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वो दौर जब धर्मेंद्र अपनी शराफत के चलते गरीब निर्माताओं की फिल्में भी करलेते थे 'पर-डे' पर

एक समय ऐसा भी था जब धर्मेंद्र अपनी शराफत और उदार स्वभाव के चलते गरीब निर्माताओं की फिल्मों में ‘पर-डे’ पर काम कर लेते थे। उनकी यह सादगी और इंसानियत आज भी बॉलीवुड में मिसाल मानी जाती है।

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वह एक बेहद शरीफ आदमी थे। एक ऐसे स्टार थे धर्मेंद्र जो सबके मित्र थे। आज जब वह दुनिया छोड़ गए हैं, फिल्म इंडस्ट्री में हर आदमी के पास धर्मेंद्र के साथ की तस्वीर है। सोशल मीडिया ऐसी तस्वीरों से भरा पड़ा है।फेसबुक, इंस्टाग्राम, X और रीलों में धरम प्राजी के साथ हर कोई दिखने की कोशिश कर रहा है और अपने अपने किस्से शेयर कर रहा है। इन किस्सों में एक किस्सा वो भी है जब उदार हृदय वाले प्रा जी ने अपनी शराफत के चलते कई गरीब निर्माताओं (कम बजट की फिल्म बनाने वालों को गरीब निर्माता कहते हैं) की फिल्मे भी साइन कर लिया था। वह किसी को मना नहीं कर पाते थे। उनके बेटों (सनी और बॉबी) ने जब उनको कहा कि वे क्यों छोटी फिल्में कर रहे हैं? धरम जी का कहना था- 'छोड़ो यार, वे गरीब हैं, बड़े बजट की फिल्में नही बना सकते, इच्छा रखते हैं बड़ा काम करने की, तो मैं कर लेता हूँ।मेरा उनके साथ दो तीन दिन शूट कर लेने से उनकी फिल्म बड़ी हो जाती है। और मुझे भी कुछ मिल जाता है।'  (Dharmendra stories with filmmakers)

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धर्मेंद्र की शराफत: जब एक स्टार ने गरीब निर्माताओं का हाथ थामा

साल 2001 से 2005 के बीच आसपास ऐसी कई फिल्में बनी थी जिनमे धर्मेंद्र की भूमिका बहुत छोटी थी। वह सिर्फ  दो- तीन दिन ही शूटिंग ऐसी फिल्मों के लिए करते थे। दबी चर्चा थी कि धर्मेंद्र  लाख रुपए पर डे पर काम करने लग गए हैं। यानी- शराफत के चलते धर्मेंद्र दिहाड़ी मजदूर बन गए थे। ऐसी छोटी भूमिका वाली धर्मेंद्र की जो फिल्में रही हैं वो हैं- 'मुन्नी बाई', 'आखिरी डकैती', 'भाई ठाकुर', 'गीता मेरा नाम', 'मेरी जंग एक ऐलान', :काली की सौगंध', 'डाकू काली भवानी', 'सौगंध गीता की', 'एल लुटेरा', 'रेशमा और सुल्तान', 'राम बलराम और रामकली' आदि। छोटी फिल्मों के निर्माता ऐसी स्क्रिप्ट बनाते थे कि धर्मेंद्र का दो तीन दिनों का शूट पूरी फिल्म में दौड़ा देते है।प्रचार में ये फिल्में धर्मेंद्र की फिल्म कही जाती थी।

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Munnibai (1999)

Aakhri Daku (1978) - IMDb

Bhai Thakur (2000) - IMDb

The Revenge: Geeta Mera Naam (2000) - IMDb

Meri Jung Ka Elaan (2000) - IMDb

Kaali Ki Saugandh (1999) - IMDb

Saugandh Geeta Ki (2001) - IMDb

Ek Lootera (2001) - IMDb

Reshma Aur Sultaan (2002)

Ram Balram (1980) - IMDb

हम यहां उन निर्माता- निर्देशकों के नाम पर  चर्चा नहीं करेंगे क्योंकि वे बॉलीवुड में आज भी काम कर रहे हैं और वे नहीं चाहते कि आज जब धर्मेंद्र की चार्चा उनके सहृदय व्यवहार की हो रही है, उनकी फिल्मों पर बात करके उनका कद छोटा किया जाए। इन्ही दिनों निर्देशक सन्नी कपूर ने भी धर्मेंद्र के साथ दो फिल्में 'कम बजट' वाली शुरू किया था। ये फिल्में थी- "जग्गा डाकू' और 'फकीरा'। सनी कपूर बताते हैं - "मेरी फिल्म 'जग्गा डाकू' रिलीज नहीं हो पाई और 'फकीरा' बन ही नहीं पाई थी। उनदिनों धरम जी छोटी फिल्में इसलिए कर रहे थे कि छोटे निर्माताओं का भला हो सके। वह पैसों के लिए काम करते थे, यह कहना गलत है। पैसे उनके पास थे क्योंकि उन्ही दिनों में उन्होंने दो फिल्में प्रोड्यूस किया था 'इंडियन' सनी देओल के साथ और 'सोचा न था' भतीजे अभय देओल को लेकर। अगर उन्हें पैसों की किल्लत होती तो बड़ी फिल्में प्रोड्यूज कैसे करते?" सनी कपूर बताते हैं- "दरसल 1999 में कांति शाह निर्देशित एक फिल्म आयी थी 'मुन्नी बाई' जिसके निर्माता थे गुलाब। यह फिल्म धर्मेंद्र ने मदत करने के लिए किया था। 'मुन्नी बाई' अच्छी कमाई की थी, उसके बाद ही धर्मेंद्र की 'पर डे' वाली फिल्मों का दौर चल पड़ा था।" इन छोटी फिल्मों के लिए धर्मेंद्र डेढ़ लाख रुपये प्रति दिन चार्ज करते थे और निर्माता के लिए शर्त होती थी कि कमसे कम तीन दिन का शूट करना  होगा। (Dharmendra helping low-budget producers)

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Munnibai (1999)

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लेकिन, किचड़ तो उछला था। एक अमर्यादित किस्सा उनदिनों चर्चा में आया था-  धर्मेंद्र की रिलीज हुई एक छोटी फिल्म को लेकर। खबर थी कि धर्मेंद्र के गांव नसराली- लुधियाना (पंजाब) के किसी सिनेमा टाकीज में कोई फिल्म चल रही थी। वो एक सी- ग्रेड फिल्म थी जिसमे धर्मेंद्र के कुछ शॉट्स थे जो 'BF' (अश्लील दृश्यों के साथ) जुड़े थे। नसराली के लोग धर्मेंद्र और उनके परिवार को बहुत मानते हैं। यहीं उनका जन्म हुआ था। यहां के किसी सिनेमा घर मे फिल्म देखकर किसी दर्शक ने सनी देओल को मुंबई में फोन किया। सनी ने उस निर्माता को अपने ऑफिस में बुलाया कि उसे कोई फिल्म देंगे और उसकी खूब पिटाई किये थे। इसके बाद ही सनी देओल ने पापा धर्मेंद्र पर रोक लगाया था कि वे कोई छोटी फिल्म नहीं करेंगे। (Dharmendra generosity towards small filmmakers)

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हालांकि बादमे पता चला कि यह खबर बेबुनियाद थी। ऐसा कुछ हुआ नहीं था यह एक अफवाह थी। पूरा किस्सा झूठा था और यह एक सुतली बम वाला गॉसिप था। वैसे ही, जैसे मृत्यु से पहले इस मेगा स्टार को झूठी खबरियों ने मार दिया था।जीवन के 65 साल सिनेमा इंडस्ट्री को  देने वाले धर्मेंद्र की यह सादगी और ईमानदारी ही रही है जिसने उनपर कभी गॉसिप को हावी नहीं होने दिया। वह हमेशा खरे होकर निकले थे। (Dharmendra photos shared by film industry)

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FAQ 

Q1. धर्मेंद्र को गरीब निर्माताओं की फिल्में करने की आदत क्यों थी?

A: धर्मेंद्र बेहद उदार और शरीफ स्वभाव के थे। वे किसी को मना नहीं कर पाते थे और कम बजट के निर्माताओं की मदद के लिए ‘पर-डे’ पर भी काम कर लेते थे।

Q2. धर्मेंद्र के बेटों ने उनसे छोटी फिल्में करने पर क्या कहा था?

A: सनी और बॉबी ने पूछा कि वे क्यों छोटी और कम बजट की फिल्में कर रहे हैं, जिस पर धर्मेंद्र ने बताया कि ये निर्माता बड़े सपने देखते हैं और उन्हें उनकी मदद करना अच्छा लगता है।

Q3. धर्मेंद्र कम बजट की फिल्मों में क्यों काम करते थे?

A: उनका मानना था कि उनके दो-तीन दिन के शूट से ही निर्माता की फिल्म “बड़ी” हो जाती है और इसका फायदा सभी को मिलता है।

Q4. धर्मेंद्र के निधन के बाद सोशल मीडिया पर क्या देखने को मिल रहा है?

A: सोशल मीडिया धर्मेंद्र के साथ इंडस्ट्री के लोगों की पुरानी तस्वीरों और किस्सों से भरा हुआ है, जिनमें लोग उनके साथ बिताए पलों को याद कर रहे हैं।

Q5. कम बजट के निर्माताओं को ‘गरीब निर्माता’ क्यों कहा जाता है?

A: फिल्म इंडस्ट्री की भाषा में, कम बजट में फिल्म बनाने वाले निर्माताओं को अनौपचारिक रूप से ‘गरीब निर्माता’ कहा जाता है।

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