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रणविजय सिंह (Rannvijay Singha) का नाम सुनते ही युवाओं को जोश, रियलिटी शो ‘रोडीज़’ और मैदान में डटे रहने की प्रेरणा मिलती है. एक आर्मी बैकग्राउंड से आने वाले रणविजय ने एमटीवी रोडीज़ से अपने करियर की शुरुआत की थी और जल्दी ही वह युवाओं के बीच एक आइकन बन गए. रियलिटी टीवी, एक्टिंग और होस्टिंग की दुनिया में उन्होंने लंबा सफर तय किया है. अब रणविजय एक नए शो ‘छोरियां चली गांव’ (Chhoriyan Chali Gaon) के साथ फिर से दर्शकों से जुड़ने आ रहे हैं, जिसमें वह होस्ट की भूमिका निभा रहे हैं. इस शो के ज़रिए वे दर्शकों को गांव की मिट्टी, उसके संघर्ष और आत्मनिर्भरता से जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं.
हाल ही में रणविजय ने एक मीडिया हाउस से अपने करियर, परिवार, गांवों से जुड़ी यादों और कंटेंट के बदलते मायनों पर बेबाकी से अपनी राय साझा की. क्या कहा उन्होंने आइये जानते हैं...
बीस सालों तक रोडीज़ का हिस्सा रहने के बाद आपने एक फेज़ में दूरी बनाई. अब जब आप फिर इस सफर में लौटे हैं, तो क्या वजह रही जिसने आपको दोबारा 'रोडीज़' की दुनिया में वापस खींच लाया?
मुझे इस शो का कॉन्सेप्ट बेहद दिलचस्प लगा. असल में यह फॉर्मेट पहले मराठी में काफी हिट रहा है. इसमें शहर की आधुनिक सुविधाओं की आदी लड़कियों को एक सादे, असली ग्रामीण माहौल में रखा गया है—जहां उन्हें एक-दूसरे से मुकाबला नहीं, बल्कि खुद को परिस्थितियों के अनुरूप ढालकर सर्वाइव करना होता है. शहरों में जहां एक कॉल पर कैब मिल जाती है, वहीं गांव में पानी भरने के लिए भी पनघट तक जाना पड़ता है. आज जब हम प्रकृति से जुड़ने की बातें सिर्फ किताबों में पढ़ते हैं, तो इस शो में वो सब कुछ हकीकत बनकर सामने आता है. मेरे लिए इन लड़कियों को ऐसे माहौल में देखना और उन्हें गाइड करना एक रोमांचक अनुभव रहा. व्यक्तिगत रूप से भी गांव से मेरा गहरा लगाव है, और ‘छोरियां चली गांव’ मेरे लिए आत्म-खोज और सेल्फ-सस्टेनेबिलिटी को समझने का एक जरिया भी बना.
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एक दौर था जब आप रिएलिटी शोज़ में कंटेस्टेंट के रूप में नज़र आते थे, और अब आप कई शोज़ के होस्ट और जज की भूमिका में दिखाई देते हैं. बताइए, उस मंच से इस मंच तक का आपका सफर कैसा रहा?
आप जब कंटेस्टेंट होते हैं, तो आप पर ज्यादा जिम्मेदारी नहीं होती. आपको खुद पर ध्यान देना होता है, मगर जज या होस्ट के रूप में पूरे शो की जिम्मेदारी आपकी होती है. मैं तो रोडीज में एक ही बार प्रतियोगी था और उसके बाद तो मेरा रोल बदल गया. हालांकि मुझे कई ऐसे शोज के ऑफर आए, जहां मुझे कंटेस्टेंट बनना था, मगर मैं उनका हिस्सा नहीं बना. मुझे लगता है कि कंटेस्टेंट बनने से मेरी होस्ट की पोजिशन डाइल्यूट हो सकती है. मैं ऐसे शोज करना चाहता हूँ, जिससे मेरी सेल्फ ग्रोथ हो. जैसे मैंने जंगल सफारी का एक शो किया था, जिसमें मैं 8 जंगलों में घूमने का मौका मिला था. मैंने उस शो से काफी कुछ सीखा था और अब तो वैसे भी मुझे अपने बच्चे पालने हैं.
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आपके परिवार की पाँच पीढ़ियाँ देश सेवा में समर्पित रहीं, और आपने भी फौज में जाने के लिए रिटन एग्ज़ाम तक दे दिया था. फिर ऐसा क्या हुआ कि कदम सेना से मोड़कर आपने ग्लैमर की दुनिया की ओर बढ़ा दिए?
मैं आर्मी के लिए रिटन एग्जाम क्लियर कर चुका था और भोपाल में SSB की तैयारी कर रहा था. मेरे पिता, दादा, चाचा, नाना सभी फौज में थे. मैंने खुद को साबित कर दिया था कि मैं सेना में जाने के लायक हूँ. तब मेरे पास अपने करियर का चुनाव करने की आज़ादी थी. बाइक, बास्केटबॉल और एडवेंचर स्पोर्ट्स का शौक था, जो मुझे लगा कि सेना में पूरे होंगे. लेकिन बाइक जीतने का लालच मुझे रोडीज़ तक ले आया. रोडीज़ मेरे लिए टर्निंग पॉइंट बना. घर में चर्चा हुई और तय हुआ कि ग्लैमर इंडस्ट्री को एक साल दूंगा. अगर कुछ नहीं हुआ तो फौज का रास्ता खुला ही था. लेकिन रोडीज़ जीतने के बाद मेरी गाड़ी चल पड़ी.
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चाहे वो पुराने चर्चित विवाद हों, या फिर रिया चक्रवर्ती (Rhea Chakraborty) प्रकरण पर आपके खुले विचार—आप हमेशा बेबाकी से अपनी राय रखते आए हैं. क्या कभी महसूस होता है कि इस साफगोई की आपको कीमत चुकानी पड़ी है?
मुझे इस दुनिया में फर्क पड़ता है, अपने परिवार, माता-पिता और बच्चों से. बाकी मैं दूसरों के बारे में ज्यादा नहीं सोचता. मुझे जो सही लगता है, मैं बोलता हूँ. अपना स्टैंड रखता हूँ. अब सच और गलत का तो कोई जजमेंट नहीं दे सकता, क्योंकि एक का सच दूसरे के लिए गलत हो सकता है. मगर मुझे क्या लगता है, ये बोलने का हक तो मुझे है और मैं वो बोलता हूँ.
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जब काम का शेड्यूल इतना व्यस्त हो, तो आप पारिवारिक ज़िंदगी और प्रोफेशनल कमिटमेंट्स के बीच संतुलन कैसे बना पाते हैं?
मैं परिवार को बहुत महत्व देता हूँ. मेरी प्रियोरिटी साफ हैं. मुझे पता है कि मुझे खुशी परिवार से ही मिलेगी. मेरा काम मेरा पेशा है और अगर मैं किसी खदान में काम कर रहा होता, तब भी मैं अपने परिवार और एडवेंचर को अहमियत दे रहा होता. मैं अपने बच्चों की सही परवरिश करना चाहता हूँ. उनके साथ वक्त बिताना चाहता हूँ. मेरे बच्चों को मेरे प्रोफेशन के बारे में ज्यादा पता नहीं है. वे इतना जानते हैं कि डैड बाइक चलाने जाते हैं और टीवी पर दिखते हैं. आप हीरो हो या क्रिमिनल आपके बच्चे आपको पिता के रूप में ही देखेंगे. आपके बच्चे आपको बिना किसी एजेंडा के प्यार करते हैं, वे आपको आपकी हैसियत से परे निस्वार्थ प्रेम करते हैं. इसलिए मुझे तो अपना परिवार और बच्चे चाहिए.
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दो प्यारे बच्चों के पिता बनने के बाद क्या आपकी शो चुनने की सोच या प्राथमिकताएं बदली हैं? आपने लंबे वक्त तक ‘रोडीज’ जैसे एक्शन और आक्रामक शैली के शो से खुद को जोड़े रखा — अब बतौर पिता, क्या कंटेंट की टोन और मैसेज आपके लिए ज़्यादा मायने रखते हैं?
हर इंसान अपने करियर में धीरे-धीरे इवॉल्व होता है. शुरुआत में जो काम जरूरी होता है, वक्त के साथ वही प्राथमिकताएं बदल जाती हैं. मेरे करियर के शुरुआती दौर में जो शोज ज़रूरी थे, आज उस मुकाम पर मैं ऐसे प्रोजेक्ट्स करना चाहता हूँ, जिन्हें मेरा पूरा परिवार और बच्चे साथ बैठकर देख सकें. मैं चाहता हूँ कि मेरे बच्चे जीवन की असलियत और भौतिक चीजों की कीमत समझें. यही सोचकर मैंने ‘छोरियां चली गांव’ जैसा शो किया.
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गांव की जिन गलियों में आपने बचपन गुजारा, क्या वे अनुभव आज भी आपके व्यक्तित्व और फैसलों को प्रभावित करते हैं? कोई किस्सा जो आज भी मुस्कान दे जाता हो?
मेरे पिता फ़ौज में थे और उनका एक नियम था कि स्कूल की छुट्टियां होते ही वे हम लोगों को गांव भेज देते थे. गांव को लेकर मेरी कई यादें हैं, जैसी पॉलिट्री फ़ार्म में जाकर अंडे इकट्ठे करना या फिर गन्ने के खेतों में जाकर गन्ने काटना. खेती के दौरान ट्रैक्टर पर सवार होना, नानी के साथ आटे की चक्की पर जाना, वे बहुत ही मजेदार दिन हुआ करते थे. गांव में एसी नहीं होता था, इसलिए गर्मियों के दिन में सभी घर के बाहर सोते थे. लेकिन आज मैं सोचता हूँ, तो लगता है कि शहर में हम सभी सुख-सुविधाओं के गुलाम बन चुके हैं आज रीलों में देख कर जिसे हम फिर से पाने को बेचैन हैं, वो गांव तो हमेशा हमारे दिल और यादों में बसे रहे हैं.
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Tags : rannvijay singha roadies
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