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Manoj Bajpayee on OTT vs theatre balance:मनोज बाजपेयी ने हाल ही के एक इंटरव्यू में फिल्म इंडस्ट्री के बदलते दौर और थिएटर रिलीज़ की मुश्किलों पर खुलकर बात की है। वेब सीरीज 'इन्स्पेक्टर जेंडे' में उनकी दिलचस्प भूमिका के साथ ही उन्होंने बताया कि आजकल फिल्में बनाना कितना रिस्की काम हो गया है। बजट को लेकर प्रोड्यूसर्स काफी सावधानी बरत रहे हैं और इसलिए कलाकारों को भी ठीक-दर-ठीक पैसे नहीं मिल रहे। मनोज ने मजाक में कहा, "मुझे तो पैसे ही नहीं मिलते," पर असल में बात ये है कि चाहे थिएटर में रिलीज हो या ओटीटी पर, हर कोई 'रिस्क-फ्री' प्रोजेक्ट बनाना चाहता है।
मनोज: फ़िल्म इंडस्ट्री की आर्थिक सोच और क्रिएटिविटी पर असर
उन्होंने यह भी बताया कि यह बदलाव केवल कलाकारों के वेतन तक सीमित नहीं है बल्कि पूरी फिल्म उद्योग की सोच में बदलाव आया है। अब बड़े-बजट के बिना नई फिल्में बनाना मुश्किल हो गया है, और इससे नए प्रयोग भी धीमे हो रहे हैं। मनोज का मानना है कि इस नई आर्थिक सोच से क्रिएटिविटी पर असर पड़ रहा है जबकि दर्शकों को कुछ नया और अलग देखने की चाह है। (Manoj Bajpayee views on cinema industry changes)
मनोज बाजपेयी अपने करियर में हमेशा अपनी कला को प्राथमिकता देते आए हैं। हाल ही में उन्होंने यह भी साझा किया कि जब उनकी फिल्म 'जुगनूमा' की शूटिंग चल रही थी, तो वे आर्थिक रूप से इतने दबाव में थे कि कई बार उन्हें फाइनेंसरों को पैसे के लिए फोन करना पड़ता था। (Impact of OTT platforms on Indian theatres)
फिल्म उद्योग में उनकी सच्चाई और संघर्ष की कहानी इसलिए भी प्रेरणादायक है क्योंकि वे केवल एक अभिनेता नहीं, बल्कि प्रोड्यूसर और वितरक की भूमिका भी निभाते हैं। इसके अलावा वे जल्द ही 'द फैमिली मैन' के तीसरे सीजन में वापस आ रहे हैं, जहाँ उन्होंने श्रीकांत तिवारी का किरदार निभाया है। इसके अलावा, वे फिल्मकार राम गोपाल वर्मा के साथ भी एक हॉरर-कॉमेडी ‘पुलिस स्टेशन में भूूत’ में काम करने जा रहे हैं, जो उनके फैंस के लिए और रोमांचक खबर है।
मनोज बाजपेयी: OTT और थिएटर के बीच संतुलन की ज़रूरत
मनोज बाजपेयी का कहना है कि OTT और थिएटर दोनों का संतुलन जरूरी है। उन्होंने बताया कि कोरोना काल में OTT की वजह से सिनेमाघरों के दर्शकों की संख्या कम हो गई थी, लेकिन अब धीरे-धीरे थिएटरों में दर्शक वापस आ रहे हैं। मनोज कहते हैं कि "हमें ऐसी फिल्में बनानी चाहिए जो थिएटर के लिए हों और जिनका बजट इतना हो कि जोखिम कम हो, ताकि इंडस्ट्री फिर से पिछली चमक को पा सके।"
इस पूरे परिदृश्य में मनोज की आवाज़ इंडस्ट्री के लिए एक चेतावनी भी है कि अगर केवल सुरक्षित, बिना रिस्क वाली फिल्मों पर ही ध्यान दिया गया तो उन फिल्मों की क्रिएटिविटी कमजोर हो सकती है, जो दर्शकों को आकर्षित करती हैं। (Budget issues in Bollywood films Manoj Bajpayee)
यह बयान फिल्म निर्माताओं को सोचने पर मजबूर नहीं करता बल्कि दर्शकों के लिए भी समझना जरूरी है कि कलाकारों की कड़ी मेहनत के बाद भी फिल्मों की दुनिया में आर्थिक और रचनात्मक दोनों तरह की चुनौतियाँ होती हैं। मनोज बाजपेयी की इस बात से लाखों कलाकार और फिल्म प्रेमी जुड़ते हैं, जो चाहते हैं कि हिंदी सिनेमा में अच्छे कंटेंट और नए प्रयोग बनाए और चलें। (Manoj Bajpayee on big budget films problem)
मनोज बाजपेयी का खुलापन, संघर्षों को बयां करना और नई फिल्में लेकर आने का जुनून उन्हें इंडस्ट्री के सबसे सम्मानित और प्रेरणादायक सितारों में से एक बनाता है। उनकी बातें इंडस्ट्री की जमीनी सच्चाई को जोड़ती हैं जो अक्सर पर्दे के पीछे छुपी रहती हैं।
इस समय जब सभी 'रिस्क-फ्री' प्रोजेक्ट की बात कर रहे हैं, मनोज बाजपेयी की मेहनत और हिम्मत बताते हैं कि नए कलाकारों के लिए एक मिसाल के तौर पर यह अपनी कला के लिए समर्पण कितना जरूरी है। उनके आने वाले प्रोजेक्ट्स खासकर इन्स्पेक्टर जेंडे और पुलिस स्टेशन में भूत दर्शकों के लिए बड़ी उम्मीदें लेकर आए हैं। (Theatre audience return after OTT boom)
मनोज बाजपेयी न केवल अपनी एक्टिंग से बल्कि अपने विचारों से भी बॉलीवुड की सोच को बदलने की कोशिश कर रहे हैं।
FAQ
Q1. मनोज बाजपेयी ने फिल्म इंडस्ट्री को चेतावनी क्यों दी?
A1. मनोज बाजपेयी का मानना है कि इंडस्ट्री में बड़े बजट की सोच और OTT पर निर्भरता से क्रिएटिविटी कम हो रही है।
Q2. मनोज बाजपेयी ने OTT और थिएटर को लेकर क्या कहा?
A2. उन्होंने कहा कि OTT और थिएटर दोनों का संतुलन जरूरी है, ताकि इंडस्ट्री फिर से स्थिर और सफल हो सके।
Q3. क्या OTT की वजह से थिएटर का महत्व कम हुआ है?
A3. हाँ, कोरोना काल में OTT ने थिएटर दर्शकों को कम कर दिया था, लेकिन अब दर्शक धीरे-धीरे थिएटर की ओर लौट रहे हैं।
Q4. मनोज बाजपेयी का फिल्मों के बजट पर क्या विचार है?
A4. उनका मानना है कि फिल्मों का बजट इतना होना चाहिए कि जोखिम कम हो और थिएटर के लिए उपयुक्त फिल्में बनाई जा सकें।
Q5. मनोज बाजपेयी किस बदलाव की बात कर रहे हैं?
A5. वे कह रहे हैं कि इंडस्ट्री की सोच में बदलाव आया है, जिससे नए प्रयोग कम हो गए हैं और क्रिएटिविटी प्रभावित हो रही है।
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