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यह किस्सा अपने आप में इतना खूबसूरत है कि इसे पढ़ते हुए आंखों के सामने पुराने पंजाब की ठंडी रात, मिट्टी की सौंधी खुशबू और एक सादे दिल वाले सुपरस्टार का चेहरा उभर आता है, वो है, धर्मेन्द्र।
बॉलीवुड के ही-मैन कहे जाने वाले धर्मेंद्र आज भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी सादगी, अपनापन और जड़ों से जुड़ी हुई ज़िंदगी की कहानियां आज भी लोगों के दिलों में ज़िंदा हैं। जीवन में जितनी बड़ी शोहरत उन्होंने पाई, उतना ही बड़ा उनका दिल भी था। उनकी जिंदगी का एक किस्सा ऐसा है जो लोगों को अब भी अभिभूत कर देता है कि स्टारडम के बीच भी कोई इतना विनम्र, इतना मिट्टी से जुड़ा कैसे रह सकता है? (Dharmendra beautiful village night story)
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यह घटना साल 2002 की है। जनवरी का महीना था और पंजाब में हड्डियां जमा देने वाली ठंड पड़ रही थी। रात गहरी थी, गांव के लोग अपने अपने घरों में रोटी खाकर आग सेंक रहे थे। तभी लालटन कलां गांव के एक किसान के दरवाजे पर किसी ने जोर से दस्तक दी। घर की औरत ने जब दरवाज़ा खोला तो सामने जो शख्स खड़ा था, उसे देखकर वह ठिठक गई, एक ऊंचा, लम्बा, बेहद सुदर्शन पुरुष सामने खड़ा था, सुपरस्टार धर्मेंद्र। सर्द हवा में ऊनी टोपी और शॉल ओढ़े, शांत चेहरे वाले धर्मेंद्र ने धीरे से पूछा, "राम सिंह का घर कौन सा है?"
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बस, फिर क्या था? कुछ सेकंड में पूरे गांव में खबर फैल गई कि "उनका धर्मेंद्र गांव आ गया।" लोग घरों से निकल पड़े, कोई नंगे पाँव, कोई रजाई ओढ़े, सबके चेहरे पर हैरानी और खुशी। इतने बड़े फिल्मी सितारे को अपने गांव के बीच ऐसे खड़ा देखकर सबके दिल भर आए और फिर क्या हुआ वो बाद में बताते हैं।
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दरअसल, धर्मेंद्र अपने बचपन के एक दोस्त राम सिंह को ढूंढने निकले थे। जब वे बच्चे थे, तो उनका परिवार इसी गांव के एक घर में रहता था। वहीं वे काफी समय तक रहे। उनके पिता केवल किशन सिंह देओल गांव के स्कूल में हेडमास्टर थे और उसी दौरान थोड़े बड़े होने पर राम सिंह नाम के किसान के साथ धर्मेंद्र की बहुत गहरी दोस्ती हो गई थी। दोस्ती गहराती रही। दोनों युवा होने लगे। (Dharmendra Punjab nostalgia anecdote)
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पंजाब के मिट्टी की महक, सरसों के खेतों की सरसराहट, नीम के पेड़ के घने छांव और दोस्तों की हंसी के साथ, चाय के दौर से मिश्रित उनके बचपन की यादें हर पल धर्मेंद्र के दिल को विह्वल करती थीं।
धर्मेंद्र जब फिल्मों के टॉप मोस्ट चमकते सितारे बन गए, तब भी यह दोस्ती और गांव की यादें उनके ज़ेहन से कभी गई नहीं। वैसे धर्मेन्द साहब के एक नहीं बल्कि बचपन के बहुत सारे दोस्त है जिनका उनके साथ संपर्क अंत तक बना रहा। अपने करियर के 65 साल बॉलीवुड में शानदार तरीके से निभाए और शोले, चुपके चुपके, सीता और गीता, धरम वीर जैसी अनगिनत फिल्मों से दर्शकों का दिल जीता, लेकिन भीतर से वे हमेशा वो किसान बने रहे जो अपने हाथों से प्याज़ फोड़ कर मोटी सी मक्के की रोटी के ऊपर रख कर खाते हैं। (Dharmendra visited village home emotional moment)
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धर्मेंद्र जब भी पंजाब में या पंजाब के आसपास शूटिंग करने जाते थे, तो अकसर शूटिंग खत्म होने के बाद, रात होने का इंतज़ार करते थे, और बिना किसी को बताए, एक गमछा डाल कर निकल जाया करते थे ताकि लोग उन्हे पहचान न सके और इकट्ठा न हो जाएं। फिर वे आराम से अपने पुराने दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलने उनके घर जाते थे।
धरम जी अक्सर कहा करते थे कि "शोर-शराबा अच्छा नहीं लगता, सुकून वहीं मिलता है जहां बचपन छोड़ा था।"
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वो सर्द रात वाला किस्सा उनके दिल में गांव और बचपन की मोहब्बत को बयान करता है। तो उस रात धर्मेंद्र ने राम सिंह के घर बैठकर देर तक बातें कीं, खाना खाया, पुराने किस्से याद किए। वो खुद अपने दोस्त के साथ गांव के कुएं से पानी भरने गए, वहीं खेतों की मिट्टी उठाकर अपनी हथेली सूंघी और बोले थे, "यही तो असली खुशबू है।"
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उनकी भावुकता, संवेदनशीलता और अपनापन यही था। फिल्मी चमक-दमक के बावजूद कभी खुद को बड़ा नहीं समझा। उन्होंने हमेशा कहा कि “अगर मैं धर्मेंद्र बना तो अपने गांववालों की दुआओं से। शहर ने नाम दिया, लेकिन मिट्टी ने पहचान दी।” (Dharmendra simplicity heart-touching tale)
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धर्मेंद्र का पैतृक गांव लुधियाना के पास डंगों है, लेकिन बचपन का लंबा वक्त उन्होंने साहनेवाल और लालटन कलां में गुजारा। उनके दोस्त और गांववाले आज भी उस दिन को याद करते हैं, जब आधी रात को ही-मैन ने अपने पुराने घर की तलाश में गांव के एक घर पर दस्तक दी थी।
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उनके निधन के बाद बॉलीवुड में एक सन्नाटा-सा छा गया। पुराने साथी अमिताभ बच्चन ने भारी दिल से उन्हें याद करते हुए कहा, “एक और वीर योद्धा चला गया... धरम जी, महानता का प्रतीक, न सिर्फ अपनी काया के लिए बल्कि अपने विशाल दिल और सादगी के लिए जाने जाते थे।”
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उनकी सादगी की मिसाल यह भी है कि उन्होंने अपने फिल्मों के समय में भी कभी खुद को दूसरों से ऊपर नहीं रखा। सेट पर सब हमउम्र वालों को ‘भाई’ और कम उम्र वालों को पुत्तर कहकर पुकारते थे। नए कलाकार, एक्स्ट्रा कलाकार या स्पॉटबॉय तक से खुले दिल से बातें करते थे। उनके साथ घर का खाना शेयर करते थे।उनकी एक आदत थी कि अगर किसी नवोदित कलाकार की एक्टिंग पसंद आ जाए, तो वे खुद जाकर उसकी पीठ थपथपा देते थे।
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धर्मेंद्र न सिर्फ एक सुपर अभिनेता थे, बल्कि एक सच्चे इंसान भी थे। उनके अंदर आज भी वही देसी मिट्टी की खुशबू, वही गांव की सादगी, वही बचपन की शरारतें ज़िंदा थीं। उनकी कहानियां, उनके किस्से और उनकी मुस्कराहट करोड़ों दिलों में हमेशा रहेंगे।
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आज जब उनकी याद में फिल्मी दुनिया और देश रो रहा है, तब पंजाब की मिट्टी शायद कह रही है — “अपना धरम वापस आ गया, बस फर्क इतना है कि अब वो खामोशी से हमारी मिट्टी में समा गया।”
ये किस्सा भी धर्मेंद्र की उसी फितरत को दिखाता है, जो उन्हें फिल्मों के परे असली हीरो बनाता है—किसानों और गांववालों के अपनेपन का।
लेकिन उनके लिए बार बार पंजाब जाना अक्सर मुमकिन नहीं होता था। इसलिए गांव का एहसास पाने के लिए उन्होंने मुंबई से थोड़ी दूर पर, लोनावाला में अपना फार्महाउस बनाया था। जीवन के उत्तरार्ध में वे वहीं जाकर रहने लगे थे। वहां उनके साथी राजेश कुमार बताते हैं कि धर्मेंद्र खुद ही सबको किसान दोस्त कहकर बुलाते, सब्जियों और अनाज की बातें करते और किसान भाइयों के फसलों के लिए सही दामों की चिंता जताते थे। (Dharmendra rustic village charm story)
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धर्मेंद्र के फार्महाउस का तो अलग ही नजारा था। वहां ट्रैक्टर चलाना, शिमला मिर्च, लौकी, टमाटर, अनार, पालक, सरसों , आम जैसे फल और सब्जी लगाना और गाय-भैंस की देखभाल करना,अपने हाथों से उन्हे चारा खिलाना, दूध दोहना, ये सिर्फ उनके शौक नहीं थे, बल्कि उनकी असल पहचान थी। उम्र के आखिरी पड़ाव में भी उन्होंने जैविक खेती को बढ़ावा दिया, खुद पानी देते, पौधों की देखभाल करते। जीप चलाकर, घूम घूम कर पूरी खेत, खलिहान, बगीचा देखते थे। धर्मेंद्र साहब कहते थे कि मिट्टी ही असली गहना है, पैसे की नहीं, जमीन की खुशबू सबसे बड़ी दौलत है।
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धर्मेंद्र का पंजाब से रिश्ता काफी पर्सनल था। उन्होंने मालवा क्षेत्र में सरकारी स्कूल में पढ़ाई की, खुद खेतों में ट्रैक्टर और ट्यूबवेल भी चलाए। गांव के लोग बताते हैं कि सुपरस्टार बनने के बाद भी जब वो गांव लौटते, तो गांववालों की हर समस्या में आगे खड़े होते। अपने बचपन के साथी दिलबाग राय के साथ ट्यूबवेल पर रात भर काम करते रहे, ताकि किसान भाइयों की फसल को सही समय पर पानी मिल सके। उनकी नम्रता इतनी थी कि किसी भी गांव में किसी छोटे या बड़े के निमंत्रण पर उनके घर जाकर, जो परोसते, खुशी खुशी खा कर आते थे। एक बार उन्होंने बताया था कि सुपर स्टार बनने के बाद, एक बार जब वे अपने पुराने गांव के घर पर गए तो बहुतों ने उन्हें अपने घर न्योता देकर प्रेम से दस आइटम पका कर खिलाया। वहीं एक गरीब किसान भी रहता था, जिसकी खुद की खेत नहीं थी, वो दूसरों के खेतों पर काम करता था। एक दिन उसने भी बड़ी झिझक के साथ अपनी फूंस की झोपड़ी में धरम जी को खाना खाने का न्योता दिया। जब धरम जी खुशी खुशी उनके घर पहुंचे तो उनकी मां ने चूल्हे के पास ही चटाई, चौकी बिछा कर धरम जी को बैठाया और अपने हाथों से गरम गरम रोटी और सरसों का साग और खुद के द्वार पर उगे मिर्च को लहसुन, आमचूर के साथ सिलबट्टे पर पीस कर चटनी बनाकर खिलाया। धरम जी ने बताया था कि उस खाने का स्वाद वे जीवन भर नहीं भूल सके और वे जब भी गांव गए, उस किसान के घर पर भी एक वक्त का खाना खाया। दिलदार धरम जी जिसके घर पर भी जाते, ढेर ढेर तोहफे, लेकर जाते थे। जब किसान उनसे मिलते, तो वो खुलकर उनसे बातें करते, उन्हे सलाह देते, उनकी परेशानियों को सुनते और उन्होंने बहुत सारे गरीब किसानों की पैसों की समस्याएं भी दूर कर दी। गिरवी खेत छुड़वा कर दी, बीज खरीदने, मकान की छत बदलवाने, गाय, भैंस, ट्रैक्टर खरीदने में मदद की।
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अपने १२० करोड़ के लोनावाना फार्महाउस पर वे हमेशा ऑर्गेनिक सब्जियां ही उगाते थे। सब्जियों और फल उगाना उन्हीं की देखरेख में होता था और इसे वो असली जिंदगी मानते थे। सोशल मीडिया पर उनके खेत-खलिहानों वाले वीडियोज खूब वायरल होते रहे, जिसमें धर्मेंद्र मिट्टी में काम कर रहे होते दिखे। इन वीडियोज से कई नौजवानों ने खेती में दिलचस्पी दिखानी शुरू की। धरम जी ने कहा था , ‘‘पौधों की संभाल करना वैसे ही है जैसे खुद को जिंदा रखना।’’
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उनका मानना था कि फिल्मी दुनिया में जितना नाम मिला, असली खुशी खेती और किसान भाइयों को देखकर ही मिलती है। कई बार उन्होंने नौजवानों को सलाह दी कि ‘‘जमीन से जुड़ जाओ, देश का असली आधार खेत और किसान ही हैं।’’ पंजाब-हरियाणा के घरों में लोग धर्मेंद्र की इस सादगी और जमीन से रिश्ते को बेहद इज्जत देते हैं।
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उनको देखकर ये लगता है कि वे ही-मैन सिर्फ फिल्मों का ऐक्शन हीरो नहीं था, बल्कि वे आम आदमी के दिल के भी हीरो थे।
आज जब वे नहीं रहे तो उनके फार्म से फैलती खेती-बाड़ी की खुशबू और आम लोगों के साथ उनका अपनापन—यही तो है धर्मेंद्र की असली विरासत।
वो दौर जब धर्मेंद्र अपनी शराफत के चलते गरीब निर्माताओं की फिल्में भी करलेते थे 'पर-डे' पर
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