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Criminal Justice के एक्टर Pankaj Tripathi ने कहा, ‘क्रिमिनल कोई भी हो सकता है’

फिल्म और वेब सीरीज की दुनिया में इन दिनों पंकज त्रिपाठी (Pankaj Tripathi) का नाम खूब सुर्खियों में है. अपनी बेहतरीन कॉमिक टाइमिंग के साथ-साथ  ‘मसान’ (Masaan), ‘कागज’ (Kagaz) और ‘मैं अटल हूँ’ (Main Atal Hoon)...

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Criminal Justice actor Pankaj Tripathi said Anyone can be a criminal
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फिल्म और वेब सीरीज की दुनिया में इन दिनों पंकज त्रिपाठी (Pankaj Tripathi) का नाम खूब सुर्खियों में है. अपनी बेहतरीन कॉमिक टाइमिंग के साथ-साथ ‘मसान’ (Masaan), ‘कागज’ (Kagaz) और ‘मैं अटल हूँ’ (Main Atal Hoon) जैसी गंभीर फिल्मों में दमदार अभिनय के लिए भी जाने-जाने वाले पंकज ने दर्शकों के दिलों में एक अलग जगह बनाई है. उनकी खासियत और हुनर ने उन्हें बॉलीवुड और डिजिटल प्लेटफॉर्म (ओटीटी) दोनों पर खास पहचान दी है.
‘क्रिमिनल जस्टिस’ (Criminal Justice) के पहले तीन सीज़न की बड़ी सफलता के बाद, दर्शको को इसके चौथे सीज़न का बेसब्री से इंतजार था. हाल ही में इसका सीजन 4 भी रिलीज कर दिया गया. वहीँ पंकज त्रिपाठी ने इस नए सीज़न और अपने किरदार को लेकर एक खास इंटरव्यू दिया. क्या कुछ कहा, उन्होंने आइये जानते हैं.
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अब जब आप इस सीरीज के चौथे सीजन के साथ वापसी कर रहे हैं, तो क्या कुछ अलग या नया महसूस हो रहा है? इस बार दर्शकों को क्या नया देखने को मिलेगा और आपके लिए ये सीजन कितना खास होने वाला है?
बहुत शानदार है , इंपैक्टफुल है तभी तो हम इसका हिस्सा बने हैं. बहुत ही अच्छे स्क्रिप्ट है जिसमें बहुत सारे ट्विस्ट हैं. इस बार का सीजन ऐसा है कि क्राइम इन्वेस्टिगेशन तो है ही साथ में थोड़ा थ्रिलर का फील भी है. इसमें ऑडियंस का पॉइंट ऑफ़ व्यू भी है, जैसे- जैसे कहानी आगे बढ़ेगी तो बदलेगा.
आमतौर पर कोर्ट में दो वकील होते हैं, लेकिन इस बार तीसरे की एंट्री ने कहानी को कैसे बदला?
वही तो कि चलते हुए मैच में तीसरी पार्टी कहां से आ गई. हम दो लोग मैच खेल रहे थे, तो अब एक तीसरी वकील भी आ गयी और यही तो ट्विस्ट है कहानी का. आमतौर पर एक केस में दो वकील होते हैं एक बचाव का और एक अभियोग लगाने वाला, लेकिन इसमें तीन हैं और वही मज़ेदार है.
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जब कंटेंट को लेकर एप्लॉज़ एंटरटेनमेंट जैसी टीम हो, तो कलाकार के लिए ये कितना सहयोगी और प्रेरणादायक माहौल बनता है—आपका क्या अनुभव रहा?
बहुत शानदार एक्सपीरियंस है. एप्लॉज़ का पहला शो था ये शुरूआती दौर में और हॉटस्टार का भी ये पहला शो था, जब ओटीटी भारत में शुरू हो रहे थे और मेरा ये ओटीटी का तीसरा शो था, क्योंकि मैं तो ओटीटी के शुरूआती दौर से हूँ और हर प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध हूँ.
माधव मिश्रा का किरदार हर बार कुछ अलग करता है—इस बार उसकी राह में कौन-सी बड़ी चुनौती खड़ी होने जा रही है?
सबसे बड़ी चुनौती तो सामने वाली वकील ही है जो विदेश से पढ़के आई है और माधव मिश्रा पटना का जुगाड़ू वकील. चुनौती तो यही है कि इनके सामने टिके रहना है और सर्वाइव करना है. लेकिन ये एक अच्छा संबंध है जो कोर्ट रूम में चलता रहता है इन दोनों के बीच में और वो वही एंगेजिंग और एंटरटेनिंग है, क्योंकि दोनों दो अलग-अलग दुनिया से आए लोग हैं.
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सीजन 4 में ऐसी क्या खास बात है जो ‘क्रिमिनल जस्टिस’ को दूसरे कोर्ट रूम ड्रामा से अलग बनाती है?
क्योंकि ये बहुत मशहूर है. किरदारों और कहानियों से लोग बहुत रिलेट करते हैं इसलिए हम चौथे सीजन में पहुँच गए हैं. आमतौर पर बाकी ड्रामा में सिर्फ सीरियस मुद्दे और बहस होते हैं यहाँ भी सीरियस है लेकिन माधव मिश्रा के किरदार में एक दूसरी लेयर सटायर और ह्यूमर की है. तो इसलिए ये थोड़ा ज़्यादा इंटरेस्टिंग लगता है, जैसे जौली एलएलबी में था. वहां भी कोर्ट रूम में एक ह्यूमर था और यहां कोर्ट रूम में तो थोड़ा कम है लेकिन कोर्ट रूम के बाहर मेरी पर्सनल लाइफ और यहाँ-वहां ह्यूमर का तड़का जरूर है; और वही चीज़ ऑडियंस को एंगेज करती है क्योंकि मुस्कुराहट अगर चेहरे पर आ जाएगी तो आप ध्यान से सुनेंगे और देखेंगे.
इस बार सीजन में सुरवीन चावला और जीशान भी जुड़े हैं तो उनके साथ काम करने का एक्सपीरियंस कैसा रहा?
सुरवीन का बहुत ही सेंसिटिव और वेनरेबल किरदार है , जीशान तो मेरा जूनियर है और कमाल का अभिनेता है. वो दोनों इस कहानी के स्तंभ हैं केस तो उन्हीं का है हम दोनों तो वकील है और लड़ रहे हैं.
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पहले जब भी किसी क्राइम की बात होती थी, तो ज़हन में एक मर्द की छवि बनती थी. लेकिन क्या आपको लगता है कि आज हालात बदले हैं? क्या अब महिलाएं भी क्राइम की कहानियों का अहम हिस्सा बन रही हैं?
क्राइम को जेंडर के हिसाब से नहीं देख सकते. हां ये सच है कि स्त्रियों में करुणा भगवान ने ज़्यादा भरी है, दया की मात्रा ईश्वर ने थोड़ी ज़्यादा दी है. पर अनैतिक तो कोई भी हो सकता है उसमें जेंडर का डिवीजन नहीं हो सकता. लेकिन आमतौर पर अगर तुलना की जाए तो महिला अपराधी कम हैं. लेकिन क्रिमिनल कोई भी हो सकता है.
क्राइम को रोकने के लिए हमारे देश को कौन-कौन से नए कदम उठाने चाहिए, जो वास्तव में प्रभाव डाल सकें?
सबसे पहले तो हमारी अपनी एक जिम्मेवारी होनी चाहिए कि हम आज़ाद है लेकिन स्वाधीन हैं, अपने अधीन है कुछ नियम बनाए हैं. फ्रीडम का मतलब ये नहीं कि हम अपनी मर्ज़ी से कुछ भी करें. एक इंसान स्वाधीन रहे तो अदालतों का काम थोड़ा कम रहेगा. अगर आर्ट और कल्चर का बजट बढ़े तो भी अदालतों का बोझ थोड़ा कम होगा. जैसे ही हमारी सोसाइटी और समाज में आर्ट और कल्चर समझाया जाए बच्चों को पोएट्री सिखाई जाए संगीत, गाना, अभिनय सिखाया जाए तो अच्छा ही होगाम क्योंकि कलाओं का काम समाज को बेहतर बनाना है और जब समाज बेहतर बनेगा तो न्यायिक बोझ कम होगा.
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आपको बता दें कि पंकज त्रिपाठी रण, बरेली की बर्फी, फुकरे 3, स्त्री 1 एंड 2, ओएमजी 2, सुपर 30 , लुका छुपी, दिलवाले, मैं अटल हूँ और मिमी जैसी फ़िल्में कर चुके हैं. 

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