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कुछ गीतों ने देश की आन-बान-शान बढ़ाने में ऐसा योगदान दिया है, जो समय बीतने के बाद भी लगातार जन-मानस को प्रभावित करते हैं. इन्हीं अमर गीतों में से एक है—हमारा राष्ट्रीय गीत’ (Vande Mataram). जिसने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लाखों दिलों में जोश भर दिया और आज भी इसके बोल सुनकर खून में उबाल-सा महसूस होता है. इस कालजयी गीत को 150 वर्ष पूरे हो चुके हैं.
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लोकसभा में हुई चर्चा
यही वजह रही कि बीते सोमवार, 8 दिसंबर, लोकसभा में वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूरे होने पर विशेष चर्चा आयोजित हुई. उन्होंने पार्टी पर राष्ट्रीय गीत को लेकर मोहम्मद अली जिन्ना (Muhammad Ali Jinnah) की आपत्तियों का साथ देकर देश के साथ विश्वासघात करने का आरोप लगाया. पीएम मोदी ने आरोप लगाया कि भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू नेहरू (Jawaharlal Nehru) ने 1937 में जिन्ना के रुख का पालन किया था, यह दावा करते हुए कि यह गीत "मुसलमानों को नाराज कर सकता है" और इस तरह इसकी विरासत से समझौता किया.
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प्रधानमंत्री ने कहा था कि कांग्रेस ने राष्ट्रगीत को दो हिस्सों में तोड़ दिया और इसकी असल आत्मा को कमजोर कर दिया. उन्होंने इस मुद्दे को विकसित भारत के अपने विजन से जोड़ा और राष्ट्रीय विकास को सांस्कृतिक प्रतीकों के साथ मेल के तौर पर पेश किया.
मोदी ने की वंदे मातरम् की तारीफ
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इस दौरान प्रधानमंत्री ने नवंबर 1875 में बंकिम चंद्र चटर्जी (Bankim Chandra Chatterjee) द्वारा रचे गए इस गीत की तारीफ करते हुए इसे एक ऐसा नारा बताया जिसने आजादी के लिए लड़ने वालों की कई पीढ़ियों को प्रेरित किया. उन्होंने कहा, “अब, 150 साल बाद 'वंदे मातरम्' की शान को वापस लाने का यह एक अच्छा मौका है, जिसने हमें 1947 में आजादी दिलाई थी. पीएम मोदी ने इस मौके को राष्ट्रीय उपलब्धियों के बड़े संदर्भ में रखा.”
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पीएम मोदी ने इसे ऐतिहासिक उपलब्धियों से जोड़ते हुए कहा, “हमने हाल ही में अपने संविधान के 75 साल पूरे होने का जश्न मनाया. देश ने सरदार वल्लभभाई पटेल और भगवान बिरसा मुंडा (Birsa Munda) की 150वीं जयंती मनाई. हम गुरु तेग बहादुर जी (Guru Tegh Bahadur) के 350वें शहादत दिवस को भी मना रहे हैं; और आज, हम वंदे मातरम् के 150 साल पूरे होने का जश्न मना रहे हैं.”
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इस गीत को ‘बलिदान, एकता और मजबूती का मंत्र’ बताते हुए, पीएम मोदी ने संसद से आग्रह किया कि यह सुनिश्चित किया जाए कि इसकी विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रहे. उन्होंने कहा, “यह सिर्फ इतिहास को श्रद्धांजलि नहीं है, बल्कि हमारी लोकतांत्रिक भावना की फिर से पुष्टि है. अतीत के सबक हमारे भविष्य का मार्गदर्शन करते रहने चाहिए.”
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लोकसभा में हुई इस बहस और ‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष पूरे होने के ऐतिहासिक अवसर ने एक बार फिर इस गीत की व्यापक और बहुआयामी विरासत की ओर देश का ध्यान खींचा है. वंदे मातरम् सिर्फ राजनीति, आंदोलन या राष्ट्रीय प्रतीक का हिस्सा नहीं रहा—इसने भारतीय कला और सिनेमा को भी गहराई से प्रभावित किया है. इसका सबसे सशक्त उदाहरण हिंदी फिल्मों के इतिहास में दर्ज है.
वंदे मातरम् और सिनेमा
‘वंदे मातरम्’ की लोकप्रियता का सबसे मजबूत सिनेमाई रूप 1952 की फिल्म ‘आनंद मठ’ (Anand Math) में देखने को मिलता है. निर्देशक हेमेन गुप्ता (Hemen Gupta) ने इसमें 18वीं सदी के संन्यासी विद्रोह को राष्ट्र-चेतना और बलिदान की कहानी की तरह पेश किया. प्रदीप कुमार (Pradeep Kumar), गीता बाली (Geeta Bali) और भारती देवी (Bharati Devi) के अभिनय ने उस दौर के संघर्ष को जीवंत बनाया.
लता मंगेशकर की आवाज में गूंजा गीत
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संगीतकार हेमंत कुमार (Hemant Kumar) द्वारा तैयार किया गया ‘वंदे मातरम्’, जब लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) की आवाज़ में गूंजा, तो यह एक फिल्मी गीत से आगे बढ़कर राष्ट्रीय भावना का प्रतीक बन गया. 2003 में BBC World Service ने इसे दुनिया के टॉप 10 गानों में दूसरा स्थान दिया, जो इसकी अमरता का प्रमाण है.
यह कहना गलत नहीं होगा कि वंदे मातरम् केवल एक गीत नहीं—एक भावना, एक क्रांति और एक संस्कृति की पहचान है’ यह गीत आज भी देशभक्ति की सबसे शक्तिशाली ध्वनि है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों को अपने राष्ट्र के प्रति समर्पण की प्रेरणा देती है.
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