Advertisment

'जाड़ों की नर्म धूप और....' बॉलीवुड के ऐसे मशहूर गाने जो सर्दियों में ज़रूर याद आते हैं

New Update

जब भी मौसम बदलता है तब हमारा मिज़ाज भी बिना हमें ख़बर किए करवट बदल लेता है। सर्दियों में गर्मियों वाले गानों की प्लेलिस्ट ज़रा सी तब्दील होकर हमें फिर बीते पुराने, बॉलीवुड म्यूजिक के स्वर्ण युग कहे जाने वाले दौर में ले जाती है। आज सुबह जैसे-जैसे तापमान गिरता गया, वैसे-वैसे मेरे ज़हन में बीते गानों का दौर उठने लगा। सर्दियों में घर के बाहर होने पर सबसे सुकूनभरी कोई चीज़ लगती है तो वो है 'धूप'। उस्तादों में शुमार किये जाने वाले लेखक, निर्देशक, निर्माता और सबसे अनोखे गीतकार गुलज़ार इस धूप को एक अलग ही नज़र से देखते हुए अपने गानों में पिरो देते हैं। आइए कुछ ऐसे ही गानों के बारे में जानकर, फिर सुनते हैं। - सिद्धार्थ अरोड़ा सहर

दिलढूंढताहैफिरवही - गुलज़ार 1975

publive-image

1975 की फिल्म मौसम गुलज़ार द्वारा निर्देशित एक फिल्म नहीं बल्कि वो गुल है जिसकी ख़ुश्बू दशकों बाद भी उतनी ही सुहानी आती है। इस फिल्म का सबसे  मशहूर गाना, 'दिल ढूढंता है फिर वही....' गुलज़ार ने ही लिखा था। इसी गाने का एक ख़ूबसूरत अंतरा है जो इस मौसम में बिलकुल मुफ़ीद बैठता है 'जाड़ों की नर्म धूप और, आंगन में लेटकर… आँखों पे खींचकर तेरे दामन के साये को, औंधें पड़े रहें कभी करवट लिए हुए।।। दिल ढूंढता है फिर वही फुरसत के रात दिन। बैठे रहें तसवुर-ए-जानां किये हुए।

इस गाने की ये ही खासियत है कि आप इसे सुनते या गुनगुनाते वक़्त जाने कब एक अलग ही दुनिया में पहुँच जाते हैं। इस गाने को भूपेंद्र और लता मंगेशकर ने गाया था और संगीत मदन मोहन ने दिया था।

मीठीमीठीसर्दीहै - एसएचबिहारी 1986 

अनिल कपूर और पद्मिनी कोहलापुरी की इस रोमांटिक फिल्म में 'मीठी-मीठी सर्दी है' एक ऐसा गाना था जिसे सुनने वाला खो जाए। फिल्म 'प्यार किया है प्यार करेंगे' का संगीत लक्ष्मीकांत-प्यारे लाल ने दिया था और इसे गाया था मुहम्मद अज़ीज़ और लता मंगेशकर ने। इसके बोल अपनी कहानी ख़ुद बयां कर रहे हैं -
'मीठी मीठी सर्दी हैं, भीगी भीगी राते हैं
ऐसे में चले आओ, फागुन का महीना हैं मौसम मिलान का हैं
अब और न तड़पाओ, सर्दी के महीने में हो, माथे पे पसीना हैं
मीठी मीठी सर्दी है'

येहवाएंसर्दसर्दहैं - अनजान 1986 

80 के दशक के मशहूर गीतकार अनजान का ये गाना राजेश खन्ना की फिल्म नसीहत से है। इसे आशा भोसले ने गाया था और संगीत आनंद जी शाह का था। ज़रा गीत के बोल पर गौर कीजिए -
'यह हवाएं सर्द सर्द हैं, क्यूँ दिलो में गर्मिया
फिर भी इतनी दूरियां क्यों, दो दिलों के दर्मिया
यह हवाएं सर्द सर्द हैं'

सोचोकेझीलोंकाशहरहो - समीर 2000 

इत्तेफाक़ देखिए, ऊपर जो गाना आपने सुना वो अनजान का था और अब उसके ठीक बाद का गीत उनके बेटे समीर का लिखा है। 'सोचो के झीलों का शहर हो' गीत फिल्म मिशन कश्मीर से है, इसे ह्रितिक रौशन और प्रीटी ज़िंटा पर फिल्माया गया है। इसका संगीत शंकर-एहसान-लोय ने दिया है और अल्का याग्निक के साथ उदित नारायण की आवाज़ इस गाने को मिली है। इसका एक अंतरा जानिए कितना गहरा है -
'बर्फ़ ही बर्फ़ हो, सर्दियों का हो मौसम
आग के सामने, हाथ सेकते हों हम
बैठी रहूँ आग़ोश में
रख के तेरे कांधे पे सर
सोचो के झीलों का शहर हो, लहरों पे अपना एक घर हो' publive-image

चुपकेसेलगजागले - गुलज़ार 2002

publive-image   ये भी इत्तेफ़ाक़ में ही गिना जायेगा या इसे साजिशन रखा गया गाना भी करार कर सकते हैं? जो फ़ेरहिस्त (लिस्ट) गुलज़ार से शुरु हुई वो फिर गुलज़ार पर आकर ठहर गयी है। 1975 हो या 2002, सर्दियों को लेकर गुलज़ार के गीतों का मिज़ाज नहीं बदला। साथिया फिल्म का ये गाना ए आर रेहमान ने कम्पोज़ किया है, विवेक ओबेरॉय और रानी मुख़र्जी ने दिलचस्प अंदाज़ में इसे फिल्माया है और इसे साधना सरगम की आवाज़ मिली है। इसी गीत का एक अंतरा सुनिए और ख़ुद को फ्लैशबैक में जाता महसूस कीजिए।
'फरवरी की सर्दियों की धूप में, मूंदी-मूंदी अँखियों से देखना
हाथ की आड़ में
निम्मी निम्मी ठंड और आग में, हौले-हौले मारवा की राग में
मीर की बात हो....

अब ये गुलज़ार ही लिख सकते हैं कि जब धूप आँखों पर पड़ती है तो हम हाथ की आड़ कर लेते हैं, पहाड़ों पर ठंड में आग तापते लोग मारवा गाते हैं और उसपर मशहूर शायर मीर की गज़लें चलें, मीर की बात हो तो बात ही क्या हो!

हालांकि अगर आप दिल्ली से जुड़े हैं तो सर्दी आते ही विख्यात गाना - 'publive-image

Advertisment
Latest Stories