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कहते हैं कि प्रतिभा का सम्मान उसके जाने के बाद भी उसी गरिमा से होना चाहिए, जिसकी वह जीवनभर हकदार रही हो. लेकिन दिग्गज अभिनेत्री कामिनी कौशल (Kamini Kaushal) की प्रार्थना सभा ने इस बात को एक कड़वी सच्चाई की तरह फिर याद दिला दिया. 98 वर्ष की उम्र में उनके निधन के बाद मुंबई में आयोजित प्रेयर मीट में जया बच्चन (Jaya Bachchan) और वहीदा रहमान (Waheeda Rehman) जैसी दिग्गज हस्तियाँ पहुँचीं और उन्होंने भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी. जया बच्चन सफेद सलवार-सूट में पहुंचीं, वहीं वहीदा रहमान काले फ्लोरल साड़ी में दिखाई दीं. दोनों ने एक-दूसरे को गर्मजोशी से गले लगाया और कामिनी कौशल के साथ बिताए पलों को याद किया. (Kamini Kaushal prayer meet in Mumbai)
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लेकिन इन दो दिग्गजों की मौजूदगी के बीच बॉलीवुड और इंडस्ट्री के कई नामी चेहरों की अनुपस्थिति ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया—क्या हम सच में अपने वरिष्ठ कलाकारों को वह सम्मान दे पाते हैं, जिसके वे अपने जीवन और योगदान से पूरी तरह हकदार होते हैं? कामिनी कौशल जैसी अद्भुत अभिनेत्री, जिनकी विरासत हिंदी सिनेमा के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है, उनकी अंतिम विदाई में दिखाई दी यह खामोशी कहीं न कहीं बेहद पीड़ादायक और चिंताजनक भी थी.
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कामिनी कौशल हिंदी सिनेमा की वह एकमात्र अभिनेत्री थीं, जिन्होंने शादी के बाद भी सबसे लंबे समय तक अभिनय किया. उनकी आखिरी फिल्म 'लाल सिंह चड्ढा' (Laal Singh Chaddha) थी, जिसमें 95 वर्ष की उम्र में उन्होंने स्क्रीन पर उपस्थिति दर्ज कराई. इसके अलावा फिल्म 'कबीर सिंह' में वे शाहिद कपूर की दादी के रूप में नजर आईं. वहीं, 'चेन्नई एक्सप्रेस' में उन्हें शाहरुख खान की दादी के रोल में भी देखा गया. (Jay Bachchan at Kamini Kaushal prayer meet)
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बात करे अगर उनकी ज़िंदगी की तो उनका जन्म 24 फरवरी, 1927 को ब्रिटिश भारत के लाहौर में हुआ था. वह दो भाईयों और तीन बहनों में सबसे छोटी थीं. उनके पिता लाहौर स्थित पंजाब विश्वविद्यालय में बॉटनी के प्रोफेसर थे. वह प्रोफेसर शिव राम कश्यप की पुत्री थीं, जिनहें भारतीय वनस्पति विज्ञान का जनक माना जाता है.
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'नीचा नगर' से की शुरुआत
कामिनी कौशल ने साल 1946 में फिल्म 'नीचा नगर' से बॉलीवुड में कदम रखा था. सामाजिक असमानता और गरीब-अमीर के संघर्ष पर आधारित इस फिल्म ने कान फिल्म समारोह में बेस्ट फिल्म का अवॉर्ड जीता. बता दें कि यह कान फिल्म महोत्सव में पाल्मे डी'ओर पुरस्कार जीतने वाली पहली और अब तक की एकमात्र भारतीय फिल्म है. फिल्म में कामिनी ने अभिनेता रफीक अनवर और आनंद की पत्नी उमा के साथ अभिनय किया था. चेतन आनंद ही थे, जिन्होंने फिल्म में काम कर रही दो उमा के बीच भ्रम से बचने के लिए उनका नाम कामिनी कौशल रखा था. कामिनी कौशल ने इस फिल्म में न केवल अपनी अभिनय क्षमता को साबित किया, बल्कि भारतीय सिनेमा को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान दिलाई (Waheeda Rehman tribute to Kamini Kaushal)
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कामिनी कौशल की प्रमुख फिल्में
कामिनी कौशल भारतीय सिनेमा की सबसे फेमस हस्तियों में से एक थीं. उन्होंने अपने शानदार करियर में लगभग 90 से ज्यादा फिल्मों में काम किया. इनमें शहीद (1948), नदिया के पार (1948), आग (1948), जिद्दी (1948), पारस, शबनम (1949), आरजू (1950), 'झांझर' (1953), बिराज बहू (1954), 'आबरू' (1956), 'बड़े सरकार' (1957), 'जेलर' (1958), 'नाइट क्लब' (1958), 'गोदान' (1963) जैसी फिल्में शामिल हैं. 'बिराज बहू' के लिए उन्हें 1954 में सर्वश्रेष्ठ फिल्म अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला. कामिनी कौशल के अभिनय के साथ-साथ उनकी खूबसूरती के चर्चे भी खूब मशहूर रहे. उन्होंने हर दौर के सितारों के साथ भी काम किया है.
फिल्मों के अलावा कामिनी कौशल ने कई टेलीविजन शो में भी काम किया, जिनमें दूरदर्शन पर 'चांद सितारे', स्टारप्लस पर 'शन्नो की शादी और डीडी नेशनल पर 'वक्त की रफ्तार' शामिल हैं. (Bollywood celebrities attend Kamini Kaushal prayer meet)
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3 दशक तक रही सबसे महंगी एक्ट्रेस
कामिनी कौशल 1940 के दशक और उसके बाद 60 के दशक तक, बॉलीवुड की सबसे महंगी एक्ट्रेस रही हैं. साल 1956 में उन्हें 'बिराज बहू' के लिए बेस्ट एक्ट्रेस का अवॉर्ड मिला. जबकि 2015 में फिल्मफेयर ने लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया. (Kamini Kaushal death tribute gathering)
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निजी जीवन
कामिनी कौशल (Kamini Kaushal) की निजी जिंदगी में जितना ग्लेमर था, उससे कहीं ज्यादा दर्द और त्याग भरा हुआ था. 1947 में एक भयानक हादसा हुआ – उनकी बड़ी बहन की कार दुर्घटना में मृत्यु हो गई. बहन ने दो नन्हीं बेटियाँ छोड़ी थीं – कुमकुम और कविता. उस समय कामिनी महज 20-21 साल की थीं और अपने करियर के शिखर पर थीं. लेकिन परिवार की जिम्मेदारी उन पर आ पड़ी. 1948 में उन्होंने अपनी मृत बहन के पति, बी.एस. सूद से शादी कर ली. श्री सूद उस समय बॉम्बे पोर्ट ट्रस्ट में चीफ इंजीनियर थे. कामिनी ने मुंबई में घर बसाया और अपनी दोनों भांजियों को अपनी बेटियों की तरह पाला. बाद में 1955 के बाद उनके अपने तीन बेटे हुए – राहुल, विदुर और श्रवण. आज कुमकुम सोमानी बच्चों के लिए गांधी दर्शन पर किताब लिखती हैं, तो कविता साहनी एक जानी-मानी कलाकार हैं.
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दिलीप कुमार संग अधूरी रही मोहब्बत
इसी बीच एक और कहानी चल रही थी – दिलीप कुमार (Dilip Kumar) के साथ गहरा प्रेम. ‘शहीद’, ‘नदिया के पार’, ‘शबनम’ जैसी फिल्मों की शूटिंग के दौरान दोनों एक-दूसरे के इतने करीब आ गए थे कि पूरा बॉलीवुड उनकी जोड़ी को सच्चा मानने लगा था. दिलीप साहब खुद कई बार कहते थे कि कामिनी के साथ काम करना और उनसे बात करना दोनों अलग ही सुकून देता था. लेकिन जब दिलीप साहब ने रिश्ते को आगे बढ़ाने की बात की तो कड़वा सच सामने आया – कामिनी पहले ही शादीशुदा थीं थीं, दो छोटी बच्चियों की माँ बनी हुई थीं. घर-परिवार छोड़ना उनके लिए नामुमकिन था. ऊपर से उनके भाई ने सख्ती दिखाई. किवदंती है कि भाई ने दिलीप साहब से साफ-साफ कह दिया था, “यह रिश्ता मुमकिन नहीं है.” बस, यहीं वो प्रेम कहानी थम गई. न कोई ड्रामा, न कोई बदनामी – सिर्फ खामोश स्वीकृति और आजीवन सम्मान.
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दशकों बाद भी जब-जब कामिनी जी से दिलीप साहब के बारे में पूछा जाता, उनकी आँखें नम हो जाती थीं. वे मुस्कुराते हुए कहतीं, “दिलीप साहब जैसे थे, वैसा दूसरा कोई नहीं था. वह कभी दिखावे के लिए नहीं बोलते थे. जितने बड़े कलाकार थे, उससे कई गुना बड़े इंसान थे. मैं भी वैसी ही थी – बनावट मुझे कभी नहीं भाती थी.” और जब सायरा बानो (Saira Banu) के प्रति उनका रवैया देखने लायक था. कभी कोई कटुता नहीं. बल्कि खुलकर तारीफ –“सायरा जिस लगन और प्यार से दिलीप साहब की सेवा करती हैं, उनके जन्मदिन मनाती हैं, उनकी हर छोटी-बड़ी खुशी का खयाल रखती हैं – यह सचमुच बहुत बड़ी बात है. मैं उनकी बहुत इज्जत करती हूँ.” कामिनी कौशल ने कभी अपने त्याग को ढोल नहीं पीटा. न कभी उस अधूरी मोहब्बत को अफसोस बनाया. उन्होंने बस चुपचाप अपना फ़र्ज़ निभाया, अपनी भांजियों को माँ का प्यार दिया और सिनेमा को अपना सब कुछ दे दिया. यही वजह है कि आज भी जब उनका नाम लिया जाता है तो लोग कहते हैं – “वो औरत नहीं, एक ज़माने की गरिमा थी.”
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आज जब उनकी प्रार्थना सभा में सिर्फ दो दिग्गज अभिनेत्रियाँ नजर आईं, तो दिल रो पड़ा. यही हमारा समाज है – जीते जी तारीफ, मरने के बाद खामोशी. कामिनी कौशल जैसी शख्सियत को भी हम इतनी जल्दी भुला देते हैं. लेकिन सच तो यह है कि वह हमेशा जिंदा रहेंगी – अपनी फिल्मों में, अपनी उस सादगी और गरिमा के साथ, जो आज के दौर में दुर्लभ हो चुकी है. उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम उनकी फिल्में फिर से देखें, उनकी कहानियाँ अपने बच्चों को सुनाएँ. (Kamini Kaushal 98-year-old demise prayer ceremony)
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कामिनी कौशल जी के अमूल्य योगदान को ‘मायापुरी’ परिवार विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता है. उनके कला-समर्पण और सादगी की छाप भारतीय सिनेमा में हमेशा अमर रहेगी.
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नोट- मैगजीन में बॉक्स में दें ये मैटर, ऑनलाइन में सबसे आखिर में दें
कहते हैं कि प्रतिभा का असली सम्मान तब होता है जब वह इस दुनिया से चली जाती है. लेकिन हमारे समाज की कड़वी सच्चाई यह है कि हम अक्सर जीते जी तारीफ करते हैं और मरने के बाद भूल जाते हैं. एक बहुत पुराना मशहूर जुमला है – “एक बार एक डीआईजी साहब की पत्नी का निधन हुआ तो श्रद्धांजलि देने वालों की लाइन लग गई, लेकिन जब खुद डीआईजी साहब का निधन हुआ तो वहाँ सिर्फ कुछ गिने-चुने लोग ही आए.” यह जुमला आज बिल्कुल सटीक बैठता है. यह वही समाज है जो कभी उनकी एक झलक के लिए तरसता था.'
FAQ
1. कामिनी कौशल का निधन कब हुआ?
कामिनी कौशल का निधन 98 वर्ष की उम्र में हुआ, जिसके बाद मुंबई में उनकी प्रेयर मीट आयोजित की गई।
2. प्रेयर मीट में कौन-कौन शामिल हुआ?
जया बच्चन और वहीदा रहमान सहित कई दिग्गज हस्तियों ने प्रेयर मीट में शिरकत की।
3. जया बच्चन प्रेयर मीट में कैसे पहुंचीं?
जया बच्चन सफेद सलवार-सूट पहनकर प्रेयर मीट में पहुँचीं और बेहद भावुक नजर आईं।
4. वहीदा रहमान का लुक कैसा रहा?
वहीदा रहमान काले फ्लोरल साड़ी में नजर आईं और बेहद सादगीपूर्ण अंदाज़ में श्रद्धांजलि दी।
5. प्रेयर मीट में क्या खास पल देखने को मिला?
जया बच्चन और वहीदा रहमान का एक-दूसरे को गले लगाकर कामिनी कौशल को याद करना सबसे भावुक पल रहा।
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