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सब कुछ पाकर भी हासिल-ए-ज़िंदगी कुछ भी नहीं, कमबख्त, जान क्यों जाती है जाते हुए... Goodbye, Dharmendra, sir.

यह पंक्तियाँ ज़िंदगी की नश्वरता और इंसानी फितरत को दर्शाती हैं—सब कुछ पाकर भी अधूरापन महसूस होना, बिछड़ने का डर, अनजाने सफ़र की चिंता और जीवनभर की गई जमा-पूंजी की बेकार होती अहमियत को भावुक अंदाज़ में व्यक्त किया गया है।

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24 नवंबर की सुबह, मैं मायापुरी के संस्थापक स्वर्गीय श्री ए. पी. बजाज जी के  पुण्यतिथि पर प्रत्येक वर्ष आयोजित होने वाले महा भोग प्रसाद के बारे मे कुछ लिखने बैठी ही थी कि खबर लगी, बॉलीवुड के दिग्गज नायक , धर्मेंद्र जी का निधन हो गया और उनकी अंतिम क्रिया के लिए परिवार वाले निकल भी चुके है।   सबकुछ इतना जल्दी जल्दी हुआ कि मन तैयार ही नहीं हुआ। क्या फिर से अफवाह फैली है? नहीं, इस बार कोई गलती, कोई अफवाह नहीं  थी उनके निधन को लेकर। खैर, ईश्वर की मर्जी के आगे किसी की नही चलती। (Dharmendra demise confirmed news 2025)

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Veteran Bollywood Actor Dharmendra Passes Away at 89 in Mumbai - IMDb

धर्मेंद्र साहब अपने लाखों चाहने वालों के मन में हजारों अनुत्तरित सवाल छोड़ कर चले गए।

यह सब मैं सोच ही रही थी कि खयाल आया कि , ए. पी बजाज साहब की पुण्यतिथि और धर्मेंद्र साहब की पुण्यतिथी एक ही दिनांक में है। याद आया कि धर्मेंद्र और बजाज जी की घनिष्ठता कुछ ऐसी ही थी कि लगता ही नहीं था कि वे दोनों एक दिग्गज बॉलीवुड स्टार और एक दिग्गज पब्लिशर थे,  बस लगता था दो दोस्त हैं। अक्सर बॉलिवुड स्टार और बॉलिवुड पत्रिका संपादक का कोमबिनेशन छत्तीस का आंकड़ा होता है, लेकिन धर्मेंद्र साहब और ए पी बजाज जी का स्नेह एक अद्भुत मिसाल था दोस्ती का।  जब भी हमारी मुलाकात होती धर्मेंद्र साहब, बजाज जी के बारे में पूछते, उन्हें संदेश भेजते और कहते बजाज साहब मुंबई आएं तो हमसे मिले बिना ना जाएं। वर्ना मैं दिल्ली पंहुच  जाऊंगा।Veteran Actor Dharmendra Die

Dharmendra media: धरम जी एक सवाल हमेशा पूछा करते थे- 'कैसी है मायापुरी?  कैसे हैं बजाज साहब ?'

सचमुच धर्मेंद्र साहब दिल के राजा थे, जन्म से लेकर मृत्यु तक, वे सिर्फ और सिर्फ खुशियां लुटाते रहें हैं।

कहते है कि रात को  पैदा हुए इंसान वाकई बहुत नेक और दरिया दिल  होते हैं। धर्मेंद्र साहब का भी जन्म सूरज उगने से पहले हुआ था। आज से  89  वर्ष पहले, उस समय जब पंजाब में तब भी  साफ़ मिट्टी और मासूमियत की खुशबू हुआ करती थी। आठ दिसंबर 1935,  साहनेवाल गाँव सोया हुआ था, ठंडी ओस से खेतों में गीली मिट्टी की खुशबू थी। उस माहौल में एक  इमानदार, मेहनती शिक्षक के घर में पैदा हुए उस नवजात शिशु ने गांव की मिट्टी की जो सांस ली वो जीवन भर उनकी सांसों में बस गई।

Dharmendra dies at 89: Bollywood mourns, stars gather at crematorium

Dharmendra Deol Net Worth: Bollywood's 'He-Man' Leaves Behind A Legacy And  Assets Worth Hundreds Of Crores

नन्हा धरम, खेत खलिहानों के बीच बड़ा होने लगा। वह गाय भैंसों का पीछा करते हुए, सरसों के खेतों में दौड़ते हुए, गांव के पोखरो में, धूल और कीचड़ सने पैर लेकर दोस्तों के साथ डुबकी लगाते हुए और गाँव की ज़िंदगी की कविताओं को आत्मसात करते हुए बड़े होने लगे। (Mayapuri founder A. P. Bajaj annual tribute)

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धरम जी अक्सर कहते थे, “मेरा गाँव मेरा देश,पहला प्यार है। मैं इसी मिट्टी से बना हूँ।”   के स्टारडम के बाद भी, वह मिट्टी उन के पैरों से कभी नहीं हटी।

दुनिया ने कई हीरो देखे हैं, लेकिन धर्मेंद की शख्शियत सब पर भारी थी।

Dharmendra Deol Net Worth: Bollywood's 'He-Man' Leaves Behind A Legacy And  Assets Worth Hundreds Of Crores
बचपन में धर्मेंद्र बहुत शर्मीला थे। पापा जिस स्कूल में टीचर थे उसी स्कूल में भर्ती होने के कारण, डर के मारे वे मुश्किल से ही जुबान खोलते थे। उनके पिता एक सख्त स्कूल टीचर थे, डिसिप्लिन और  ईमानदारी की मांग वे अपने बेटे धर्मेन्द्र से भी करते थे। लेकिन मां का वो लाडला था। माँ काम करते हुए लोकगीत गाती थी जिसे धरम सुनते सुनते  कविताओं की जगत में खो जाते थे। मां को नहीं पता था कि वह अपने  बच्चे के अंदर कविताओं के बीज डाल रही थी। शायद इसलिए कठोरता से भरी बॉलिवुड इंडस्ट्री में, धर्मेंद्र  सबसे अलग दिखते थे। शुरू से ही धर्मेंद्र में एहसास की भावना ज्यादा थी। जितना करते थे उससे ज़्यादा महसूस करते थे। उन्होंने कहा था, “गाँव में ज़िंदगी सीधी थी,लोग साफ़ दिल के होते थे। मैं भी वैसा ही  हूं।” धर्मेंद्र की सादगी  उन्हें विरासत में मिली थी। (A. P. Bajaj death anniversary Mahabhog Prasad event)

Dharmendra - Wikipedia

Legendary Actor Dharmendra With His Father & Mother, All Family Members

फिल्में उनकी ज़िंदगी में एक तूफानी हवा के झोंके की तरह आईं।  उन दिनों,धर्मेंद के मकान से मीलों दूर एक छोटा सा थिएटर हॉल हुआ करता था, नाम था, राखी सिनेमा, जहां फिल्में रिलीज होने के महीनों या सालों बाद आती थी।  धरम जी को फिल्में देखने का बहुत शौक था। अक्सर अपने  बेबे से चिरौरी करके फिल्म देखने के पैसे लेकर अपने दोस्तों के साथ फिल्में देखने जाते थे। धरम जी ने बताया था कि उन दिनों सिनेमा हॉल में लकड़ी की बेंचे हुआ करती थी। पैसे कम होने पर फ्रंट रो में बैठना पड़ता था। वहां बिकने वाले टिक्की समोसा वे चार आने में खाते थे सिनेमा हॉल के अंदर। वहीं उन्होंने देव आनंद, दिलीप कुमार, दारा सिंह, सुरैया, राज कपूर की कितनी सारी फिल्में देखी और बॉलिवुड के मोह में आकंठ डूब गए।

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धरम जी ने कहा था, " मुझे नहीं पता था कि  घुप अंधेरे हॉल में वो तस्वीरें मुझे इतनी शिद्दत से क्यों खींचती थीं। मुझे बस इतना पता था कि जब भी मैं दिलीप कुमार को परफॉर्म करते देखता था तो मेरा दिल तेज़ी से धड़कता था।"
घर आकर  रात को वह अपनी चारपाई पर लेट जाते, तारों को देखते और उनके मन में भी एक सितारा बनने की तड़प उठती। एक्टर बनने का कोई प्लान नहीं था। बस एक बेचैनी थी। उन्होंने कहा था," आज की मुंबई उन दिनों बॉम्बे हुआ करती थी। तो बॉम्बे का नाम सुनते ही मेरे पेट में हलचल होती थी। तो एक बार मैं मुंबई शहर घूमने के बहाने चला गया, सोचा कोई काम मिल जाए तो टिक जाऊंगा और हीरो बनने की कोशिश करूंगा। लेकिन कोई तैयारी न होने के कारण, कुछ ही समय में मैं वापस पंजाब आ गया और एक ड्रिलिंग कंपनी में नौकरी कर ली।"

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लेकिन फिर भी धरम जी ने सपने देखना नहीं छोड़ा था। उन्हीं दिनों उनके अंदर जज्बातों का तूफान उमड़ने लगा था और उन एहसासों को धरम जी लिख लेते थे।
उन्होंने एक बार कहा था, "सिनेमा से भी पहले, कविता ने मेरे दिल को काबू कर लिया था।"   वे नोटबुक में छोटी-छोटी दो दो पंक्तियों की कविताएं और शेर लिखते थे, लेकिन उन्हें सबसे छिपाते थे, डरते थे कि कोई हँस न जाए। उन्हें नहीं पता था कि वे लाइनें एक दिन उनकी आत्मा की सरगोशी बन जाएँगी। उन्होंने एक बार पंजाबी में लिखा था, “धूप भी हूँ, साया भी हूँ। मैं अपना ही साथी हूँ।”

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और पैंसठ साल बाद भी, वही धर्मेंद्र सोशल मीडिया पर फैंस के साथ, वही छोटी छोटी कविताएँ शेयर करते थे, जो उनके किशोर  अवस्था का धन था।

  इन्ही  एहसासों ने एक बार फिर से उनके कदम मुंबई,(बॉम्बे) की तरफ मोड़ दिया । खूबसूरत, लहीम शहीम , हट्टे कट्टे तो वे थे ही।

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1958 में, उन्होंने फिल्मफेयर टैलेंट कॉन्टेस्ट के बारे में पढ़ा था। मां उनकी सबसे करीबी दोस्त थी। मां को उस  टेलेंट कॉन्टेस्ट के बारे में बताया। मां ने साथ दिया। कुछ बचाए हुए पैसे दिए। धरम जी पहले तो हिचकिचाए। लेकिन उनके अंदर  कुछ, जो सालों से चुपचाप सोया हुआ था, जाग उठा। उन्होंने फिल्मफेयर टैलेंट हंट कॉन्टेस्ट में अपनी तस्वीरें भेजीं।  और फिर चिट्ठी आई।  वे चुने गए थे और सेकंड आए। उन्हें यकीन नहीं हुआ। चिट्ठी में लिखा था, आप ट्रेन के फर्स्ट क्लास टिकट में  बॉम्बे आ जाएं। टिकट का भुगतान कर दिया जायेगा। धरम जी ने यादों में गोता लगाते हुए कहा था, " मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था, फर्स्ट क्लास का टिकट लेने की हिम्मत नहीं हो रही थी कि कहीं अगर उन लोगों ने भुगतान न किया तो?”  धरम जी ने सेकंड क्लास का टिकट ही लिया

Punjab boy Dharam Deol to pole star of Bollywood: “Even when I am in  Bombay, my soul lives in…” | Chandigarh News - The Indian Express

माँ ने खाना पैक करके दिया था।  पिता ने उन्हें ईमानदारी और कड़ी मेहनत के बारे में कड़ी सलाह दी थी। धरम ने उनके पैर छुए, ट्रेन में चढ़ा, और अपनी जानी-पहचानी  कंफर्ट जोन  को पीछे छोड़ आया। ट्रेन का सफ़र लंबा था, डर, उम्मीद, अनिश्चितता से भरा हुआ। वह खिड़की के पास बैठा, खेतों को गुज़रते हुए देख रहा था, खुद से दोहरा रहा था, “मैं कर लूँगा… मैं कर लूँगा,” और पहुंच गए मुम्बई सेंट्रल ( बॉम्बे सेंट्रल) ।

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और स्टेशन पर उतरते ही इस सपनों के शहर, इस भ्रम  के शहर ने अपनी मैग्नेटिक फ़ोर्स से उन्हे अपनी तरफ कुछ इस तरह से खींचा कि वे फिर कभी इस शहर को छोड़कर कहीं नहीं जा सके। लेकिन बॉम्बे (आज की मुंबई)आसान नहीं था। भीड़, अफ़रा-तफ़री और बंद दरवाज़ों ने उनका स्वागत किया। (Dharmendra family leaves for last rites)

When Dharmendra shared he drank 12 bottles of beer on the set of 'Sholay',  'Love killed me, alcohol killed me' | - The Times of India

वे स्टेशन से सीधे टेलेंट हंट के ऑफिस पहुंचे। कुछ  फॉर्मेलिटीज के बाद उन्हे साइन कर लिया गया। धरम जी ने कहा था,"मुझे चुनाव लेटर मिलते ही लगा मैने किल्ला फतह कर लिया। मुझे बताया गया, कि अगले महीने शूटिंग शुरू हो जायेगी। वो दिन और आज का दिन। जिस फिल्म के लिए टैलेंट हंट किया गया वो कभी नही बनी।" लेकिन धरम जी वापस नहीं जाना चाहते थे। किस मुंह से जाए। बोल कर आए थे कि कुछ बनकर ही लौटेंगे।

फिर शुरू हो गया संघर्ष का एक लंबा दौर। धरम जी एक स्टूडियो से दूसरे स्टूडियो घूमते रहे। प्रोडक्शन हाउसेस में अपनी तस्वीरें जमा करते रहे। और रिजेक्शन के साथ साथ उन्हे सुनने को मिले कई दिल तोड़ने वाले सलाह, “आप पहलवानी करिए, हॉकी ज्वाइन कर लीजिए। एक्टिंग आपके बस की बात नहीं, यहां हर कोई मुंह उठाए चले आते है।” धरम जी के स्वाभिमान को चोट पहुंचती थी, गुस्सा भी आता था  । उन्होंने कहा था,“ लेकिन मैंने कभी किसी से कुछ नहीं कहा, आखिर गिरते गिरते ही तो इंसान चलना सीखता है।”

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पहली बार जब वे मुंबई के एक बड़ी स्टूडियो में गए थे तो गार्ड ने बाहर रोक दिया।    
धरम जी काम ढूँढने गए थे। गार्ड ने पूछा,
"किससे मिलना है? काम क्या है?"
धर्मेंद्र बोले, "अंदर जाने दीजिए, मैं एक्टिंग करता हूँ…"
गार्ड ने हँसकर कहा —
"यहाँ ऐसे बहुत आते हैं, जाओ वापस।"

नहीं रहे धर्मेंद्र, 89 साल की उम्र में निधन, मुंबई के विले पार्ले श्मशान  घाट पर अंतिम संस्कार - Dharmendra Death News In Hindi Hema Malini Sunny  Deol Bobby Deol tmovf - AajTak

जेब के पैसे खतम होते जा रहे थे। अकेलेदम किराए का मकान लेना मुमकिन नहीं था। तब बॉलिवुड के कुछ अन्य स्ट्रगलरों के साथ सस्ते कमरे में रहने लगे। जो भी खाना मिलता खा लेता था। कई बार तो पानी पीकर ही सो जाते थे। धरम जी ने एक घटना सुनाई, " उस दिन, सुबह से स्ट्रगल  करता रहा। देर रात को लौटा तो कमरे में सन्नाटा था। कमरे में मेरे साथी दोस्त सो चुके थे। मुझे जोरों की भूख लगी थी। भूख इतनी तेज थी कि सहा नहीं जा रहा था। तब मेरी नजर मेरे दोस्त द्वारा रखा गया (Dharmendra obituary emotional writeup)
इसबगुल की भूसी वाले पैकेट पर पड़ी। उसका पेट साफ नही होता था इसलिए वो एक एक चम्मच इसबगुल रोज खाता था।  मुझे कुछ नहीं सूझा तो मैंने वो पैकेट उठाया और पानी में घोलकर पी गया। अगले दिन मेरी हालत खराब हो गई।  रूम मेट मुझे डॉक्टर के पास ले गए। तब डॉक्टर ने कहा, " इसे इलाज की नहीं, खाने की जरूरत है।"

Dharmendra legendary Bollywood star

धर्मेंद्र दो जोड़ी कपड़े लेकर आए थे। तो महीनों तक वही शर्ट पहनते रहे। लेकिन कभी उफ तक नहीं की। उन्हें अपने माता-पिता के वैल्यूज़ याद थीं। ईमानदार रहो, विनम्र रहो, कड़ी मेहनत करो। कभी-कभी वे जुहू बीच पर अकेले टहलते, लहरों की आवाज़ सुनते, खुद से कविता की लाइनें बुदबुदाते। वह कहते, “समंदर की लहरों ने कहा— रुक जा, थक जाएगा। पर मेरे जज़्बात बोले— चल, अभी बहुत दूर जाना है।”
समंदर को नहीं पता था कि वह इंडिया के होने वाले ही-मैन से बात कर रहा है।

Dharmendra poses with wife Prakash Kaur, daughters Ajeeta, Vijayta in this  rare family pic shared by Bobby Deol | Bollywood News - The Indian Express

लेकिन कोई कब तक किसी अनजाने शहर में भूखा और बिना कमाए रह सकता था? एक दिन उन्होंने उठाया अपना झोला और वापस पंजाब लौटने लगे लेकिन उनके दोस्त मनोज कुमार, जो उन दिनों खुद भी संघर्ष कर रहे थे ने उन्हें समझा बुझा कर रोक लिया। धरम जी चुपचाप से फिर स्ट्रगल में जुट गए।

Manoj Kumar न होते तो Dharmendra कभी न बन पाते एक्टर, ट्रेन से उतारकर दी थी  शोले के 'वीरू' को ये सीख - Manoj Kumar Life Changing Lesson for Dharmendra  The Untold

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खैर, जितनी खामोशी से वे स्ट्रगल कर रहे थे उतनी ही खामोशी से उनकी पहली फ़िल्म उन्हे मिली: 'दिल भी तेरा हम भी तेरे' (1960)। मेहनताना मिला 51 रूपये। हालांकि उस फ़िल्म ने  कोई बहुत कमाल नहीं किया लेकिन लोगों ने धर्मेंद्र की ईमानदारी पर ध्यान दिया। उनकी आँखों में गहराई थी। उनकी मौजूदगी में ईमानदारी थी। धीरे-धीरे  उन्हे फ़िल्में मिलने लगी। शोला और शबनम, बंदिनी,अनपढ़,सूरत और सीरत, आई मिलन की बेला, हकीकत, काजल। ये फिल्में उनके आगे बढ़ने के रास्ते थे। उन्होंने इंडस्ट्री में एक ऐसी विनम्रता के साथ काम किया जो बहुत कम देखने को मिलती है। उनके डायरेक्टर अक्सर कहते थे, “धरम सुनता है। धरम देखता है। धरम महसूस करता है।” यही उनका राज़ था। दरअसल वह काम नहीं करते थे, महसूस करते थे।

Dil Bhi Tera Hum Bhi Tere

mayapuri with dharmendra movies collags

और फिर धमाका हुआ: 'फूल और पत्थर' (1966) के साथ। उस फिल्म में उनका अभिनय, खूबसूरती और बॉडी लैंग्वेज, खुल कर बाहर आई। इस फिल्म के साथ उन्हें उनके जीवन का पहला फिल्मफेयर अवॉर्ड नॉमिनेशन मिला। दर्शकों  ने अब तक उनके जैसा हीरो कभी नहीं देखा था। एकदम रॉ, पावरफुल, फिजिकली इंप्रेसिव, लेकिन इमोशनली लबालब भरा हुआ। औरतें दीवानी हो गईं। मर्द उनकी तारीफ़ करने लगे। मीडिया ने दावा किया, “इंडिया का ही-मैन!” लेकिन धर्मेंद्र बस मुस्कुराए और कहा, “मैं अंदर से अभी भी गांव का लड़का हूं। बरगद के पेड़ पर चढ़कर, नाक बंद करके तालाब में कूदने वाला गबरू। ” फूल और पत्थर के बाद उन्होने फिर कभी मुड़ कर पीछे नहीं देखा। उनकी कुछ और फ़िल्में जैसे मंझली दीदी, चंदन का पालना,दुल्हन एक रात की वगैरह ,भले ही बॉक्स ऑफिस में कोई चमत्कार नहीं दिखा पाई लेकिन इन फिल्मो ने क्रिटिक्स को चमत्कृत जरूर किया।

Phool Aur Patthar (1966) - IMDb

‘Kis Kisko Pyaar Karoon 2’Trailer Launch में  Kapil ने धरम जी को किया याद ...कहा पिता को खो दिया

इंटरव्यू में वे अक्सर दोहराते थे, “ हां,मैं ही-मैन हूं, पर दिल का मैं एक नाजुक शायर हूं।” खुद उन्होंने अपने बारे में जो बयां किया, इससे बेहतर कुछ और नहीं बयां हो सकता था।

उनकी फिज़ीक, बॉडी , नेशनल सेंसेशन बन गई। वे अपने सारे स्टंट खुद करते थे, गर्व से कहते थे, “मैंने कभी डुप्लीकेट इस्तेमाल नहीं किया। एक फिल्म में ( फिल्म मां)  मुझे पांच बाघों के साथ शूट करना था। सबके मुंह खुले हुए थे। डुप्लीकेट का इंतजाम किया गया। लेकिन मैं नही  माना।  मैं  फिल्मों में काम कर रहा हूं। नाम और पैसा मुझे मिल रहा है, फिर डबल्स को क्यों इस्तमाल करूं? उन दिनों न कोई सेफ्टी रूल्स थे, सेफ्टी केबल भी नहीं थे, कोई इंश्योरेंस भी नहीं था, तब की फिल्म इंडस्ट्री भी टेक्नोलॉजी में उतने एडवांस नहीं थे। लेकिन मैं अड़ जाता था कि स्टंट दृश्य मैं ही करूंगा।  काम मेरा है फिर किसी बॉडी डबल की जान जोखिम में क्यों डालूं? सो बाघों से भी लड़ गया। "
धर्मेंद्र के मसल्स से भी ज़्यादा मज़बूत उनका दिल था। वे स्पॉट बॉयज़ को भाइयों जैसा मानते थे। वे बिना किसी को बताए स्ट्रगलर्स की मदद करते थे। वे किसी की भी बेइज्ज़ती नहीं करते थे, चाहे वह कितने भी बड़े क्यों न हो जाएं। उन्होंने कहा था, “आदमी को पहले आदमी बनना चाहिए।” “उसके बाद एक्टर।” लोग उन पर भरोसा करते थे क्योंकि वे असली थे। वे जो भी करते दिल से करते थे, इसलिए उन्होंने कहा था 'अगर दिल से ना करूँ तो फिर छोड़ो।”

My five decades in films went by in moments: Dharmendra - INDIA New England  News

दुनिया ने उनकी स्टंट बाजी वाली ताकत की तारीफ़ की, लेकिन उन्होंने एक रोमांटिक हीरो के तौर पर भी सबका दिल जीत लिया था। ‘अनुपमा’ में उनकी खामोशी बोलती थी। ‘सत्यकाम’ में, उनकी आँखों ने उनकी रूह खोल दी। ‘चुपके चुपके’ के साथ , वे फुल ऑन एंटरटेनमेंट के कॉमेडी मास्टर बन गए। कोई ओवरएक्टिंग नहीं।  बस एक जादुई चार्म। स्टंट के साथ साथ वे गंभीर प्रेम दृश्यों में भी बाजी मार लेते थे। को-स्टार्स कहते थे कि रॉ रोमेंटिक दृश्यों में धरम  पाजी के आगे उनकी एक नहीं चलती। उनके फ़ैन्स ने कहा कि धर्मेंद्र  की प्यार भरी नज़रें कैमरे को पिघला सकती थीं। जब यह बात धरम जी के कानों तक गई तो वे हँसते हुए बोले थे,“रोमांस तो आता ही है सीधे दिल से। एक्टिंग नहीं करनी पड़ती।” उनमें वो पुराने ज़माने का मर्दाना चार्म था, जेंटल , प्रोटेक्टिव, शरारती, कोमल।

Anupama (1966) - IMDb

और फिर आई ‘शोले’।  एक ऐसी फ़िल्म जिसे बताने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि सत्तर के दशक से आज तक के हर भारतीय फिल्म प्रेमी की रगों में  शोले, लहू बनकर दौड़ती है। वीरू के रोल में, धर्मेंद्र एक लेजेंड बन गए। " शोले के किरदारों को लेकर एक दिलचस्प कहानी भी है। बताया जाता है कि जब शोले की स्टोरी उन्हें सुनाई गई तो उन्होंने वीरू की भूमिका के बदले ठाकुर का रोल करने की जिद की। पर निर्माता निर्देशक चाहते थे कि नटखट विरु का रोल धरम जी ही करें। लेकिन धरम जी तो टस से मस नहीं हो रहे थे। तब सिप्पी जी ने थोड़ी तल्खी के साथ, लगभग धमकी देते हुए कहा कि ठीक है, आप कर लो ठाकुर का रोल , संजीव कुमार को वीरू का रोल दे देता हूं। वो करता रहे बसंती से इश्क। इतना सुनना था कि धर्मेंद ने अपनी जिद छोड़ दी। और फिर 'शोले' में उनका अभिनय,उनका ड्रामा, उनका दिल टूटना, जय के साथ उनकी दोस्ती, बसंती के साथ उनकी मासूम फ़्लर्टिंग ,सब कुछ अमर हो गया। धर्मेंद्र यानी वीरू का नशे में पानी की टंकी वाला सीन उन्हें यादगार बना गया। उनके डायलॉग पीढ़ियों तक गूंजते रहे। “बसंती, इन कुत्तों के सामने मत नाचना,” तब से यह डायलॉग हर प्रेमी के लिए अपनी प्रेमिका के प्रति हिफाज़त का एक इमोशन बन गया। और उनका एक और डायलॉग “कुत्ते, कमीने, मैं तेरा खून पी जाऊंगा,” एक्शन पसंद करने वालों के लिए एक मंत्र बन गया।
धरम जी ने सालों बाद कहा, “शोले एक फिल्म नहीं है। शोले एक फेस्टिवल है,” और इससे सच्ची बात और कोई नहीं कह सकता था।
क्रिटिक्स ने उनके अभिनय, डांस पर बहस की लंबी लिस्ट बनाई लेकिन धरम जी अक्सर कहते है कि  पॉपुलैरिटी और इज़्ज़त हमेशा एक ही रास्ते पर नहीं चलते। लेकिन धर्मेंद्र दोनों पर चले। उन्होंने कमर्शियल सिनेमा और कलाकारों की फिल्मों के बीच कमाल की आसानी से बैलेंस बनाया।

मेरी शादी के लिए मौसी से रिश्ते की बात करने जायेगा ? Sholay | Dharmendra,  Amitabh Bachchan #sholay

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स्क्रीन के पीछे भी उनके जज्बात छलकते रहे। उन्होंने शायरी और कविताएँ लिखीं। उन्होंने बताया था कि वे तब लिखा करते थे जब जब वे अकेले महसूस करते थे, जब वे दुखी होते थे, या फिर जब वे खुश होते थे या जब वे कन्फ्यूज्ड होते थे। उन्होंने ऐसी लाइनें शेयर कीं, “ज़िंदगी एक सफर है, और मैं एक मुसाफिर। रात लंबी भी हो जाए, तो सुबह जरूर आती है।” या, “दर्द मेरी ज़िंदगी का मेहमान है, पर मैं उसे गले लगा लेता हूँ।” ये लाइनें पब्लिसिटी के लिए नहीं लिखी गई थीं। ये उनकी आत्मा से निकली आवाज थीं।
उन्होंने आगे था “हँसी भी दिल से होनी चाहिए, वरना खाली लगती है।” को-स्टार्स को उनका यह पहलू पसंद था।
सुपरस्टार होने के बाद भी वे अक्सर अपने गांव जाते थे, अपने पुराने मकान, पुराने दोस्तों से मिलने, उन्हें तोहफे बांटने।
धर्मेंद्र जब भी पंजाब वाले अपने गांव जाते, पहले अपने पुराने मकान के कुएँ पर जाते, हाथ से रस्सी खींचकर पानी पीते।
वे कहते थे ,"यह पानी मुझे मेरी जड़ों की याद दिलाता है।"
सेट पर काम करने वाले हर आदमी को वे नाम से पहचानते थे।
शूटिंग पर लाइटमैन, स्पॉटर, यूनिट बॉय — सभी उन्हें धर्म पाजी कहते थे। किसी की तबीयत खराब हो, किसी के घर में परेशानी हो, धर्मेंद्र चुपचाप पैसों से मदद कर देते थे और कभी किसी को पता भी नहीं चलता था। एक बार एक यूनिट बॉय की बेटी की शादी थी। धर्मेंद्र ने पूरी शादी का खर्चा गुपचुप खुद उठाया। बाद में लड़की के पिता ने ही बताया कि यह “पाजी” का किया हुआ था।

Dharmendra, the superstar who balanced rugged charm with rare tenderness |  India News - Business Standard

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उनकी ज़िंदगी सिर्फ़ फ़िल्मों तक ही सीमित नहीं थी। पॉलिटिक्स ने भी उन्हें पुकारा और उन्होंने उसमें भी उतर कर अनुभव लिया लेकिन जिस धूम से उन्होंने पॉलिटिक्स ज्वाइन की थी, उतनी ही खामोशी से उन्होंने राजनीति त्याग दिया, कहा, "राजनीति करने के लिए मोटी चमड़ी की जरूरत होती है जो मेरे पास नहीं है।"  हालाँकि जितना भी उन्होंने जनता के लिए काम किया उन्होंने ईमानदारी से किया।  पब्लिक लाइफ में भी, वे कभी घमंडी नहीं रहे, कभी ज़ोर से नहीं बोलते थे, कभी अटेंशन पाने की कोशिश नहीं करते थे। “देश के लिए काम करना फर्ज है, पर इंसानियत सबसे पहले,” उन्होंने एक बार कहा था, जिसमें उन्होंने उन वैल्यूज़ को बताया था जो उनके होने के हर हिस्से को गाइड करती थीं।

Dharmendra: Bollywood's 'He-Man' dies at 89 - BBC News

उनकी पर्सनल लाइफ के चैप्टर एक  खुली कैनवास थी। लेकिन उन्होंने कभी बाहरी लोगों को उसे रंगने नहीं  दिया। जब वे पंजाब में ही रहते थे तब उनकी बहुत कम उम्र (१९ साल) में कमसिन प्रकाश कौर से शादी हुई थी। उनसे उन्हें चार बच्चे, दो बेटा दो बेटी हुई। बाद में उनकी ज़िंदगी में उनके साथ काम कर रही को-स्टार हेमा मालिनी आई।  हेमाजी से पहली मुलाक़ात ,बिल्कुल बिना फिल्मी संवादों वाली थी।
कई इंटरव्यू में हेमाजी ने बताया है कि धर्मेंद्र की सादगी ने उन्हें प्रभावित किया।पहली मुलाक़ात में धर्मेंद्र ने सिर्फ इतना कहा,
"आप सबके साथ बहुत आदर से बात करती हैं… अच्छा लगता है।"
हेमाजी हँसते हुए कहती हैं कि यही सादगी उन्हें दिल के करीब ले आई।

Who Is Dharmendra's First Wife Prakash Kaur? A 70-Year-Old Love Story |  Bollywood News - News18

No one can be like him': Hema Malini's moving note about Dharmendra days  before his demise - The Economic Times

Hema Malini Posts A Throwback Picture Of Her Daughters, Esha And Ahana On  National Girl Child Day

धर्मेंद्र ने हेमा मालिनी से शिद्दत से प्यार किया और शादी भी की तथा हेमा से वे दो बेटियों के पिता भी बने। उन्होंने सबके सामने सिर्फ़ एक लाइन कही थी, वो थी सीधी और सच्ची: “मोहब्बत गुनाह नहीं होती।” उन्होंने एक बार लिखा था, “प्यार की चाहत में न रहे थकावट,हर पल एक नई सुबह का अरमान रहे।”

My personal loss is indescribable, he was everything to me,' says Hema  Malini in an emotional FIRST post after Dharmendra's demise | - The Times  of India

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धर्मेंद्र के लिए प्यार कभी भी दिखावा  नहीं था। यह एक एहसास, जुड़ाव और सच्चाई थी । ये थे धर्मेंद्र, इज्ज़तदार, नरम दिल, कभी कड़वे नहीं।

जैसे-जैसे समय बीता, धर्मेंद्र की प्रायोरिटीज बदल गई, रोल चुनने के तरीके बदल गए लेकिन वो तब भी चार्मिंग और इमोशनल थे।  फिल्म 'अपने' 'यमला पगला दीवाना,' 'रॉकी और रानी' में वे दिखे और वे अपने साथ ले  आए वही गरम धरम वाला अपनापन ।
वे अक्सर जीवन से अनुभव लिए हुए सबक के बारे में बात करते थे: “ज़िंदगी को खुली सांस लेनी चाहिए, कभी रोशन, कभी छाया। हर पल का मज़ा लेना चाहिए।”
वे अपने फैंस के साथ भी सोशल मीडिया और फैन ग्रुप्स के साथ जुड़े हुए थे और उनसे ज्ञान की छोटी-छोटी बातें शेयर करते थे: “ज़िंदगी आसान है। ईमानदारी से जियो।” “सबसे बड़ी दौलत एक अच्छा दिल है।” “उम्र तो बस एक नंबर है।” धरम जी ने वृद्धावस्था को भी खूबसूरत बना दिया था।

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89 की उम्र में भी वे साहनेवाल के वही लड़के थे — रोमांटिक, शरारती, शायराना। उन्होंने एक बार एक लाइन पोस्ट की थी, “मैं अभी भी एक बच्चा हूँ… सिर्फ उम्र बदली है,” और लाखों फैंस रो पड़े थे क्योंकि यह सच था। उनमें एक शरारती बचपना भी था। सेट पर, वह को-एक्टर्स के साथ खूब मज़ाक करते थे। अमिताभ बच्चन ने एक बार एक इंटरव्यू में कहा था, “धर्मेंद्र पाजी की हंसी पूरे सेट को रोशन कर देती थी। दशकों बाद भी, उनकी एनर्जी मैग्नेटिक है।” और सच में, यही वो मैग्नेटिक एनर्जी थी, रॉ मैस्कुलिनिटी और बच्चों जैसे चार्म का वह रेयर कॉम्बिनेशन था, जिसने उन्हें यादगार बना दिया।

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अपने जीवन के उत्तरार्द्ध में उन्होंने अपने लोनावला स्थित फार्म हाउस को मिनी पंजाब में बदल दिया, खेत खलिहान, पोखर, गाय, भैंस, मुर्गी, कुत्ते, बिल्ली सब पाल लिए और वहीं जाकर रहने लगे। शांति, शायरी, यादों से भरे हुए।  वहीं उन्होने लिखा था,"चाँद भी खामोश है, पर बातें करता है,सितारे भी रोशनी देते हैं, पर कहानी सुनाता है।” उन्होंने एक बार कहा था,“कभी-कभी, जब दुनिया थका देती है, गाँव की आबोहवा हमेशा ठंडी चादर सा बिछा देता है।” वह बरामदे में बैठते, चाय पीते, और गुज़रते बादल के बारे में एक कविता लिखते। वे कविताएँ उनकी थेरेपी बन गईं, छोटी-छोटी ज़िंदगियों की उनकी लिस्ट, और भविष्य के लिए उनके खत।उनकी शायरी जारी रही, उम्र, याद और ज़िंदगी के बारे में सोच-विचार में बहती रही। “उम्र का क्या है, वो तो बहता पानी है असली ज़िंदगी तो जज़्बात में है,” उन्होंने कहा था। उन्होंने लिखा था “रात को अंधेरा लगा, पर सितारे मेरे साथ हैं,हर मोड़ पे ज़िंदगी, नए सपने साथ हैं।”

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हालांकि न तो उन्होंने कभी फिल्मों में काम करना छोड़ा न एड फिल्में छोड़ी।  वे मुंबई आते जाते रहे शूटिंग के सिलसिले में, अपनी फैमिली और दोस्तों से मिलने। उन्होंने अपने सभी बच्चों के लालन पालन में कोई कमी नहीं रखी। अपना प्रोडक्शन हाउस विजेता फिल्म्स खड़ा किया और बेटे सनी और बॉबी को उनकी पहली फिल्मों में लॉन्च किया। चारों बेटियों को भी भरपूर प्यार और सपोर्ट दिया। उनका जीवन एक यादगार कहानी बन गई और फिर, हर खूबसूरत कहानी की तरह, आखिरी चैप्टर आया। लेकिन लेजेंड्स मरते नहीं हैं। वे बस हमेशा के लिए चले जाते हैं। धर्मेंद्र ने एक बार लिखा था, “मैं चला जाऊंगा एक दिन… पर रह जाएगी मेरी दोस्ती, मेरी मोहब्बत।”और वे सही थे।

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धर्मेंद्र आज भी सबके दिलों का हमेशा के लिए हिस्सा बने रहें। उनकी शायरी में अक्सर यह शुक्रिया झलकता था:
"तुम्हारी यादों से ज़िंदगी रोशन है,
तुम्हारे प्यार से दिल मेरा जवां है।”

ज़िंदगी के आखिरी पड़ाव पर भी  उनका मानना था कि खुशी को बढ़ाना चाहिए, माँगना नहीं चाहिए, और बाँटना चाहिए, जमा नहीं करना चाहिए। वह अक्सर कहते थे, “हँसी सबसे बड़ी दौलत है।”
लेकिन हां, धर्मेंद्र के मन में भी कुछ अफसोस रह गए। सबसे बड़ा अफसोस यह कि वे दिन में बीस बीस घंटे शूटिंग करते रहते थे, खूब पैसे कमाए लेकिन अपने माता पिता को वक्त नहीं दे पाए। वृद्ध माता पिता उनके विशाल बंगले में धर्मेंद्र का इंतजार करते रहते लेकिन व्यस्तता इतनी थी कि बस किसी तरह पांव छूकर और गले लग कर वे निकल जाते थे। घर पर नौकरो की फौज थी, किसी चीज का अभाव नहीं था लेकिन जो उन्हें चाहिए था वो उन्हें नहीं मिल पा रहा था। वे बोले थे, " आज मैं भी अपने बच्चों का इंतजार करता रहता हूं पर वो लोग भी व्यस्त है। इतिहास दोहराता है। (Dharmendra death real news vs rumors)

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24 नवंबर, 2025 को दुनिया ने उन्हें खो दिया। और फिर भी, जाते हुए भी, धर्मेंद्र सुंदरता, कविता और ज़िंदगी के सबक दे गए। वह अपने पीछे हिम्मत, चार्म, रोमांस, कविता, हँसी, विनम्रता और प्यार की विरासत छोड़ गए, सब कुछ एक सुनहरे ताने-बाने की तरह आपस में गुंथे हुए। उन्होंने एक बार लिखा था:
मैं चला जाऊँगा एक दिन, पर रहेंगे मेरी बातें,
मेरी दोस्ती, मेरी मोहब्बत, मेरी मुस्कान।”और सच में, वह यही छोड़ गए।  अपनी रूह की सर्गोशियां, ज़िंदगी भर की मुस्कानें, इंसानियत के सबक, और आने वाली पीढ़ियों के लिए कविता। अब जब वे इस दुनिया से चले गए, तब भी उनकी आत्मा की आवाज बनी रही। फ़िल्मों में, कविताओं में, यादों में, लाखों लोगों के दिलों में। (Bollywood legend Dharmendra last rites details)

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धर्मेंद्र की कुछ और फिल्में हैं प्रतिज्ञा, आँखें, द बर्निंग ट्रेन, रज़िया सुल्तान, नौकर बीवी का, जुगनू कीमत, यादों की बारात, धर्मवीर, खेलखिलाड़ी का,
कहानी किस्मत की, सीता और गीता, मेरा गांव मेंत देश, धरम वीर,
उनकी एक नई फिल्म है

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अरुण खेत्रपाल के जीवन पर आधारित युद्ध ड्रामा '', (2025) यह उनके शानदार करियर की अंतिम फिल्म थी, हालांकि फिल्म की रिलीज से पहले ही उनकी मृत्यु हो गई।

धर्मेंद्र जी को 2012 में पद्मभूषण अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।

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FAQ

Q1. धर्मेंद्र जी के निधन की खबर कब आई?

A1. 24 नवंबर की सुबह धर्मेंद्र जी के निधन की खबर आई, जिसे परिवार द्वारा भी पुष्टि कर दी गई।

Q2. क्या यह खबर पहले की तरह कोई अफवाह थी?

A2. नहीं, इस बार यह कोई अफवाह नहीं थी; खबर पूरी तरह सत्य थी और उनके परिवार ने अंतिम क्रिया के लिए निकलना भी शुरू कर दिया था।

Q3. लेखिका उस समय क्या लिख रही थीं?

A3. लेखिका मायापुरी के संस्थापक स्वर्गीय श्री ए. पी. बजाज जी की पुण्यतिथि पर हर वर्ष होने वाले महा भोग प्रसाद के बारे में लिख रही थीं।

Q4. धर्मेंद्र जी के निधन की खबर सुनकर प्रतिक्रिया कैसी थी?

A4. खबर इतनी अचानक और झटके से आई कि मन तैयार ही नहीं हो पाया और गहरा सदमा लगा।

Q5. स्वर्गीय ए. पी. बजाज जी का उल्लेख क्यों किया गया?

A5. क्योंकि लेखिका उसी समय उनके पुण्यतिथि कार्यक्रम पर लिखने वाली थीं, तभी धर्मेंद्र जी के निधन की सूचना ने माहौल बदल दिया।

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