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Bollywood villain: प्राण सिकंद 'खलनायक से दिलों के राजा तक का सफर'

प्राण सिकंद ने बॉलीवुड में खलनायक की भूमिकाओं से शुरूआत करते हुए अपनी मेहनत और अभिनय के दम पर दर्शकों के दिलों में खास जगह बनाई। उनका सफर खलनायक से दिलों के राजा बनने तक प्रेरणादायक है।

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फिल्मों की दुनिया में प्राण साहब का नाम आते ही एक अलग ही तस्वीर बनती है। वो जो खलनायक के रोल इतने दमदार ढंग से निभाते थे कि लोग उन्हें पर्दे पर देखकर डर जाते थे। लेकिन इस कड़क छवि के पीछे छिपा था एक ऐसा इंसान जो सही मायनों में बहुत सादे और मजाकिया तथा हंसमुख थे । मैं जब पहली बार उनसे मिली तो इंटरव्यू लेने नहीं गई थी। मेरे गुरु पन्नालाल व्यास जी उनका इंटरव्यू ले रहे थे। मैंने नोट किया कि उनके शर्ट का रंग और मेरे मिडी का रंग सेम है, तो मैंने यूँ ही बोल दिया "आपके कपड़े का रंग और मेरे कपड़े का रंग एक जैसे है।" इसपर वे बोले, "क्वालिटी में फर्क़ है।" यह सुनकर मैं बहुत नाराज हुई थी और गुस्से में बोल गई थी, "मेरे और आपके उम्र में भी बहुत फर्क़ है।" यह सुनकर वे जोर से हंस पड़े थे और बोले थे, "क्या बात है ! व्यास जी, यह बिच्छू कहां से आ गई। " इसपर मैं भी हंस पडी थी। धीरे धीरे मुझे उनका मजाकिया स्वभाव समझ में आया। उनके जज्बातों को समझा और पाया कि ये कलाकार उतना ही साधारण था जितना कोई आम आदमी। 

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प्राण सिकंद का विलेन से स्टार बनने तक का अनोखा सफर

प्राण साहब ने एक बार मुझसे कहा था, “असल में मैं एक्टर बनना कभी नहीं चाहता था। मेरा सपना था कैमरे के पीछे रहना। रामलीला में एक्टिंग करता था लेकिन फ़िल्मों में कैमरे के पीछे रहना चहता था। पर किस्मत ने मुझे खलनायक बनाकर चमका दिया।” लाहौर की गलियों से दिल्ली में आकर और फिर दिल्ली से निकलकर मुंबई की रंगीन दुनिया में नाम कमाना कोई आसान काम नहीं था। उन्होंने बताया कि वो बनने कुछ और आए थे, बन कुछ और गए। शुरुआती दौर में छोटे-छोटे रोल में आए, फिर धीरे-धीरे विलेन बनने का मौका मिला और उन्होंने उसे पूरी शिद्दत से निभाया। वे बोले थे, "किस्मत ने लिखा एक अलग रास्ता।" (Pran Sikand life and career)

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जब मैंने उनसे पूछा था कि वे अच्छे दिखने के बावजूद हमेशा विलेन ही क्यों बने, हीरो क्यों नहीं? तो उनका जवाब दिल को छू जाने वाला था — “हीरो तो सब बनना चाहते हैं, लेकिन खलनायक बनने में अलग मज़ा है। ऐसा रोल जो सबको याद रहता है। जिन्हें लोग परदे पर नापसंद करते हैं, मगर यही विलेन पब्लिक की नजर में हीरो से भी ज्यादा असर डालते हैं।” प्राण साहब की ये सोच उन्हें बाकी कलाकारों से अलग करती थी। 

‘जंजीर’ फिल्म में जब उन्होंने शेर खान का किरदार निभाया था तो लोगों के दिलों में चुटकियों में जगह बना ली थी । उन्होंने बताया, “शेर खान के रोल में मैंने अपने दिल का हिस्सा इसमे उढेल दिया। जो लोगों ने देखा, उन्हें लगा असली में ये शख्स उस लड़के को बचाने वाला है, जो सही है। ये मेरा खलनायक से दोस्ती का सफर था। ” (Pran Sikand villain and real-life persona)

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कई बार प्राण साहब ने बताया था कि फिल्मी दुनिया की चमक-धमक के पीछे बहुत संघर्ष होता है। “जब मैं खलनायक बन रहा था, तो जब कभी पब्लिक से मेरा कभी सामना हो जाता था तो लोग अचानक मुझे  देखकर गुस्सा करते थे। एक बार मैं अपने परिवार के साथ समुद्र तट पर घूमने गया था। वहां कुछ लड़कियां मुझे देख कर चीखती चिल्लाती भागने लगी। जब मैंने उन्हें रोका तो वे कहने लगे, ‘तुम तो बुरे हो। निकल जाओ यहां से ’ किसी ने ये नहीं देखा कि मैं असल ज़िंदगी में कितना सच्चा हूँ। घर में बच्चों जैसा मासूम, जहां सिर्फ प्यार मिलता है। खैर, मैं यह सोचकर खामोश हो गया कि उनकी नफरत मेरे हुनर की कामयाबी है। ये मेरे संघर्ष की सफलता का समंदर था। ” (Bollywood villain Pran Sikand)

70 के दशक में उन्होंने अपना इंस्टेंट खलनायक का चोला बदलने की कोशिश की। ‘जंजीर’, ‘डॉन’, ‘अमर अकबर एंथनी’ जैसी फिल्मों में उन्होंने दोस्ताना और सहायक किरदार निभाए, जिससे लोगों की नज़रों में उनका रंग और भी बढ़ा।  उन्होंने कहा था, "मैं यह दिन देखना चाहता था जब लोग मुझे प्यार करे।"

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प्राण साहब की सबसे बड़ी ताकत थी उनका प्रोफ़ेशनलिज़्म और अनुशासन। उन्होंने मुझसे कहा था, “अगर शूटिंग 9 बजे शुरू होती है तो मैं 8:30 पर सेट पर होना पसंद करता हूँ। ये दर्शकों का सम्मान है, मेरे काम का सम्मान है ।” उनकी ये बात आज के कलाकारों के लिए एक सीख हो सकती है कि कैसे काम से ज्यादा उनकी सादगी उभर कर सामने आती है।

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उनकी दोस्ती फिल्मी सितारों से महज़ काम तक सीमित नहीं थी। राज कपूर, अमिताभ बच्चन जैसे बड़े कलाकार उनसे दिल से जुड़े थे। खासकर अमिताभ बच्चन ने प्राण साहब को अपना सलाहकार माना और कई बार ये भी कहा कि उनके करियर में प्राण साहब का बहुत बड़ा योगदान था। 

प्राण सिकंद: पर्दे के खलनायक से असल जिंदगी के प्यारे इंसान तक

परदे पर जितने कड़क, उतने ही मस्त-मज़ाकिया और खुले दिल वाले प्राण साहब थे। मैं जब भी उनसे मिलती , तो हमेशा वो चाय की प्याली के साथ दिलचस्प किस्से सुनाते, जैसे कोई पुरानी पहचान हो। कभी-कभार कहते, “लोग सोचना भूल जाते हैं कि खलनायक भी दिल के अच्छे होते हैं। घर पर मैं अपनी बीवी से भी डरता हूँ।” उनकी यह स्वाभाविक हंसी उनके दिल की सच्चाई दर्शाती थी।  पर्दे के पीछे का यह इंसान वो नहीं है जो लोग सोचते हैं। " (Pran Sikand behind the scenes life)

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जिंदगी के आखिरी पड़ाव में भी उनकी जिजीविषा बनी रही।

जब उनकी उम्र बढ़ी, तब भी वे इंडस्ट्री से जुड़े रहे। बोले, “इंसान की उम्र बढ़ती है लेकिन कलाकार की जान तो हमेशा रहती है, चाहे उम्र कुछ भी हो।” उन्होंने बताया कि टीवी और फिल्मों में कैसे बदलते दौर को उन्होंने देखा और अपनी जगह बनाई। 

सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से नवाज़ा, लेकिन असली इनाम तो उनका वो प्यार था, जो दर्शकों ने उन्हें दिया। उन्होंने मुझसे कहा, “सबसे बड़ा इनाम ये है कि जो पहले कभी मुझसे डरते थे, आज वही मेरे चाहने वाले हैं।” 

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प्राण साहब का फिल्मी करियर एक फिल्म की कहानी जैसी रही, जिसमें दर्द, प्यार, दोस्ती और संघर्ष के कई रंग थे। उनके बिना फिल्मी दुनिया अधूरी है। वे सिर्फ विलेन नहीं, बल्कि दिलों के राजा भी थे। 

उन्होंने मुझे बताया था कि बचपन से ही वे बहुत शर्मीले और मृदुभाषी थे, लेकिन मेहनत और जुनून ने उन्हें ऐसा कड़ा रूप दिया जो चाहकर भी कोई भूल न सके। “मैं शर्मीला था, पर जो काम मैंने चुना, उसमें पूरा दम लगाने की ठानी,” वे हंसते हुए कहते थे। (Pran Sikand perseverance and inspiration)

उनका शौक था जानवरों से दोस्ती करना। खासकर घोड़ों के प्रति उनका लगाव बहुत गहरा था। “गलती से भी कोई मेरी घोड़े को नुकसान पहुँचाए, तो मैं उसे माफ नहीं करता,” उन्होंने एक बार कहा था। सेट पर वे अक्सर अपने अद्भुत किस्से सुनाया करते, कि कैसे घोड़े और कुत्ते उनकी सबसे अच्छी संगत बन गए थे। 

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प्राण सहाब ने अपनी जड़ों को कभी नहीं छोड़ा। उनकी ज़िंदगी में जहाँ ग्लैमर था, वहीं संस्कृति का भी पूरा ध्यान था। एक बार उन्होंने बताया, “मैंने अपने बुज़ुर्गों से सीखा कि समाज में मर्यादा बनाए रखना सबसे ज़रूरी है। यही वजह है कि मैंने हमेशा अपने काम के साथ- साथ अपने व्यवहार को भी सजग रखा।” 

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इसलिए तो वे शूटिंग के सेट पर भी एक अनुशासित और विनम्र कलाकार माने जाते थे। कोई भी प्राण साहब के साथ काम करके खुश रहता था। महान कलाकार होने के बावजूद सेट पर वे दबदबा नहीं बल्कि दोस्ती के साथ काम करते थे। उन्होंने कहा था "पूर्वजों का आशीर्वाद और संस्कृति  की माला मेरे सर और गले में रहे, और मुझे कुछ नहीं चाहिए।"

70-80 के दशक में कई कलाकारों के बीच राजनीतिक लड़ाइयाँ होती थीं, लेकिन प्राण साहब ने हमेशा दोस्ती को व्यापार से ऊपर रखा।

प्राण साहब की फिल्मों की बात करें तो 'जिस देश में गंगा बहती है में राका, ‘जंजीर’ में शेर खान, उपकार में मलंग चाचा, ‘डॉन’ में जे जे ', ‘अमर अकबर एंथनी’ में किशन लाल , विक्टोरिया नंबर 420 में राणा, फिल्म परिचय में राय सहाब, राम और श्याम में गजेंद्र, 1942 ए लव स्टोरी में आबिद अली बेग, धर्मा में सेवक सिंह धर्मा सिंह के दिल को छूने वाले किरदार आज भी बॉलीवुड की यादगार धरोहर हैं। 

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उनके डायलॉग्स आज भी फिल्म प्रेमियों के ज़ुबान पर हैं, जैसे “बाकी सब तो माफ़ है, मगर ये कोई नहीं माफ़ करेगा!” और “सीधा आदमी कहां चलता है इस दुनिया में?" ये डायलॉग्स सिर्फ उनकी आवाज़ का जादू नहीं, उनकी उनकी गहराई का भी परिचय देते हैं। 
उन्होंने बताया था कि घर की ज़िंदगी ही उनकी असली दुनिया थी। “फिल्में तो मतलब काम है, पर सुकून तो परिवार के बीच मिलता है। बीवी की बातों में, बच्चों की हँसी में।” 

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उन्होंने कहा था "जीवन को सरल रखना चाहिए। शराब और तंबाकू से दूर रहना, वक्त पर खाना-पीना, और हमेशा स्वस्थ रहना उनके जीवन के नियम थे। 

प्राण साहब ने एक बार कहा था, “मरने से पहले ज़रूर चाहता हूँ कि अपने काम को फिर से देखूं, प्यार महसूस करूं और आराम से कह सकूं कि मैंने अपना फर्ज़ निभाया।” (Pran Sikand personality and charm)

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प्राण सिकंद की यादें और कहानियां बॉलीवुड के इतिहास का स्थायी हिस्सा हैं जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी।

FAQ

Q1. प्राण सिकंद कौन थे?

प्राण सिकंद बॉलीवुड के एक प्रसिद्ध अभिनेता थे, जो अपनी खलनायक भूमिकाओं के लिए जाने जाते थे और बाद में दर्शकों के बीच बहुत प्रिय हो गए।

Q2. क्या प्राण सिकंद केवल खलनायक ही निभाते थे?

हालांकि उन्हें फिल्मों में खलनायक के रूप में देखा जाता था, असल जिंदगी में वे हंसमुख, मजाकिया और दिल के बहुत अच्छे इंसान थे।

Q3. प्राण सिकंद को कौन-कौन से पुरस्कार मिले?

उन्हें भारतीय सिनेमा में योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।

Q4. प्राण सिकंद खलनायक बनने के बारे में क्या सोचते थे?

उनका मानना था कि खलनायक दर्शकों पर गहरा असर डालते हैं और अक्सर हीरो से भी ज्यादा याद रखे जाते हैं।

Q5. क्या प्राण सिकंद अपने करियर के अंतिम वर्षों में भी सक्रिय थे?

हाँ, वे फिल्मों और टीवी से जुड़े रहे और अभिनय के प्रति अपनी जिजीविषा बनाए रखी।

Q6. प्राण सिकंद दर्शकों के बीच इतने प्रिय क्यों थे?

उनकी वास्तविक पर्सनालिटी, मेहनत, यादगार अभिनय और पर्दे पर और पर्दे के पीछे लोगों से जुड़ने की क्षमता ने उन्हें सभी के दिलों में खास बना दिया।'

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