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'साहिर के बाद साहिर से कोई बड़ा शायर पैदा नहीं हुआ. जिंदगी और समाज के तकाजों को जिस गहराई के साथ महसूस कर उन्होंने अपनी रचनाओं में पिरोया है, वैसी मिसाल दुर्लभ है.' यह उद्गार वरिष्ठ उर्दू शायर और फिल्म गीतकार हसन कमाल ने अपने सम्बोधन में व्यक्त किए. साहिर की नज्म ''वो सुबह कभी तो आएगी' का जिक्र करते हुए विजय अकेला ने कहा कि साहिर ने इस नज़्म में जिस तरह के समाज की परिकल्पना की है, हमें उसे समाज तक पहुंचाने की जरूरत है. उन्होने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि, साहिर के पत्रों, डायरी और किताबों को कबाड़ी की दुकान पर बिकते हुए देखा था. इसके बाद सभागार में उपस्थित सभी साहिर के प्रेमी जनों ने साहिर की चीजो को संरक्षित करने के लिए चर्चा की. जूहू स्थित साहिर के निवास स्थान परछाइयाँ को स्मारक घोषित करने और वहाँ साहिर संग्रहालय स्थापित करने के लिए महाराष्ट्र सरकार को ज्ञापन देने पर भी निर्णय लिया गया.
साहिर स्मृति संध्या में मुख्य अतिथि उर्दू दैनिक इंकलाब के संपादक शाहिद लतीफ ने कहा कि सबसे ज्यादा महिलाओं की अस्मत और हिफाजत के लिए साहिर ने लिखा है. साहिर का पैगाम जमाने को समझाने की जरूरत है. लेखक सत्यदेव त्रिपाठी ने कहा कि ताजमहल को बिना देखे उस पर सबसे इतर कविता लिख कर साहिर ने यह सिद्ध कर दिया कि लोकानुभव से कहीं बड़ा होता है रचनाकार का स्वानुभव जो उसे महान बनाता है. इस कार्यक्रम के दौरान दीपक खेर, अनुष्का निकम और रश्मि श्री ने साहिर के फिल्मी गीत प्रस्तुत किये. पं.विष्णु शर्मा, ओबेद आजमी, नीता वाजपेयी, मधुबाला शुक्ला और प्रज्ञा पद्मजा ने साहिर की नज्में पढ़ीं. पिछले दिनों मुम्बई के अंधेरी पश्चिम स्थित जीत स्टूडियो में रसराज संस्थान द्वारा साहिर स्मृति संध्या का भव्य आयोजन किया. संयोजक थे कवि रासबिहारी पाण्डेय, जिन्होने कार्यक्रम का संचालन भी किया.
विदित हो कि, साहिर लुधियानवी एक प्रसिद्ध भारतीय शायर और गीतकार हैं, जिन्हें मुख्य रूप से उर्दू और हिंदी में अपनी शायरी के लिए जाना जाता है. उनका जन्म 8 मार्च 1921 को लुधियाना में हुआ था. उनका असली नाम अब्दुल हई था. बॉलीवुड में उन्हे साहिर लुधियानवी के नाम से जाना जाता है. उनका निधन 25 अक्टूबर 1980 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ था. साहिर लुधियानवी ने लगभग 729 फ़िल्मी गीत लिखे हैं. उन्होंने लगभग 30 वर्षों तक हिंदी करीब 113 फ़िल्मों के लिए गीत लिखे. उन्हें दो बार सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार और 1971 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था. उनके निधन के इतने वर्षो के बाद उनके आवास परछाइयाँ पर कई स्वामित्व बताए जाते हैं. अब भारत / महाराष्ट्र सरकार उनकी चीजों, किताबों, पांडुलिपियों आदि को समूल नष्ट होने से बचा सकती है.
-शामी एम इरफ़ान