/mayapuri/media/media_files/2025/09/01/bollywood-and-tv-fraternity-mourns-the-sad-demise-of-prem-sagar-son-of-legendary-filmmaker-ramanand-sagar-2025-09-01-17-15-29.jpg)
रविवार, 31 अगस्त सुबह के लगभग 11.54 बजे थे और मेरा फ़ोन बजा. फ़ोन सागर वर्ल्ड से था. चूँकि इन दिनों सागर वर्ल्ड के मेगा सीरियल 'कामधेनु गौ माता' की चर्चा खूब हो रही है, इसलिए प्रोडक्शन हाउस से किसी न किसी प्रेस नोट के लिए फ़ोन आना कोई आश्चर्य की बात नहीं थी (Prem Sagar demise). ज़्यादातर डॉक्टर रामानंद सागर के पुत्र श्री प्रेम सागर ही फ़ोन पर दूसरी तरफ़ होते थे. मैंने फ़ोन उठाया, लेकिन इस बार प्रेम जी नहीं थे. सागर वर्ल्ड से पिंटो जी थे. मैं थोड़ा हैरान हुई और उनका अभिवादन किया, फिर उन्होंने काँपती हुई लेकिन दृढ़ आवाज़ में जो खबर मुझे सुनाई, वह मेरे लिए बहुत ही चौंकाने वाली थी. उन्होंने कहा, "सुलेना जी, आज सुबह दस बजे हमने अपने महान सर, प्रेम सागर जी को खो दिया (Ramanand Sagar son Prem Sagar). वे पिछले एक महीने से अस्वस्थ थे, ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती थे. कल उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिली थी, लेकिन आज उनका निधन हो गया."
यह खबर मेरे लिए सहन करना जितना मुश्किल था, पिंटो जी के लिए मुझे बताना उतना ही मुश्किल था. हम दोनों अपने आँसू नहीं रोक पाए. यह अविश्वसनीय था लेकिन सच था. मुझे वास्तविकता को समझने और अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने में कुछ घंटे लगे (Prem Sagar, Son of Ramanand Sagar, Passes Away).
आज जब मैं उनके बारे में लिखने बैठी हूँ, तो उस महान स्वर्ण पदक विजेता छायाकार, निर्देशक और निर्माता 'प्रेम सागर' (Prem Sagar Ramayan) के निधन पर मेरा हृदय दुःख और पुरानी यादों से भर गया है (Sagar Arts productions). वे महान लेखक, निर्माता और निर्देशक डॉक्टर रामानंद सागर के चौथे पुत्र थे, जिन्होंने अपनी ब्लॉकबस्टर फिल्मों और टीवी सीरीज़ से इतिहास रचा था.
आज सुबह दस बजे एक युग का अंत हुआ, एक ऐसा अध्याय जो मेरे जीवन और भारतीय सिनेमा और टेलीविजन के इतिहास में हमेशा एक अनमोल स्मृति बना रहेगा. मैं अनेकों पुरानी यादों के साथ अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करती हूँ और प्रेम सागर द्वारा मुझमें प्रेरित की गई सच्ची सच्चाइयों और भावनाओं को साझा करता हूँ (Shri Krishna serial Prem Sagar). न केवल मायापुरी पत्रिका के एक पत्रकार के रूप में, बल्कि सागर परिवार द्वारा अत्यंत सम्मानित और प्रिय व्यक्ति के रूप में भी.
मुझे वो अनगिनत अवसर याद हैं (Ramanand Sagar family) जब सागर समूह की हर शूटिंग, हर प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुझे आमंत्रित किया जाता था कई बार तो बिना किसी कारण के भी , सिर्फ़ इसलिए क्योंकि मेरा घर अंधेरी, मुंबई में नटराज स्टूडियो के पास था. नटराज स्टूडियो, जो डॉक्टर रामानंद सागर के सह-स्वामित्व में था और मेरे लिए वह मेरे अपने मायके जैसा लगता था. प्रेम सागर यह सुनिश्चित करते थे कि हमेशा मिलने वालों को एक सुकून भरा स्वागत मिले. डॉक्टर रामानंद सागर और श्री प्रेम सागर, मायापुरी पत्रिका के संस्थापक श्री ए. पी. बजाज और उनके पुत्र श्री प्रमोद बजाज के भी घनिष्ठ मित्र थे. हम, बजाज और सागर परिवार के लिए, सरल, वास्तविक और गर्मजोशी से भरे पल साझा करना आम बात थी (Prem Sagar’s Timeless Legacy Across Iconic Serials).
प्रेम सागर, जिनके निधन पर आज हम शोक मना रहे हैं, कभी भी पृष्ठभूमि में एक व्यक्ति मात्र नहीं थे. वे हमेशा अपने पिता डॉक्टर रामानंद सागर का हर संभव तरीके से सपोर्ट करते रहे, चाहे वह छायांकन हो, पटकथा लेखन हो या फिल्मों और मेगा टीवी धारावाहिकों का मार्केटिंग हो, जिन सिरीज़ों ने पीढ़ियों को परिभाषित किया. उनके होम प्रोडक्शन सागर आर्ट्स की 'आरज़ू', 'गीत', 'ललकार', 'बगावत ' और 'रोमांस' जैसी फ़िल्में उन बेहद खूबसूरत और सुपरहिट कृतियों में से थीं जिन्हें उन्होंने जीवंत बनाने में मदद की. उनके पिता डॉक्टर रामानंद सागर द्वारा निर्मित, निर्देशित ब्लॉकबस्टर धारावाहिक 'रामायण' की अभूतपूर्व सफलता और निर्माण में उनका महत्वपूर्ण योगदान था. यह धारावाहिक इतना प्रभावशाली था कि आज भी भारत के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परिदृश्य को आकार दे रहा है.
प्रेम सागर का सफ़र पुणे स्थित भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान (1968 बैच) से स्नातक होने के बाद शुरू हुआ, जहाँ उन्हें सर्वश्रेष्ठ अकादमिक छात्र के लिए स्वर्ण पदक और सर्वश्रेष्ठ फ़ोटोग्राफ़्ड छात्र फ़िल्म के लिए रजत पदक से सम्मानित किया गया. इसके बाद, उन्होंने 1970 में 'ललकार' के साथ भारतीय छायांकन की दुनिया में कदम रखा. वैसे, 'ललकार' से पहले भी, वे अपने पिता डॉक्टर रामानंद सागर की 1965 में आई ब्लॉकबस्टर हिट फिल्म 'आरज़ू' में डायरेक्टर ऑफ़ फ़ोटोग्राफ़ी (डीओपी) थे. एक छायाकार और तकनीकी सलाहकार के रूप में उनकी उपलब्धियाँ कई प्रशंसित फिल्मों तक फैली हुई हैं, जिनमें 'चरस', 'बग़ावत ', 'हमराही', 'प्यारा दुश्मन', 'अरमान', 'जलते बदन', 'बादल', 'प्रेम बंधन' और 'सलमा' शामिल हैं. इसके बाद प्रेम सागर ने 'हम तेरे आशिक हैं' के साथ निर्देशन में कदम रखा, जिससे उनकी रचनात्मक प्रतिभा और फिल्म निर्माण के प्रति जुनून और भी पुख्ता हुआ.
लेकिन उनकी प्रतिभा सिर्फ़ फिल्मों तक ही सीमित नहीं थी. प्रेम सागर भारतीय टेलीविजन के अग्रदूतों में से एक थे. अस्सी के दशक की शुरुआत में, उन्होंने भारत के प्रथम फंतासी धारावाहिक, 'विक्रम और बेताल' का निर्माण और निर्देशन किया. इसके बाद उनका जुड़ाव 'रामायण' से हुआ, जो उनके महान पिता डॉक्टर रामानंद सागर द्वारा निर्मित और निर्देशित एक मेगा धारावाहिक था, जिसे आज भी उस समर्पण और अनुशासन के लिए श्रद्धा के साथ याद किया जाता है जिसके साथ इसे बनाया गया था.
प्रेम सागर का शानदार रचनात्मक योगदान 'श्रीकृष्ण', 'साईं बाबा', 'पृथ्वीराज चौहान' और 'चंद्रगुप्त मौर्य' जैसे अन्य लोकप्रिय धारावाहिकों में स्पष्ट रूप से दिखाई दिया. एक निर्देशक और निर्माता के रूप में उन्होंने 'जय माँ दुर्गा', 'महिमा शनिदेव की', 'जय जय जय बजरंग बली', 'बसेरा' और वर्तमान में चल रहे सुपरहिट धारावाहिक 'कामधेनु गौमाता' जैसे धारावाहिकों से अनगिनत दिलों को छुआ.
बॉलीवुड और टीवी जगत के कई कलाकारों जैसे अरुण गोविल, सुनील लाहिड़ी, ने प्रेम सागर के दुखद निधन पर अपना शोक व्यक्त किया.
प्रेम सागर को अपने पूरे करियर में जो पहचान मिली, वह व्यापक है. उन्होंने फोटोग्राफी निर्देशक के रूप में पंद्रह पुरस्कार जीते, और फोटोग्राफी के क्षेत्र में कई सम्मान प्राप्त किए, जैसे कि रॉयल फोटोग्राफिक सोसाइटी ऑफ़ ग्रेट ब्रिटेन और पेरिस में आर्टिस्ट फेडरेशन इंटरनेशनेल डी ल'आर्ट्स फोटोग्राफिक की एसोसिएटशिप. यह गर्व की बात है कि स्टिल फोटोग्राफ बनाने में उनका काम चलचित्रों में उनकी महारत से मेल खाता था.
एक बात जो हमेशा मेरी यादों में रहेगी, वह यह है कि प्रेम सागर किस तरह लोगों के साथ पेश आते थे. चाहे वे जाने-पहचाने हों या अनजान, वरिष्ठ लेखक, पत्रकार या मेरे जैसे महत्वाकांक्षी नए किशोर पत्रकार और उनकी दुनिया में आने वाले हर क्रू मेंबर के साथ. उन्होंने सभी को सहज, सम्मानित और अपने साथ शामिल महसूस कराया. मुझे उनके साथ हुई वो लंबी, व्यावहारिक चर्चाएँ और बेबाक मुलाक़ातें याद हैं, जहाँ वे मुझे परिवार के बाकी सदस्यों, डॉक्टर रामानंद सागर और उनके भाइयों, आनंद सागर और मोती सागर से मिलवाते थे. चाहे कोई भी अवसर हो, प्रेम सागर यह सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास करते थे कि सभी के साथ परिवार जैसा व्यवहार हो. वे दोपहर के भोजन के समय अपने कार्यालय में मौजूद सभी लोगों को अपने घर का बना खाना खाने के लिए आमंत्रित करते थे. वे सबकी पसंद और रुचि जानते थे. उन्हें पता था कि मुझे तपती दोपहर में बस ठंडी गोल्ड स्पॉट पसंद है और वे अपने सहायक से चिल्लाकर कहते थे, "धोंडू, जल्दी से गोल्ड स्पॉट लाओ, वो प्रिटी गोल्ड स्पॉट वाली लड़की आ गई है." हम सब हँसते थे. वहाँ कभी कोई बनावटीपन नहीं था, बस रचनात्मकता और प्रशंसा का एक शुद्ध वातावरण था. वे अपने कर्मचारियों के साथ, यहाँ तक कि मेरे साथ भी, हर छोटी-बड़ी बात पर चर्चा करते थे. एक दिन, जब उनके प्रिय सहायक धोंधू अस्वस्थता के कारण सेवानिवृत्त हो गए, तो प्रेम जी ने मुझसे पूछा कि उन्हें क्या उपहार दिया जाए. हमने इस पर डिस्कस की और साथ मिलकर एक बड़ी, कई दराजों वाली अलमारी गिफ्ट में देने पर विचार किया. मुझे याद है, उन्होंने कई खूबसूरत युवतियों में से एक महिला रिसेप्शनिस्ट इंदु को अपने कार्यालय में नियुक्त किया था. इंदु उम्र में बड़ी थीं, सामान्य शक्ल सूरत की थी और एक दिव्यांग महिला थीं जो एक विशेष छड़ी के सहारे के बिना चल नहीं सकती थीं.
एक पत्रकार के रूप में, मुझे प्रेम सागर के काम और समर्पण को करीब से देखने का मौका मिला. वे कभी दबाव में नहीं आए और उन्होंने अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाने की ज़िम्मेदारी बड़े गर्व के साथ ली. उन्होंने उस कलात्मकता और अनुशासन का सपोर्ट किया जिसने सागर समूह को एक महान कलात्मक वर्ल्ड बनाया. समय के साथ टेलीविजन में बदलाव के बावजूद, प्रेम सागर नई प्रतिभाओं को निखारने, नए शो बनाने और गुणवत्ता व मौलिकता की लौ को जलाए रखने के लिए अथक परिश्रम करते रहे. अपने अंतिम क्षणों तक, वे रचनात्मक कार्यों में लगे रहे, हमेशा यह सोचते रहे कि आगे क्या होगा जो दर्शकों को रोमांचित और प्रभावित करेगा.
मेरी यादें मुझे उन दिनों की याद दिलाती हैं जब प्रेम सागर ने मुझसे पुराने ज़माने के अनुशासन और नए ज़माने की रचनात्मकता के बीच एक सेतु बनने की बात की थी. कैमरे की उनकी समझ गहरी थी. वे साधारणता कभी संतुष्ट नहीं होते थे. जब भी वे अपने पिता की उन खूबसूरत और सुपरहिट फ़िल्मों के प्रचार में मदद करते थे, तो हर अभियान बुद्धिमत्ता और व्यक्तिगत जुड़ाव का एक सबक होता था. कोई शॉर्टकट नहीं अपनाया जाता था, सिर्फ़ ईमानदारी पर आधारित शिल्प होता था.
प्रेम सागर का दर्शकों के साथ जुड़ाव अनोखा था. चाहे 'रामायण' की भव्यता हो या 'विक्रम और बेताल' की कल्पनाशील भावना, उन्होंने लाखों लोगों के जीवन को छुआ, खासकर छोटे शहरों और गाँवों के लोगों के जीवन को, जहाँ उनके शो परिवारों को एक साथ टीवी देखने के लिए लाते थे. उनकी कहानियाँ सबक वाली और उत्कृष्ट होती थीं और वे हमेशा यह सुनिश्चित करते थे कि मनोरंजन आशा, विश्वास और संस्कृति का संदेश लेकर आए.
वे लेखकों के लिए एक सच्चे दोस्त और विश्वासपात्र भी थे. मैं इस बात की गवाह हूँ कि कैसे वे घंटों चर्चा करते थे, धैर्यपूर्वक सुनते थे, मार्गदर्शन करते थे और ईमानदार प्रतिक्रिया देते थे. उन्होंने कभी किसी को कमतर महसूस नहीं होने दिया. मेरे जैसे नए ज़माने के पत्रकारों के लिए, प्रेम सागर के साथ काम करना सिर्फ़ एक प्रोफेशनल रिश्ता नहीं था, बल्कि यह पारिवारिक और बेहद संतुष्टिदायक रिश्ता था. उन्होंने मुझे हमेशा स्क्रिप्ट लिखने के लिए प्रेरित किया और मैंने उनके एक धारावाहिक में स्क्रिप्ट लेखन में सहायता भी की.
पिछले साल पुरानी यादों में खोते हुए, मैंने उनसे पूछा कि धोंडू कहाँ है? उन्होंने कहा, "आसमान में, जहाँ हम सभी को कभी न कभी जाना ही पड़ता है." उनकी आवाज़ भावनाओं से भरी हुई थी.
मैं हमेशा उनके संपर्क में रही. लगभग दो महीने पहले मैंने उनका इंटरव्यू लिया था, ज़ोरदार बारिश हो रही थी और उन्होंने बताया कि वे अपने फार्महाउस में दोपहर के भोजन के लिए बैठे थे और बारिश का आनंद ले रहे थे. बातचीत के दौरान मैंने उन्हें बताया कि मेरे पास उनकी एक पुरानी दुर्लभ तस्वीर है. वे खुश हुए और बोले, "मुझे भेज दो, वो हमारे विशेष एल्बम में शामिल हो जाएगी." मैंने उन्हें बताया कि वो तस्वीर मेरी हज़ारों किताबों में से किसी एक किताब में कहीं रखी है और मुझे इसे ढूँढ़ना है. उन्होंने कहा, जल्दी ढूँढ़ो, वरना देर हो जाएगी. मैं इस पर हंसी थी.
लेकिन हाँ, मुझे सचमुच देर हो गई.
जहाँ तक उनके निजी जीवन की बात है, प्रेम सागर अपने पिता द्वारा दिए गए मूल्यों में गहराई से डूबे हुए थे. उन्होंने एक अनुशासित दिनचर्या बनाए रखी और भारत के सबसे कठिन समय में भी, उन्होंने अपने लक्ष्यों को नहीं छोड़ा. उन्होंने सीमाओं को आगे बढ़ाना जारी रखा, चाहे वह कैमरा तकनीकों के साथ प्रयोग करना हो या टेलीविज़न धारावाहिकों के लिए नई कहानियाँ गढ़ना हो.
प्रेम सागर ने अपने पिता, डॉक्टर रामानंद सागर को श्रद्धांजलि स्वरूप "एन एपिक लाइफ: रामानंद सागर" नामक जीवनी लिखी, और अपने पुत्र धर्म का पालन किया. वे कहा करते थे, "हालाँकि मैं अपने महान पिता के द्वारा किए गए उपकारों का ऋण कभी नहीं उतार सकता, लेकिन मैं अपना पुत्र-धर्म निभाने की कोशिश कर रहा हूँ." यह पुस्तक रामानंद सागर के जीवन और करियर का एक अंतरंग विवरण प्रस्तुत करती है, जिसमें कश्मीर से लेकर प्रतिष्ठित टीवी धारावाहिक रामायण के निर्माण तक के उनके सफ़र को शामिल किया गया है और यह उनकी विरासत के प्रमाण के रूप में प्रस्तुत की गई है.
अपने निधन से पहले, वे अपनी विरासत को संजोने में व्यस्त थे, जोश और असीम ऊर्जा के साथ काम करते हुए, अस्वथता में भी निर्माण और रचनात्मक गतिविधियों में लगे हुए थे. अभी भी वे अपनी टीम और परिवार के युवा सदस्यों तथा अपने बुद्धिमान पुत्र श्री शिव सागर का मार्गदर्शन कर रहे थे.
आज, जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूँ, तो मुझे एहसास होता है कि सागर परिवार के इतने करीब होना कितना सौभाग्य की बात थी, एक ऐसा परिवार जो रचनात्मकता, मूल्यों और कम्यूनिटी के लिए खड़ा था. प्रेम सागर की विरासत सिर्फ़ फ़िल्में, शो या पुरस्कार नहीं हैं, बल्कि उन्होने अपनी दयालुता, ईमानदारी से अपने आसपास के हर व्यक्ति को छुआ. लाखों लोगों के पास उनके काम की यादें हैं.
उनके जाने से एक अनमोल युग का अंत हो गया. फिर भी उनकी यादें, शिक्षाएँ और उनके द्वारा जीवंत की गईं कहानियाँ हमेशा ज़िंदा रहेंगी. उनके द्वारा शूट किया गया हर फ्रेम, उनके द्वारा निर्देशित हर सीरीज़, उनके द्वारा उन लोगों से कहे गए हर शब्द जिनकी वे परवाह करते थे, ये वो सच्चे खजाने हैं जो वे अपने पीछे छोड़ गए हैं. एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो उनकी दुनिया में मौजूद था, उस व्यक्ति के पीछे छिपे सच्चे दिल को देख पाया. मैं पूरे मन से कहती हूँ, 'प्रेम सागर सिर्फ़ स्वर्ण पदक विजेता छायाकार, निर्देशक और निर्माता ही नहीं थे, वे प्रेम, दयालुता और रचनात्मकता के सागर थे जिन्होंने भारतीय सिनेमा और टेलीविज़न को संस्कार, पुराण से सजाने में मदद की.' उनके जीवन के रंगमंच का पर्दा भले ही बंद हो जाए, लेकिन उनकी विरासत हमेशा दुनिया को रोशन करेगी. स्व. प्रेम सागर के अंत्येष्टि स्थल, पवन हंस क्रिमेशन ग्राउंड है.
PREM SAGAR FUNERAL
FAQ About Prem Sagar
प्रेम सागर कौन थे? (Who was Prem Sagar?)
प्रेम सागर महान फिल्म निर्माता रामानंद सागर के पुत्र थे. वे एक फिल्म निर्माता, लेखक और निर्माता थे जिन्होंने सागर आर्ट्स की विरासत को आगे बढ़ाया.
प्रेम सागर की कुछ उल्लेखनीय कृतियाँ क्या हैं? (What are some of Prem Sagar’s most notable works?)
प्रेम सागर ने आरज़ू, गीत, ललकार और भागवत जैसी प्रतिष्ठित फिल्मों में योगदान दिया और रामायण, श्री कृष्णा, साईं बाबा, पृथ्वीराज चौहान और महिमा शनिदेव की जैसी क्लासिक टीवी धारावाहिकों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
रामायण की सफलता में प्रेम सागर की क्या भूमिका थी? (What role did Prem Sagar play in the success of Ramayan?)
उन्होंने छायांकन, पटकथा लेखन, विपणन और निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे रामायण भारतीय इतिहास के सबसे प्रभावशाली टीवी धारावाहिकों में से एक बन गया.
प्रेम सागर को उनके व्यक्तिगत परिचित लोग कैसे याद करते हैं? (How was Prem Sagar remembered by people who knew him personally?)
वे अपनी विनम्रता, दयालुता और उद्योग के दिग्गजों से लेकर नए लोगों तक, सभी को सम्मानित और शामिल महसूस कराने की क्षमता के लिए जाने जाते थे.
प्रेम सागर की स्थायी विरासत क्या है? (What is Prem Sagar’s lasting legacy?)
उनकी विरासत न केवल उनके द्वारा बनाई गई फिल्मों और शो में निहित है, बल्कि रचनात्मकता, सम्मान और समुदाय के उन मूल्यों में भी निहित है जिन्हें उन्होंने जीवन भर कायम रखा.
Read More
Tags : doctor ramanand sagar | Dr Ramanand Sagar | Laxman in Ramayan Ramanand Sagar | Ramanand Sagar Awards | Ramanand Sagar Biography | Ramanand Sagar acted in Ramayan | Ramanand Sagar birthday | ramanand sagar films | Ramanand Sagar Death Anniversary | ramanand sagar got the idea of ramayan | Ramanand Sagar Ki Ramayan | Ramanand Sagar ki Padpauti | ramanand sagar ki ramayan ke ram | ramanand sagar luv kush | ramanand sagar ramayan | ramanand sagar ramayan all episodes | ramanand sagar ramayan cast | ramanand sagar shri krishna | Ramanand Sagar Shri Krishna Re telecast soon | Ramanand Sagar Son Pream Sagar Death | Ramanand Sagar Struggle Story | Prem Sagar Death News | Arun Govil paid Tribute to Prem Sagar