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अमिताभ बच्चन की उम्र भले ही तिरासी की हो चुकी हो, लेकिन उनके तन या मन की थकान आज भी नहीं दिखती है । जैसे समय उनके सामने ठहर-सा जाता है। ठीक वैसे ही अमिताभ जी हर रात काम की रोशनी में खो जाते हैं। हाल ही में उन्होंने अपने ब्लॉग पर लिखा कि वे सुबह साढ़े पाँच बजे तक काम करते रहे और उन्हें याद ही नहीं रहा कि उनके चाहने वालों के लिए लिखना भी बाकी था। उनकी इस बात में न कोई शिकायत थी, न कोई दबाव… बस एक सीधी-सी बात कि काम उनके लिए सांस लेने जैसा है—चले बिना रुकता ही नहीं।
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हर रविवार को जब मुंबई के जलसा के बाहर जमा भीड़ उनके दीदार का इंतज़ार करती है, तो लगता है जैसे ये रिश्ता दोनों तरफ से ही दिल की गहराइयों से अंकुरित हुआ है। उम्र बढ़ी है, कदम थोड़े संभल कर चलते हैं, लेकिन उस पल की मुस्कान—जब वो हाथ उठाकर अभिवादन करते हैं—आज भी वैसी ही झिलमिलाती हुई दिखती है जैसे कभी ‘दीवार’ के सेट पर या ‘कुली’ के क्लाइमैक्स में दिखती थी। लोग कहते हैं, स्टारडम एक बार मिलता है… पर उनकी शख़्सियत बताती है कि अगर इंसान सच्चा हो तो स्टारडम उम्र के पार भी टिक जाता है। (Amitabh Bachchan work till early morning)
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अपने ब्लॉग में उन्होंने सहजता से लिखा, “Kept working till 5:30 in the morning… apologies and regrets…” फिर उसी सांस में उन्होंने ये भी कह दिया कि अपने ‘Ef’—यानि Extended Family—के लिए दिल में कभी अफ़सोस नहीं होता। उनके अंदर की ये उष्णता बताती है कि चाहे वो करोड़ों के सामने बैठे हों या एक खाली कमरे में, कैमरा के सामने, वो अपने दर्शकों को कभी दूर नहीं रखते। उनके लिए काम सिर्फ एक ज़िम्मेदारी नहीं, बल्कि एक इबादत है, और दर्शक उसकी सबसे ख़ूबसूरत वजह है ।
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इन दिनों उनके मन पर एक और परछाई चल रही है—पुराने दिनों की यादें और कुछ दर्द भरे पल, जो उन्होंने अपने ब्लॉग में बेहद ईमानदारी से लिखे। उन्होंने कहा, “Images and feelings of the past days still linger…” बड़ी उम्र शायद दिल को और नर्म और संवेदनशील बना देती है। शो जारी है, सेट पर रोशनी जगमगा रही है, हज़ारों लोग KBC के स्टूडियो में तालियाँ बजा रहे हैं… पर अंदर कहीं-न-कहीं कुछ पल ऐसे होते हैं जिन्हें इंसान अकेले में ही संभालता है।
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शूट खत्म होने के बाद KBC की टीम उन्हें बाहर ले आई , दक्षिण भारतीय खाने की महक, हँसी-मज़ाक, साथियों की गर्मजोशी… और उस भीड़ के बीच भी उनका दिल चुपचाप एक तारीख़ को महसूस कर रहा था—बाबूजी की जन्मतिथि। आज की पीढ़ी ने नहीं जाना, किसी ने नहीं समझा… लेकिन वो चुपचाप उस पल को अपने अंदर लेकर वापस आए। बड़े लोग अक्सर अपने इमोशन को दूसरों पर नहीं डालते, बस मुस्कान में छुपाकर आगे बढ़ जाते हैं। अमिताभ बच्चन शायद इसी खामोशी की तहज़ीब के अंतिम शहंशाह हैं। (Amitabh Bachchan blog late night work routine)
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काम पर लौटना उनके लिए मजबूरी नहीं, आदत है। एक रफ़्तार है जो उनकी नसों में बहती है। कोई और 83 की उम्र में सुबह तक काम करे तो लोग हैरान हो जाएँ, लेकिन उनके साथ ये बात अजीब नहीं लगती… बल्कि स्वाभाविक लगती है। उन्होंने अब अपने किरदारों में भी एक तरह की आध्यात्मिकता भर दी है। चाहे ‘Kalki 2898 AD’ का विशाल कैनवस हो या टीवी पर साधारण-सा सवाल पूछने का सरल अंदाज़—उन हर फ्रेम में एक परिपक्व रुह की चमक दिखती है, जो थकती तो होगी , पर रुकती नहीं।
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उनके शब्दों में एक हल्की-सी उदासी थी, लेकिन साथ में एक दृढ़ता भी। जैसे कह रहे हों कि दिल भर आता है, पर कदम अपने रास्ते जानते हैं। दुनिया बदल रही है, लोग बदल रहे हैं, पर अमिताभ बच्चन की पेशेवर निष्ठा उस दीपक की तरह है जो हवा तेज़ होने पर और तेज़ जल उठता है। वो काम को जीते हैं, और शायद इसी वजह से लोग उन्हें सिर्फ पसंद ही नहीं करते बल्कि पूजते हैं। (Big B dedication towards work)
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यही वजह है कि लोग कहते हैं—अमिताभ बच्चन को देखकर हम उम्र को नहीं, जज़्बे को मापते हैं। और हाँ, कभी-कभी वो रातें, जिनमें अपने पसंदीदा काम करते हुए सोना ही भूल जाते हैं , किसी कलाकार के लिए सबसे ज़रूरी होती हैं… क्योंकि उन्हीं में कला फिर से जन्म लेती है। (Amitabh Bachchan inspiration at 83)
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अमिताभ बच्चन को देखकर यही महसूस होता है कि स्टारडम नहीं, इंसानियत उन्हें अमर बनाती है। उनके शब्दों में जो नर्म लेकिन दृढ़ जज्बात है, वही उनकी ताक़त भी है। सलाम अमिताभ बच्चन को, जो आज भी उजाला बाँटती है। (Amitabh Bachchan passion for work)
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