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World Photography Day 2025: हर साल 19 अगस्त को पूरी दुनिया विश्व फोटोग्राफी दिवस (World Photography Day) मनाती है. यह दिन उन फोटोग्राफरों को समर्पित है जिन्होंने अनमोल पलों को अपने कैमरे में कैद कर हमेशा के लिए अमर कर दिया. एक तस्वीर सिर्फ़ कागज़ पर छपी छवि नहीं होती, बल्कि वह एक कहानी, एक एहसास और एक याद होती है, जो वक्त को थाम लेती है.
फोटोग्राफी की शुरुआत और विरासत (Photography beginnings and legacy)
इस खास दिन की शुरुआत 1839 में फ्रांस से हुई थी, जब जोसेफ नाइसफोर (Joseph Nicéphore) और लुइस डॉगेर (Louis Daguerre) ने ‘डॉगोरोटाइप प्रक्रिया’ का आविष्कार किया. यही वह पल था जब दुनिया को पहली बार असली फोटोग्राफी का जादू देखने को मिला.
फिल्मों और फोटोग्राफी का गहरा रिश्ता (Deep relationship between films and photography)
फोटोग्राफी ही फिल्मों की बुनियाद है. असल में सिनेमा को ‘चलती तस्वीरों’ (Moving Pictures) की कला कहा जाता है. हर फिल्म लाखों तस्वीरों का मेल है, जिन्हें जोड़कर एक जीवंत कहानी बनाई जाती है. यही वजह है कि सिनेमैटोग्राफी (Cinematography) को फिल्म की आत्मा कहा जाता है.
जब फिल्मों में तस्वीरों ने कहानी गढ़ी (When pictures created stories in movies)
भारतीय और विश्व सिनेमा में कई स्थानों पर फोटोग्राफी को एक कला और अभिव्यक्ति के रूप में प्रस्तुत किया गया है. आइये इन फिल्मों के बारे में जानते हैं-
जाने भी दो यारो (Jaane Bhi Do Yaaro, 1983): इस क्लासिक कॉमेडी फिल्म में दो दोस्त अपनी फोटोग्राफी स्टूडियो खोलते हैं और भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने का साहसिक फ़ोटो जर्नलिज्म दिखाते हैं.
इजाज़त (Ijaazat, 1987): गुलज़ार की इस फिल्म में नसीरुद्दीन शाह एक एडवरटाइजिंग फोटोग्राफर के रोल में हैं, जिसे कई दृश्यों में वास्तविक फोटो प्रिंटिंग करते भी दिखाया गया है.
दीवाना मुझसा नहीं (Deewana Mujhsa Nahin, 1990): आमिर खान का किरदार एक फोटोग्राफर है.
मिस्टर एंड मिसेज़ अय्यर (Mr. and Mrs. Iyer, 2002): राहुल बोस एक वाइल्डलाइफ़ फोटोग्राफर की भूमिका निभा रहे हैं.
बेज़ुबान (Bezubaan, 2003): फोटोग्राफी के जरिए कहानी में ड्रामा लाया गया है.
दोस्ताना (Dostana, 2008): जॉन अब्राहम का पात्र फोटोग्राफर है.
निशब्द (Nishabd, 2007): अमिताभ बच्चन अपने घर की खूबसूरती और रिश्तों को कैप्चर करने वाले फोटोग्राफर की भूमिका में हैं.
थ्री इडियट्स (3 Idiots, 2009): फरहान कुरैशी का फोटोग्राफी के प्रति जुनून दिखाया गया है, और अंततः वह पेशेवर वन्यजीव फोटोग्राफर बन जाता है.
वेक अप सिड (Wake Up Sid, 2009): इस फिल्म में रणबीर कपूर का किरदार फोटोग्राफी के जरिए अपनी राह खोजता है और जीवन का मकसद समझ पाता है.
कॉकटेल (Cocktail, 2012): दीपिका पादुकोण का किरदार पेशेवर फोटोग्राफर है, जिसने शूटिंग को अपने लाइफस्टाइल का अहम हिस्सा बनाया है.
फोटोग्राफ (Photograph, 2019): मुंबई के एक स्ट्रगलिंग स्ट्रीट फोटोग्राफर रफी और उसकी जिंदगी की अनोखी कहानी.
एंग्री इंडियन गॉडेसेज़ (Angry Indian Goddesses, 2015): इसमें सारा जेन डियास का किरदार फोटोग्राफर है, जो अपनी कला और रचनात्मकता के जरिए जीवन जीती है.
होप और हम (Hope Aur Hum, 2018): फिल्म में नसीरुद्दीन शाह एक स्टूडियो चलाते हैं, और पारंपरिक फोटोग्राफर का जीवन दिखाया गया है.
इन फिल्मों में है बेहतरीन सिनेमैटोग्राफी (These movies have excellent cinematography)
इसके अलावा कई फिल्मों में फोटोग्राफी भले मुख्य विषय न हो, लेकिन दृश्यांकन और सिनेमैटोग्राफी इतनी बेहतरीन है कि वे फोटोग्राफी प्रेमियों के लिए प्रेरणादायक हैं, जैसे: तारे ज़मीन पर (Taare Zameen Par, 2007): कैमरे और तस्वीरों का प्रतीकात्मक उपयोग हुआ है, जो यह दिखाता है कि कला और संवेदना जीवन बदल सकती है, देव.डी (Dev.D, 2009): अनोखी सिनेमैटोग्राफी और विज़ुअल ट्रीट, रावण (Raavan, 2010): नेचर और लोकेशन्स को अद्भुत कैमरा वर्क से फिल्माया गया है, ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा (Zindagi Na Milegi Dobara, 2011): शानदार लोकेशन्स और बेहतरीन सिनेमैटोग्राफी, बर्फी! (Barfi!, 2012): फिल्म की रचनात्मक सिनेमैटोग्राफी, रंग और दृश्य फोटोग्राफी प्रेमियों के लिए प्रेरणादायक हैं, हाईवे (Highway, 2014): अपनी सिनेमैटोग्राफी और लोकेशन विज़ुअल्स के लिए मशहूर, हैदर (Haider, 2014): कश्मीर की खूबसूरती और भावनाओं को सिनेमैटोग्राफी से जीवंत किया गया.
मशहूर फोटोग्राफर्स जिन्होंने लेंस से गढ़ा जादू (Famous photographers who created magic with their lenses)
फोटोग्राफी की दुनिया में भारत ने कई शानदार नाम दिए हैं, जिन्होंने अपने कैमरे से न केवल तस्वीरें बल्कि भावनाएं कैद कीं. इनमें शामिल हैं —श्री बी. जे. पंचोल, श्याम औरंगाबादका, राकेश सब्रेचटे, तेजस बादशाह, आर. टी. चावला, राकेश देवे, सुरेश जेठरे, प्रदीप बांदेकर, डब्बू रतनानी, बी. के. तांबे, उमेश, राजू उपाध्याय, रमाकांत मुंडे, नरेंद्र हांडे, संजय अग्रवाल और श्री बाबा.
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फोटोग्राफी केवल कैमरे से ली गई एक छवि नहीं है, बल्कि यह समय को थाम लेने वाली कला है. एक तस्वीर इंसान की भावनाओं, संघर्षों और खुशियों को ऐसे बयान करती है, जैसे शब्द भी कभी-कभी नहीं कर पाते. फिल्मों से लेकर व्यक्तिगत जिंदगी तक, तस्वीरों ने हमें हंसाया, रुलाया और सोचने पर मजबूर किया. विश्व फोटोग्राफी दिवस हमें यह याद दिलाता है कि कैमरा सिर्फ मशीन नहीं, बल्कि यादों का संरक्षक और कहानियों का रचयिता भी है. आज जब हर हाथ में मोबाइल कैमरा है, तब भी असली फोटोग्राफी वही है जिसमें लेंस से ज़्यादा दिल और नज़र काम करते हैं.
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