1957 में रिलीज़ हुई 'दो आंखें बारह हाथ' दिखाती पर्दे के पीछे की दुनिया दो आंखें बारह हाथ वी शांताराम द्वारा निर्देशित, भारतीय सिनेमा में एक ऐसी ऐतिहासिक फिल्म है, जो अपनी एकदम नए कॉन्सेप्ट वाली कहानी और सामाजिक संदेश के लिए प्रसिद्ध है... By Sulena Majumdar Arora 27 Sep 2024 | एडिट 27 Sep 2024 13:36 IST in एंटरटेनमेंट New Update Listen to this article 0.75x 1x 1.5x 00:00 / 00:00 Follow Us शेयर दो आंखें बारह हाथ वी शांताराम द्वारा निर्देशित, भारतीय सिनेमा में एक ऐसी ऐतिहासिक फिल्म है, जो अपनी एकदम नए कॉन्सेप्ट वाली कहानी और सामाजिक संदेश के लिए प्रसिद्ध है. फिल्म एक आदर्शवादी जेल वॉर्डन की कहानी है जो छह क्रूरतम, खतरनाक खूनी अपराधियों का पुनर्वास करता है, जिसमें कई बार वो असफल सा महसूस करता है लेकिन आखिर मानवता की जीत होती है. यह एक सत्य घटना पर आधारित कहानी है जो महाराष्ट्र के औंध रियासत में एक वास्तविक सामाजिक एक्सपेरिमेंट से प्रेरित था, जहां एक जमाने में मौरिस फ्राइडमैन ने गांधीजी के स्वशासन के सिद्धांतों को लागू किया था. Do Ankhen Barah Haath 1957 फिल्म ने राष्ट्रीय पुरस्कार और पहली बार गोल्डन ग्लोब पुरस्कार जीता, जिससे इसकी अंतर्राष्ट्रीय ख्याति और प्रशंसा हुई. विशेष रूप से, इसमें वसंत देसाई का यादगार संगीत शामिल है जिसके गीत भारत में जेल सुधार के चर्चा में प्रभावशाली बने हुए हैं. यह फ़िल्म पचास के दशक के फिल्म निर्माता निर्देशकों और दर्शकों को जिस रूप से प्रेरित करती थी, आज भी यह उतनी ही प्रासंगिक फ़िल्म मानी जाती है. फ़िल्म के कुछ गाने की झलकियाँ देखिए, 'ऐ मालिक तेरे बंदे हम' 'सइयां झूठों का बड़ा, उमढ़ घुमड़ कर आई रे घटा', मै गाऊँ तू चुप हो जा, ये गाने उस ज़माने में इतने लोकप्रिय हुए कि घर घर बजने लगा. Do Ankhen Barah Haath 1957 Song 'दो आंखें बारह हाथ' भारतीय सिनेमा जगत की एक एतिहासिक और महत्वपूर्ण फिल्म है जो 1957 के उस काल में रिलीज हुई थी जब ज्यादातर रोमांटिक और ईश्वर भक्ति की फिल्में बनती थी और हिट भी होती थी. उस काल के फ़िल्म मेकर महान वी. शांताराम द्वारा निर्देशित, यह फिल्म न केवल अपनी कथा और तकनीकी उपलब्धियों के लिए बल्कि अपने गहरे सामाजिक संदेश के लिए भी उल्लेखनीय है. इसे आज एक कल्ट और क्लासिक फ़िल्म के दर्जे में रखा जाता है और इसका प्रभाव आज भी समकालीन भारतीय फिल्म निर्माण में महसूस किया जा सकता है. Do Ankhen Barah Haath 1957 Movie यहाँ यह उल्लेख करना जरूरी है कि यह कहानी एक पॉलिश इंजीनियर तथा समाज सुधारक/मानवतावादी इंसान मौरिस फ्राइडमैन द्वारा किए गए वास्तविक जीवन के प्रयोग से प्रेरित थी. वे महात्मा गांधी के पुनर्वास और स्वशासन के सिद्धांतों से प्रभावित थे. फ्राइडमैन ने औंध रियासत में काम किया, जहां उन्होंने कम्यूनिटी भागीदारी और व्यक्तिगत जिम्मेदारी के माध्यम से अपराधियों को सुधारने के लिए एक अनूठा दृष्टिकोण लागू किया था. वी.शांताराम इनके द्वारा जेल में बंद खतरनाक अपराधियों को खुली हवा में रखकर सुधारने के प्रयोग से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने इसे एक ऐसे सिनेमैटिक अनुभव में तब्दील करने की कोशिश की जो दर्शकों को पसंद आए. वी शांताराम ने फ्राइडमैन को स्टोरी आइडिया देने के एवज में उनका नान क्रेडिट में लिखना चाहा था लेकिन फ्राइड मैंन ने साफ इंकार कर दिया. 'दो आंखें बारह हाथ' की कहानी वी.शान्ताराम द्वारा निर्देशित/अभिनीत एक समर्पित जेल वॉर्डन के इर्द-गिर्द घूमता है. शांताराम, जो छह दुर्दांत अपराधियों के पुनर्वास का जिम्मा अपने ऊपर लेता है. फिल्म की कहानी, करुणा की शक्ति और इस विश्वास को दृढ़ करती है कि हर किसी में बदलाव की क्षमता होती है चाहे वो कितना भी जघन्य इंसान हो. यह कथा अपने समय के लिए अभूतपूर्व थी, क्योंकि इसने आपराधिक न्याय प्रणाली में सजा और प्रतिशोध की आम तौर पर प्रचलित धारणाओं को चुनौती दी थी. वी शांताराम को अपनी प्रत्येक फ़िल्म के निर्देशन में बारीकियों पर ध्यान देने के लिए जाना जाता था और इसमें उनकी कास्टिंग भी कोई अपवाद नहीं थी. बड़े बड़े स्टार्स की परवाह ना करते हुए फिल्म में उस समय के सिर्फ प्रतिभाशाली और खालिस कलाकार को वी शान्ताराम ने इस फिल्म के लिए चुना. खुद वी शांताराम ने अपनी इस फ़िल्म के मुख्य प्रोटॉगोनिस्ट आदिनाथ के रूप में काम किया था. अमूमन वे खुद अपनी फ़िल्म में काम नहीं करते थे लेकिन 'दो आंखें बारह हाथ एक अपवाद है. सुप्रसिद्ध अभिनेत्री तथा वी शान्ताराम की द्वितीय पत्नी संध्या ने, लीड नायिका के किरदार के रूप में उस फ़िल्म में काम किया था, जिसने कहानी को एक भावनात्मक गहराई प्रदान की है. इसके अलावा बाबूराव पेंधारकर, उल्हास, बी एम व्यास, आशा देवी, पॉल शर्मा, एस के सिंह, शंकर राव भोसले,जैसा कलाकरों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. प्रत्येक अभिनेता ने अपने चरित्र के संघर्षों और परिवर्तनों को प्रामाणिकता के साथ जीवंत किया. वी शांताराम सिनेमैटइस तकनीकों के भी प्रर्वतक थे. उन्होंने कहानी कहने की क्षमता को बढ़ाने के लिए विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल किया. उस युग की ज्यादातर फिल्में स्टूडियो सेट पर बहुत अधिक निर्भर हुआ करती थीं, लेकिन दो आंखें बारह हाथ की शूटिंग ग्रामीण महाराष्ट्र के आउटडोर लोकेशन पर की गई थी. इस नए विचार ने फिल्म में यथार्थवाद और प्रामाणिकता की एक परत जोड़ दी. इस फ़िल्म में दृश्य रूपकों का उपयोग, पूरी फिल्म में बार बार किया गया. उदाहरण के लिए, प्रकाश और अंधेरे की विपरीत कल्पना आशा बनाम निराशा का प्रतीक है, जो पात्रों की आंतरिक उथल-पुथल को दर्शाती है. इस फ़िल्म को उस युग के दौरान फिल्म निर्माण की कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. उस समय के कई स्वतंत्र फिल्म निर्माताओं की तरह, वी शान्ताराम को भी कास्टिंग विकल्प के महत्व को समझना पड़ा. शांताराम को अपनी फ़िल्म में हाई क्वालिटी के लिए प्रयास करते हुए सख्त बजटीय सीमाओं के भीतर काम करना पड़ा. अपराध, पुनर्वास और सामाजिक जिम्मेदारी जैसे मुद्दों को संबोधित करते हुए फिल्म का विषय अपने समय के लिए साहसिक था. इससे कभी-कभी समाज के रूढ़िवादी वर्गों को धक्का लगता था जो ऐसे प्रगतिशील विचारों के प्रतिरोधी थे. 1950 के दशक में उपलब्ध तकनीक ने सिनेमैटोग्राफी और ध्वनि डिजाइन पर सीमाएं लगा दीं. हालाँकि, वी शान्ताराम ने कोई समझौता नहीं किया. अपनी रिलीज़ पर, 'दो आंखें बारह हाथ' को आलोचकों की प्रशंसा और व्यावसायिक सफलता दोनों मिली. इसकी सशक्त कहानी और हकीकी प्रदर्शन से दर्शक मंत्रमुग्ध हो गए. फ़िल्म ने कई पुरस्कार जीते, जिनमें सर्वश्रेष्ठ फ़ीचर फ़िल्म के लिए वी शांताराम को राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार, और अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म समारोहों में मान्यता मिली. इस फिल्म समारोह में वी शांताराम की फ़िल्म को आठवें बर्लिन इंटरनेशनल फ़िल्म फ़ेस्टिवल के दौरान सिल्वर बीआर का अवार्ड भी प्राप्त हुज़ा. फिल्म को "हिंदी सिनेमा का मील का पत्थर" माना गया है. अपने बेहतरीन निर्देशन, शानदार अभिनय और खूबसूरत संगीत के कारण इसे "कल्ट क्लासिक" का दर्जा मिला. आलोचकों ने कहा कि फिल्म ने दर्शकों को एक मिनट के लिए भी बोर नहीं होने दिया और यह आसानी से हिंदी में बनी सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक रही. फिल्म के इमोशनल सीन, खासकर क्लाइमैक्स को दर्शकों के दिलों को छूने के लिए काफी सराहा गया. फ़िल्म में प्रतीकात्मकता का उपयोग, जैसे कि जेल अधीक्षक की "दो आंखें", जिससे बारह दोषी डरते थे, को असाधारण के रूप में उजागर किया गया था. 'दो आंखें बारह हाथ' ने बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में सिल्वर बियर जीता, यह सम्मान पाने वाली पहली भारतीय फिल्म बन गई. इस फिल्म को हॉलीवुड प्रेस एसोसिएशन द्वारा भी सराहा गया और 1958 में प्रसिद्ध चार्ली चैपलिन की अध्यक्षता वाली जूरी द्वारा, वर्ष की सर्वश्रेष्ठ फिल्म के रूप में एक विशेष पुरस्कार प्राप्त हुआ, जिसे कैथोलिक पुरस्कार के रूप में जाना जाता है. अपराधियों के सुधार और उनके मानवीय पक्ष को संबोधित करने के बारे में फिल्म का क्रांतिकारी आधार और संदेश आज भी आधुनिक और पथप्रदर्शक माना जाता है. इसकी कहानी कहने और नैतिक बोध को सहेजने के लहजे ने इसे एक "महाकाव्य" बना दिया, जो अच्छे बनाम बुरे के संघर्ष को संबोधित करता है. इसका व्यवसायिक कलेक्शन 2.39 हुआ था. दो आंखें बारह हाथ फ़िल्म इतनी बेहतरीन फ़िल्म साबित हुई कि इसे 1975 में तमिल में भी बनाया गया (पालन्डू वाज़गा ) और 1976 में तेलगु फ़िल्म के रूप में भी बनाया गया (माँ दैवन). इस फ़िल्म की शूटिंग के दौरान एक बैल के साथ खाली हाथ भिड़ने वाले सीन के दौरान वी शांताराम जबरदस्त तरीके से घायल हुए थे. Read More: पिता फिरोज खान को याद कर इमोशनल हुए फरदीन, पापा के लिए लिखा भावुक नोट हेमा कमेटी की रिपोर्ट पर आधारित नहीं है The Kerala Story का सीक्वल Vedang Raina ने Alia Bhatt को दिलाई Ranveer Singh की याद पंडित जसराज की पत्नी और वी शांताराम की बेटी मधुरा पंडित का हुआ निधन हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Latest Stories Read the Next Article