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Gulzar at 91 still incomplete : 91 वर्ष के सम्पूरन सिंह कालरा (गुलजार) आज भी खुद को मानते हैं अपूरन

पिछले साल उनके जन्मदिन (18 अगस्त) को साहित्यकारों और फिल्मकारों ने बड़े उत्साह से मनाया था क्योंकि भारत सरकार ने गुलजार साहब को भारत के सबसे बड़े साहित्यिक सम्मान ज्ञान पीठ से नवाजा था।

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पिछले साल उनके जन्मदिन (18 अगस्त) को साहित्यकारों और फिल्मकारों ने बड़े उत्साह से मनाया था क्योंकि भारत सरकार ने गुलजार साहब को भारत के सबसे बड़े साहित्यिक सम्मान ज्ञान पीठ से नवाजा था. (Gulzar 91 years) एक साल बाद  उनके जन्मदिन पर एकबार फिर से मानस पर उनके विगत की बहुत सारी तस्वीरें उभर रही हैं जो उन्होंने पिछली मुलाकातों में याद करते बताया था. (Gulzar real name)

“दिल्ली से मुंबई तक: गुलजार का संघर्ष और गीतकार बनने की कहानी

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Gulzar Family

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वर्षों पहले लकीर पर ना चलने का निश्चय लिए गीतकार गुलजार का आगमन जब  मुंबई ( तब बम्बई) में  हुआ था, उससे और पहले... गीत लिखने का शौक लिए एक लड़का सम्पूरन सिंह कालरा दिल्ली में टैगोर साहित्य को खूब पढ़ता था. (Sampooran Singh Kalra biography)भारत- पाकिस्तान बंटवारे के बाद कालरा -  परिवार दिल्ली आकर एक दुकान चलाता था. इसी शॉप पर बैठे हुए युवक सम्पूर्ण सिंह कालरा ने एक लायब्रेरी से ला ला कर सभी साहित्यकारों की किताबें खूब पढ़ना शुरू किया था. रुचि साहित्य में थी लेकिन जीविका चलाने के लिए मुम्बई आना पड़ा. वह मुम्बई आगया और जीविका चलाने के लिए कुछ दिन एक  मोटर गैरेज में डेंटिंग-पेंटिंग- टच का काम किया. मुम्बई में पहला परिचय हुआ गीतकार शैलेन्द्र से, जो अपना रिफरेंस देकर  किसी फिल्म प्रोडक्शन में काम पाने के लिए भेजे. यह वह जगह थी जहा 'बंदिनी' बना रहे निर्देशक बिमल रॉय से उनकी मुलाकात हुई. बिमल रॉय कोई वैष्णव- टाइप गाना चाहते थे, गुलजार ने वहीं लिख दिया- "मेरा गोरा रंग लेले..." और इसगीत की पसंदगी ने सबको हैरान कर दिया. (Gulzar life journey) गुलजार ट्यून लेकर कोई गीत लिखने में यकीन नही करते थे. इसलिए दूसरे संगीतकारों से उनकी नहीं जमती थी. फिल्मकार के रूप में भी वह अपने निर्देशन की फिल्मों में कोई समझौते का गीत नहीं लिए. यहां भी जिद वही थी कि वही नहीं करेंगे जो सब कर रहे हैं.(Gulzar at 91) निर्देशन में उनकी फिल्में रहीं- 'मेरे अपने', 'आंधी', 'मौसम', 'खुशबू', 'अंगूर', 'हु तू तू', 'माचिस',' इजाजत', 'मिर्जा गालिब' (टीवी सीरियल) आदि. उनकी ये फिल्में कमर्सियल बनकर भी अपनी अलग पहचान रखती हैं.

Gulzar Movies

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गीत, नज़्म और कहानियाँ: 91 साल के गुलज़ार का अब तक का सफर

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अपनी फिल्मों के गीत भी वह खुद लिखते रहे हैं जिनमे उनके हमेशा पहने जाने वाले सफेद कपड़ों की सादगी की तरह झलकती सादगी रही और दिल पर छोड़ते प्रभाव की झलक रहती है. उनके लिखे कुछ गीतों की बानगी देखिए-(Gulzar poetry and films) "मेरे अपने" का एकाकी गीत- 'कोई होता मेरा अपना, जिसको कह सकता मैं अपना',  फिल्म  ''खामोशी'' का लरजता गीत जब वह लिखते हैं-  'हमने देखी है आंखों की महकती खुशबू'और "आंधी" फिल्म की कशिश देखिए- 'तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नही, शिकवा नहीं'. यही कवि- हृदय फिल्मकार "माचिस" में 'चप्पा चप्पा चरखा चले'देता है तो "ओमकारा" में वही लिखता है- 'बीड़ी जलइले जिगर से पिया, जिगर मा बड़ी आग है'. फिल्म लेखक गुलजार के अंदर का साहित्यकार  "बंदिनी" फिल्म के लिए लिखता है 'मेरा गोरा रंग लेइले'और वही  "आंधी" के लिए लिखता है 'पत्थर की हवेली को, शीशे के घरौंदों में, तिनके के नशेमन तक इस मोड़ से जाते हैं!' (Gulzar Hindi literature) गुलज़ार फिल्मों तक ही सीमित नहीं हैं. उनकी अन्य रचनाएं भी बेजोड़ हैं. 'पंद्रह पांच पचहत्तर', 'कुछ और नज्में', 'प्लूटो और त्रिवेनी, 'दो लोग' लिखने वाले 91 साल के गुलज़ार आज भी अनवरत लिखते हैं, लिख रहे हैं बिना किसी पुरस्कार की लालच के.(Gulzar personal life)

पुरस्कारों से ऊपर गुलज़ार: 91 की उम्र में भी खुद को मानते हैं अपूर्ण

गुलज़ार के लिए पुरस्कार/सम्मान  मायने नहीं रखता, पुरस्कारों का सम्मान उनसे बढ़ता है.बताने वाली बात यह है कि जब उनको फिल्म "स्लमडॉग मिलिअनोयर" के गीत 'जय हो' के लिएऑस्करअवार्डमिला था, वे उसे लेने के लिए वहां नहीं गए थे. ग्रेमी अवार्ड, दादा साहब फाल्के अवार्ड, 6 नेशनल अवार्डस, 22 फिल्मफेयर अवार्ड, साहित्य अकादमी अवार्ड और फिर ज्ञानपीठ अवार्ड. (Gulzar inspiration) दुआ कीजिए अब उन्हें साहित्य के लिए 'नोबल पुरस्कार' भी मिल जाए ! सचमुच यह एक फिल्मी लेखक की साहित्यिक स्वीकृति है. उम्र के इस मोड़ पर वह कहते हैं कि कुछ भी लिखना-पढ़ना जो है उसमें समझौते की जगह नहीं होनी चाहिए. दुनिया की नजर में  वर्षों पहले बॉलीवुड में आया हुआ एक हिंदी-उर्दू पोएट फिल्मकार सम्पूर्ण सिंह कालरा (गुलजार) पूर्ण भले दिखता हो, वह आज भी खुद को अपूर्ण ही मानते हैं. उनकी पुत्री मेघना गुलजार कहती हैं- " जिगर मा बड़ी आग है."

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FAQ

1 गुलज़ार का असली नाम क्या है?(What is the real name of Gulzar?)

गुलज़ार का असली नाम सम्पूरन सिंह कालरा है.

2 गुलज़ार को कौन-कौन से प्रमुख पुरस्कार मिले हैं?(Which are the major awards Gulzar has received?)

उन्हें ऑस्कर अवार्ड, ग्रैमी अवार्ड, दादा साहेब फाल्के अवार्ड, 6 नेशनल अवार्ड, 22 फिल्मफेयर अवार्ड, साहित्य अकादमी अवार्ड और हाल ही में ज्ञानपीठ अवार्ड मिला है.

3 क्या गुलज़ार ने ऑस्कर अवार्ड लेने के लिए समारोह में हिस्सा लिया था?(Did Gulzar attend the ceremony to receive the Oscar Award?)

नहीं, उन्होंने स्लमडॉग मिलियनेयर के गीत “जय हो” के लिए ऑस्कर जीता, लेकिन अवार्ड लेने वे समारोह में नहीं गए थे.

4 गुलज़ार किस तरह की लेखन शैली के लिए जाने जाते हैं?(गुलज़ार किस तरह की लेखन शैली के लिए जाने जाते हैं?)

गुलज़ार अपनी सादगीभरी लेकिन गहरी और असरदार पंक्तियों के लिए मशहूर हैं, जो दिल और आत्मा को छू जाती हैं.

5 91 वर्ष की उम्र में भी गुलज़ार खुद को अपूर्ण क्यों मानते हैं?(Why does Gulzar consider himself incomplete even at the age of 91?)

उनकी नज़र में लेखन और रचनात्मकता एक सतत यात्रा है. वे मानते हैं कि सच्चा कलाकार कभी पूर्ण नहीं होता, हमेशा सीखता और खोजता रहता है.

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