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Ram Madhvani show The Waking of a Nation
The Waking of a Nation: भारतीय और पश्चिमी प्रभाव के बीच संतुलन बनाकर फ़िल्म निर्माता Ram Madhvani आज एक बेहतरीन फ़िल्म मेकर के रूप में चर्चित है. दूसरों से अलग तरह का काम करने के बारे में Ram Madhvani ने कहा, “मैं अपनी जड़ों से जुड़ा हूं, लेकिन कुछ अंतरराष्ट्रीय विचारधाराओं से भी प्रभावित रहा हूं. आइए जानते हैं वे क्या कहते हैं अपने फ़िल्म और शो मेकिंग को लेकर:
'नीरजा' से लेकर 'आर्या' तक आपका काम दर्शकों को बहुत पसंद आया है. चलिए शुरुआत से शुरू करते हैं. मैंने सुना है कि फिल्मों के प्रति आपका प्यार पंचगनी के स्कूल से शुरू हुआ था.
बिल्कुल. सेंट पीटर्स में शनिवार को फ़िल्में दिखाई जाती थीं. यह जादुई एहसास था. जरा सोचिए, एक स्टील का डिब्बा आता है, उसमें से रील्स निकलती है, और अचानक, हम एक दूसरी दुनिया में पहुँच जाते हैं. यहीं से मेरे मन में क्रिएटिव दुनिया के प्रति जुनून की शुरुआत हुई. मुझे लगता है, उस जमाने में भी, अगर आप उस वक्त के मेरे सहपाठियों से पूछते कि वे क्या बनना चाहते हैं, तो उन सबमें मैं अकेला ही कहता, "फ़िल्म निर्माता" मुझे नहीं पता था कि मुझे कैसे पता चला कि आगे चलकर मुझे क्या करना है, लेकिन मुझे तो जैसे पता था.
तो, स्कूल स्क्रीनिंग से लेकर... आगे क्या हुआ?
खैर, मेरा जुनून बढ़ता ही गया. मैं छुट्टियों में सोलापुर के पास बार्शी जाता था. यह एक छोटी सी जगह है, लेकिन इसमें चार सिनेमाघर थे! और उन थिएटरों का नाम मंगेशकर बहनों के नाम पर रखा गया था. वहां मैं खूब फिल्में देखता था. इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता था कि सिनेमा हॉल हाउस फुल होती थी या खाली, मैं हमेशा अपने लिए एक सीट बुक कर ही लेता था . मैंगो जूस, पॉपकॉर्न और एक अदद फिल्म. परम आनंद! मैं एक ही फिल्म को कई कई बार देख सकता था.
वाह, यह समर्पण है. क्या कोई फिल्म अलग दिखी?
हाँ, ज़रूर. मैंने 'यादों की बारात' लगभग बारह बार और 'जुगनू' नौ बार देखी. यहीं से मैंने कहानी सुनाना सीखा, कहानी को स्क्रीन पर कैसे जीवंत किया जाता है, सब सीखा . एक तरह से बार्शी मेरा फिल्म स्कूल था.
तो, बार्शी ने भारतीय सिनेमा के प्रति आपके प्यार को बढ़ाया. परंतु अंतर्राष्ट्रीय प्रभावों के बारे में क्या?
यह थोड़ा बाद में आया. कॉलेज में, मैंने मैक्स मुलर भवन और ब्रिटिश काउंसिल जैसी जगहों के माध्यम से दुनिया भर के सिनेमा को देखा. मैं फ़ेलिनी और श्याम बेनेगल के साथ यश चोपड़ा की फ़िल्में भी देखा करता था. यह एक गजब का मिश्रण था, एक सुंदर मिश्रित रस.
आपने अपनी फ़िल्मों में भारतीय और पश्चिमी शैलियों के संतुलन के बारे में बात की है. क्या आप इस बारे में विस्तार से कुछ और बता सकते हैं?
मुझे लगता है कि संतुलन ही मेरे काम को अलग बनाता है. मैं अपनी भारतीय जड़ों से मजबूती से जुड़ा हुआ हूँ. कहानियों को कहने के हमारे तरीके से, हमारी भावनाओं से. लेकिन मैं अंतरराष्ट्रीय फिल्म निर्माण और उसके विभिन्न तकनीकों तथा दृष्टिकोणों से भी प्रभावित रहा हूँ. मैं इसे 'वैश्विक भारतीय' दृष्टिकोण कहता हूँ. यह सही है कि मैं जहाँ से आया हूँ, वहाँ सच्चा रहना चाहता हूँ, लेकिन मैं हर जगह से सीखने के लिए भी हमेशा तैयार हूँ.
तो, आप कह रहे हैं कि आप एक ऐसे फिल्म निर्माता हैं जो भारतीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों दृष्टिकोण रखते हैं?
बिल्कुल. मुझे लगता है कि इसीलिए मेरी फ़िल्में थोड़ी अलग दिख सकती हैं. यह कोई सचेत रूप से प्रयास नहीं है, यह बस मैं हूँ. यह मेरे खून में है, प्रभावों का यह मिश्रण.
और आपके इस द्वि-रस मिश्रण ने कुछ अविश्वसनीय काम किए हैं. 'नीरजा' और 'आर्या' बहुत सफल रहीं. आगे क्या है
मेरी एक नई सीरीज़ आने वाली है जिसका नाम है 'The Waking of a Nation.' यह 7 मार्च, 2025 को SonyLIV पर आएगा. मैं इसे लेकर उत्साहित हूँ.
आप हमें इसके बारे में क्या कुछ बता सकते हैं?
(मुस्कुराते हुए) अभी नहीं आपको इसे देखना होगा. लेकिन यह एक ऐसी कहानी है जिसके बारे में मैं भावुक हूँ. यह मेरे कार्य सफ़र में एक और कदम है, पंचगनी में फ़िल्में देखने वाले उस बच्चे से लेकर स्क्रीन पर कहानियाँ बताने तक.
पीछे मुड़कर देखें, तो आप महत्वाकांक्षी फ़िल्म निर्माताओं को क्या सलाह देंगे?
खुद के प्रति सच्चे रहें. अपनी आवाज़ की खोज करें. प्रयोग करने, अलग-अलग शैलियों को मिलाने से न डरें. और सबसे महत्वपूर्ण बात अपने काम के प्रति समर्पित और सच्चे रहे.
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