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Dosti 1964: भारतीय सिनेमा के इतिहास में फिल्म दोस्ती (1964)जज़्बात और सच्ची दोस्ती की एक मिसाल है।

1964 में बनी फिल्म दोस्ती दो गरीब लेकिन नेकदिल दोस्तों – मोहन और रामू – की भावनात्मक कहानी है। एक अंधा लड़का और एक लंगड़ा लड़का अपनी मुश्किल ज़िंदगी में एक-दूसरे का सहारा बनते हैं।

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Dosti 1964 true friendship
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फ़िल्म दोस्ती' (1964) सच्ची मित्रता पर आधारित वो फिल्म है जिसे भारतीय सिनेमा के इतिहास में मासूमियत, जज़्बात और सच्ची दोस्ती की एक मिसाल मानी जाती है।

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1964 में बनी इस फिल्म में न तो कोई स्टार था ना भव्य सेट लेकिन जब रिलीज़ हुई तो हर दर्शक के दिल में छा गई। उस वक्त राजेंद्र कुमार, धर्मेंद्र और मनोज कुमार जैसे सितारे टॉप पर थे, लेकिन इस फ़िल्म के दो युवा ,मोहन और रामू लोगों के दिलों के हीरो बन गए। (Dosti 1964 movie story)

Dosti (1964)

फ़िल्म के निर्देशक थे सत्येन बोस । वे बंगाल से आए एक बेहद संवेदनशील डायरेक्टर थे। फिल्म के निर्माता थे तराचंद बड़जात्या। यह कंपनी उस वक्त नई थी।  

Satyen Bose

फिल्म में मुख्य भूमिकाओं में थे सुधीर कुमार सावंत और सुशील कुमार सोमैया, दो बिल्कुल नए कलाकार, जिन्हें जनता ने टॉप एक्टर्स से ज्यादा प्यार दिया। अन्य कलाकार थे, संजय खान, उमा, नाना पालशीकर, अभी भट्टाचार्य लीला मिश्रा, बेबी फरीदा, लीला चिटनिस (Who were Mohan and Ramu in Dosti 1964 film)

दोस्ती (1964 फ़िल्म) - विकिपीडिया

Dosti vs dosti friends forever Two films released with the same name, know  their box office records |एक ही नाम से रिलीज दो फिल्म, एक रही ब्लॉकबस्टर  हिट, तो दूसरी का हो

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कहानी दो अनाथ लड़कों की है, एक अंधा और दूसरा अपाहिज। दोनों की मुलाकात गलियों में होती है और वहीं से उनकी अटूट दोस्ती शुरू होती है। एक अपनी आवाज़ से पैसे कमाता है, दूसरा हारमोनिका बजाता है। दोनों मिल कर ज़िंदगी का हर दर्द मुस्कान से झेलते है और कभी हार नहीं मानते। जब किसी कारण दोनों दोस्त बिछड़ जाते हैं तब भी वे एक दूसरे की मदद के लिए जान तक न्योछावर करने को तैयार रहते है, आखिर कुछ गलतफहमियों के बाद जब दोनों फिर मिलते है तो वो भावुक कर देने वाला दृश्य देख दर्शक अपना आंसू नहीं रोक पाते।

Music Conjurer :: Laxmikant-Pyarelal – Laxmikant-Pyarelal

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फ़िल्म का संगीत बनाया था लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी ने। तब वे नए संगीतकार थे।

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इसे मॉस्को अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव 1965 में भी प्रदर्शित किया गया था।

फिल्म रिलीज होने पर ट्रेड मास्टर श्री रामराज नाहटा ने ताराचंद बड़जात्या को फोन किया और बधाई दी और कहा कि अग्रिम बुकिंग की कतार इतनी लंबी है कि उनके कार्यालय तक आ गई है। उनकी फिल्म की उस समय 90 प्रिंट की व्यापक रिलीज हुई थी जो उस समय एक असाधारण संख्या थी। (Old Hindi movies based on true friendship)

ताराचंद बड़जात्या ने हमेशा अपनी फिल्मों में नए कलाकारों को लिया लेकिन अपनी पहली फिल्म आरती 1962 में ऐसा नहीं कर सके क्योंकि वे खुद नए थे। ।  ताराचंद को बतौर निर्देशक सत्यन बोस ही सबसे ज्यादा पसंद थे।

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बताया जाता है कि इस फिल्म में बतौर संगीत निर्देशक, पहले रोशन को लिया गया था लेकिन समय पर न आ पाने के कारण लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने फ़िल्म का संगीत तैयार किया।
इस फिल्म की सफलता के बाद लक्ष्मीकांत प्यारेलाल को रातों रात प्रसिद्धि मिली।

Roshan (music director) - Wikipedia
यह फिल्म बंगाली फ़िल्म 'लालू भुलु' (1959) का रीमेक बताया  जाता है। ताराचंद बड़जात्या ने कोलकाता में ओरिजिनल फ़िल्म देखी थी और निर्माता दीपचंदजी काकरिया ने उन्हें इसका हिंदी रीमेक बनाने के लिए कहा था।

लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल - विकिपीडिया

कहा जाता है कि इस फिल्म के बाद, एक्टर सुधीर कुमार ने राजश्री के साथ किया गया तीन साल का अनुबंध तोड़ दिया और  आगे बढ़कर 1966 में फिल्म लाडला साइन की, जिससे ताराचंद बड़जात्या नाराज़ हो गए और उन्होंने सुशील कुमार का अनुबंध भी समाप्त कर दिया।

Flashback: Revisiting Dosti (1964) – Flashback Bollywood
इस फिल्म का गीत, चाहूँगा मैं तुझे सांझ सवेरे" का कवर संस्करण हम्टर और पीटर रैम के गाने "ब्रिंग इट इन्ना बॉटल" में था। (Cast and director of Dosti 1964 film)

'मेरी दोस्ती मेरा प्यार" का कवर संस्करण वेदेश सूकू के गाने "पुट आह बॉटल आह रम" में था।

"हंटर" का गाना "ब्रिंग इट" "आवाज़ मैं ना दूँगा" गाने का कवर संस्करण था। "
संगीतकार राहुल देव बर्मन ने फिल्म दोस्ती के सभी गानों में हारमोनिका बजाया था। हालांकि वे अपनी रिकॉर्डिंग्स में बेहद व्यस्त थे लेकिन फिर भी वे एक घंटे के लिए अपनी रिकॉर्डिंग छोड़कर लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की रिकॉर्डिंग में हार्मोनिका संगीत बजाने आते थे 'राही मनवा दुख की चिंता क्यों सताती है' गीत पर। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल द्वारा रिकॉर्डिंग की मंज़ूरी मिलने के बाद ही आर डी स्टूडियो से बाहर निकले। एलपी के लिए पंचम की दोस्ती ऐसी ही थी। "
यह ताराचंद बड़जात्या की दूसरी और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की शुरुआती फ़िल्मों में से एक थी।  इन बाधाओं के बावजूद, फ़िल्म ने सर्वश्रेष्ठ हिंदी फ़िल्म का राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार और छह फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार जीते। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के संगीत ने फ़िल्म की सफलता में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने अपने सात फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कारों में से पहला सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक का पुरस्कार इसी फ़िल्म के लिए जीता। (Bollywood classics based on friendship themes)

Satyen Bose

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यह सभी संगीत श्रेणियों में फिल्मफेयर पुरस्कार जीतने वाली एक दुर्लभ फिल्म थी। फिल्म के सारे गाने,'चाहूँगा मैं तुझे संझ सवेरें, मेरा तो जो भी कदम है वो तेरी राह में है, कोई जब राह ना पाए , मेरे संग आए, राहि मनवा दुःख की चिंता  क्यों सताती है, जाने वालों ज़रा मुड़के देखो मुझे ,गुड़िया हमसे रूठी रहोगी' सुपर हिट रही।

लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का करियर उन दिनों ठीक नहीं चल रहा था इसलिए  उन्होंने यह फिल्म मात्र 10,000 रुपये में साइन कर ली। लेकिन इस फिल्म की सफलता ने उन्हें संगीत उद्योग के सबसे लोकप्रिय संगीत निर्देशकों में से एक बना दिया।

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आश्चर्य की बात यह है कि फिल्म के हिट होने के बावजूद फिल्म के दो मुख्य कलाकारों को कोई फायदा नहीं हुआ परंतु साइड कलाकार संजय खान और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने इस फिल्म की सफलता के बाद दर्जनों फिल्में साइन कीं।

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रिहर्सल के वक्त कहा जाता है कि मोहम्मद रफी ने रिकॉर्डिंग से पहले लक्ष्मीकांत से कहा था, “ये गाना बच्चों जैसा मासूम रखो, बहुत भारी संगीत मत देना।” यही सादगी इस फिल्म के संगीत की असल ताकत बनी।

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कहते हैं कि फिल्म पूरी होने के बाद तराचंद बड़जात्या ने दोनों बाल कलाकारों को बोनस दिया।

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दोस्ती उस दौर में एक छोटी फिल्म थी, जिसमें न ग्लैमर था, न ही नामी सितारे। पर जब यह फिल्म रिलीज़ हुई, तो थिएटरों में लंबी कतारें लग गईं। (Dosti 1964 box office success)

Dosti' was 1964's breakout hit

दोस्ती ने बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त बिजनेस किया। लगभग 9 लाख के बजट में बनी यह फिल्म 2 करोड़ से ज्यादा कमाई कर गई, जो उस जमाने में बहुत बड़ी रकम थी। इसे उस साल का सबसे हिट म्यूज़िकल ड्रामा घोषित किया गया।  

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इस फिल्म को 1965 में कई अवॉर्ड मिले सर्वश्रेष्ठ फिल्म और सर्वश्रेष्ठ संगीत सहित नैशनल अवॉर्ड भी मिले। । यह राजश्री प्रोडक्शंस की भी पहली फिल्म थी जिसे नेशनल अवॉर्ड मिला।

दोस्ती 1964

आज जब सिनेमा में गैजेट्स, ग्राफिक्स और बड़े सेट्स का ज़माना है, तब भी दोस्ती जैसी फिल्म लोगों को याद है। इसकी सादगी, भावनाएं और इंसानियत आज भी ताज़ा लगती हैं।  

यूट्यूब पर जब भी इसके गाने चलते हैं, कमेंट्स में लोग लिखते हैं, “आज की फिल्मों में वो दिल नहीं रहा।” यह फिल्म उस दौर की मानवीय कहानियों का एक खजाना है।

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FAQ

प्र1. फ़िल्म दोस्ती (1964) की कहानी क्या है?

उ1.दोस्ती दो गरीब लड़कों — मोहन (जो अंधा है) और रामू (जो लंगड़ा है) — की भावनात्मक कहानी है, जो एक-दूसरे के सहारे जीवन की कठिनाइयों का सामना करते हैं और सच्ची मित्रता की मिसाल पेश करते हैं।

प्र2. फ़िल्म दोस्ती का निर्देशन किसने किया था?

उ2. इस फ़िल्म का निर्देशन सत्येन बोस ने किया था।

प्र3. फ़िल्म दोस्ती (1964) में मुख्य भूमिकाएँ किसने निभाईं?

उ3. मोहन की भूमिका सुधीर कुमार ने निभाई थी, जबकि रामू का किरदार सुशील कुमार ने निभाया था।

प्र4. दोस्ती (1964) को भारतीय सिनेमा में क्लासिक क्यों माना जाता है?

उ4. बिना किसी बड़े स्टार या भव्य सेट के भी यह फ़िल्म अपनी भावनात्मक कहानी, दिल छू लेने वाले संगीत और सच्ची दोस्ती के चित्रण की वजह से दर्शकों के दिलों में बस गई।

प्र5. दोस्ती का संगीत किसने दिया था?

उ5. फ़िल्म का संगीत मशहूर जोड़ी लक्ष्मीकांत–प्यारेलाल ने दिया था, जबकि गाने मोहम्मद रफ़ी ने गाए थे।

प्र6. दोस्ती (1964) के प्रसिद्ध गीत कौन से हैं?

उ6. इस फ़िल्म के लोकप्रिय गीत हैं – “चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे,”“मेरा तो जो भी कदम है,” और “राही मनवा दुख की चिंता क्यों सताती है।”

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