कैसी रही इन सितारों के बचपन की दिवाली अमूमन जब हम किसी पर्व की चर्चा फिल्म कलाकारों से करते हैं, तत्काल वे अपने रिएक्शन को शब्दों में बयां नहीं कर पाते।मेरी यादों में भी यही उहापोह है और पिछली कई दिवाली चर्चाओं में हमने यह संकोच देखा है... By Sharad Rai 02 Nov 2024 in एंटरटेनमेंट New Update Listen to this article 0.75x 1x 1.5x 00:00 / 00:00 Follow Us शेयर अमूमन जब हम किसी पर्व की चर्चा फिल्म कलाकारों से करते हैं, तत्काल वे अपने रिएक्शन को शब्दों में बयां नहीं कर पाते।मेरी यादों में भी यही उहापोह है और पिछली कई दिवाली चर्चाओं में हमने यह संकोच देखा है। आइए, इन सितारों से इनके बचपन की दिवाली की कुछ कलेक्शन यादें सुनते हैं : अजय देवगन: सच कहूं तो पटाखे- फुलझड़ी कब पहली बार देखा याद ही नही है। जब बचपन होता है साल दरसाल बच्चे के हाथ मे मा- बाप पहले फुलझड़ी पकडाते हैं, फिर घुमनी या चकरी फिर पटाखों की बारी आती है। यह मैं इसलिए कह रहा हूँ कि हम भी अपने बच्चों को इसी तरह पटाखे दिए हैं। आज मेरे बच्चे खुद जो मर्ज़ी होती है वो वैसा करते हैं। हम उनको लेकर डरते रहते हैं। शायद बचपन मे मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ होगा। मेरे पापा एक फाइट मास्टर थे, इसलिए मुझे आतिशबाज़ी का ज्यादा मौका मिलता था। वैसे, दिवाली क्या होती है ,क्यों सेलिब्रेट की जाती है, यह मैंने किताब पढ़कर जाना है। जब पढ़ने लगा था तब मैंने इंडियन फेस्टिवल्स नाम की कोई किताब कही पढ़ने के लिए पा गया था, उसमे एक चैप्टर था दीपावली का।बस,उसी को पढ़कर दिवाली मनाए जाने का मतलब जान पाया था। विद्या बालन: मैंने एक फिल्म पत्रिका में जूनियर महमूद की दीवाली मनाने का तरीका पढ़ा था। तबसे मुझे इस पर्व पर कुछ ना कुछ उटपटांग करने और देखने का मन होता है। मैं बड़ी हो रही थी फिल्मो का शौक लगा था। उस समय एक हिंदी की फिल्म पत्रिका में ( ध्यान नही है किंतु शायद वो पत्रिका 'मायापुरी' ही रही हो) मैंने पढ़ा था कि जूनियर महमूद और उनके दोस्त किसी कुत्ते की पूछ में पटाखा बांधकर उसको दौड़ा देते थे। फटाखे में आग लगा देने से कुत्ता भागता जाता था और जूनियर महमूद और उनके दोस्त उसके पीछे दौड़ते थे। खैर, मैंने कभी ऐसा खुद नही किया। बर्षों पहले यह किसी दीपावली के इस्पेशल नम्बर में पढ़ा था। अब, समझ मे आता है कि उस पेट (जानवर) पर क्या गुजरता होगा। एनिमल- टॉरचरिंग कितना खतरनाक खेल है, इसपर अब रोक है। और मैं, ऐसे त्योहार मनाने के तरीकों का शख्त विरोध करती हूं। अरुणा ईरानी: दीवाली का मनाया जाना मैंने तब जाना...तब जाना... जब कोई तीन चार साल की थी। जहां हम रहते थे, मेरे पड़ोस के घर के बच्चे को पटाखा छोड़ते देखा था।याद इसलिए है कि ओ जल गया था और लोग उसको पटाखा से जलने की वजह से डांट रहे थे।फिर कई दिन तक हम बच्चों की भाग दौड़ थी हम सब बच्चे फुलझड़ी देख कर तालियां पीटते हुए चिल्लाते थे, दौड़ते थे। दीवाली का महत्व तो बहुत बडी होने पर जान पाई थी। पहले किसी से सुना था बाद में पढ़ा भी था कि जब भगवान राम लंका से रावण को मारकर और अपना 14 वर्ष का वनवास पूरा करके अयोध्या वापस लौटे थे, पूरी अयोध्या जगमगा उठी थी। तभी से घरों की लाइटिंग की जाने की परंपरा शुरू हो गई। यानी- हमारे देश मेऔर त्योहारों में दीपावली जगमगाने की परंपरा बहुत पुरानी है। कहते हैं दीवाली असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक है। हम ये सब बातें अब किताबों में पढ़कर जान पाते हैं। प्राचीन काल मे जब पढ़ना नही था, किताबें नहीं थी, मेरे ख्याल से इन त्योहारों की परंपराएं ही हमे उन आदर्शों का याद दिलाने केलिए आरम्भ हुई होंगी। त्योहारों का अपना मतलब होता है। Read More: Abhishek Bachchan की फिल्म I Want To Talk का ट्रेलर इस दिन होगा रिलीज ऋतिक रोशन इस दिन से आलिया और शरवरी संग शुरु करेंगे Alpha की शूटिंग Salman Khan को फिर मिली जान से मारने की धमकी बॉबी देओल की फिल्म ‘कंगुवा’ के एडिटर Nishadh Yusuf का हुआ निधन हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article