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बॉलीवुड बीते 50 सालों यूँ तो हमेशा इस कोशिश में रहता है कि फिल्में जितना ज़्यादा हो सके सेक्युलर ही दिखें। लेकिन जब बात महाराष्ट्र और ख़ासकर मुंबई बेस्ड कहानियों की आती है तो बॉलीवुड की अमूमन फिल्में बिना गणपति बप्पा के गीत या आरती के पूरी नहीं होतीं। कई बार यूँ भी देखा गया है कि गणपति आरती के दौरान ही अचानक से फिल्म में टर्निंग पॉइंट आता है और हीरो या विलन को अपनी जान बचाकर भागना पड़ता है।
दरअसल इसके पीछे की भी एक ढकी छुपी लॉजिकल वजह है कि श्री गजानन यानी गणपति गणेश जी को हर यज्ञ, पूजा, पाठ में सबसे पहले पूजने की प्रथा है। इसके पीछे की कहानी आप जानते ही होंगे कि जब भगवान गणेश और उनके भाई कार्तिकेय से कहा गया कि जाओ संसार का एक चक्कर लगाकर आओ, तब कार्तिकेय (जिन्हें दक्षिण भारत में मुरुगन देवता भी कहा जाता है) अपने वाहन मोर पर बैठकर तुरंत निकल गये। पर गणेश जी का वाहन तो चूहा है, भला वो कैसे जल्दी-जल्दी संसार का चक्कर लगा सकते थे? तो उन्होंने मन और बुद्धि का प्रयोग कर अपने मात-पिता भगवान शिव और देवी पार्वती की परिक्रमा की और कह दिया कि आप ही मेरा संसार हैं, मैंने आपकी परिक्रमा कर ली तो समझिए पूरे विश्व का भ्रमण कर लिया। इसलिए भी गणपति जी को बुद्धि का देवता कहा जाता है।
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इस बात से ख़ुश होकर शिव-पार्वती ने उन्हें वरदान दिया कि पृथ्वीलोक में जब भी जो भी पूजन या शुभ कार्य होगा तो सबसे पहले उनके प्रिय पुत्र गणेश जी की आराधना और आरती सबसे पहले की जायेगी। लेकिन बॉलीवुड फिल्मों में इसके उलट, सबमें नहीं तो ज़्यादातर फिल्मों में आरती क्लाइमेक्स में दिखाई जाती है या क्लाइमेक्स से ठीक पहले दिखाई जाती है। भला क्यों?
इसका सीधा सा लॉजिक ये है कि कहानी के हिसाब से फिल्मी राइटर्स कहानी का नया सिरा, नया कांक्लुज़न निकालने से पहले गणेश आरती का सहारा लेते हैं। अगर बीते सिनेमा की बात करें तो 1969 में एक फिल्म आई थी पुजारिन, उसमें महेंद्र कपूर की आवाज़ और नारायण दत्त के म्यूजिक में पहली बार सिनेमा में ‘गणपति बप्पा मोरिया’ टाइटल से गाना बना था और इसके लिरिक्स जो गीतकार मदन ने लिखे थे, बहुत हिट हुए थे। इस फिल्म का कुछ पता नहीं कि कब आई कब गयी लेकिन गणपति जी के इस भजन से, और बीमार पड़ी पुजारन के इस भजन के दौरान ही घिसट घिसट कर गणपति स्थापना के निकट आने का सीन बहुत हिट हुआ था।
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जो बात मैंने अभी ऊपर क्लाइमेक्स के बारे में लिखी, वो ही बात फिल्म टक्कर के टाइटल गीत (जो सुनकर लगता था कि जबरन बनाया गया है) के साथ भी लागू होती है। फिल्म 1980 में आई फिल्म टक्कर में बड़ी स्टारकास्ट थी। इसें अशोक कुमार, संजीव कुमार, जीतेंद्र, विनोद मेहरा, जीनत अमान, जया प्रदा, बिंदिया गोस्वामी, रंजीत, जीवन आदि लम्बी चौड़ी कास्ट थी। इसमें भी भ्रष्टाचार के खिलाफ और धांधली के विरोध में क्लाइमेक्स से ज़रा पहले जो गीत किशोर कुमार संग महेंद्र कपूर ने गाया, वो था
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“मूर्ति गणेश की,
अन्दर दौलत देश की,
देखो लोगों ध्यान से,
पूछो इस बेईमान से,
क्या चक्कर है, आज हमारी टक्कर है”
इस बेतुके गाने को आनंद बक्शी साहब ने लिखा था और शायद ये बॉलीवुड का इकलौता नेगेटिव गाना है जो गणपति यात्रा पर फिल्माया गया था।
इससे एक साल आगे बढ़ें तो मिथुन, अमजद खान, डैनी और विजेंद्र घटके की फिल्म ‘हम से बढ़कर कौन’ में भी टाइटल गीत ज़रा सी फेर बदल के साथ गणपति जी की झांकी पर ही फिल्माया गया था। इसमें भी महेंद्र कपूर लीड सिंगर में थे, उनके साथ रफ़ी साहब और आशा भोसले की आवाज़ भी थी। आप अगर यह ‘बीस साल बाद’ वाले फोर्मुले पर बनी फिल्म देखें तो पायेंगे कि इस गणेश जी पर फिल्माए गीत का फिल्म में कितना महत्वपूर्ण स्थान है।
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मिथुन की बात चली है तो 1989 की फिल्म ‘इलाका’ का ज़िक्र भी ज़रूरी है क्योंकि इस फिल्म में किशोर कुमार ने गणपति जी की वंदना कर
“देवा हो देवा,
गली गली में तेरे नाम का है शोर,
हम भी पुकारें कब होगी देवा तेरी नज़र हमारी ओर, ॐ नमः गणेश”
इस गाने में फीमेल आवाज़ आशा भोसले जी ने दी थी और आप अगर ये गीत सुनें, तो पायेंगे कि आशा भोसले कितनी भक्ति भाव से, पूरे एहसास के साथ ये गीत गा रही हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि आशा जी ख़ुद बहुत बड़ी गणपति की भक्त हैं। साथ ही इस गाने को लेकर एक और ट्रेजेडी है कि काफी समय पहले, किशोर कुमार ने मिथुन के लिए कोई भी गाना गाने से साफ़ मना कर दिया था। वजह बड़ी दिलचस्प थी, मिथुन चक्रवर्ती ने किशोर दा की तीसरी पत्नी योगिता बाली से शादी कर ली थी। हालाँकि योगिता बाली किशोर दा की अजीबोगरीब हरकतों से परेशान थीं, लेकिन किशोर दा को लगता था कि मिथुन के बरगलाने की वजह से योगिता ने उनसे रिश्ता तोड़ा है। पर जब किशोर दा ने लीना चंद्रावरकर से चौथी शादी कर ली तो उनका गुस्सा भी कुछ कम हो गया।
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लेकिन ये फिल्म किशोर दा की डेथ के दो साल बाद रिलीज़ हुई थी।
बहरहाल, आशा जी की तरह ही मिथुन चक्रवर्ती को भी गणपति लवर कहें तो ये अतिशोक्ति नही होगी क्योंकि 1990 में आई, अमिताभ बच्चन को पहला नेशनल अवार्ड जितवाने वाली फिल्म अग्निपथ में भी गणपति वंदना थी जो ख़ासी मशहूर हुई थी। लेकिन इसमें भी अमिताभ बच्चन से ज़्यादा मिथुन चक्रवर्ती गणपति गीत गाते नज़र आए थे।
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“गणपति अपने गाँव चले, कैसे हमको चैन पड़े” इस गीत में गायक सुदेश भोसले और कविता कृष्णमूर्ति थे वहीं संगीत लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल का था और ये बेहतरीन गीत लिखा आनंद बक्शी साहब ने था। जैस की मैंने पहले लिखा, इस गीत का अंत भी आप देखें तो पायेंगे कि गणपति विसर्जन के वक़्त म्यूजिक अपनी रफ़्तार तेज़ कर लेता है और तलवार चमकाते गुंडे ‘विजय दीनानाथ चौहान’ को फिर एक बार साफ़ करने के इरादे से पहुँच जाते हैं।
दौर बदला, समय बदला तो 1999 में संजय दत्त के जीवन की सबसे बेहतरीन फिल्म ‘वास्तव’ में काल्पनिक गीत की बजाये पहली बार गणपति जी की मराठी आरती जस की तस रविन्द्र साठे की आवाज़ में सुना दी गयी। पर कमाल देखिए, ये आरती आज भी बीते हर गणपति गीत से पहले सुनी जाती है।
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“शेंदुर लाल चढ़ायो अच्छा गजमुखको, डोंडिल लाल बिराजे सुत गौरिहर को”
और एक बार फिर, इसके गीत के बैकग्राउंड में भी फिल्म का क्लाइमेक्स जन्म ले रहा है और एक-एक कर ‘रघु भाई’ के सारे साथियों को पुलिस पकड़-पकड़कर मार रही है।
जब बात गणपति जी की हो रही है तो उनके बॉलीवुड के संगीत जगत के भक्त शंकर महादेवन का ज़िक्र भला कैसे न हो। बहुत कम चर्चित मगर अच्छी फिल्मों में से एक, 2005 में अमिताभ बच्चन, शर्मीला टैगोर, संजय दत्त और जॉन अब्राहिम की फिल्म विरुद्ध आई थी। इसमें शंकर महादेवन की आवाज़ में ट्रेडिशनल गणपति वंदना बार बार सुनने लायक है।
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“गननायकाया गनदेवताया गनदक्षाया धिमाही
गनशरिराया, गनमंडीताया, गणेशानाय धीमही”
अपने 15 साल के लम्बे कैरियर में पहली बार शाहरुख़ खान ने 2006 में डॉन (अमिताभ बच्चन की डॉन का रीमेक) में गणेश वंदना पर एक गीत किया था। यह गीत भी शंकर महादेवन ने ही गाया था, हालाँकि इसके हल्के लिरिक्स की वजह से ये उतना पॉपुलर नहीं हो सका था। जबकि ये गीत मशहूर गीतकार जावेद अख्तर ने लिखा था।
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“तुझको फिर से जलवा दिखाना ही होगा, अगले बरस आना है आना ही होगा”
ऊपर लिखे क्लाइमेक्स वाले लॉजिक के विपरीत इस फिल्म में ये गाना शुरुआत में ही था।
रीमेक्स की बात हो रही है तो 1990 की मशहूर फिल्म अग्निपथ के रीमेक की बात होनी भी ज़रूरी हो जाती है क्योंकि इस बार फिर गणपति जी की वंदना के लिए एक गीत रखा गया और इस गीत की पॉपुलैरिटी के लिए सबसे ज़्यादा तारीफ के हक़दार फिल्म के संगीतकार ‘अजय-अतुल’ हैं। उनका म्यूजिक इतना ज़बरदस्त है कि 2011 के इस गीत को आज दस साल बाद 2021 में भी पूरे जोश-ओ-जूनून के साथ गाया जाता है और एक बार फिर बॉलीवुड ट्रैक पर लौटते फिल्म में गणेशजी पर बना ट्रैक फिल्म का टर्निंग पॉइंट साबित होता है। अमिताभ भट्टाचार्य के लिखे बोल भी इस गीत की शोभा बढ़ाते हैं
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“ज्वाला सी जलती है आँखो में जिसके भी दिल मे तेरा नाम है
परवाह ही क्या उसका आरंभ कैसा है और कैसा परिणाम है
धरती अंबर सितारे,
उसकी नज़रे उतारे
डर भी उससे डरा रे,
जिसकी रखवालिया रे
करता साया तेरा
हे देवा श्री गणेशा”
यह गीत इतना एनर्जेटिक है और हृतिक रौशन ने भी अपने बेस्ट देते हुए इसके एक एक फ्रेम में ऐसी जान डाल दी है कि कोई सोया हुआ आदमी हो तो तुरंत खड़ा होकर हाथ जोड़ गणपति जी का गुणगान करने लग जाए।
अबतक तो क्लाइमेक्स के टर्निंग पॉइंट्स की बात थी, अब कुछ फिल्में आपको ऐसी भी बताता हूँ जिनमें गणपति जी की मेहरबानी से क्लाइमेक्स बचा लिया गया है। मायने पूरा क्लाइमेक्स गणपति बप्पा के भरोसे ही बनाया है और कमाल है कि बप्पा ने निराश भी नहीं किया है।
इसमें सबसे पहला नाम डांस कोरियोग्राफर से डायरेक्टर बने रेमो डिसूजा की ए.बी.सी.डी का आता है। फिल्म में सीन है कि प्रभु देवा की डांस टीम अपना फाइनल परफॉरमेंस देने वाली है लेकिन उनका सारा डांस केके मेनन की टीम ने कॉपी कर लिया है। अब क्या करें? अब धर्मेश एंड टीम गणपति वाला टिपिकल मुंबईया डांस शुरु कर देते हैं और डांस ख़त्म होते-होते फिल्म में केके मेनन और थिएटर में बैठे दर्शकों की आँखों से आँसू निकलने लगते हैं।
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'साड्डा दिल भी तू साड्डी जां वी तू अरमां वी तू
ग ग ग गणपति, बाप्पा मोरिया'
हार्ड कौर की आवाज़, सचिन जिगर का संगीत और मयूर पुरी के गीत पूरे थिएटर का समा बाँधने में सक्षम नज़र आते हैं।
2010 में अजय देवगन, कोंकणा सेन और परेश रावल की एक अनोखी कॉमेडी सटायर फिल्म ‘अतिथि तुम कब जाओगे’ आई थी जिसके क्लाइमेक्स में अमित मिश्रा की आवाज़ में गणपति जी की सीधी सरल मराठी आरती थी लेकिन इसका पूरा क्लाइमेक्स ही इस गीत पर डिपेंड है, यहाँ से कहानी में टर्निंग पॉइंट ही नहीं आता बल्कि कहानी सम्पूर्ण ही गणपति आरती के बाद होती है। आप अब जब भी यह फिल्म देखें तो इस गाने पर ज़रूर गौर करें।
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मैं ऊपर कई बार बदलते वक़्त की बात कर चुका हूँ पर बदलाव का ऐसा नज़ारा न पहले कभी देखने को मिला था और जो हश्र इस तथाकथित गाने का हुआ है, उसके बाद उम्मीद भी नहीं कि कोई ऐसा एक्सपेरिमेंट दोबारा करेगा।
डेविड धवन अपनी ही पुरानी फिल्मों को दोबारा बनाने के जूनून में सलमान खान की सुपर हिट फिल्म जुड़वां का रीमेक ‘जुड़वां 2’ अपने बेटे वरुण धवन के साथ बनाई थी।
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इसी फिल्म में एक डांस नंबर बनाने की होड़ में वरुण धवन पर फिल्माया गया “सुनों गणपति बप्पा मोरिया, परेशान करें मुझे छोरियां” इतना बुरा गाना था कि रिलीज़ के एक महीने बाद ही हर चार्ट से गायब गया था। साजिद-वाजिद के म्यूजिक और दानिश साबरी के लिरिक्स इतने बेतरतीब थे कि ये गीत 30 सेकंड सुनना भारी हो जाता है।
सोचिए, 1969 से चली आ रही गणपति वंदना का साजिद वाजिद ने क्या हश्र किया है। पर इस गीत का फिल्म की कहानी से भी कोई लेना-देना नहीं था इसलिए इसे इग्नोर करके हम आगे बढ़ सकते हैं।
बहरहाल, वरुण धवन को ही फॉलो करते हुए सलमान खान की आने वाली एक्शन थ्रिलर फिल्म ‘अंतिम’ से ही इस कवर स्टोरी का अंत करते हैं। विघ्नहर्ता नाम के इस गीत को अजय-अतुल के अजय ने गाया है और संगीत हितेश मोदक ने कम्पोज़ किया है वहीं गीत लिखने का जिम्मा वैभव जोशी को मिला है जिन्होंने अपना पार्ट बखूबी निभाया है।
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“तेरा करम मेरा भरम मेरा धरम तू ही तू
जनम वनम कुछ भी नहीं परम तू ही तू”
हो तू ही दाता तू ही विधाता
तेरा ये जग तू जग सारा
तू ही आँधी तू ही तूफ़ान
तू ही मौजें तू ही किनारा
तू सुखकर्ता तू ही दुख हरता
तू ना होता मैं जाने क्या करता
विघ्नहर्ता तू मेरा विघ्नहर्ता रे”
इस फिल्म का हालाँकि अभी सिर्फ ये गीत रिलीज़ हुआ है और सलमान खान सिख के रूप में नज़र आ रहे हैं पर इस गीत के फोरग्राउंड में भी सलमान अपने रियल लाइफ जीजा आयुष शर्मा से दो-दो हाथ करते नज़र आ रहे हैं।
कोई बड़ी बात नहीं कि इस फिल्म में भी यह गणेश वंदना टर्निंग पॉइंट साबित हो। हालाँकि इतना तो क्लियर है कि वरुण धवन स्पेशल अपेअरेंस के लिए हैं।
यहाँ इस ज़िक्र के साथ समापन करना सही होगा कि एक समय था जब फिल्म शुरु होने से पहले प्रोड्यूसर गणेश जी की मूर्ति के साथ कुछ मंत्रोचार से फिल्म की शुरुआत करते थे, हालाँकि सिनेमा सेक्युलर होता था लेकिन फिर भी, शुरुआत सरस्वती वंदना या ॐ गणेशाय नमः से ही होती थी। अब वो ट्रेंड तो नहीं रहा, पर गनीमत है कि पचास सालों में बॉलीवुड में गणपति जी की क्लाइमेक्स में एंट्री नहीं बदली और मुझे यकीन है कि अगले सौ साल बाद भी, ये शगुन बंद नहीं होगा।
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- सिद्धार्थ अरोड़ा ‘सहर’
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