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‘‘मेरे पिता महेंद्र कपूर ने अपना पूरा जीवन संत की तरह जिया...’’ -रूहन कपूर ‘मेरे देश की धरती...’, ‘चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों’, ‘नीले गगन के तले’ सहित हजारों रोमांटिक, देशभक्ति व भजन सहित हर वैरायटी के गीत गाकर बॉलीवुड में पांच दशक तक एकछत्र राज करने वाले मशहूर गायक महेंद्र कपूर की 27 सितंबर 2025 को सत्रहवीं पुण्यतिथि है। महेंद्र कपूर का नौ जनवरी 1934 को अमृतसर में जन्म हुआ था और 74 साल की उम्र में 27 सितंबर 2008 को मुंबई में निधन हो गया था। महेंद्र कपूर ने बी.आर. चोपड़ा और मनोज कुमार की कई फिल्मों में यादगार गाने गाए और मोहम्मद रफी को अपना गुरु मानते थे। महेंद्र कपूर को उनकी सत्रहवीं पुण्यतिथि पर उनके बेटे, गायक व अभिनेता रूहन कपूर ने उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि देते हुए ‘मायापुरी’ से लंबी बातचीत की... (Mahendra Kapoor international music concert memories)
सत्रह वर्षों में आप किस तरह अपने पिता जी को याद करते रहे हैं?
हमें छोड़कर उन्हें गए सत्रह वर्ष बीत गए... पर हमें लगता है जैसे सत्रह दिन पहले या कल की ही बात हो... वह हमारे आस-पास ही हैं। वह अभी भी हमारे बहुत करीब हैं। जब हम सोचने बैठते हैं, तो लगता है कि सत्रह साल जैसे कि सत्रह युग बीत गए। वह इतनी दूर हमसे चले गए हैं। लेकिन हमें लगता है कि इस तरह के कलाकार, जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी कला व संगीत को समर्पित कर दिया हो, जिनकी आवाज हमारे चारों तरफ गूँजती हो, तो वह कभी भी हमसे दूर नहीं जाते... वह भले ही सशरीर हमारे पास न हों, पर उनकी कृतियाँ, उनका संगीत हमेशा हमारे साथ रहता है। जो हमें उनका हमारे पास होने का अहसास लगातार कराता रहता है। सच कहता हूँ मुझे कभी नहीं लगा कि वह हमसे दूर हैं। हमें लगता है कि वह गए ही नहीं। उनकी आवाज में इतनी जान है कि हम जब भी उनका कोई गाना सुनते हैं, तो ऐसा लगता है कि वह हमारे साथ हैं। मेरे पिता जी हमें, देश व विश्व को संगीत रूपी ऐसी धरोहर देकर गए हैं, जो कभी खत्म नहीं हो सकती। सबसे बड़ी बात यह है कि सुबह से रात सोने तक हम किसी भी वक्त किसी भी मूड में क्यों न हों, उसके अनुसार हम उनके गाने सुन सकते हैं। तो हम पिछले सत्रह वर्षों से उनकी आवाज सुनते हुए जीते आ रहे हैं। (Royal Albert Hall London music show)
उनका कौन-सा गाना आपको सर्वाधिक प्रिय है और क्यों?
उन्होंने ढेर सारे गाने गाए और अलग-अलग तरह के गाने गाए। हर मूड के गाने गाए। उनके गाने सुनकर इंसान डिप्रेशन से बाहर आ जाता है। उनके रोमांटिक गाने भी कमाल के थे। उन्होंने बॉलीवुड में अपने करियर की शुरुआत रोमांटिक गानों से ही की थी। फिल्म ‘नवरंग’ के लिए गीत ‘‘आधा है चंद्रमा, रात आधी...’, फिल्म ‘धूल का फूल’ का गीत ‘तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ...’ सहित अनगिनत रोमांटिक गाने उन्होंने गाए। जिन्हें लोग आज भी गुनगुनाते रहते हैं। फिर जब वह मनोज कुमार जी से मिले तो उनके लिए फिल्म ‘शहीद’ का गीत ‘ओ मेरा रंग दे बसंती चोला...’ अपनी आवाज में ऐसा गाया कि इस गाने के मुरीद हर पीढ़ी के लोग हैं। आज की पीढ़ी भी इस गाने को गुनगुनाती रहती है। ‘शहीद’ के इस गाने को सुनने के बाद तो मनोज कुमार की हर फिल्म में मेरे पिता महेंद्र कपूर जी की आवाज होना एक अनिवार्य शर्त सी बन गयी थी। फिर ‘उपकार’ में गाया - ‘‘मेरे देश की धरती...’... यह गाना बहुत लोकप्रिय हुआ...। एक बार स्व. मनोज कुमार जी ने मुझसे कहा था कि बीबीसी ने इस गाने को इंडिया का सर्वाधिक लोकप्रिय गाना बताया था। यह गाना हर उम्र के लोगों को पसंद है। इसी तरह उन्होंने कई देशभक्ति के नायाब गीत गाए। इसके बाद उन्होंने ईश्वर भक्ति के भी गीत गाए। वह बहुत ही ज्यादा धार्मिक और सूफी किस्म के इंसान थे। वह सिर्फ भजन आदि गाते नहीं थे, बल्कि जीते भी थे। वह सूफी संत तो नहीं थे, पर वह अपनी जिंदगी उसी तरह से जीते थे। उनका लोगों के साथ व्यवहार बहुत सहज होता था। वह मिलनसार थे। छोटे बच्चे से लेकर देश के प्रधानमंत्री तक हर किसी के साथ उनका व्यवहार, उनकी बातचीत का अंदाज एक जैसा ही रहता था। उन्होंने हर दिन लोगों का दिल जीता। आप आज शिरडी चले जाएँ, तो आपको उनकी आवाज में 24 घंटे ‘ओम साई राम...’ गूँजता हुआ मिल जाएगा। गंगा आरती भी उनकी आवाज में सुनाई देती है। मेरे कहने का अर्थ यह है कि उन्होंने इतनी वैरायटी के इतने सारे गीत गाए हैं, कि मेरे लिए यह कहना मुश्किल है कि कौन-सा गीत ज्यादा पसंदीदा गीत है। सिर्फ भजन ही नहीं उन्होंने तो मुसलमानों के लिए नाते बहुत गायी हैं। शबद गाए हैं। गुरु गोबिंद सिंह यानी हमारे गुरु की जो मौलिक शबद ‘‘देह सिवा बरु मोहि इहै...’ वह भी गायी है। यह मेरे पिता जी की आवाज में है और इसे स्कूलों में बच्चों को एंथम के रूप में सुनाया जाता है। हमारे सिख गुरु गोबिंद सिंह जी का यह नारा था। हमें तो यह लगता है कि जैसी उनकी वृत्ति थी, वैसा ही काम करने का अवसर उन्हें मिला। उनका हर स्टाइल का हर गाना बहुत ही ज्यादा खूबसूरत है। उनके गीत कभी भुलाए नहीं जा सकते। (Mahendra Kapoor and Dilip Kumar stage performance)
‘शहीद’ का गाना - ‘‘ओ... मेरा रंग दे बसंती चोला’ गाने के बाद वह मनोज कुमार की फिल्मों के प्रिय गायक बन गए थे?
आपने एकदम सही कहा... मेरे पिता जी ने मुझसे इस गीत के संदर्भ में बताया था। मनोज कुमार का सबसे बड़ा गुण यह था कि वह खुद गीत की रिकॉर्डिंग से पहले कलाकार को तैयार कर देते थे। उसके अंदर देशभक्ति का जज्बा भर देते थे, जिससे गायक अपना सर्वश्रेष्ठ दे सके। यह गाना जब रिकॉर्ड हुआ, तो इतना खूबसूरत बना कि मनोज कुमार तुरंत मेरे पिताजी के पास आए थे और कहा कि वह अपना प्रोडक्शन हाउस शुरू कर रहे हैं, जिसके लिए मेरे पिता जी ही गाएँगे। और आपके द्वारा मेरी फिल्मों में गाया जाने वाला हर गीत इतिहास रचेगा। उस वक्त मेरे पिताजी को लगा कि मनोज कुमार जी ठहरे फिल्मी इंसान... इसलिए जोश में आकर कह दिया... कल को सब भूल जाएँगे। रात गयी बात गयी...। लेकिन छह माह बाद एक दिन मनोज कुमार जी का फोन आ गया कि उन्होंने जो वादा किया था, उसे पूरा करने का वक्त आ गया है। अब वह फिल्म शुरू करने जा रहे हैं, इसलिए मेरे पिताजी उनसे मिल लें। दूसरे दिन सुबह दस बजे जुहू में रोशन जी के यहाँ रिहर्सल थी। उन दिनों हम लोग मेट्रो सिनेमा के पास प्रिंसेस स्ट्रीट पर रहा करते थे, जहाँ से जुहू काफी दूर था। मनोज कुमार जी भी जुहू में थे। तो मेरे पिता जी ने मनोज कुमार जी से कहा कि वह कल सुबह नौ बजे उनके घर पहुँच जाएँगे, एक घंटे बाद उन्हें दस बजे रोशन जी के यहाँ पहुँचना है। मनोज कुमार ने हामी भर दी। दूसरे दिन मेरे पिता जी नियत समय पर पहुँच गए। मनोज कुमार ने फिल्म ‘उपकार’ की कहानी, कलाकारों के नाम वगैरह पूरी जानकारी दी। मनोज जी ने गाने का मुखड़ा सुनाते हुए कहा था कि वह इस गाने को गुलशन बावरा जी से लिखवा रहे हैं। सब कुछ तय हो गया। अंततः जब गाना - ‘‘मेरे देश की धरती...’ रिकॉर्ड हुआ, तो गाने ने इतिहास रच दिया। उसके बाद मेरे पिता जी ने मनोज कुमार की लगभग हर फिल्म के लिए लगातार गाने गाए। पूरब पश्चिम का गाना - ‘‘है प्रीत जहाँ की रीत... भारत का रहने वाला हूँ...’ यह आदरणीय प्रधानमंत्री का बहुत प्रिय गाना है। जिन्हें देश प्रिय है, जिन्हें अपने वतन से प्यार है, वह महेंद्र कपूर की आवाज को कभी भुला नहीं सकते...। वैसे अपने देश से हर इंसान को प्यार होना चाहिए... 15 अगस्त और 26 जनवरी को देशभक्ति के ही गीत बजते हैं, पर महेंद्र कपूर जी के गीत ही हर जगह छाए रहते हैं। तकनीकी रूप से एक गाना बना लेना अलग बात है। पर एक ऐसा गाना बनाना जो कि आपकी मिट्टी, आपकी रूह से जुड़ा हुआ हो, आपके देश का सही मायनों में वह गीत आइना हो, तो ऐसा गीत बनाना ही मनोज कुमार का हुनर है। (Meeting Mohammed Rafi’s children)
महेंद्र कपूर ने जिन गीतों को गाया, वही सर्वाधिक लोकप्रिय हुए और आज भी हैं... इसकी क्या वजह आपकी समझ में आती है?
उनके अंदर ही देशभक्ति का जज्बा था। एक इंसान और कोमल मन कलाकार होने के कारण उनके मन पर 1947 में देश के विभाजन के वक्त की घटनाएँ बैठी हुई थीं। उन्हें देश विभाजन की पीड़ा थी। यूँ तो उस वक्त वह अमृतसर, पंजाब की बजाय उस वक्त के बंबई और आज के मुंबई में थे, लेकिन पंजाब से उनकी जड़ें जुड़ी हुई थीं। सिर्फ रिश्तेदार ही नहीं, उनके दोस्त वगैरह भी पंजाब व सीमावर्ती गाँवों में थे। जिनसे उन्हें हर खबर मिल रही थी। फोन से या फिर कुछ दिन बाद पत्र के माध्यम से खबरें मिलीं। यह खबरें उनके दिल को छू रही थीं, उनका दिल आहत हो रहा था। उस वक्त उनके मन में कई उद्गार उठ रहे थे... वह बहुत कुछ कहना चाहते थे, तो जब भी देशभक्ति के गीत गाने का अवसर मिलता, वह अपने दिल की आवाज को उस गीत में पिरो दिया करते थे। उनके शरीर के रोम-रोम में देशभक्ति का जज्बा पैदा हो जाता था। शायद यह उन्हें पूर्वजन्म से कुछ मिला हो। हो सकता है कि पूर्व जन्म के किसी स्वतंत्रता सेनानी से उनका गहरा लगाव रहा हो। वह हमेशा एक ही ख्वाब देखते थे कि उनका देश उन्नति की ओर ही अग्रसर रहे। उन्होंने सैनिकों के लिए भी म्यूजिक कॉन्सर्ट किए हैं। विदेशों में हजारों म्यूजिकल कार्यक्रम किए। कार्यक्रमों में जब मेरे पिता जी गाना गाते थे, उस वक्त मैंने खुद लोगों को सिसकते हुए सुना व देखा है। शायद उस वक्त उन लोगों को अपने वतन से दूर रहते हुए वतन की कीमत समझ में आ रही होती थी या अपना वतन याद आ रहा होता था।
राज कपूर, बी.आर. चोपड़ा और मनोज कुमार के साथ उनके संबंध बहुत गहराई लिए हुए थे। इस पर कभी घर में कोई चर्चा हुई थी?
देखिए, मेरे पिता जी ने बी.आर. चोपड़ा कैंप में शुरू से अंत में महाभारत तक गाना गाया। सबसे पहले ‘धूल का फूल’ के लिए मेरे पिताजी ने गाया था। मेरे पिता जी को बी.आर. फिल्म्स के साथ जोड़ने का काम यश चोपड़ा जी ने किया था। इसका बहुत ही रोचक किस्सा है। बी.आर. चोपड़ा जी के छोटे भाई यश चोपड़ा ही उस वक्त ‘धूल का फूल’ का निर्देशन कर रहे थे। एक दिन यश चोपड़ा जी महबूब स्टूडियो गए हुए थे। जहाँ कौशिक जी रिकॉर्डिस्ट थे। वहाँ पर नौशाद के निर्देशन में मेरे पिता जी की आवाज में फिल्म ‘‘सोनी माहिवाल’’ का गाना ‘चाँद छुपा है और तारे गुम हुए रात गगन में... इश्क से मिलने जुल्म की बदली...’ यह गाना इतना जबरदस्त था कि यश चोपड़ा जी रुक कर सुनने लगे। यश जी ने कौशिक से पूछा कि किसने गाया है? तो कौशिक ने कहा कि आप अंदाजा लगाइए... यश जी ने कहा कि आवाज कुछ तो मो. रफी से मिलती-जुलती है। पर यह आवाज तो किसी नवजवान की लग रही है। तब कौशिक ने हँसते हुए कहा कि इस गाने को युवा गायक महेंद्र कपूर ने गाया है। फिर यश चोपड़ा जी ने मेरे पिता जी के बारे में विस्तार से जानकारी और नंबर कौशिक से लिया। दूसरे दिन यश चोपड़ा जी ने फोन कर पिता जी को बुलाया और ‘धूल का फूल’ में एक नहीं चार गाने गवाए... चारों गाने सुपर हिट हुए। उसके बाद व्ही शांताराम की फिल्म ‘नवरंग’ में संगीतकार सी. रामचंद्र के निर्देशन में गाने रिकॉर्ड किए। जिसका गाना ‘आधा है चंद्रमा...’ तथा होली का गीत काफी मशहूर हुआ। तो डैडी की हैट्रिक हो गयी, जिससे कुछ दिग्गज गायक व कलाकार हिल गए थे। पर मेरे पिताजी बहुत ही विनम्र इंसान थे। उन्होंने कभी किसी की बात पर ध्यान नहीं दिया। बी.आर. चोपड़ा साहब ने पिता जी का साथ कभी नहीं छोड़ा। सीरियल ‘महाभारत’ में शीर्षक गीत गाया जो कि भारत ही नहीं पाकिस्तान सहित कई देशों में लोकप्रिय हुआ। ‘उपकार’ की सफलता के बाद मनोज कुमार की हर फिल्म के लिए उन्होंने गाया था। मैं तो मनोज कुमार का सहायक था। 16 साल की उम्र में मैं फिल्म ‘‘क्रांति’ में सहायक निर्देशक बना था। राज कपूर के साथ मेरे पिता जी का कुछ अलग ही रिश्ता बना जिसका एक रोचक किस्सा है। राज कपूर जी तो रूस में खुदा थे, भगवान थे। वह बहुत लोकप्रिय थे। आज भी अगर आप रूस जाएँ और टैक्सी वाले से कह दें कि आप राज कपूर के परिवार से हैं, तो टैक्सी वाला पैसा नहीं लेगा। इस कदर राज कपूर रूस में पूजनीय हैं। रूस में एक शो था, जहाँ डैड को बतौर गायक बुलाया गया था। इत्तफाकन राज कपूर साहब भी वहाँ पर थे। उन्हें पता नहीं था कि महेंद्र कपूर भी आने वाले हैं। राज कपूर पीछे ग्रीन रूम में बैठे हुए थे, इधर स्टेज पर मेरे डैड मौजूद थे और जमकर तालियाँ बज रही थीं। इससे राज कपूर साहब चैंके और कहा कि मैं तो यहाँ बैठा हूँ तो फिर इतनी तालियाँ क्यों बज रही हैं? नजारा देखने व मसले को समझने के लिए राज कपूर साहब बाहर निकले। स्टेज पर जो कुछ देखा उससे वह स्तब्ध रह गए और चुपचाप पीछे खड़े रहकर मेरे पिता जी को गाते हुए सुनते रहे। मेरे पिता की याददाश्त बहुत तेज थी। उनका एक गाना रूस भाषा में बहुत लोकप्रिय था, तो वह वही गाना रूस भाषा में गा रहे थे। लोग पागल हो गए थे। गाना खत्म होने पर खुद के स्टेज पर आने की एनाउंसमेंट होने से पहले ही वह स्टेज पर पहुँच गए। स्टेज के सामने मौजूद दर्शकों को प्रणाम करते हुए कहा - ‘‘देखो जी एक कपूर ही दूसरे कपूर को मात दे सकता है। मुझे खुशी है कि महेंद्र कपूर को इतनी तालियाँ बजी हैं, आप लोगों ने उन्हें उतना ही प्यार दिया है, जितना मुझे देते हैं। यह तो मेरा छोटा भाई है। मुझे भी इसका गाना बहुत पसंद आया। मैं चाहता हूँ कि अब मैं जो गीत गाने जा रहा हूँ, उसके लिए महेंद्र ही मेरे साथ बाजा बजाए।’’ फिर राज कपूर साहब ने मुकेश कुमार का गाया हुआ गीत ‘‘जूता मेरा है जापानी...’ सहित दो-चार गाने गाए, जबकि मेरे डैड ने हारमोनियम बजाया था। उस वक्त छोटे प्लेन हुआ करते थे। दो-तीन दूसरे कार्यक्रम में जाना था। तो राज कपूर ने ऑर्गनाइजर से कहा कि जहाँ भी जाना हो, उनकी सीट और महेंद्र कपूर की सीट अगल-बगल ही होनी चाहिए। यहीं से उनकी दोस्ती शुरू हो गयी। फिर दूसरे कार्यक्रम के लिए जाते समय रास्ते में राज कपूर ने मेरे डैड से कहा कि आपने मेरी फिल्म में कभी गाया नहीं... डैड ने तुरंत जवाब दिया कि कभी आपने मुझे बुलाया नहीं। राज कपूर ने कहा कि ठीक है, अब भारत पहुँचते ही गवाऊँगा...। देखिए, मेरी आवाज तो मुकेश है... पर फिल्म में दूसरे कलाकार भी होते हैं। अभी राजेंद्र कुमार के साथ फिल्म करने वाला हूँ, तो उसमें देखते हैं। डैडी ने आगे कहा, ‘‘पापा जी मुंबई पहुँचते ही अपना यह वादा भूल जाएँगे।’’ उन दिनों प्लेन में सिगरेट पीने की इजाजत थी। राज कपूर साहब सिगरेट पी रहे थे। जली हुई सिगरेट लेकर राज कपूर ने जली हुई सिगरेट को हथेली पर मार लिया और हाथ जला लिया। मेरे पापा ने कहा कि राज साहब आपने यह क्या किया?... इस पर राज साहब ने जोर देकर कहा - ‘‘देखो अब यह निशान मुझे मुंबई में भी याद दिलाएगा कि मैंने महेंद्र से कोई वादा किया है।’’ फिर वह गाना बना था - ‘‘हर दिल जो प्यार करेगा, वो गाना गाएगा...’ उसके बाद राज कपूर साहब का हमारे परिवार के साथ बहुत प्यार रहा। वह हमारे घर आते रहे। हमारी शादी में भी आए। जबकि राज साहब के लिए मेरे डैड ने बहुत ज्यादा काम नहीं किया। राज कपूर का व्यक्तित्व कमाल का था, वह बहुत अच्छे व प्यारे इंसान थे। दिल से राजा इंसान थे। हर किसी को पूरा सम्मान देते थे। मेरी पहली फिल्म ‘फासले’ देखने के बाद राज साहब ने मुझे भी आशीर्वाद दिया था। जब मेरी फिल्म ‘लव 86’ रिलीज हुई, तब उनकी छोटी बेटी रीमा ने आकर मुझसे कहा था कि राज साहब को मेरी फिल्म पसंद आयी।
आपके पापा जी ने तो अंग्रेजी सहित कई भाषाओं में गाना गाया?
जी हाँ! उन्होंने भारत की लगभग हर भाषा में गाना गाया। उड़िया, भोजपुरी, गुजराती, मराठी में भी गाया। मराठी में वह दादा कोंडके की आवाज थे। मराठी में दादा कोंडके से बड़ा कोई फिल्मकार या कलाकार नहीं हुआ। वह कॉमेडी किंग थे। गुजराती भाषा के कई गाने गाए। कई माह तक वह सुबह से शाम तक ताड़देव के स्टूडियो में गुजराती गाने गाते रहते थे। उन्हें सर्वश्रेष्ठ गायक के सात राज्य पुरस्कार मिले थे। पंजाबी में सबसे अधिक गाए। दक्षिण की भाषा में भी गाया। राजस्थानी व मारवाड़ी गाने भी गाए। अंग्रेजी भाषा में गाने वाले वह पहले गायक थे। उषा खन्ना के भाई अमित खन्ना के लिए अंग्रेजी एल्बम गाया था। मेरे डैड ने भारत का सर्वाधिक बिक्री वाला बोनी एम के साथ अंग्रेजी का पॉप एल्बम ‘एम थ्री’ भी रिकॉर्ड किया था। उस जमाने में यह रिकॉर्ड लाखों की संख्या में बिका था। इसके अलावा सुरीनाम की स्थानीय भाषा सोनामी में भी गाया। वहाँ पर डैडी बहुत लोकप्रिय थे। (Bollywood singer international music events)
विदेशों में म्यूजिक कॉन्सर्ट और यादगार लम्हे: रॉयल अल्बर्ट हॉल की कहानी
आप अपने पिता के साथ विदेशों में म्यूजिक कॉन्सर्ट में जाते रहे हैं। कोई यादगार घटना? विदेश के हर म्यूजिक कॉन्सर्ट के साथ कोई न कोई यादगार घटना जुड़ी हुई है। हर शो में कई रोचक घटनाएँ घटती रही हैं। वहाँ पर नए-नए किस्म के और संगीत प्रेमी मिलते हैं। मेरे डैड ने एक बार कहा था कि वह ईश्वर का धन्यवाद अदा करते हैं कि उनकी सोच जहाँ तक नहीं जाती, वहाँ तक के लोग उन्हें प्यार करते हैं। अमेरिका व इंग्लैंड अनगिनत बार म्यूजिक कॉन्सर्ट करने गए। ऑस्ट्रेलिया व दक्षिण अफ्रीका भी गए। उनका हर शो कामयाब रहा। मैंने वहाँ पर संगीत और डैड के पीछे जो पागलपन देखा वह कमाल का था। मेरे पापा ने दिलीप कुमार साहब के साथ कई शो किए। एक वक्त ऐसा आया था, जब दिलीप कुमार केवल मेरे डैड के साथ ही शो करते थे, फिर चाहे वह शो डैड का हो या दिलीप कुमार साहब का हो। एक बार लंदन में ही बहुत ही इमोशनल किस्सा हुआ। लंदन का सर्वाधिक मशहूर और पूरे विश्व का अति प्रतिष्ठित ‘रॉयल अल्बर्ट हॉल’ है। यहाँ पर हर कलाकार अपना कार्यक्रम करना गर्व की बात समझता है। 1980 में इसी हॉल में डैड का कार्यक्रम था। उस वक्त मैं महज 15-16 साल का था। तब गाता भी था। इस कार्यक्रम का आयोजन पटेल ब्रदर्स ने किया था। साढ़े सात हजार लोगों के बैठने की व्यवस्था। हॉल खचाखच भरा हुआ था। उस दिन दिलीप कुमार साहब भी साथ में थे। मेरे डैड ने कहा कि कार्यक्रम खत्म होने के बाद ही वह लोगों से मिलेंगे या ऑटोग्राफ देंगे। इंटरवल में भी कोई उनसे मिलने न आए। पुलिस की कड़क व्यवस्था थी। सभी तैयारी कर रहे थे। मेरे डैड ग्रीन रूम में बैठकर चाय पी रहे थे, तभी एक अंग्रेज पुलिस अफसर आया और उसने कहा कि मो. रफी के दो बेटे आए हुए हैं। वह डैड से मिलना चाहते हैं। मेरे डैड ने उन्हें बुलाया, उनसे संक्षिप्त बातचीत की और उनसे अंत तक बैठने के लिए कहा। दोनों दर्शक दीर्घा में चले गए। फिर मेरे पापा ने दो फूलों की माला मँगवायी। बड़ी मुश्किल से एक दक्षिण भारतीय मंदिर के पास वह फूलों के हार मिले। जब हार मिल गए तो पापा ने गीत खत्म होने पर नए गाने की शुरुआत से पहले मो. रफी के दोनों बेटों को स्टेज पर बुलाया, वह तो आने को तैयार नहीं थे। पर पापा की जिद पर दोनों स्टेज पर आए। मेरे पापा ने एनाउंस किया कि इन दोनों बच्चों के पिता मो. रफी उनके उस्ताद हैं। उसके बाद पापा ने दोनों बच्चों को फूलों का हार पहनाने के बाद उनके पैर छुए। बच्चों ने कहा, ‘‘अंकल आप यह क्या कर रहे हैं... हमें आपके पैर छूने चाहिए... आप मुझसे बहुत बड़े हैं।’’ इस पर मेरे पापा ने कहा, ‘‘बेटे मैं आपके नहीं बल्कि अपने उस्ताद के पैर छू रहा हूँ, जो कि मुंबई में बैठे हैं।’’ उसके बाद बच्चों ने पापा का हाथ चूमकर पापा से आशीर्वाद लिया। उस वक्त वहाँ का समाँ ऐसा बंध गया कि उसे शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता। ऐसा इतिहास में नहीं हुआ कि किसी के किए हुए के लिए आप ग्रेटफुल रहो। यहाँ तो लोग दूसरों के किए हुए अहसास जल्दी भूल जाते हैं। वापस जब हम भारत पहुँचे, तो एक दिन पापा बिस्तर पर बैठे फोन पर बात सुनते हुए रो रहे थे। उनकी आँखों से अनवरत आँसू बह रहे थे। बाद में पता चला कि फोन पर मो. रफी साहब थे, जो कि उन्हें आशीर्वाद दिए चले जा रहे थे... दुआएँ दीं।
आपके पिता जी ने कभी भी मो. रफी के साथ गाने नहीं गाए?
यह मो. रफी की मर्जी थी। दोनों की आवाजें मिलती हैं। मेरे डैड उनकी नकल नहीं करते थे। दोनों की पंजाबी बुलंद आवाजें थीं। फर्क सिर्फ इतना था कि मो. रफी साहब डैड से उम्र में बड़े थे, जिसकी वजह से मो. रफी की आवाज में भारीपन था। मो. रफी ने ही एक दिन मेरे डैड से कहा - ‘‘महेंद्र ऐसा है कि यहाँ पर लोग हम दोनों के बीच कुश्ती लड़वाएँगे, इसलिए अच्छा यही होगा कि हम दोनों कभी भी एक साथ गाना न गाएँ।’’ मो. रफी का कहना तो मेरे पिता जी के लिए पत्थर की लकीर थी। इत्तफाकन फिल्म ‘आदमी’ में मो. रफी और मेरे पिता जी ने डुएट गाया। गीत दिलीप कुमार और मनोज कुमार पर फिल्माया गया है। गीत के बोल हैं - ‘‘कैसी हसीन आज बहारों की राह... एक चाँद आसमाँ पर है, एक मेरे साथ है...’’ इस डुएट गीत को पहले मो. रफी के साथ तलत महमूद ने गाया था। पर आवाज कुछ मैच नहीं हुई। तो दोबारा गाना रिकॉर्ड होना था। पर तलत महमूद की तबीयत ठीक नहीं थी। कई विचार-विमर्श करने के बाद यह तय हुआ कि महेंद्र कपूर से गवाया जाए। पर मेरे पिताजी ने साफ मना कर दिया कि तलत महमूद मेरे आइडियल रहे हैं, इसलिए मैं उनके गाने को डब नहीं करूँगा। फिर तलत महमूद ने मेरे पिता जी से बात की और मेरे पिताजी को गाने के लिए मना लिया।
आपके पिता जी ने पचास वर्षों तक काम किया। उन्हें कई अवार्ड मिले, लेकिन दादा साहेब फालके अवार्ड नहीं मिला। इसका कोई मलाल नहीं था उन्हें?
नहीं... क्योंकि उन्हें पता था कि यह फिल्मकार को दिया जाता है, गायक को नहीं। दादा साहेब फालके खुद फिल्मकार थे। यही मुझे भी पता है। पर मेरा मानना है कि गायक को भी दादा साहेब फालके अवार्ड मिलना चाहिए। दादा साहेब फिल्ममेकर थे, तो उनके अंदर म्यूजिक भी था। इसलिए भी म्यूजिक का भी प्रावधान होना चाहिए। मुझे लगता है कि सरकार को चाहिए कि उन संगीतकारों व गायकों को भी देना चाहिए, जिनका संगीत जगत व फिल्म जगत में बेहतरीन योगदान हो।
आप खुद भी अभिनेता व गायक हैं। बतौर गायक महेंद्र कपूर को लेकर कुछ कहना हो, तो क्या कहेंगे?
ऐसा है कि सिंगिंग और एक्टिंग बहुत नजदीक से जुड़े हुए हैं, खासकर प्लेबैक सिंगिंग। अगर महज सिंगिंग की बात करें, तो बड़े गुलाम साहब भी आ गए। वह तो उस्तादों के उस्ताद हैं। ऐसी गायकी जो आपकी आशिक बन जाए। लेकिन प्लेबैक सिंगिंग वहाँ रुकती नहीं, उससे आगे जाती है। वह कलाकार की परफॉर्मेंस में जान डालने का काम करती है। मेरे पिता महेंद्र कपूर जी ऐसे गायक थे, जो कि अभिनेता का आधा काम खुद ही कर जाते थे। मेरे पिता जी शुरू से ही संगीत सीख रहे थे, पर जब वह कॉलेज में थे, तो वहाँ पर नाटकों में अभिनय किया करते थे। विजय आनंद ने ही मेरे पिता जी से कॉलेज में नाटक में अभिनय करवाया था। मेरे पिता उर्दू भी अच्छा बोलते थे। पहला नाटक था - ‘‘रिहर्सल’’। दिल्ली के ताल कटोरा स्टेडियम में परफॉर्म किया था और हर साल इंटर कॉलेजिएट प्रतियोगिता में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मेरे पिता जी को ही मिलता था। वह कॉमेडी बहुत अच्छी करते थे। उनका ह्यूमर जबरदस्त था। यह उनकी सिंगिंग में बहुत काम आया। आप याद कीजिए फिल्म ‘पति पत्नी और वह’ का गाना - ‘‘ठंडे ठंडे पानी से नहाना चाहिए, गाना आए या न आए गाना चाहिए...’’ इस गाने में आलाप नहीं है, बल्कि कलाकार के हिसाब से गाया गया। तो जब सिंगर और एक्टर मिल जाते हैं, तब बनता है प्लेबैक सिंगर। वह अपने काम को इबादत/पूजा समझते थे।
पिता की सीख: मेहनत, संघर्ष और संगीत से जुड़ी अहमियत
आप अपने पिता की किस सीख का पालन आज भी करते हैं? बहुत सी अच्छी बातें हैं। अच्छी बात यह है कि उन्होंने हमेशा मेरा हौसला ही बढ़ाया। जब मैं बहुत छोटा था, तभी से मुझे संगीत से बड़ा लगाव था। मैं तुलसीदास शर्मा जी से संगीत सीखता भी था। वह बड़े अच्छे उस्ताद थे। मेरे पिता जी ने मुझसे कहा था - ‘‘संगीत रूह की खुराक है। चाहे जिस प्रोफेशन में जाना, पर संगीत से नाता मत तोड़ना।’’ मैंने सहनिर्देशन किया। अभिनेता बना। पर अंततः संगीत ही मेरे काम आया। मैंने अपने पिता के साथ हजारों स्टेज शो किए। पर डैडी ने कभी भी अपना गाना मुझसे नहीं गवाया। वह मुझसे प्रयोग करने के लिए कहते थे। मुझे संगीत का शौक था, पर मैं अभिनेता बनना चाहता था। मैं शफी इनामदार के साथ थिएटर किया करता था। मेरे पिता जी कहते थे कि यह मेरे लिए इंस्टीट्यूट है। जब मुझे फिल्मों में काम करना था, तो उन्होंने कहा, ‘‘बेटा मैं तेरे साथ कहीं नहीं जाऊँगा। तुझे खुद अकेले स्ट्रगल करना होगा। अपनी रेड़ियाँ रगड़नी पड़ेंगी। अगर सामने वाले को पता चल गया कि तुम मेरे बेटे हो, तो वह तुम्हें एक चाय पिला देंगे। इससे ज्यादा उम्मीद मत करना। काम तुम्हें तुम्हारी क्षमता के बल पर ही मिलेगा। काम कभी किसी की भी सिफारिश पर नहीं मिलेगा।’’ हुआ भी यही। जब यश चोपड़ा की फिल्म ‘फासले’ मुझे बतौर हीरो मिली, तो यश चोपड़ा अंकल को पता भी नहीं था कि मैं महेंद्र कपूर का बेटा हूँ। मैंने अपने थिएटर के काम को लेकर एक शो रील बनायी थी। मैंने वह रील उनके ऑफिस में छोड़ दी थी। उनके दो लेखक थे - सागर सरहदी और सचिन आहुजा। मेरी शो रील इन सभी को बहुत पसंद आयी। मैं जब भी यश जी से मिलने उनके ऑफिस गया, तब-तब वह मुझे मिले नहीं। मैं तो उनके सहायक राजेश सेठी के पास गया था। वह नई फिल्म शुरू करना चाहता था, जिसमें रेखा के भाई के किरदार के लिए वह नया कलाकार तलाश रहे थे। पर मुझे क्या पता था कि यश चोपड़ा की फिल्म में लीड रोल मिल जाएगा। जब यश जी को मेरी शो रील पसंद आ गयी, तो उन्होंने नंबर पता कर मुझे मिलने के लिए बुलाया। तीन बार ऑडिशन लिया। उसके बाद मुझे फिल्म ‘‘फासले’’ मिली। उस वक्त मेरे माता-पिता अमेरिका गए हुए थे। मेरे डैड भी अपनी मेहनत के बल पर अपने पैरों पर खड़े हुए थे। उनके पिता यानी मेरे दादा जी तो कपड़े के व्यापारी थे। उनका फिल्म इंडस्ट्री से कोई संबंध नहीं था। इतना ही नहीं मेरे पिता जी ने कभी भी मुझे पैम्पर्ड नहीं किया। जब तक मैं मनोज कुमार का सहायक रहा, तब तक उन्होंने मुझे बस व ट्रेन की यात्रा करने के लिए ही कहा। मेरे सबसे बड़े गुरु मेरे पिता ही थे। (International music show memorable incident)
27 सितंबर को महेंद्र कपूर जी की सत्रहवीं पुण्यतिथि पर आप क्या करने वाले हैं?
एक बहुत बड़े सूफी संत हुए थे - बाबा फरीद। मैं अपने पिता की याद में उनकी सत्रहवीं पुण्यतिथि के अवसर पर सूफी संत बाबा फरीद की कविता को रिकॉर्ड किया है, उसका वीडियो भी बनाया है, उसी का हम 27 सितंबर को लोकार्पण करने वाले हैं। यह सूफी गाना है, जो कि पंजाबी भाषा में है। लेकिन सरल पंजाबी है, हिंदी की तरह, जिसे सभी समझ सकते हैं। इस गाने को मैंने इसलिए चुना क्योंकि मैं मानता हूँ कि मेरे पिता जी ने जो जीवन जिया, वह सूफी संतों के ही नक्शे-कदम पर था। मैं उन्हें सूफी संत तो नहीं कह सकता। क्योंकि ऐसा कहना गलत हो जाएगा। पर मेरे पिता जी ने एक सूफी संत की ही तरह अपना पूरा जीवन बिताया। मेरे पिता जी को बाबा फरीद की कविताएँ बहुत पसंद थीं। यह कविता मनोज कुमार जी की मुझे देन थी। मनोज कुमार जी मुझसे बहुत प्यार करते थे। वह मुझे अपने बेटे जैसा मानते थे। मनोज कुमार जी ने मुझे व्हाट्सएप पर यह कविता भेजी थी, फिर फोन करके मुझसे कहा था कि मैं इसे गाऊँ और महेंद्र जी की याद में गाऊँ। तो मैंने उनकी याद में यह गाना गाया है। इसके बोल हैं - ‘‘देख फरीदा मिट्टी खाली... मिट्टी उटी... मिट्टी हँसे मिट्टी रोएँ...’’ इस गीत में सिर्फ प्यार का संदेश है। हम बेवजह छोटी-छोटी चीजों के लिए लड़ते-झगड़ते रहते हैं। शांतिस्वरूप त्रिपाठी
FAQ
प्र1. महेंद्र कपूर ने किन अंतरराष्ट्रीय म्यूजिक कॉन्सर्ट्स में प्रदर्शन किया?
महेंद्र कपूर ने अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका सहित कई देशों में बेहद प्रशंसित म्यूजिक शो किए।
प्र2. लंदन के रॉयल अल्बर्ट हॉल कॉन्सर्ट की खासियत क्या थी?
1980 में महेंद्र कपूर ने रॉयल अल्बर्ट हॉल, लंदन में प्रदर्शन किया, जिसमें लगभग 7,500 लोग शामिल थे। इस कार्यक्रम का आयोजन पटेल ब्रदर्स ने किया और सुरक्षा बेहद कड़ी थी।
प्र3. मो. रफी के बच्चों के साथ कौन सा यादगार किस्सा हुआ?
लंदन कॉन्सर्ट के दौरान महेंद्र कपूर ने मो. रफी के दोनों बेटों को स्टेज पर बुलाया, उन्हें फूलों के हार पहनाए और उनके पिता के सम्मान में उनके पैर छुए।
प्र4. लंदन कॉन्सर्ट के बाद महेंद्र कपूर के भावनाएँ कैसी थीं?
वे बहुत भावुक हुए और बाद में मो. रफी से फोन पर आशीर्वाद पाने के बाद उनकी आंखों में आँसू थे।
प्र5. क्या महेंद्र कपूर ने विदेशों में अन्य बॉलीवुड सितारों के साथ प्रदर्शन किया?
हाँ, उन्होंने दिलीप कुमार जैसे सितारों के साथ कई अंतरराष्ट्रीय म्यूजिक शो किए और कई यादगार पल साझा किए।
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