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1972 की रिलीज़ 'Amar Prem' की अमर प्रेम कहानी

प्रेम एक ऐसी भावना है जिसका कोई एक रूप नहीं होता. यही बात फ़िल्म अमर प्रेम (1972) में अनगिनत तरीकों से चित्रित किया गया है. प्रेम की सबसे दिल छूने वाली चलचित्रों में से एक 1972...

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प्रेम एक ऐसी भावना है जिसका कोई एक रूप नहीं होता. यही बात फ़िल्म अमर प्रेम (1972) में अनगिनत तरीकों से चित्रित किया गया है. प्रेम की सबसे दिल छूने वाली चलचित्रों में से एक 1972 की हिंदी रोमांटिक ड्रामा फिल्म, 'अमर प्रेम' में दिखाया गया है. द लीजेंडरी निर्देशक शक्ति सामंत द्वारा निर्देशित यह फिल्म, एक तरह से बंगाली फिल्म 'निशिपद्म' का रीमेक है, जो दरअसल बिभुतिभुशान बंदोपाध्याय द्वारा लिखित लघु कहानी 'हिंगेर कोचुरी' (हींग की कचौरी) पर आधारित है.

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1972 Amar Prem Movie

https://youtu.be/KPFzFg1T-qE?si=EO7C19svNJlAp6Ds

'अमर प्रेम' की कहानी प्यार, अपनापन, सिंपथी के लिए तरस रहे तीन अकेलेपन के शिकार इंसानों की एक हृदय-झकझोरने वाली कहानी है. इस कहानी के केंद्र में है एक खूबसूरत नारी 'पुष्पा' जो असाधारण अभिनेत्री शर्मिला टैगोर द्वारा निभाई गई है. पुष्पा ने सपनों और आकांक्षाओं के साथ एक साधारण गाँव की लड़की के रूप में अपनी यात्रा शुरू की. हालांकि, उसका जीवन एक क्रूर मोड़ तब लेता है जब उसका पति, अपनी सीधी सादी पत्नी (पुष्पा) से उकता कर उसे एक अन्य महिला के कारण छोड़ देता है. पुष्पा अपने पति के घर के एक कोने में पड़ी रहकर, नौकरानी की तरह काम करने को भी तैयार होती है लेकिन फिर भी उसकी सौतन और पति उसे घर से बाहर निकाल देते है.

पति द्वारा घर से बाहर निकालने के बाद, वह अपनी माँ के पास शरण लेने जाती है. लेकिन गरीब माँ भी उसे रखने से मना कर देती है. ऐसे में पुष्पा आत्महत्या करने की कोशिश करती है. लेकिन उसके मतलबी चाचा नेपाल बाबू (मदन पूरी) उसे बचा लेता है और अच्छी जिंदगी का वादा करते हुए उसे धोखा देकर कोलकाता के एक कोठा में बेच देता है. यह वेश्यालय, बदनसीब महिलाओं द्वारा सामना की जाने वाली क्रूर वास्तविकताओं को दर्शाती है जो सामाजिक मानदंडों का शिकार होती हैं.

कोठा में पहुंचने पर, पुष्पा को पहले बहुत अपमान और तकलीफों से गुज़रना पड़ता है लेकिन उसकी सुंदरता, उसकी खूबसूरत आवाज और शांत स्वभाव के कारण वो सबको अच्छी लगने लगती है. उसी कोठे पर एक दिन, पत्नी द्वारा सताया हुआ एक व्यवसायी, जो सच्चे प्रेम के लिए तरस रहा है आनंद बाबू (राजेश खन्ना द्वारा निभाई गई) पुष्पा की मीठी आवाज़ सुन कर वहां खिंचा चला आता है. पुष्पा की आवाज़ में छिपा दर्द, उसका शांत स्वभाव और निर्मल आत्मा उनके दिल को छू लेती है, वह उसके लिए प्रेम की भावना विकसित करना शुरू कर देता है. आनंद जल्द ही पुष्पा के पास एक नियमित ग्राहक के रूप में आने लगता है और दोनों के बीच एक भावनात्मक बंधन बन जाता है.

उसी इलाके के पास एक नन्हा बच्चा नंदू (मास्टर बॉबी) अपनी सौतेली मां (बिन्दु) सौतेला छोटा भाई (मास्टर राजू) और पिता (सुजीत कुमार) के साथ रहता है, जहां उसके पिता अक्सर काम के लिए व्यस्त रहते हैं और उसकी सौतेली माँ उसकी उपेक्षा करती है. बेचारे नन्हे नंदू को अकेले दुनिया को नेविगेट करने के लिए छोड़ दिया जाता है, जो अपने को अक्सर अनाथ पाकर भावनात्मक उपेक्षा से निपटता है. एक दिन नंदू और पुष्पा की मुलाकात हो जाती है. पुष्पा उस बच्चे की दयनीय अवस्था से दुखी होती है और धीरे धीरे उससे प्यार करने लगती है. एक कोठेवाली होने के कारण वो खुलकर बच्चे की देखभाल नहीं कर पाती लेकिन छुप छुप कर वो नंदू की खूब देखभाल करती है. कहानी का यह भाग पुष्पा की मातृ प्रवृत्ति पर प्रकाश डालती है. नंदू अपनी सौतेली मां से छिपकर रोज पुष्पा से मिलता है. उधर आनंद बाबू भी रोज पुष्पा के पास आता है. उसे भी पुष्पा और नंदू का प्रेम बहुत भाता है.

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नन्दू पुष्पा को माँ जैसी मानने लगता है और हर दुखद परिस्थिति में उसके पास ही दौड़ा आता है. एक बार नन्दू बहुत बीमार पड़ता है तो पुष्पा के कहने पर आनंद अपने डॉक्टर दोस्त (अभी भट्टाचार्य) को नन्दू के पास भेजकर उसे स्वस्थ करता है. उधर आनंद के साले (राकेश पांडे) को जब मालूम पड़ता है कि जीजा कोठे पर जाता है तो वह पुष्पा को कहता है कि वह उसकी बहन का घर बचा ले और आनंद को कोठे पर आने से मना करे. हमेशा से ही दया की देवी पुष्पा दिल पर पत्थर रखकर आनंद को मिलने से मना कर देती है. आनंद पुष्पा से इतना प्यार करता है कि पुष्पा के आदेश पर वो उससे मिलना छोड़ देता है. उधर नन्दू का परिवार भी वह जगह छोड़कर गांव जाने लगते है. तब जाते जाते नन्हा नन्दू पुष्पा के कोठे के आंगन में एक शेफाली का पौधा (हरसिंगार) लगाता है और रोती हुई पुष्पा से वादा करता है कि वो उस पौधे का ख्याल रखे, वो एक दिन उसके पास बड़ा होकर जरूर लौटेगा.

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बहुत साल बीत जाता है. नन्दू उर्फ नंद किशोर शर्मा (विनोद मेहरा) सरकारी अफसर बनकर अपने बीवी (फरीदा जलाल) और बच्चे के साथ कोलकाता वापस आता है और अपनी पुष्पा माँ को बहुत ढूंढता है. वो हरसिंगार का पौधा एक बड़ा वृक्ष बन गया है लेकिन पुष्पा माँ कहीं नहीं मिलती है. दरअसल तब तक पुष्पा कोठा छोड़ चुकी होती है और किसी के घर नौकरानी बनकर बहुत कष्टदायक जीवन जी रही है. आनंद को यह सब पता है लेकिन पुष्पा को दिए कसम के चलते वो उससे नहीं मिल पाता. आनंद ने पीना छोड़ दिया, अपनी पत्नी से तलाक लेकर वो अकेले ही रहता है. एक दिन जब वो उसी दोस्त डॉक्टर से मिलने जाता है तो वहीं नन्दू भी अपने बच्चे के लिए दवाई लेने आता है. नन्दू आनंद को पहचान लेता है और उससे पुष्पा माँ के बारे में पूछता है. आनंद उसे पुष्पा से मिलाने ले जाता है. वहां नौकरानी के रूप में नन्दू और आनंद पुष्पा की जो दुर्दशा देखता है उससे दोनों हैरान रह जाते हैं. तुरंत नन्दू पुष्पा को अपने साथ घर ले जाने की जिद करता है, आनंद भी पुष्पा को अपने बेटे के समान नन्दू के साथ उसके घर जाने की राय देता है. आखिर पुष्पा को एक मां का सम्मान मिलता है और वो नन्दू के घर चली जाती है.

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यह क्षण 'अमर प्रेम' के सार को महत्वपूर्ण बना देता है. प्रेम, करुणा, और अथाह बंधन की विजय होती है. इस कहानी के मूल में, 'अमर प्रेम' के मानवीय भावनाओं को उजागर किया गया है. प्यार, धोखा, बलिदान और समर्पण पर आधारित ये फ़िल्म बताती है कि जिस जगह पर सच्चा प्यार पाने की संभावना सबसे कम होती है उसी जगह से प्यार कैसे पनप सकता है. पुष्पा, आनंद और नंदू के पात्रों के माध्यम से, फिल्म सहानुभूति और समझ के महत्व को मार्मिक ढंग से. प्रस्तुत करती है.

'अमर प्रेम' के सारे अमर गीत फिल्म की भावनाओं को व्यक्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. आर. डी. बर्मन द्वारा संगीत बद्ध अमर प्रेम के गीत आज भी दर्शकों के दिलों को हिला देता है. 'डोली में बिठाई के', 'रैना बीती जाय', 'चिंगरी कोई भड़के', 'बड़ा नटखट है रे', 'कुछ तो लोग कहेंगे', 'ये क्या हुआ कैसे हुआ कब हुआ' आज भी कलजेयी गीतों में शुमार है.

1972 में रिलीज़ होने वाली, 'अमर प्रेम' एक सुपर हिट व्यावसायिक सफलता थी. इसने राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर को बॉलीवुड के सबसे प्रिय ऑन-स्क्रीन जोड़ों में से एक के रूप में मजबूत किया. संगीतकार आर. डी बर्मन ने इस फ़िल्म के एक सुंदर गीत 'डोली में बिठाई के' गाने के लिए अपने पिता को आखिर मना ही लिया जो एक प्लेबैक गायक के रूप में एस डी बर्मन के करियर के सबसे यादगार गीतों में से एक बन गया. अमर प्रेम का एक डायलॉग, 'पुष्पाआई हेट टियर्स' बॉलीवुड में एक ऑल टाइम क्लासिक डायलॉग बन गई है.

राजेश खन्ना 1969 में हिट आराधना और 1971 की फ़िल्म 'कटी पतंग' के बाद एक सुपर स्टार बन गए थे और वे स्त्री प्रधान फिल्मों में दिलचस्पी नहीं लेते थे. लेकिन शक्ति सामंत ने राजेश खन्ना को 'अमर प्रेम ' के साथ, स्त्री प्रधान फ़िल्मों में काम करना सिखाया. फ़िल्म में शर्मिला टैगोर ने जो पफ स्लीव्स ब्लाउज पहनी थी , वैसे ब्लाउज पहली बार 1950 के दशक में देविका रानी पर देखे गए थे.अमर प्रेम में उन्हें फिर से पुनर्जीवित किया गया था.

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फिल्म की पूरी शूटिंग हो चुकी थी. बाद में शक्ति सामंत ने आर डी द्वारा संगीतबद्ध एक गीत 'चिंगारी कोई भड़के' को सुना और उन्हे वो इतना पसंद आया कि उन्होने कहानी में इस गीत के लिए जगह बनाई और उसे शूट किया और इस गीत ने इतिहास रच दिया. शक्ति सामंत ने फ़िल्म 'अमर प्रेम' के साथ राजेश खन्ना के साथ हिट फिल्मों की एक हैट ट्रिक बनाई जो कि 'अराधना' (1969) और कटी पतंग (1971) के साथ शुरू हुई थी.

जब आरडी बर्मन के पिता एस. डी बर्मन ने बेटे आर डी द्वारा संगीतबद्ध गीत 'बडा नटखट है रे कृष्ण कन्हैया' सुना तो उन्होने इसे भजन समझकर इसके सुर को पसंद नहीं किया और उसे दोबारा बनाने के लिए कहा लेकिन बाद में दृश्य की स्थिति को सुनने के बाद उन्होंने खूब वाहवाही दी.

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शक्ति सामंत ने आनंद की भूमिका के लिए पहले बॉलीवुड स्टार राजकुमार को लेने की बात की थी, जिसे सुनते ही राजेश खन्ना तुरंत शक्ति जी से मुलाकात करने पहुंचे और उनसे पूछा कि उनके हाल के सभी फिल्मों में मुख्य नायक उन्हे लिया गया था, फिर इस फ़िल्म में क्यों नहीं? तब शक्ति सामंत ने कहा कि अब तुम बहुत बड़े और बिज़ी स्टार बन गए हो क्या इस फिल्म के लिए टाइम दे पाओगे ? इसपर राजेश खन्ना ने हामी भरी और हर रोज़ चार घंटे के लिए 'अमर प्रेम' की शूटिंग करने लगे.

एक बार नादिरा ने एक साक्षात्कार में कहा था कि अप्सरा थिएटर में इस फ़िल्म के प्रीमियर के दौरान, थिएटर के बाहर रोड के दोनों तरफ और यहां तक की फुटपाथ पर भी भीड़ जमा हो गई थी और जैसे ही राजेश खन्ना अपनी गाड़ी से उतरे तो चारों तरफ सब एक स्वर में राजेश खन्ना राजेश खन्ना चिल्लाने लगे.

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रोमानियाई गायक नरघिता ने रैना बीती जाय (नोएप्टिया ट्रेस) का कवर संस्करण गाया. "चिंगारी कोई भड़के" गीत को रैट बाथ द्वारा बॉलीवुड में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जारी एल्बम यूएफओ के लिए "प्रोफेसरों" के गीत के लिए नमूना लिया गया था. शर्मिला टैगोर ने अपने चरित्र पुष्पा की भूमिका का स्क्रिप्ट सुनते ही समझ लिया था कि उसकी भूमिका बहुत सशक्त है इसलिए शर्मिला ने तुरंत फिल्म के लिए हां कर दिया.

1970 में बनी बंगाली फिल्म 'निशी पद्म' में उत्तम कुमार के प्रदर्शन को देखने के बाद शक्ति सामंथा इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने हिंदी में इस फिल्म बनाने का फैसला किया. 'निशी पद्म' में उत्तम कुमार का नाम अनता बाबू था लेकिन राजेश खन्ना ने इस फ़िल्म के हिन्दी रूपांतरण में अपना नाम आनंद रखने को कहा. 1970 की बंगाली फिल्म 'राजकुमारी' में से एक गाना 'ए ही होलो' (आर डी द्वारा) को अमर प्रेम में भी 'ये क्या हुआ' बनाकर डाला.

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फिल्म की रिलीज़ होने से पहले, दिल्ली में एक विशेष शो का आयोजन किया गया था, जहां जनरल सैम मानेक्शॉ ने कलाकारों को आमंत्रित किया था, हालांकि अगले दिन एक ब्लैकआउट घोषित किया गया था, क्योंकि 1971 के इंडो-पाकिस्तानी युद्ध की शुरुआत हुई थी.

बताया जाता है कि राजेश खन्ना ने 'निशि पद्म' फिल्म को 24 बार देखने के बाद शूटिंग शुरू की. इस फ़िल्म के स्क्रिप्ट लिखने वाले अरविंद मुखर्जी को हिंदी नहीं आती थी इसलिए उन्होंने इस फिल्म का स्क्रिप्ट अंग्रेजी में लिखा जिसे रमेश पंत ने हिंदी में ट्रांसलेट किया.

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बताया जाता है कि इस फिल्म की पूरी शूटिंग नटराज स्टूडियो में की गई थी (शक्ति सामंत नटराज स्टूडियो के चार हिस्सेदारों में एक थे) यहां तक कि वह गाना, चिंगारी कोई भड़के, वह भी नटराज स्टूडियो में ही एक नकली तालाब बनाकर, उसमें नाव चलाया गया और फ़िल्म शूट करने वाले लोग घुटने घुटने पानी में खड़े होकर शूट करते रहे. उस नकली तालाब के स्थिर पानी में इतनी बदबू थी कि शर्मिला टैगोर को चुइंग गम चबाते हुए सीन देना पड़ा. दरअसल यह दृश्य कोलकाता के हुगली नदी में नाव चलाते हुए करना था लेकिन उन्हें इसकी अनुमति नहीं मिली थी.

'रैना बीती जाए' गाने में शिव कुमार शर्मा ने ईरानियन संतूर बजाया और पंडित हरिप्रसाद चौरसिया ने बांसुरी बजाई. चिंगारी कोई भड़के' गीत के रिकॉर्डिंग पर गिटार बजाने वाले भानु गुप्ता ने गलती से एक अलग नोट पर गिटार बजा दिया, जिस पर वहां उपस्थित लोग हैरान रह गए लेकिन आरडी बर्मन ने भानु गुप्ता को इस गलत कोड के साथ ही बजाते रहने को कहा.

'अमर प्रेम' सिर्फ एक प्रेम कहानी नहीं है, यह मानव संबंधों की शक्ति की एक लिगेसी है. यह फिल्म प्यार और रिश्तों के सार को अमर करती है और आने वाली पीढ़ियों के लिए दर्शकों के दिलों में एक क्लासिक के रूप में अपनी जगह सुनिश्चित करती है.

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