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संगीत की दुनिया में कुछ आवाज़ें होती हैं जो सिर्फ कानों तक नहीं, आत्मा तक पहुंचती हैं. ऐसी ही एक सुरों की साधिका हैं — जस्पिंदर नरूला! भजन हो, सूफी हो या फिल्मी गीत — उनकी आवाज़ हर बार दिल को छू जाती है. कुछ दिनों पहले भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री सम्मान से नवाज़ा है. हाल ही में मायापुरी मैगजीन की पत्रकार छवि शर्मा ने उनसे बातचीत की. इस बातचीत में उन्होंने न सिर्फ संगीत, सामाजिक मुद्दों और महिला सशक्तिकरण पर बेबाक राय रखी, बल्कि आज के युवाओं और कलाकारों को भी सच्चे मार्ग पर चलने का संदेश दिया. पेश है उनसे हुई खास बातचीत के कुछ अंश.
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Singer Jaspinder Narula receives the Padma Shri award from President Droupadi Murmu for her contribution to the field of Art. #PadmaAwards2025
— Neeraj Roy Kumar (Modi Ka Parivar) (@NeerajRoyKumar) April 28, 2025
(Video Source: President of India/YouTube) pic.twitter.com/MCdFrrADLq
जस्पिंदर जी, आपको पद्मश्री सम्मान मिला है. आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या रही?
देखिए, ये सम्मान मेरा नहीं है. मैं इसे उन पहलगाम बेटों को समर्पित करती हूँ जिन्होंने हाल ही के समय में संघर्ष किया है. ये मेरे दिल से निकली श्रद्धांजलि है. मैं उनके साहस को सलाम करती हूँ.
सोशल मीडिया पर हर कोई कलाकार बनने की कोशिश कर रहा है. क्या ये टैलेंट को बढ़ावा दे रहा है या सिर्फ ट्रेंड बन गया है?
आज के समय में जो सच बोलता है, वो लोगों को पसंद नहीं आता. मुझे कोई डर नहीं है, मैं हमेशा सच बोलती हूँ. आज सोशल मीडिया पर मसाला चाहिए, तमाशा चाहिए. लेकिन अगर कोई बच्चा ठीक से नहीं गा रहा है, तो मैं साफ-साफ कहूंगी कि ये ग़लत है और जो अच्छा गा रहा है, उसे मैं सिर आंखों पर बिठाऊंगी.
आजकल ऑटोट्यून और AI का बहुत इस्तेमाल हो रहा है. क्या इससे संगीत की आत्मा पर असर पड़ा है?
असर नहीं पड़ा, मैं कहूंगी कि आत्मा ‘नष्ट’ हो गई है. अब कोई भी गा सकता है, मशीन सब ठीक कर देती है. असली गायकी कहां गई? वो जो आत्मा से निकलती थी, जो तपस्या से आती थी, वो गायब होती जा रही है.
आज की पीढ़ी जल्दी सफलता चाहती है. आपके अनुसार, सफलता और संतोष में क्या फर्क है?
सफलता किस्मत से मिलती है, लेकिन संतोष आत्मा से आता है. जब लगता है कि मेरा गाना ऊपरवाला सुन रहा है, तो वही असली तृप्ति होती है. पैसा, शोहरत—सब कुछ उसके आगे छोटा है.
एक कलाकार का समाज में क्या रोल होता है?
एक कलाकार को संतुलन और संवेदनशीलता के साथ समाज में अपनी जगह बनानी चाहिए. कलाकार को लोगों के दुख सुख में साथ देने वाला होना चाहिए. हम इसी के लिए एक कलाकार बने हैं.
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महिला कलाकारों के लिए इंडस्ट्री में क्या बदलाव आए हैं?
ये बहुत कुछ इस पर निर्भर करता है कि आप खुद को कैसे प्रस्तुत करती हैं. अगर महिला में संयम, मेहनत और आत्मविश्वास है, तो वो किसी भी ऊँचाई को छू सकती है. लेकिन अपनी सीमाओं में रहकर ही उसे आगे बढ़ना चाहिए.
आप पहलगाम आतंकी हमले के बारे में क्या कहना चाहेंगी?
सबसे पहले मैं उन सभी परिवारों के प्रति अपनी संवेदनाएं व्यक्त करती हूँ जो इस आतंकी हमले से पीड़ित रहे. मैं रोज़ अपने पति से उनके बारे में बात करती हूँ, पूछती हूँ—यह सब क्यों हुआ? यह बहुत बुरा हुआ. उन्होंने मुझसे कहा कि मैं बहुत संवेदनशील हूँ और इन बातों को दिल पर ले लेती हूँ. जब मैं पुरस्कार (पद्मश्री) ले रही थी, तो मैं अपने ही ख्यालों में थी.
आखिर में, आप अपने चाहनेवालों को क्या संदेश देना चाहेंगी?
बस आप सबका प्यार बना रहे. जब ऊपरवाले की आज्ञा होगी, फिर मेरे सुर भी गूंजेंगे. मेरी कोशिश यही रहेगी कि मैं अपने संगीत से आपके दिलों तक पहुँचूं.
जस्पिंदर नरूला सिर्फ एक गायिका नहीं, एक सच्ची इंसान हैं—जो समाज, संगीत और सत्य के प्रति पूरी तरह समर्पित हैं. उनके शब्दों में सच्चाई है, और सुरों में आत्मा.
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written by Priyanka Yadav
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