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Lata Mangeshkar का पहला सुपरहिट गाना भीड़भाड़ वाले स्टेशन पर बना था

स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर के गीत आमतौर पर बीसियों म्यूजिशियनों के साथ भव्यतम रिकार्डिंग स्टूडियो में रिकॉर्ड किए गए लेकिन क्या आपको पता है उनका पहला सुपरहिट गाना भीड़भाड़ वाले रेलवे स्टेशन पर प्लेटफार्म की बेंच पर बैठकर बना था...

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Lata Mangeshkar first superhit song was composed in a crowded station
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फिल्म लेखक विनोद कुमार बता रहे हैं कि स्वर कोकिला लता मंगेशकर का पहला गाना कैसे बना था:

स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर के गीत आमतौर पर बीसियों म्यूजिशियनों के साथ भव्यतम रिकार्डिंग स्टूडियो में रिकॉर्ड किए गए लेकिन क्या आपको पता है उनका पहला सुपरहिट गाना भीड़भाड़ वाले रेलवे स्टेशन पर प्लेटफार्म की बेंच पर बैठकर बना था. उसी बेंच पर बैठ कर लता मंगेशकर ने उस गाने की रिहर्सल की थी. वही गाना उनके जीवन का पहला सुपरहिट गाना बन गया. जब उन्होंने वह गाना गाया तो सिगरेट के पैकेट पर थाप दी गई थी. स्वर साम्राज्ञी, बुलबुले हिंद और स्वर कोकिला जैसे विशेषणों और सर्वोच्च सम्मानों से नवाजी गई लता मंगेशकर ने कामयाबी के शिखर को छुआ. 

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पिछले 70 बरसों में कई गायिकाएं आईं लेकिन लता मंगेशकर के शिखर तक पहुंचना तो दूर, ज्यादातर गायिकाएं कुछ दूर आगे बढ़कर कहां खो गयीं यह तक पता नहीं चला. गीतकार जावेद अख्तर की वह बात याद आती है कि एक सूरज है, एक चाँद है और लता मंगेशकर भी एक है.

लेकिन इस शिखर तक पहुंचने के लिए लता मंगेशकर को जिन कठिन मुश्किलों का सामना करना पड़ा उसका अंदाजा ज्यादा लोगों को नहीं है.

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जब भारत छोड़ो आंदोलन अपने शीर्ष पर था तब 1942 में सिर्फ़ 13 वर्ष की लता को छोड़कर उनके पिता दुनिया से विदा हो गए. उनके कंधों पर पूरे परिवार का खर्च चलाने की ज़िम्मेदारी आ गई. उस्ताद अमान अली ख़ान और अमानत ख़ान से संगीत की शिक्षा लेने वाली लता को रोजी-रोटी चलाने के लिए संघर्ष शुरू करना पड़ा. उन्होंने 1942 में ही एक मराठी फ़िल्म 'किती हासिल' में गाना गाकर अपने करियर की शुरुआत की लेकिन बाद में यह गाना फिल्म से हटा दिया गया. कई बार ऐसा हुआ जब वह भूखे प्यासे संगीतकार से मिलने जातीं और फिर निराश होकर लौट आती थीं. यह वह जमाना था जब  हिंदी फ़िल्मी संगीत पर शमशाद बेगम, नूरजहाँ और ज़ोहराबाई अंबालेवाली जैसी वज़नदार आवाज वाली गायिकाओं का राज चलता था. वैसे में लता मंगेशकर को काम पाने के लिए शुरू के वर्षों में काफी संघर्ष करना पड़ा.

कई फ़िल्म प्रोड्यूसरों और संगीत निर्देशकों ने यह कहकर उन्हें गाने का मौका देने से इनकार कर दिया कि उनकी आवाज़ बहुत महीन है. संघर्ष के उन्हीं दिनों में उनको उस समय के टॉप के संगीतकार का सहारा मिला. उस संगीतकार का नाम है गुलाम हैदर.

वह गुलाम हैदर ही थे जो लता मंगेशकर को लेकर फिल्मिस्तान के मालिक एस. मुखर्जी के पास मौका दिलाने ले गए थे. लता मंगेशकर ने खुद एक इंटरव्यू में बताया था –  ''ये उन दिनों की बात है, जब मुंबई में फ़िल्म 'शहीद' की तैयारियां चल रही थीं. मास्टर गुलाम हैदर इसके म्यूजिक डायरेक्टर थे. यह फिल्म उस समय की जानी-मानी फ़िल्म कंपनी फ़िल्मिस्तान के बैनर तले बन रही थी. इसके मालिक शशिधर मुखर्जी थे, जिन्होंने मेरी आवाज़ यह कहकर खारिज कर दिया कि आवाज़ बहुत बारीक और चुभती हुई है, जो दर्शकों को पसंद नहीं आएगी.''

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लता मंगेशकर ने बताया कि वह उस समय 18 साल की थीं और चार-पांच साल से कोरस में गाने के साथ-साथ मराठी फ़िल्मों में छोटे-छोटे रोल भी कर रही थीं. उन्होंने कहा –  ''मुझे कभी हीरो की छोटी बहन का रोल तो कभी हीरोइन की सहेली का रोल मिल जाता, लेकिन मुझे एक्टिंग करना पसंद नहीं था. मैं गाना चाहती थी, लेकिन कोई मौका नहीं दे रहा था. उन्हीं दिनों ऐसा हुआ कि पठान नाम का एक भलामानस जो स्टूडियो में जूनियर आर्टिस्ट सप्लाई करता था, मुझे मास्टर गुलाम हैदर साहब के पास ले गया. उन्होंने मेरा ऑडिशन लिया और मुझे पास कर दिया.''

लता मंगेशकर ने एक साक्षात्कार में बताया था, ''मेरे ऑडिशन से मास्टर साहब बहुत ख़ुश हुए. उन्होंने मुझसे कहा कि मैं तुम्हें प्रोमोट करूंगा. फिर मास्टर साहब ने एस मुखर्जी साहब को राज़ी करने की बहुत कोशिश की और ये भी कहा कि मेरी गारंटी है लेकिन उन्होंने मना कर दिया.''

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लता मंगेशकर ने आगे बताया  ''जब मास्टर साहब ने शशिधर मुखर्जी का फ़ैसला सुना तो वे अपने आप को रोक नहीं पाए. उन्होंने ये कहा कि मुखर्जी साहब वैसे तो आपको अपनी राय बनाने का पूरा हक़ है पर मेरे शब्द लिख लें, यह आवाज़ चलेगी ही नहीं, बल्कि दौड़ेगी और ऐसी दौड़ेगी कि एक दिन आप और अन्य निर्माता इसके पीछे-पीछे दौड़ेंगे. एक दिन आएगा कि जब आप और निर्माता, लता के दरवाज़े पर लाइन लगाए खड़े होंगे.'

लता मंगेशकर जी के अनुसार, इतना कहकर मास्टर ग़ुलाम हैदर ने फ़िल्मिस्तान के कार्यालय में शशिधर को अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया और उसी समय मेरे साथ बॉम्बे टॉकीज़ स्टूडियो की ओर चल पड़े.

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संघर्षरत लता के लिए गुलाम हैदर जैसे बड़े संगीतकार का यह विश्वास एक बहुत बड़ा सम्बल था. फिल्मिस्तान से निराश लौटते हुए वह लता मंगेशकर के साथ मलाड स्थित बॉम्बे स्टूडियो में जाने के लिए गोरेगाँव स्टेशन पर ट्रेन पकड़ने आए थे. उसी स्टेशन पर ट्रेन के इंतज़ार में ही गुलाम हैदर ने फिल्म 'मजबूर' के लिए 'दिल मेरा तोड़ा' गाने की धुन बनाई. इसी स्टेशन की बेंच पर बैठकर लता मंगेशकर ने उस गाने का रिहर्सल किया और गुलाम हैदर ने 555 सिगरेट की पैकेट पर थाप दी. इस तरह बना साल 1948 में रिलीज हुई फिल्म 'मजबूर' मशहूर गाना.इस गाने के बोल हैं  'दिल मेरा तोड़ा हाय मुझे कहीं का न छोड़ा तेरे प्यार ने.'

यह गाना सुपरहिट होकर लता मंगेशकर को हिट गायिकाओं की श्रेणी में ला खड़ा किया.

गोरेगांव स्टेशन पर प्लेटफार्म का वह कोना सम्भवतः आज भी होगा और वह बेंच भी होगी, लेकिन गोरेगांव स्टेशन पर सुबह से रात तक चर्च गेट जाने वाले आम लोगों की भीड़ में कितने लोग जानते होंगे कि वे जहाँ रोज़ खड़े होते हैं वहीं उनकी आदर्श और पूज्य लता मंगेशकर के करियर का पहला मील स्तम्भी पत्थर निर्मित हुआ था.

इस गीत की रेकॉर्डिंग के बाद ही गुलाम हैदर ने कह दिया था कि जिस तरह नूरजहाँ को दुनिया के सामने लाने का श्रेय उन्हें मिला था, उसी तरह एक और बड़ी गायिका को इस गीत के जरिए पेश कर रहे हैं और दुनिया इसके लिए हमेशा उनकी शुक्रगुजार रहेगी.

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विनोद कुमार मशहूर फिल्म लेखक और पत्रकार हैं जिन्होंने सिनेमा जगत की कई हस्तियों पर कई पुस्तकें लिखी हैं. इन पुस्तकों में ʺमेरी आवाज सुनोʺ‚ ʺसिनेमा के 150 सितारेʺ‚ ʺरफी की दुनियाʺ के अलावा देवानंद‚ दिलीप कुमार और राज कपूर की जीवनी आदि शामिल हैं.

by vinod kumar

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