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Madhur Bhandarkar Bold Realistic Filmmaker: मधुर भंडारकर वो तूफान और वो तपिश जिसे कोई नहीं रोक पाया

मधुर भंडारकर, एक खूबसूरत, इंसान, एक संवेदनशील निर्देशक और एक निडर स्टोरी टेलर जिनका फिल्मी सफ़र बॉलीवुड के लगातार विकसित होते सिनेमा परिदृश्य में गहरे तक बसे धैर्य और अथक जुनून की कहानी है।

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मधुर भंडारकर, एक खूबसूरत, इंसान, एक संवेदनशील निर्देशक और एक निडर स्टोरी टेलर जिनका फिल्मी सफ़र बॉलीवुड के लगातार विकसित होते सिनेमा परिदृश्य में गहरे तक बसे धैर्य और अथक जुनून की कहानी है. 26 अगस्त, 1968 को मुंबई के उपनगर खार में जन्मे मधुर एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार से हैं,(Madhur Bhandarkar Bold Realistic Filmmaker) मधुर भंडारकर वो तूफान और वो तपिश जिसे कोई नहीं रोक पाया जिनके पास कभी कोई ख़ास मुनाफ़ा नहीं था. उन्होंने एक बार खुलासा किया था, "मैं छठी कक्षा में फेल हो गया था," जिससे उन्हें जल्दी ही यह एहसास हो गया कि सफलता उन्हें आसानी से नहीं मिलने वाली थी.(Madhur Bhandarkar bold movies)

Madhur Bhandarkar

उनके पिता एक इलेक्ट्रिकल कॉन्ट्रैक्टर थे, लेकिन मधुर एक अलग ही जुनून और अलग सपने बुनने वाला किशोर था जिन्हे अपना रास्ता खुद बनाना था. मुंबई के जुहू और बांद्रा इलाकों में साइकिल पर वीडियो कैसेट पहुँचाने जैसे छोटे-मोटे कामों से शुरुआत करते हुए, उनका सामना फ़िल्मी सितारों से लेकर डांस बार गर्ल्स तक, हर तरह के लोगों से हुआ. मधुर अक्सर कहते हैं, "मिथुन चक्रवर्ती मुझे याद करते हैं(Realistic Bollywood filmmaker) और मुझ पर बहुत गर्व करते हैं. उन्हें यकीन नहीं होता कि जो लड़का उनके घर छोटी पैंट पहनकर आता था, वह इतना सफल हो गया है." यह अनुभव बताता है कि कैसे एक साधारण शुरुआत ने उनके सपने को आकार दिया और उनकी उमंगों को पंख दिए .(Madhur Bhandarkar)

"वीडियो लाइब्रेरी से रंगीला तक: मधुर भंडारकर का सिनेमा सफ़र"

Madhur BhandarkarRangeela_poster

कैसेट डिलीवरी का शुरुआती काम मधुर का फ़िल्मी दुनिया से पहला सच्चा मुठभेड़ था. यहीं से उन्होंने कहानी कहने के तरीके को और ढंग से सीखने की ठान ली थी. हालाँकि उन्होंने स्कूल छोड़ दिया था, लेकिन जिस वीडियो लाइब्रेरी में वे काम करते थे, उसकी अलमारियाँ उनकी कक्षा बन गईं. उन्होंने कहा, "मैंने फ़िल्मों के ज़रिए ही फ़िल्म निर्माण का अध्ययन किया और उस माध्यम की तकनीकों बारीकियों के साथ  कथाओं को भी आत्मसात किया जो उन्हें आकर्षित करती थीं. यहीं से, उन्होंने छोटे-मोटे फ़िल्म निर्देशकों के साथ काम करना शुरू किया और अंततः 1995 की फ़िल्म "रंगीला" में राम गोपाल वर्मा के साथ काम करने का मौका मिला. मधुर ने कहा, "राम गोपाल के साथ काम करना एक महत्वपूर्ण मोड़ था. मैंने फ़िल्म निर्माण की लय सीखी और सिनेमाई दुनिया का पहला अनुभव लिया."(Madhur Bhandarkar biography)

Trishakti | full hindi movie |Arshad Warsi, Sharad Kapoor, Milind  Gunaji,Radhika | Madhur Bhandarkar

उनकी पहली फ़िल्म, त्रिशक्ति, एक कठिन शुरुआत थी. इसे पूरा होने में तीन साल लगे और इसमें अरशद वारसी जैसे नए कलाकार भी थे. जब यह 1999 में आखिरकार सिनेमाघरों में रिलीज़ हुई , तो यह बिना किसी के ध्यान के ही दम तोड़ गई. "यह मेरे लिए एक बड़ी सीख या कहें आपदा थी. मैं एक कमरे के फ्लैट में रह रहा था, जूनियर कलाकारों के साथ बसों में सफ़र कर रहा था, और कभी-कभी टिकट के किराए में भी सोचना पड़ता था. यह फ़िल्म इंडस्ट्री असफलताओं को बिल्कुल नहीं सहता," मधुर ने याद किया था . उस असफलता का दंश इतना गहरा था कि दोस्त, परिवार और उद्योग के अंदरूनी लोग उन्हें इंडस्ट्री छोड़ने की सलाह देने लगे. "बहुतों ने मुझसे कहा कि मेरा करियर खत्म हो गया है और मुझे इसे छोड़ देना चाहिए और विदेश में कोई स्थिर नौकरी ढूंढ लेनी चाहिए. लेकिन मैं हमेशा से ही एक योद्धा रहा हूँ, बिना अचीवमेंट मैदान छोड़ना मेरे नेचर में नहीं था. " उन्होंने ज़ोर देकर कहा.(Bollywood realistic cinema)

'चांदनी बार’ से चमके मधुर भंडारकर: हकीकत बयां करने वाले बेख़ौफ़ फ़िल्मकार

madhur banakar

वे दो कदम पीछे जरूर हटे लेकिन चौगुनी रफ्तार से उन्होने एक उड़ान भरी और फिर दो साल में ही मधुर ने फिल्मी पंडितों के लाख मना करने के बावजूद, एक चौंकाने वाली लीक से हटकर फ़िल्म "चाँदनी बार" (2001) बनाई जिसे रातोंरात इतनी सफलता मिली कि बॉलीवुड के निर्माण क्षेत्र ने अवाक् दृष्टि से पलट कर मधुर को देखा कि यह कौन आ गया है, समाज के एक कच्चे चिट्ठे पक्ष का मुखौटा उतारने. चांदनी बार मुंबई की बार डांसरों के गंभीर जीवन पर आधारित एक ज़बरदस्त सामाजिक ड्रामा था. तब्बू अभिनीत इस फ़िल्म ने एक हाशिए में पड़ी हुई दुनिया पर प्रकाश डाला, जिसे मुख्यधारा के सिनेमा में इतनी सहज ईमानदारी से शायद ही कभी किसी ने दिखाया हो . मधुर ने बताया, " मैं कोई राज़ फाश नहीं कर रहा था, मेरी फ़िल्म 'चांदनी बार' समाज के इस उपेक्षित पक्ष का आईना थी. मैं ऐसी कहानियाँ बताना चाहता था जिन्हें दूसरे लोग छूने से डरते थे." इस फ़िल्म को आलोचकों की प्रशंसा और राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली, जिसमें सामाजिक मुद्दों पर सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार भी शामिल है. इस फ़िल्म से एक ऐसे निर्देशक के रूप में उनकी प्रतिष्ठा और मज़बूत हुई, जिन्होंने वास्तविक और असहज कहानियों को उजागर करने का साहस किया .(Chandni Bar Madhur Bhandarkar)

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मधुर की फ़िल्में अक्सर महिलाओं के दर्द और उनकी हस्ती के इर्द-गिर्द घूमती हैं. उनकी फिल्मों में महिलाओं  की भूमिकाएँ, केंद्रीय और जटिल किरदार होते हैं और वास्तविक समस्याओं से जूझती हैं. उनकी बहुचर्चित "पेज 3" (2005) ने एक बार फिर मुंबई के अभिजात वर्ग और मीडिया के चमकदार मुखौटे को चुटकी में उतार फेंका, जबकि उनकी एक और विवादास्पद फ़िल्म "कॉर्पोरेट" (2006) ने व्यापार की गलाकाट दुनिया में प्रवेश किया. उन्होंने एक बार कहा था, "कॉर्पोरेट मेरी सबसे कठिन फ़िल्म थी 'पेज 3' के बाद. कॉर्पोरेट  बनाते ही कॉर्पोरेट जगत के कई लोगों ने मुझसे किनारा कर लिया क्योंकि मैंने उनके बारे में असहज सच्चाई उजागर की थी." इस फ़िल्म ने कोक-पेप्सी कॉर्पोरेट मुद्दों सहित कई अन्य वास्तविक विवादों से प्रेरणा ली, और मधुर को कॉर्पोरेट नैतिकता तथा मैनेजमेंट पर व्याख्यान देने के लिए प्रेरित किया. और फिर जो हुआ वो मधुर को निर्देशन के पैमाने पर शीर्ष तक ले गई. इसके साथ ही सामाजिक टिप्पणियों के साथ कहानी कहने की उनकी क्षमता उनका ब्रांड बन गई .(Indian realistic film directors)

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उसके पश्चात, एक और अलग हटकर एक फ़िल्म "फ़ैशन" (2008) ने मधुर की शैली को और निखारा.(Madhur Bhandarkar struggles) एक युवा मॉडल के उत्थान और पतन के माध्यम से ग्लैमरस फ़ैशन उद्योग के अंधेरे पहलुओं को मधुर ने कुछ इस तरह से उजागर किया कि दुनिया देखती रह गई. मधुर ने बताया, "मैं शुरू से ही चमक-दमक के पीछे का सच दिखाना चाहता रहा हूँ. मैं वह उजागर करना चाहता हूँ जो लोग बाहरी दिखावे की प्रशंसा करते समय नहीं देख पाते."(Madhur Bhandarkar controversies)

मधुर भंडारकर की फ़िल्मों ने कई राष्ट्रीय पुरस्कार जीते हैं, और कई फ़िल्में उनके सांस्कृतिक महत्व को मान्यता देते हुए भारतीय राष्ट्रीय फ़िल्म अभिलेखागार में संग्रहीत भी हैं.

madhur bhardankar

अपनी अपार सफलता के बावजूद, मधुर भंडारकर बॉलीवुड के इनसाइडर्स द्वारा संचालित व्यवस्था की कठोर वास्तविकताओं को स्वीकार करते हैं. उन्होंने कहा, "ज्यादातर यहां इनसाइडर्स को ज्यादा सम्मान और पहुँच मिलती है, लेकिन ज़रूरी नहीं कि सफलता मिले, फिर भी इससे नए रास्ते खुलते हैं. मुझे हर अवसर के लिए संघर्ष करना पड़ा क्योंकि मेरा इंडस्ट्री में कोई पारिवारिक वंश या संबंध नहीं था." एक आउटसाइडर होने के नाते बॉलीवुड में मधुर भंडारकर के संघर्षों में  प्रोफेशनल अपमान और सामाजिक अलगाव भी शामिल थे . उन्होंने मुस्कुरा कर याद करते हुए कहा, "मैं उन पार्टियों में जाता था जहाँ कोई मुझसे बात तक नहीं करता था. मैं लोगों से मिलने और अपनी उम्मीद बनाए रखने के लिए छोटे -मोटे सेक्रेटरी के साथ बतियाता था.

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लेकिन भला तूफान को कोई कब तक रोक पाता, भला सूरज की तपिश को कोई कब तक ढक पाता? मधुर एक तूफान था, वो एक आग था. वर्षों से  मधुर की लगन और स्टोरी टेलिंग की अनूठी आवाज़ रंग लाई और उनकी इसी अनूठेपन ने उन्हें कई पुरस्कार दिलाए, जिनमें चार राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार भी शामिल हैं. उनकी फ़िल्में प्रदर्शित होते ही चर्चा और विवादों के जद में आ जाते हैं. उनकी फिल्में इसलिए ख़ास हैं क्योंकि वे सिर्फ़ मनोरंजन ही नहीं, बल्कि समकालीन भारत के विभिन्न पहलुओं को प्रस्तुत करने वाले सामाजिक दस्तावेज़ बन जाते हैं, चाहे वह तस्करी हो, मीडिया हो, कॉर्पोरेट लालच हो, फ़ैशन हो या न्याय व्यवस्था.(Madhur Bhandarkar National Award)

मधुर ने हाल ही में एक साक्षात्कार में मौलिकता और यथार्थवाद के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर ज़ोर देते हुए कहा था, "हर बार जब मैं कोई फ़िल्म बनाने की सोचता हूँ, तो मैं एक ऐसी कहानी की तलाश करता हूँ जो आम मुद्दों से एकदम हटकर हो, एक ऐसा गंभीर विषय हो जो आम तौर पर कही न गई हो." एक समर्पित फ़िल्म मेकर होने के कारण वे सिनेमा को जीते हैं, सिनेमा को ओढ़ते हैं, बिछाते हैं.

मधुर भंडारकर का निजी जीवन भी उसी विनम्रता और समर्पण को दर्शाता है. 2003 से रेणु नंबूदरी से विवाहित, मधुर अपनी बेटी सिद्धि के एक समर्पित पिता हैं.

madhur bhardurkar

मधुर आध्यात्मिक रूप से भी बेहद गहरे हैं और मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर के एक  अति उत्साही भक्त हैं. लगभग दो दशकों से हर मंगलवार को अपने घर से पैदल चलकर मंदिर तक आते हैं. वे वैष्णो देवी और स्वर्ण मंदिर भी नियमित रूप से जाते हैं. वे कहते हैं, "मेरा विश्वास मुझे ज़मीन से जुड़ा और केंद्रित रखता है." फिल्म निर्माण की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में उनकी आध्यात्मिकता एक मज़बूत आधार है .

हाल के वर्षों में, मधुर ने डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म को भी अपनाया है और तेज़ी से बदलते इंडस्ट्री में अपनी प्रासंगिकता को मजबूती से बनाए रखा है. उनके नवीनतम प्रोजेक्ट्‍स अनसुने आख्यानों को सामने लाती हैं. यहां भी महिला सशक्तिकरण और सामाजिक मुद्दों पर वे उसी प्रामाणिकता के साथ ध्यान केंद्रित करते हैं जो 26 सालों से उनकी पहचान बनी हुई है. उनकी अब तक की सभी फिल्में चांदनी बार, सत्ता, आन, मेन एट वर्क, पेज 3,  कॉर्पोरेट, ट्राफिक सिग्नल, फैशन, जेल, दिल तो बच्चा है जी, हीरोइन, कैलंडर गर्ल्स, अविजात्रिक, इंदु सरकार, इंडिया लॉक डाउन, बबली बाउंसर वगैरह उनके फ़िल्म मेकिंग की धार साबित करते हैं. मधुर ने कहा, "सिनेमा एक सशक्त माध्यम है. मैं इसका उपयोग उन वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करने के लिए करता रहता हूँ और आगे भी करते रहना चाहता हूँ जो ज्वलंत विचारों को प्रेरित करती हैं और बदलाव को अंगीकार करती हैं." मधुर भंडारकर का यह समर्पण केवल एक फिल्म निर्माता के रूप में ही नहीं बल्कि सत्य और सामाजिक चेतना के प्रति प्रतिबद्ध एक कहानीकार, एक लेखक, एक निर्देशक और एक निर्माता के रूप में उनकी जगह को पुष्ट करता है. यूँ ही नहीं मधुर भंडारकर को पद्म श्री, नैशनल अवॉर्ड्स, सोफिया अवार्डस, द क्रिएटिव स्पिरिट एंड विजनरी डाइरेक्टरस् अवार्ड, राज कपूर स्मृति अवार्ड से नवाज़ा गया.

सच दिखाने की कीमत: क्यों मधुर भंडारकर बॉलीवुड में अकेले चलते हैं

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समाज का उनका बेबाक चित्रण आलोचनाओं से अछूता नहीं रहता, लेकिन मधुर बेबाक बने रहते हैं. उन्होंने कहा, "अगर मेरी फ़िल्में लोगों को असहज करती हैं, तो शायद उन्हें सच्चाई समझने के लिए उस असहजता को महसूस करना ही होगा." बिना किसी ग्लैमराइज़ेशन या निंदा के कठिन विषयों को उजागर करने का उनका साहस उनकी फ़िल्मों को आकर्षक और प्रासंगिक बनाए रखता है. मधुर भेड़ चाल में चलने से इंकार करते हैं, इसलिए बॉलीवुड में उनका कोई दोस्त नहीं हैं.(Madhur Bhandarkar filmography)

मधुर भंडारकर एक दुर्लभ किस्म के फिल्मकार हैं. वे हैं एक स्व-निर्मित निर्देशक, एक हवा के रुख के विपरीत बहने वाले लेखक, निर्माता जो अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और सच्ची कहानियों के दम पर, अपनी नज़र और नजरिए के बदौलत  इस मुकाम तक पहुँचे. कैसेट बनाने से लेकर भारत के सबसे गुणी, गणमान्य और सम्मानित निर्देशकों में से एक बनने तक, उनकी कहानी एक प्रेरणा हैं नए फ़िल्म कारों के लिए जो उनकी आत्मनिरीक्षणता , दृढ़ता और निडर ईमानदारी की कहानी है. ज्यों ज्यों वे नए आख्यानों की खोज करते जा रहें हैं, भारत के विकसित होते सामाजिक ताने-बाने के एक इतिहासकार के रूप में उनकी विरासत बढ़ती जा रही है. उनकी नवीनतम फ़िल्म, 'द वाइव्‍स' पर भी खूब चर्चा है. मधुर भंडारकर फिल्म निर्माताओं और दर्शकों, दोनों को सार्थक सिनेमा की शक्ति से प्रेरित करना जारी रखेंगे, यह उनकी प्रतिश्रुती है.(Madhur Bhandarkar bold storytelling)

MADHAR BHARDURLAE

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FAQ

Q1. मधुर भंडारकर को किस तरह के फ़िल्ममेकर के रूप में जाना जाता है?(Madhur Bhandarkar is known as what kind of filmmaker?)
A1. मधुर भंडारकर को बोल्ड और रियलिस्टिक फ़िल्ममेकर कहा जाता है, जो समाज की असलियत को पर्दे पर लाने के लिए मशहूर हैं.

Q2. मधुर भंडारकर की पहली सफल फ़िल्म कौन सी थी?(Which was Madhur Bhandarkar's first successful film?)
A2. उनकी पहली बड़ी सफलता चांदनी बार (2001) रही, जिसने उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार दिलाया.

Q3. ‘चांदनी बार’ फ़िल्म किस विषय पर आधारित थी?(On what subject was the film 'Chandni Bar' based?)
A3. यह फ़िल्म मुंबई की बार डांसर्स के जीवन और समाज में उनकी कठिनाइयों पर आधारित थी.

Q4. मधुर भंडारकर को कितने नेशनल अवॉर्ड मिले हैं?(How many National Awards has Madhur Bhandarkar received?)
A4. उन्हें चांदनी बार, पेज 3, और ट्रैफिक सिग्नल जैसी फिल्मों के लिए 3 नेशनल अवॉर्ड मिल चुके हैं.

Q5. मधुर भंडारकर की फिल्मों में खासियत क्या है?(What is special about Madhur Bhandarkar's films?)
A5. उनकी फ़िल्में बिना ग्लैमराइज़ेशन के समाज की सच्चाई दिखाती हैं और असहज विषयों को भी निडरता से पेश करती हैं.

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