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'Jaat' VS 'Bhaiaji Superhit'
'Jaat' VS 'Bhaiaji Superhit': जब बॉलीवुड में दो बड़ी फिल्में एक साथ, एक ही दिन में रिलीज़ होती है तो क्या होता है? दोनों में से किसी एक फ़िल्म को जोर का झटका धीरे से लगता है. उनमें से किसी एक फ़िल्म के निर्माता का बंटा धार हो जाता है और किसी एक फ़िल्म के कलाकारों का भी टांय टांय हो जाता है. 10 अप्रैल 2025 को बॉलीवुड ने बॉक्स ऑफिस पर साल की सबसे अजब लड़ाई के लिए कमर कस ली गई है. दो पुरानी फिल्में 'जाट' बनाम 'भैयाजी सुपरहिट' का फिर से रिलीज' होना एक धमाल मचाने वाला कांड होगा. लेकिन अगर दोनों फिल्मों का हीरो एक ही हो तो? बाकी जिसका जो हो सो हो, लेकिन हीरो का तो 'चित्त भी मेरी, पट भी मेरी, अंटा मेरे बाप का' वाली कहावत चरितार्थ हो जाती है.
नीरज पाठक द्वारा निर्देशित, ओम शांति क्रिएशन्स और हनवंत खत्री द्वारा प्रस्तुत, फिल्म 'भैयाजी सुपरहिट' मेट्रो मूवीज प्रोडक्शंस के बैनर तले महेंद्र धारीवाल द्वारा निर्मित है. उधर'जट्ट' फ़िल्म के निर्माता हैं नवीन येर्नेनी, वाई रविशंकर, टी जी विश्वप्रसाद और निर्देशक गोपीचन्द मालीनेनी. ये दोनों ही फिल्में दस अप्रैल को री रिलीज़ होने जा रही है. यानी 'जाट' बनाम 'भैयाजी सुपरहिट'. एक्शन, कॉमेडी और ड्रामा के बेहतरीन मिश्रण के साथ, यह दोनों ही फिल्मे एक दूसरे पर भारी पड़ने की जद्दोजहद में है. इस रस्सा कस्सी से अगर किसी एक को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है तो वह है सनी देओल जो दोनों ही फिल्मों का हीरो है. सनी देओल द्वारा दो पुरानी फिल्में'जाट' और 'भैयाजी सुपरहिट' में डबल रोल को अपनाने के साथ, उनके फैंस पहले कभी न देखे गए सिनेमेटिक आनंद की उम्मीद कर सकते हैं. यह दोनों फिल्में बॉलीवुड की क्लासिक एक्शन से भरपूर कहानी को रेखांकित करती है, जिसमें ड्रामा, मारधाड़, कॉमेडी और दमदार संवाद हैं. यह उन फिल्मों में से भी है जिसने देओल को इंडस्ट्री में अलग अलग कारणों से चर्चित कर दिया था.
इस हिसाब से सनी देओल के प्रशंसकों के लिए 10 अप्रैल, 2025 को एक डबल धमाकेदार तोहफा है. 'गदर 2' के बाद सनी अब बॉलीवुड की दो बड़ी रिलीज़ के साथ बॉक्स ऑफ़िस पर छाने के लिए तैयार है. 'जाट' और 'भैयाजी सुपरहिट' का एक ही दिन रिलीज़ होना या तो सनी के वफादार फैंस द्वारा विन विन गेम बन सकता है या फिर नए ज़माने के दर्शकों द्वारा डीज़ास्टरस प्रतिक्रिया भी खड़ा कर सकता है. सनी देओल स्टारर दोनों फिल्मों का एक ही साथ री-रिलीज़ होना, एक अनोखी टक्कर होने की उम्मीद है, यानी सनी देओल का खुद से खुद की ही लड़ाई होने वाली बात है, जो उनके फैंस के लिए एक अविस्मरणीय अनुभव होने जा रही है.
देओल की फिल्म 'गदर 2' की अपार सफलता, जिसने दुनिया भर में ₹691 करोड़ का कलेक्शन किया है, के बाद दर्शक फिर से सनी को देखना चाहते हैं. फ़िल्म इंडस्ट्री के अंदरूनी सूत्रों का अनुमान है कि अब तक प्रत्येक फ़िल्म में देओल के शानदार करिश्मे और उनके अभिनय की पुरानी यादों को ताज़ा करने वाली अपील के कारण दोनों फ़िल्में सिनेमाघरों में भारी भीड़ खींच लाएँगी.
निर्माता महेंद्र धारीवाल ने 'भैयाजी सुपरहिट' की 'जाट' के साथ पुनः रिलीज़ को लेकर अपनी उत्सुकता व्यक्त की. उन्होने इसे उन प्रशंसकों के लिए सम्मान जताना कहा जिन्होंने वर्षों से सनी की फ़िल्मों को सपोर्ट किया है. उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि सनी देओल की दमदार स्क्रीन प्रेजेंस और सम्मोहक कहानी कहने की कला एक एक्शन से भरपूर सनसनी के अनुभव की गारंटी देती है. इसी तरह,'जाट' के निर्माताओं ने भी रोमांचकारी एक्शन दृश्यों के साथ-साथ इसकी भावनात्मक गहराई को भी उजागर किया है. यह एक ऐसा ट्रेट है जो सनी देओल के करियर की शुरु से ही पहचान रही है.
'जाट' और 'भैयाजी सुपरहिट' के बीच बॉक्स ऑफ़िस पर टकराव 2025 की सबसे मनोरंजक सिनेमाई घटनाओं में से एक होने की उम्मीद है. दोनों फ़िल्में सनी देओल के प्रशंसकों के अलग-अलग पहलुओं को ध्यान में रखकर बनाई गई हैं. 'जाट' के लिए एक्शन प्रेमी और 'भैयाजी सुपरहिट' के लिए कॉमेडी-ड्रामा के शौकीनों द्वारा दर्शकों के बड़ी संख्या में सिनेमाघरों में आने की संभावना है. इन रिलीज़ों को लेकर हो रही भीषण उत्सुकता, सनी देओल की बॉलीवुड के टॉप सितारों में से एक के रूप में कॉनस्टैंट लोकप्रियता को भुनाने की कोशिश बताई जा रही है. बॉक्स ऑफिस पर 10 अप्रैल की टक्कर, सनी देओल बनाम सनी देओल 'जाट' बनाम 'भैयाजी सुपरहिट' में बॉलीवुड की सबसे बड़ी बॉक्स ऑफिस लड़ाइयों में से एक के रूप में देखी जा रही है. जरा सोचिए कि आपको ऐसी फ़िल्में देखने का दूसरा मौक़ा मिले, जिन्हें उनके ऑरिजिनल प्रदर्शन के दौरान अनदेखा किया गया हो, यह चलन सिनेमा को एक अनोखे तरीके से फिर से जीवित कर रहा है.
फिर से रिलीज़ होने का मतलब सिर्फ़ पुरानी यादें ताज़ा करना नहीं है. यह फ़िल्मों को हिट होने का एक और मौक़ा देने जैसा है. कभी-कभी कई फ़िल्में पुराने समय में निर्मित होने या प्रचार की कमी के कारण दर्शकों से जुड़ने में विफल हो जाती हैं, लेकिन री रिलीज़ होने पर अब वे दर्शकों के दिलों में अपनी सही जगह पा सकती हैं. उदाहरण के लिए,'तुम्बाड' को ही लें—यह फिर से रिलीज़ होने पर बहुत बड़ी सफलता बन गई और यहाँ तक कि सोहम शाह के करियर को भी फिर से पटरी पर ला दिया. इससे यह साबित होता है कि अच्छा कंटेंट हमेशा आज नहीं तो कल अपने दर्शकों को आकर्षित करता ही है, चाहे कितना भी समय बीत गया हो.
इस चलन के बारे में रोमांचक बात यह है कि यह पीढ़ियों को कैसे जोड़ता है. पुराने दर्शक पुरानी यादों को ताज़ा करते हैं, जबकि युवा दर्शक पहली बार इन फ़िल्मों को देखते हैं. यह समय के साथ कहानियों को साझा करने और सिनेमा के लिए साझा प्यार पैदा करने की तरह है. साथ ही, इन फिल्मों को बड़े पर्दे पर देखने से थिएटर के अनुभवों का जादू वापस आता है, जिसे स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म दोहरा नहीं सकते. यही वजह है कि एक ही दिन में सनी की डबल इंजिन फिल्में दौड़ने को तैयार है और इनके निर्माताओं और डिस्ट्रीब्यूटर्स को कोई डर नहीं है. अब खोने को कुछ है ही नहीं, अब तो जो फायदा होगा नीट और नेट होगा.
'भैयाजी सुपरहिट' और 'जाट' की एक साथ फिर से रिलीज़ इस मॉडल में विश्वास दिखाती है कि खास फिल्मों को एक साथ रीरिलीज़ करना घाटे का सौदा नहीं होगा क्योंकि यह सिर्फ़ मुनाफ़ा कमाने का टोटका नहीं है, यह एक बड़े स्टार्स युक्त सिनेमा को जीवित, हराभरा और संपन्न रखने का आइडिया है. भले ही इन फिल्मों ने शुरुआत में अच्छा प्रदर्शन न किया हो, लेकिन अब उनके पास नई ऊंचाइयों को छूने का मौका है. यह बॉलीवुड साबित कर रहा है कि हर फिल्म को सुर्खियों में आने का मौका मिलना चाहिए. इसलिए, यह सवाल करने के बजाय कि ये फ़िल्में एक साथ एक ही दिन में क्यों रिलीज़ हो रही हैं, आइए इस चलन को कहानी कहने का स्टाइल मनाने, भूले हुए बॉलीवुड खजाने को फिर से खोजने और बीते समय में सिनेमा के कालातीत आकर्षण का आनंद लेने के अवसर के रूप में अपनाएँ.
'भैयाजी सुपरहिट' और 'जाट' का एक ही दिन राजी खुशी, बिना किसी झगड़े टन्टे के, फिर से रिलीज़ होना बॉलीवुड और उसके दर्शकों के लिए एक नया ताज़ा एहसास और विकास है. पुरानी फ़िल्मों को वापस लाने का यह चलन सिर्फ़ एक व्यावसायिक कदम नहीं है. यह सिनेमा का आनंद मनाने जैसा है, जो दर्शकों को उन कहानियों से फिर से जुड़ने का मौका देता है जो शायद उनके मूल प्रदर्शन के दौरान छूट गई हों या जिन्हें कम आंका गया हो. दो फिल्मों के एक साथ रिलीज़ होने और उनके क्लैश होने का डर ना होना यह साबित कर रहा रहा है कि सिनेमा की कोई समाप्ति तिथि नहीं होती, क्योंकि यह न केवल नई रिलीज़ में कमी को पूरा करता है बल्कि थिएटर के उस अनुभव को भी पुनर्जीवित करता है जिसे कई लोग जीवन भर संजोते हैं.
'भैयाजी सुपरहिट' और 'जाट' की एक साथ री-रिलीज़ इस रणनीति में बॉलीवुड के आत्मविश्वास को दर्शाती है. जैसा कि फ़िल्म निर्माता इम्तियाज़ अली ने कहा था, "सिनेमा स्थायी है और इसका आनंद किसी भी समय लिया जा सकता है."
यह तो हुआ पॉज़िटिव सोच, लेकिन बॉलीवुड प्रेस, और बॉलीवुड पंडितों का एक तबका ऐसा भी है जो इस प्रकार दो सनी देओल फिल्मों के रीलीज को लेकर सवाल खड़ा कर रहे हैं कि ऐसा क्यों?
खुसफुसाहट और सुगबुगाहट यह है कि, भैयाजी सुपरहिट और जाट, दोनों फ़िल्में जो सालों पहले नर्म चली थीं, अचानक फिर से स्क्रीन पर आ रही हैं. एक ही दिन, एक ही हफ़्ते. संयोग? या कुछ और?
जब कोई नई फ़िल्म रिलीज़ होती है, तो वह ताज़ा और प्रचार से भरपूर होती है. लेकिन पुरानी, भूली-बिसरी फ़िल्में? वे अचानक से नहीं उठतीं और वापस आने का फ़ैसला नहीं करतीं. उन्हें कौन आगे ला रहा है? क्या निर्माता खोए हुए पैसे वापस पाने की कोशिश कर रहे हैं? या शायद कोई यह परख रहा है कि अगर सही तरीके से मार्केटिंग की जाए तो दर्शक कुछ भी देखेंगे या नहीं?
उन लोगों का कहना है, "ईमानदारी से कहें तो दोनों फ़िल्में पहली बार रिलीज़ होने पर आशातीत सफल नहीं थी तो अब उसे री रिलीज़ क्यों?कुछ नया बनाने के बजाय पुराने प्रोजेक्ट्स को क्यों उभार रहे हैं? क्या यह पुरानी यादों को भुनाने का एक तरकीब है कि लोग कहेंगे “ओह, मुझे वो वक्त याद आ रहा है” और टिकट खरीदेंगे?
और यहाँ बड़ा सवाल है कि क्या हम बेहतर कहानियों की मांग करने के बजाय ओल्ड इज़ गोल्ड पर संतोष कर रहे हैं? या क्या हमने क्रिएटिव सोच बंद कर दिया है, कि जब तक कि पुरानी फिल्में'मनोरंजन' कर रही है तब तक सब चलता है?
लेकिन उन दिल जलों को, जो बाल की खाल निकालने से नहीं चूक रहें हैं उन्हे यह समझना चाहिए कि जब हर चीज़ को रीसाइकिल करने की वकालत की जा रही है तो फिल्में क्यों नहीं? नेगेटिव सोच को परे करके इसका दूसरा पॉज़िटिव पहलू भी देखना चाहिए कि क्या यह पुरानी ना चली फिल्मों को एक और मौका नहीं देना चाहिए? शायद दर्शक उस समय तैयार नहीं थे. शायद आज के दर्शक इन फिल्मों में कुछ ऐसा देखेंगे जो दूसरों ने मिस कर दिया हो.
फिर भी, प्रश्न यह उठ रहा है कि दो ओल्ड फिल्मों को एक ही दिन खुशी खुशी बिना जद्दोजहद, बिना वाद विवाद के क्यों रिलीज़ की जा रही है? दो पुरानी फिल्मों को नई रिलीज़ बनाकर क्यों टकराया जा रहा हैं? इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है. यह तो समय ही बताएगा.
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