पोर्ट फोलियो दिया हुआ था। उनकी गिनती बंगाल में बीजेपी के शीर्ष नेताओं की बराबरी में होने लगी। बाबुल 2019 के चुनाव में फिर से आसनसोल का संसदीय चुनाव जीते और उनको एकबार फिर केंद्रीय मंत्रमंडल में राज्य मंत्री एनवायरमेंट का पद दिया गया। हालांकि बाबुल किसी मंत्रिमंडल में स्वतंत्र व पूर्ण मंत्री के रूप में खुद को देखना चाहते थे।वह अंदर से खुश नही थे ऐसा कहा जाता हैं
बीजेपी को बंगाल में 2021 के विधान- सभा चुनाव में बड़ा खेला करना था। जब बंगाल में विधान सभा चुनाव सामने आया तब पार्टी एक एक सीट पर जीत के लिए कड़े मुक़ाबलेदार ढूढने लगी। बाबुल को कहा गया कि वह टॉलीगंज से विधायकी का चुनाव लडे। यह प्रस्ताव ही सुप्रियो को अप्रिय लगा। दो बार का सांसद, तीन पोर्टफोलियो संभाल चुके केंद्रीय मंत्री को कहा जाए कि वह विधान सभा का चुनाव लड़े? भारत मे ऐसा शायद पहलीबार हुआ था जब किसी केंद्रीय मंत्री को विधायक का चुनाव लड़ना पड़े। बाबुल ने इसे अपने डिमोशन के रूप में लिया। बाबुल इस बात को आसानी से नही पचा सके, हालांकि वह विधानसभा से चुनाव लड़े और हार भी गए। यह एक अलग त्रासदी हुई।वह केंद्र में अपना सांसद का पद छोड़े नही थे। मन तभी खिन्न हुआ था, ऐसा उनके नज़दीकियों का कहना है।उसके बाद बाबुल को एक और झटका लगा जब पिछली जुलाई में मोदी सरकार ने केंद्रीय मंत्री मंडल में फेरबदल किया। बाबुल सुप्रियो को मंत्री परिसद में हुए फेरबदल में कोई सीट नही मिला। वह बौखलाहट और नाराजगी को छिपाते हुए बयान दिए कि राजनीति से अलग होने जा रहे हैं। उनके बयान जो फेसबुक और ट्विटर से आए थे, से सीधा अर्थ निकल रहा था कि वह नाराज हैं। बाबुल ने कई बयान दे दिए- 'वह राजनीति नहीं करेंगे'...:राजनीति नहीं करेंगे लेकिन MP बने रहेंगे।' 'सुरक्षा छोड़ देंगे...पगार लेते रहेंगे।' ये सब सोशल मीडिया की खबरें उनदिनों उठ रही थी। बाबुल प्रेस से दूरी भी बना रहे थे।जाहिर है ये सब उनके मन मे चल रहे अंतर्द्वंद का रिएक्शन था। जैसा कुछ लोगों का अनुमान था कि बीजेपी उनको मनाएगी वैसा कुछ हुआ नही। यह भी अनुमान झूठा साबित हुआ कि वे फिर से गाना गाने के लिए बॉलीवुड में लौट जाएंगे या ये उनका प्रचार स्टंट था। आग सुलग रही थी, धुएं की दिशा पर अनुमान लगाया जा रहा था।
और, पिछले हफ्ते बाबुल सुप्रियो ने ममता दीदी के खेमे में कदम बढ़ाकर अपने सब पत्ते खोल दिए। वह अब दीदी की पार्टी के सदस्य बन गए हैं। अपने नए बयान में उन्होंने साफ शब्दों में कह दिया है-'जिंदगी ने सार्वजनिक मामलों से 'रिटायर्ड हर्ट' होने की आशंका के बजाय उनके लिए एक नया रास्ता खोल दिया है।' सुप्रियो ने कहा है की उनको उस पार्टी से काफी प्यार और समर्थन मिला है।' उनका मतलब तृणमूल पार्टी से था- 'जिसके साथ मेरे रिश्ते खराब रहे हैं।'' बंगाल के तृणमूलीये नेता इसे सुप्रियो के लिए घर वापसी मान रहे हैं। 'मायापुरी' ने पहले ही कहा था कि ग्लैमर की इंडस्ट्री से राजनीति में जानेवाला बंदा वापस फिल्मों में नही आता, क्योंकि राजनीति का नशा फिल्मी नशे से भी बड़ा है। बाबुल को लेकर अब सब साफ हो चुका है। वह दीदी की अंगुली थाम चुके हैं।
नई छलांग उनकी ऊँचाई कितनी बढ़ाती है, आनेवाला वक्त ही बताएगा।