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कुब्रा सैत हमेशा उस अंदरूनी दुनिया के बारे में बेबाकी से बात करती हैं, जो उनके अभिनय को आकार देती है। अपनी कच्ची, सच्ची परफॉर्मेंसेज़ और जटिल किरदारों में पूरा ढल जाने की क्षमता के लिए जानी जाने वाली कुब्रा सैत अक्सर उस भावनात्मक अनुशासन पर बात करती हैं, जिसकी मांग एक्टिंग करती है। इस व्यक्तिगत अनुभव में, वह उस पल को याद करती हैं जब उन्होंने सच में समझा कि अपनी जिम्मेदारी के साथ, साहस के साथ, और पूरी सजगता के साथ भावनाओं तक पहुँचना क्या होता है। उनके सफर की शुरुआत में मिली यह सीख आज भी यह उन्हें स्क्रीन के साथ जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है। (Kubra Sait emotional discipline in acting)
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इस सिलसिले में अपनी बात रखते हुए वे कहती हैं, “एक्टर के तौर पर मैंने सीखा कि अगर आप अपनी भावनाओं तक पहुँचने के लिए तैयार नहीं हैं, तो आप एक्टर बन ही नहीं सकते। हालांकि यह भी हो सकता है कि उन भावनाओं तक पहुँचने के लिए जो रास्ता आप अपनाते हैं, वह बहुत खतरनाक हो, लेकिन आपको आगे बढ़ना ही होगा। मुझे याद है, मैंने यह बात अपने एक डायरेक्टर अनुराग कश्यप से सीखी। पहली बार मुझे कैमरे पर रोना था, और मुझे नहीं पता था कि मैं ये कैसे करूँगी। यह डर मेरे दिमाग में घर कर चुका था, तभी उन्होंने मेरी तरफ देखा और कहा, ‘हम यहाँ बैठेंगे, लाइनें पढ़ेंगे और बस खुद के साथ रहेंगे। (Kubra Sait inner world behind performances) हम तुम्हारे अंदर की उस खिड़की को खोलेंगे, ताकि भावनाएँ भीतर आ सकें। और आज रात जाने से पहले हम उस खिड़की को फिर बंद भी करेंगे।’ यह बात मेरे भीतर बस गई। हम सभी के भीतर वह खिड़की होती है, जो हमारी भावनाओं की दुनिया तक पहुँचने का एक रास्ता होती है। उसे खोलने और बंद करने की क्षमता ही हमें संतुलित रखती है और हमें ज़िंदा रखती है। हालांकि अभिनय के बाहर, असल ज़िंदगी में, दुनिया हमेशा इतनी माइंडफुल नहीं होती इसलिए कभी-कभी खिड़की की बजाय पूरी बाँध खुल जाती है और हमारी भावनाएँ हम पर हावी हो जाती हैं। आज की भागदौड़ भरी दुनिया में हम अक्सर अपने ही विचारों और अपने ही एक्सप्रेशंस में उलझ जाते हैं और हर चीज़ को ‘ट्रिगर’ कहने लगते हैं, जबकि कई बार हम बस चिढ़े हुए या परेशान होते हैं। यही ट्रिगर हमें हमारे अतीत में खींच ले जाता है, लेकिन चिढ़ और परेशानी वर्तमान की होती है। इस फर्क को समझते हुए मैंने अपने भीतर की उस खिड़की को पहचाना और इसीने मुझे एक एक्टर के तौर पर बचाया, एक इंसान के तौर पर मुझे ज़मीन से जोड़े रखा।” (Kubra Sait approach to complex characters)
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सच पूछिए तो कुब्रा की यह बात याद दिलाती है कि भावनाओं तक पहुँच पाना सिर्फ एक कलात्मक कौशल नहीं, बल्कि एक मानवीय अनुभव है, जिसमें जिम्मेदारी चाहिए। एक्टर सिर्फ किसी सीन के लिए भावनाएँ उधार नहीं लेते, वे सीखते हैं कि उन्हें वापस कैसे रखा जाए, उस खिड़की को कैसे बंद किया जाए जिसे उन्होंने खोला था। जहाँ भावनाएँ हमें या तो भारी कर दें या इसे एक गलत नाम दे दिया जाए, ऐसी दुनिया में उनका यह विचार एक कोमल-सा मार्गदर्शन बन जाता है, यह समझने के लिए कि क्या हमारे अतीत से आता है और क्या हमारे वर्तमान का हिस्सा है, और कैसे इन दोनों के बीच संतुलन बनाया जाए। यदि आपको लगता है कि यह अभिनय का सबक है, जी नहीं, यह उससे कहीं बढ़कर, ज़िंदगी का सबक है। (Kubra Sait journey in understanding emotions)
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