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4 दिसंबर, 1910 को शिमला की शांत वादियों में जन्मे मोतीलाल राजवंश (Motilal Rajvansh) बचपन से ही नेवी की वर्दी पहनने का सपना देखते थे. किस्मत ने मगर कुछ और ही राह चुन रखी थी. नेवी की भर्ती परीक्षा देने वह जब मुंबई पहुँचे, तभी उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई और वह टेस्ट पास नहीं कर सके. उन्हें पता भी नहीं था कि इसी असफलता के बाद उनका जीवन ऐसी दिशा लेने वाला है, जो आगे चलकर बॉलीवुड के स्वर्णिम इतिहास में एक नया और अनूठा अध्याय जोड़ देगा.
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एक दिन सागर स्टूडियो में शूटिंग देखने गए मोतीलाल पर निर्माता के.पी. घोष की नज़र पड़ी—लंबा कद, रॉयल पर्सनैलिटी और एक अलग-सी चमक. बस, फिर क्या था! उन्हें मिली फिल्म ‘शहर का जादू’ (Shaher Ka Jadoo) में बतौर हीरो काम करने की ऑफर. 24 की उम्र में हिंदी सिनेमा को मिल गया एक ऐसा एक्टर जिसे आज भी ‘नेचुरल एक्टिंग’ का पहला मास्टर कहा जाता है.
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हिट फिल्मों की कतार
मोतीलाल ने आते ही दर्शकों को अपनी कॉमिक टाइमिंग और सहज अभिनय से दीवाना बना दिया. उनकी प्रमुख फिल्मों में डॉक्टर मधुलिका (Doctor Madhulika), कुलवधु (Kulvadhu), जागीरदार (Jagirdar), हम तुम और वो (Hum Tum Aur Woh), अरमान (Armaan), किंग (King), दो घड़ी की मौज (Do Ghadi Ki Mauj), लग्न बंधन (Lagna Bandhan), जीवन लता (Jeevan Lata), दो दीवाने (Do Deewane), दिलावर (Dilawar), कोकिला (Kokilaऔर महबूब खान की तक़दीर (Taqdeer) शामिल हैं.
साल 1940 में उन्होंने लगातार दो फिल्मों—दीवाली (Diwali) और होली (Holi)—की रिलीज़ के साथ पचास से अधिक फिल्मों की अपनी लंबी इनिंग्स की मजबूत नींव रखी.
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शोभना समर्थ के साथ जुड़ा नाम
मोतीलाल राजवंश की निजी जिंदगी की बात करें तो मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जाता है कि अपने दौर की दिग्गज अदाकार शोभना समर्थ (Shobhna Samarth) के साथ उनकी नजदीकियां रहीं. शोभना समर्थ की शादी कुमारसेन समर्थ से हुई. हालांकि, एक मोड़ पर आकर उनके रिश्तों में कुछ तनाव आया, तब मोतीलाल राजवंश के साथ शोभना समर्थ की नजदीकियां बढ़ीं. शोभना समर्थ एक्ट्रेस तनुजा-नूतन की मां और काजोल-तनीषा की नानी थीं.
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वह रोल जिसने उन्हें अमर कर दिया
1952 में आई फिल्म ‘मिस्टर संपत’ (Mr. Sampat) उनके करियर का टर्निंग पॉइंट बनी. यह ऐसा रोल था जिसका जादू दर्शकों के साथ-साथ इंडस्ट्री पर भी छा गया. अमिताभ बच्चन ने एक बार कहा था— “मोतीलाल आज होते, तो पूरी इंडस्ट्री पर भारी पड़ते. उनकी वर्सेटिलिटी हम सब पर भारी थी.”
इतना ही नहीं, जब नसीरुद्दीन शाह (Naseeruddin Shah) से उनके ‘ऑल टाइम टॉप एक्टर्स’ पूछे गए, तो तीन नाम सामने आए— बलराज साहनी, याकूब और मोतीलाल.
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‘देवदास’ का अमर चुन्नीबाबू
बिमल रॉय की ‘देवदास’ (Devdas) (1955) में मोतीलाल ने ‘चुन्नी बाबू’ बनकर ऐसा असर छोड़ा कि आज भी वह किरदार क्लासिक माना जाता है. इस रोल के लिए उन्हें फिल्मफेयर बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर अवॉर्ड मिला. बाद में संजय लीला भंसाली (Sanjay Leela Bhansali) की देवदास में जैकी श्रॉफ (Jackie Shroff) ने अपना निभाया गया किरदार मोतीलाल के इसी चुन्नीबाबू से प्रेरित कर बनाया था.
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निर्देशक बनने की ख्वाहिश और टूटता सपना
मोतीलाल हमेशा अपनी फिल्म बनाना चाहते थे. 1945 में उन्होंने पहली नज़र बनाई, लेकिन यह फिल्म प्रभाव छोड़ने में नाकाम रही. 1965 में उन्होंने नादिरा को लेकर फिल्म छोटी-छोटी बातें बनाई, जिसमें अपना दिल, पैसा, समय—सब कुछ लगा दिया. फिल्म नहीं चली… और यह असफलता उनके दिल पर बहुत गहरा असर छोड़ गई.
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रॉयल लाइफ जीने वाला अभिनेता, जो अंत में अकेला रह गया
ज़िंदगी उन्होंने राजाओं की तरह जी. घुड़दौड़, कार्ड गेम्स, स्टाइलिश लाइफस्टाइल—मोतीलाल जिंदगी को पूरी शिद्दत से जीने वालों में से थे. लेकिन जब उनका निधन हुआ, उनके पास एक नया पैसा भी नहीं था. उनकी सबसे बड़ी विरासत थी—उनकी फिल्में, उनकी मुस्कान और उनका जीवंत अंदाज़. उनका मशहूर गाना आज भी लोगों के दिल में गूँजता है—“ज़िन्दगी ख़्वाब है, ख़्वाब में झूठ क्या, भला सच है क्या… ज़िन्दगी ख़्वाब है.”
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महात्मा गांधी ने की अभिनय की तारीफ
साल 1940 में आई फिल्म 'अछूत' (Achhut) में मोतीलाल ने एक अछूत व्यक्ति का किरदार अदा किया. इस फिल्म में उन्होंने इतना शानदार अभिनय किया कि महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) और वल्लभभाई पटेल (Vallabhbhai Patel) ने उनकी तारीफ की. मोतीलाल हर किरदार नेचुरल अंदाज में अदा करते थे, उनकी यही खूबी उन्हें अलग बनाती थी. मोतीलाल राजवंश संपन्न परिवार से ताल्लुक रखते थे. वे रईस खानदान से थे. उनका लाइफस्टाइल भी रईसों वाला था.
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मोतीलाल जी आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका योगदान, उनका जादू, उनका अभिनय—हमेशा सिनेमा प्रेमियों के दिलों में जिंदा रहेगा. ‘मायापुरी परिवार’ मोतीलाल जी को जन्मदिन पर शत–शत नमन और विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता है.
FAQ
Q1. मोतीलाल राजवंश कौन थे?
मोतीलाल राजवंश भारतीय सिनेमा के शुरुआती दौर के एक महान अभिनेता थे, जो अपनी नैचुरल एक्टिंग और अनोखे स्क्रीन प्रेज़ेंस के लिए जाने जाते हैं।
Q2. उनका जन्म कब और कहाँ हुआ था?
मोतीलाल राजवंश का जन्म 4 दिसंबर, 1910 को शिमला की शांत वादियों में हुआ था।
Q3. क्या वह शुरुआत में नेवी ज्वाइन करना चाहते थे?
हाँ, बचपन से ही वह नेवी की वर्दी पहनने का सपना देखते थे और इसी उद्देश्य से मुंबई आए थे, लेकिन भर्ती परीक्षा के दौरान तबीयत बिगड़ने के कारण वे इसमें सफल नहीं हो सके।
Q4. अभिनय के क्षेत्र में उनका सफर कैसे शुरू हुआ?
नेवी की परीक्षा में असफल होने के बाद किस्मत उन्हें फिल्मों की ओर ले आई। इसी मोड़ ने उनके जीवन को बदल दिया और वे आगे चलकर बॉलीवुड के स्वर्णिम दौर के एक प्रतिष्ठित अभिनेता बने।
Q5. मोतीलाल को भारतीय सिनेमा में क्यों याद किया जाता है?
उन्हें भारतीय सिनेमा में नैचुरल एक्टिंग के अग्रदूतों में गिना जाता है। उनकी सहज अदाकारी, संवाद शैली और गहराई ने कई पीढ़ियों को प्रभावित किया।
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