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-अरूण कुमार शास्त्री
किंग्स अपार्टमेंट का फस्र्ट फ्लोर सुलक्षणा पंडित की तबियत थोड़ी नासाज है और वे सोफे पर लेटी हुई है. कमरे के एक कोने में हारमोनियम और दूसरे में सितार, गिटार और तबले सभी खामोश हैं-सुलक्षणा की तरह ही. लेकिन उनमें सुरों की अनंत संभावनाएं भी मौजूद हैं. खिड़की से ऊपर आसमान में रूई के पहाड़ से बादल तैरते दिखाई पड़ रहे हैं और नारियल वृक्षों की झाड़ को भी करीब से एहसास किया जा सकता है. कमरे में मेरे आने से थोड़ी देर के लिए हवा बदल जाती है क्योंकि सुलक्षणा की मुस्कुराहट भी इसमें मिली हुई है. वे कमरे में बैठी किसी अन्य महिला से कपड़ों और साड़ियों की चर्चा में लीन थीं शायद औरतों की यह खास कमजोरी हैं.
उस औरत के चले जाने के बाद मैं अपनी बात शुरू करना चाहता हूं और इस क्रम में सबसे पहले मेरे जेहन में ‘संकोच’ को लेकर बातें उभरती हैं. ‘संकोच’ बिमलराय कृत फिल्म ‘परिणीता’ पर आधारित फिल्म थी- बल्कि यह ‘परिणीता’ का नया संस्करण थी. शरतचंद्र की अमरकृति को फिल्म के पर्दे पर जिस खूबसूरत ढंग से पेश किया गया था, उसके कारण मीनी कुमारी की बेहद तारीफ हुई थी. हमें इस बात की उम्मीद थी यही उम्मीद फिल्म के दर्शकों ने भी बांध रखी थी कि ‘संकोच भी निश्चित रूप से हिट होगी और इस फिल्म के कारण सुलक्षणा को संवेदनशील नायिकाओं की अगली पंक्ति में जगह मिलेगी लेकिन फिल्म के प्रदर्शन के बाद बात ही गलत हुई यानी बाॅक्स आॅफिस की कसौटी पर फिल्म बुरी तरह असफल सिद्ध हुई. वैसे सुलक्षणा की तबियत नासाज थी और फिर इस नासाज जिक्र को छेड़ना अनुचित था. लेकिन सुलक्षणा तटस्थ होकर इसकी वजहें स्पष्ट करती है-‘‘संकोच’’ के फ्लाप होने के पीछे सबसे बड़ी बात यह हैं कि शुरू-शुरू में इसका टेंपो थोड़ा ढीला है और फिल्म की सफलता के लिए फिल्म की पटकथा का चुस्त होना जरूरी हैं.’
‘दूसरी बात यह है कि ‘संकोच’ का शरतचंद्र की फिल्म बनाने के बदले ‘बाॅबी’ और 'गुलेबकावली’ बनाने की कोशिश की गयी. इसी क्रम में आप फिल्म देखते हुए यह महसूस करेंगे इसमें हल्के हास्य दृश्य ज्यादा है और भावनात्मक कम. जहां तक फिल्म में मेरी भूमिका का सवाल उठता है तो आप की तरफ से मैंने हर संभव तरीके से मेहनत की है- ऐसी हालत में अगर फिल्म फ्लाप कर जाती है तो इसकी अकेली जिम्मेदार सिर्फ मैं ही नहीं हूं.’’
सुलक्षणा अब बात करने के मूड में आयी थीं और अब उठकर सीधे बैठ गयी थीं. अगली बात मैंने सुलक्षणा की ग्लैमर से भरपूर नाच-गाने और बलखाती कमर के करतब से युक्त फिल्मों को लेकर शुरू की क्योंकि ‘संकोच’ की असफलता के बाद तुरंत ही प्रकाश मेहरा निर्देशित ‘हेरा फेरी’ सुपर हिट हुई और इस फिल्म की नायिका के रूप में वह अवश्य ही चर्चित हुई. ‘हेरा फेरी’ के अतिरिक्त ‘उलझन’ और ‘सलाखें’ भी सुलक्षणा की सिल्वर जुबली फिल्में हैं. किसी नायिका की पांच में से तीन फिल्में सफल हों तो निश्चित रूप से वह स्थापित नायिका का दर्जा प्राप्त कर लेती है और यह दर्जा सुलक्षणा को मिला हे हिट फिल्मों की नायिका होने का दर्जा मिले. जबकि अभी तक भावना प्रधान फिल्मों का सिलसिला सुलक्षणा की तरफ से शुरू ही नहीं हुआ है-‘‘फिल्म उद्योग में अभी भी मैं नयी हूं और मेरी सिर्फ कुछ ही फिल्में प्रदर्शित हुई हैं. फिल्म दर्शकों की रूचि ज्यादातर ग्लैमर में ही है. और जिसे इस उद्योग में स्थापित होना है उसे ग्लैमर भूमिकाओं के रास्ते से ही आना होगा बिना इसके कोई चारा नहीं.’’
यह तो फिल्म व्यवसाय की अनिवार्य शर्ते हैं जिनमें ग्लैमर भूमिकाओं के साथ समझौता एक अनिवार्य शर्त है लेकिन सुलक्षणा की आत्मा क्या कहती है? सुलक्षणा स्वयं अपनी बेबसी जाहिर करती हैं-‘‘मेरी आत्मा अभी शांत नहीं हुई और मैं हमेशा बेहतर भूमिकाओं की तलाश में हूं किंतु हमारी पसंद से ज्यादा अहमीयत फिल्म-निर्माता की अपनी मर्जी की होती है. अभी मैं इस स्थिति में नहीं हूं कि अपनी पसंद की बात कर सकूं किसी निर्माता-निर्देशक से अपने लिए किसी विशेष भूमिका के लिए बाध्य करने में आगे-आगे वाले अवसर भी खोने पड़ेंगे.’’
इन बातों के अतिरिक्त एक मुद्दा यह भी है कि सुलक्षणा को किस ढंग की भूमिकाएं ज्यादा पसंद हैं, कि वह किन चरित्रों में विशेष तौर पर दिलचस्पी लेना चाहेंगी. बड़े ही सपाट ढंग से सुलक्षणा हवा में अपने बालों को लहराती हुई कहती हैं-‘‘ ‘मदर इंडिया की नर्गिस और ‘शारदा’ की मीना कुमारी के रूप को प्रस्तुत करना मेरी दिली ख्वाइश है.’’
‘यह तो एक तरह से आम बात है कि हर नायक दिलीप कुमार बनना चाहता है और हर नायिका और मीना कुमारी की ऊंचाई पाना चाहती हैं. इसलिए मैंने साफ तौर पर पूछा-‘‘मैं किसी सामाजिक चरित्र की बात पूछना चाहता हूं जिनका किसी फिल्म की अभिनेत्री से कोई ताल्लुक न हो!’’
सुलक्षणा दो-दिन पहले ही टेलीविजन पर एक कार्यक्रम में किसी औरत की दुःख भरी कहानी सुन और देख चुकी है. एक औरत को उसका पति बेहद प्यार करता है और दोनों की सुख भरी जिंदगी गुजरती है. अचानक उसका पति छोड़कर भाग जाता है. दोनों ही बच्चों के साथ वह औरत जिंदगी से लड़ती हुई जिंदा रहती है. सुलक्षणा कहती हैं-‘‘ औरत की कहानी सुनकर मैं बहुत आकर्षित हुई और अगर फिल्म के पर्दे पर उसे सही ढंग से पेश किया जाये तो उस चरित्र को मैं काफी दिलचस्पी लेकर निभाऊंगी....इसके साथ ही अगर किसी गायिका की भूमिका मिले तो उसे भी मैं खूबसूरत ढंग से पेश कर सकती हूं.’’
यह बात फिल्म-उद्योग और फिल्म से संबंधित सभी लोगों में मशहूर है कि सुलक्षणा पंडित के कैरियर की शुरूआत गायिका के रूप में हुई है. शायद सुलक्षणा को भी इसका गुमान न होगा कि वे गायिका बनने से पहले नायिका बन जायेंगी लेकिन आज वह नायिका पहले हैं गायिका बाद में सुलक्षणा के गायिका का रूप उसी तरह खामोश है जैसे कमरे के कोने में पड़े हुए वाद्य यंत्र. इस लिहाज से सुलक्षणा के लिए बतौर गायिका का संघर्ष आज भी कायम है. अपने इस संघर्ष के स्वरूप को स्पष्ट करती हुई वे बताती हैं-‘‘हमारे यहां फिल्म-संगीत के क्षेत्र में बहुत ज्यादा गुटबंदी है. इस गुटबंदी में सभी शामिल हैं- किस-किस का नाम लिया जाये? संगीतकारों के लिए मेरी गायिका का रूप एक नये पंछी का रूप है और किसी भी नये पंछी को अपने घेरे में आने देना ये नहीं चाहते.’
‘संगीतकारों की अपनी मर्जी होती हैं लेकिन अपनी तरफ से मैं भी खामोश नहीं रहती. निर्माताओं से अपने गाने को लेकर प्रस्ताव रखती ही हूं. पहले वे राजी हो जाते हैं लेकिन जब गाने की रिकार्डिग की बारी आती है तो पता चलता है कि रिकार्डिग हो गयी है और निर्माता मेरे हाथों से निकल गया है. मेरा संघर्ष सही है और मुझे विश्वास है कि मेरी जीत जरूर होगी.’’
सुलक्षणा पंडित कुछ माने में फिल्म उद्योग की भाग्यशाली अभिनेत्रियों में हैं, जिन्हें ‘उलझन’ में संजीव कुमार जैसे गंभीर अभिनेता के साथ अपने कैरियर की शुरूआत में ही अभिनय का मौका मिला है. और यह एक ऐसी उपलब्धि है जिसे पाने के लिए किसी भी नवोदित अभिनेत्री को काफी प्रतीक्षा करनी पड़ती है. संजीव कुमार के अतिरिक्त सुलक्षणा पंडित इन दिनों एफ. सी. मेहरा की फिल्म ‘बंदी’ में उत्तम कुमार के साथ भी अभिनय कर रही हैं. जैसे संजीव कुमार को हिंदी फिल्मों के गंभीर अभिनेताओं में स्वीकार किया जाता है वैसे ही उत्तम कुमार भी बंगला फिल्मों का प्रख्यात अभिनेता है और एक गंभीर अभिनेता के रूप में उन्हें अंतर्राष्ट्रीय गरिमा प्राप्त हुई है इन दिनों अभिनेताओं के साथ सुलक्षणा पंडित काम करने का अभिनय बयान करती हुई बताती है- ‘‘संजीव और उत्तम दा दोनों ही गंभीर किस्म के आदमी हैं. संजीव जी को भी मैंने ‘उलझन’ के दिनों में यह गौर किया है कि जब कोई गंभीर शाॅट देने को होते थे तो वे पहले से ही सैट पर गंभीर होकर आते. और फिर शाॅट देने के बाद पुनः सामान्य हो जाते. ठीक यही बात उत्तम दा के साथ भी है. ये दोनों व्यक्ति किसी चरित्र में पूरी तरह डूबे रहते हैं. और यही इन दोनों की महानता का कारण है.एक अच्छे कलाकार होने के साथ ही साथ इन दोनों से ही मुझे अपने काम में काफी मदद मिली हैं.’’
फिल्मों की सफलता के साथ ही किसी अभिनेत्री को प्रथम श्रेंणी की अभिनेत्रियों की कतार में पहुंचने के लिए अतिरिक्त प्रचार की आवश्यकता होती है. इस प्रचार के क्रम में गलत स्टट भी खड़े करने पड़ते हैं. सुलक्षणा को इन बातों से ऐतराज नहीं लेकिन अपने बारे में वे कहती हैं-‘‘दूसरी चाहे जैसी भी होंऔर जो कुछ करें लेकिन मैं स्टंट में विश्वास नहीं करती बल्कि सही प्रतिभा के बल पर ही जो श्रेष्ठ अभिनेत्री बनती है. वे ही ज्यादा दिनों तक अपने अस्तित्व को कायम रखने में सफल हो पाती है.’’
इन दिनों सुलक्षणा अपने कैरियर के निर्णायक मोंड़ पर खड़ी है. जहां उन्हें एक सफल अभिनेत्री के रूप में स्वीकार किया जा चुका है. और अब यह सिलसिला है कि हर आये दिन उनके पास निर्माताओं की भीड़ मौजूद रहती है. ऐसी स्थिति में उन्हें अपनी फिल्मों को लेकर विशेष तौर से सचेत रहने के क्रम में जाहिर तौर पर नई निर्माताओं को नाराज करने का अवसर भी आया होगा. ऐसी स्थिति को वे कैसे सम्भालती है? सुलक्षणा कहती हैं-‘‘किसी का दिल दुखाना मुझे अच्छा नहीं लगता और न ही मैं किसी को दिल में लगने वाली बात भी नहीं कह सकती. अपनी तरफ से उन्हें भी इस तरह समझाती हूं जिससे उन्हें बुरा भी न लगे.’’ यह एक तरह से यह एक व्यवहारिक बुद्धि की बात है क्योंकि शुरू में तो अभिनेत्रियां कई बातों का ख्याल करके निर्माता को साफ तौर पर कोई बात नहीं बता पातीं लेकिन फिल्म शुरू होने के बाद कई तरह की अड़चनें डाल देती हैं. निर्माता ऐसी स्थिति में न घर का होता है न घाट का. सुलक्षणा फिर एक बार दुहराती हैं-‘‘मैं किसी का दिल दुखाना नहीं चाहती.’’
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