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आज, 1 नवंबर को जब देश राष्ट्रीय लेखक दिवस (National Author’s Day) मना रहा है, ऐसे में उन लेखकों को याद किया जाता है, जिन्होंने शब्दों से पीढ़ियों को दिशा दी. हिंदी साहित्य की ऐसी ही एक अमर सितारा हैं हरिवंश राय बच्चन (Harivansh Rai Bachchan) (1907–2003) — जिनकी कविताएँ आज भी उतनी ही जीवंत हैं, जितनी उनके जीवनकाल में थीं.
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उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के एक छोटे से गाँव बाबूपट्टी में जन्मे हरिवंश राय ‘बच्चन’ ने न केवल हिंदी कविता को नई ऊँचाई दी, बल्कि उसे आम जन की भाषा और भावनाओं से जोड़ दिया. बचपन में प्यार से “बच्चन” कहे जाने वाले हरिवंश राय बाद में इसी नाम से अमर हो गए.
शिक्षक से काव्य के शिल्पी तक
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हरिवंश राय बच्चन ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्यापन किया और बाद में भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ रहे. वे कायस्थ परिवार से ताल्लुक रखते थे और छायावाद काल के उन प्रमुख कवियों में थे, जिन्होंने कविता को दर्शन और जीवन-दर्शन से जोड़ा.
उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना “मधुशाला” हिंदी साहित्य की ऐसी कृति है जिसने पीढ़ियों को बाँध रखा है. “मधुशाला, मधुबाला और मधुकलश जैसी रचनाएँ जीवन, प्रेम, और संघर्ष का उत्सव हैं.
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उनकी अन्य कृतियां हैं – अग्निपथ, तेरा हार, निशा निमंत्रण (1938), एकांत संगीत (1939), सतरंगिनी और दो चट्टानें, तेरा हार.
इनके अलावा, उनकी आत्मकथा चार भागों में प्रकाशित हुई — “क्या भूलूँ क्या याद करूँ,” “नीड़ का निर्माण फिर,” “बसेरे से दूर,” और “दशद्वार से सोपान तक.” ये आत्मकथाएँ सिर्फ जीवन यात्रा नहीं, बल्कि हिंदी गद्य लेखन की अमूल्य धरोहर हैं.
सम्मान और योगदान
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हरिवंश राय बच्चन की रचना “दो चट्टानें” के लिए उन्हें 1968 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला. भारत सरकार ने उन्हें 1976 में पद्म भूषण से सम्मानित किया. इसके अलावा उन्होंने कविताओं के साथ-साथ संस्मरण और अनुवाद के क्षेत्र में भी असाधारण योगदान दिया.
अमिताभ और पिता की सीख
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हरिवंश राय बच्चन का जीवन सिर्फ एक कवि का जीवन नहीं था, वह एक संवेदनशील पिता का भी जीवन था.
एक बार की बात है — जब सिनेमा जगत के शंहशाह छोटे अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) नैनीताल के शेरवुड कॉलेज में पढ़ते थे, तब वे शेक्सपियर के नाटक “The Tempest” में प्रिंस फर्डिनेंड का रोल निभा रहे थे. उनके माता-पिता नैनीताल पहुंचे थे ताकि बेटे का प्रदर्शन देख सकें. लेकिन नाटक से ठीक एक दिन पहले अमिताभ को तेज बुखार हो गया. वे मंच पर नहीं जा सके और बेहद मायूस हो गए. उनके मुरझाए चेहरे को देखकर अमिताभ बच्चन के पिता हरिवंश राय बच्चन ने उन्हें समझाया और भावनात्मक रूप से उसके साथी बने. उस वक्त हरिवंश राय बच्चन ने उन्हें समझाते हुए कहा था, बेटा देखो-मन का हो तो अच्छा और मन का ना हो तो और भी अच्छा. इन पंक्तियों के जरिए हरिवंश राय बच्चन ने अपने बेटे को संघर्ष और जीवन की सच्चाइयों को स्वीकारने की सीख दी थी. अमिताभ को उनके पिता ने काफी संजीदगी के साथ जीवन को जीने की सीख दी है, जो उनके जीवन में दिखती भी है.
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इन शब्दों में सिर्फ पिता का स्नेह नहीं, बल्कि जीवन का गहरा दर्शन छिपा था — कि हर परिस्थिति को स्वीकारना सीखो, क्योंकि जीवन वही है जो मनचाहा नहीं, बल्कि जो सिखाता है.
एक अमर विरासत
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18 जनवरी 2003 को हरिवंश राय बच्चन इस दुनिया से विदा हो गए, लेकिन उनका साहित्य आज भी जीवित है. उनकी कविताएँ न केवल पाठकों को भावनात्मक रूप से छूती हैं, बल्कि उन्हें जीवन जीने की दिशा भी देती हैं. बच्चन जी का साहित्य उस दौर की याद दिलाता है जब कविता केवल शब्द नहीं, बल्कि आत्मा की अभिव्यक्ति थी.
हरिवंश राय बच्चन का जीवन इस बात का प्रमाण है कि लेखक सिर्फ लिखता नहीं, बल्कि जीता है — और वही जीवन उसकी रचना बन जाता है. उनकी कविताएँ, उनकी आत्मकथाएँ और उनके जीवन के दर्शन आज भी हिंदी साहित्य की नींव और प्रेरणा का स्तंभ हैं.
हरिवंश राय बच्चन की सुप्रसिद्ध कविता - मधुशाला और अग्निपथ
हरिवंश राय बच्चन की सुप्रसिद्ध कविता मधुशाला को अपनी आवाज़ से सजाते मन्ना डे
मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊंगा प्याला
पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला
पथिक बना मैं घूम रहा हूँ, सभी जगह मिलती हाला
सभी जगह मिल जाता साकी, सभी जगह मिलता प्याला
मुझे ठहरने का, हे मित्रों, कष्ट नहीं कुछ भी होता
मिले न मंदिर, मिले न मस्जिद, मिल जाती है मधुशाला
मुसलमान औ' हिन्दू है दो, एक, मगर, उनका प्याला
एक, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी हाला
दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद मन्दिर में जाते
बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर मेल कराती मधुशाला
यम आएगा लेने जब, तब खूब चलूंगा पी हाला
पीड़ा, संकट, कष्ट नरक के क्या समझेगा मतवाला
क्रूर, कठोर, कुटिल, कुविचारी, अन्यायी यमराजों के
डंडों की जब मार पड़ेगी, आड़ करेगी मधुशाला.
अपने पिता की सुप्रसिद्ध कविता मधुशाला गाते हुए अमिताभ बच्चन
अग्निपथ
वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े,
एक पत्र छांह भी,
मांग मत, मांग मत, मांग मत,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ.
तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ.
यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु श्वेत रक्त से,
लथपथ लथपथ लथपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ.
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