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Geetkaar Asad Bhopali Birth Anniversary: वो शायर जिसने रोमांस और दर्द को गीतों में पिरोया

 ताजा खबर: 10 जुलाई को हिंदी सिनेमा के एक ऐसे गीतकार की जयंती है, जिनका नाम भले ही आम दर्शकों की जुबां पर न हो, लेकिन उनके लिखे गीत आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं.

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Geetkaar Asad Bhopali Birth Anniversary
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 ताजा खबर:Asad Bhopali Birth Anniversary: 10 जुलाई को हिंदी सिनेमा के एक ऐसे गीतकार की जयंती है, जिनका नाम भले ही आम दर्शकों की जुबां पर न हो, लेकिन उनके लिखे गीत आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं. असद भोपाली एक ऐसा नाम, जिसकी कलम से निकले शब्दों ने कभी इश्क़ को छेड़ा, कभी जुदाई का दर्द बयां किया और कभी मासूमियत भरे नग़मों से श्रोताओं को मुस्कुराने पर मजबूर कर दिया.

भोपाल से मायानगरी तक का सफर

Asad Bhopali

असद भोपाली का जन्म 10 जुलाई 1921 को मध्य प्रदेश की सांस्कृतिक नगरी भोपाल में हुआ था. उनका असली नाम असदुल्लाह ख़ान था. उनके पिता मुंशी अहमद ख़ान अरबी और फारसी के शिक्षक थे. साहित्यिक वातावरण में पले-बढ़े असद को बचपन से ही शायरी से मोहब्बत थी. वे कॉलेज के दिनों में कविताएं और ग़ज़लें लिखते व सुनाया करते थे.

1949 में मिली पहली फिल्म (Asad Bhopali intresting fact)

asad bhopali

1949 में भोपाल के एक मुशायरे में फिल्म निर्माता फजली ब्रदर्स की नजर उन पर पड़ी. उन्होंने फिल्म ‘दुनिया’ के लिए असद भोपाली को गीत लिखने का मौका दिया क्योंकि उस वक्त के गीतकार आरजू लखनवी विभाजन के बाद पाकिस्तान चले गए थे. इस तरह 28 साल की उम्र में असद भोपाली ने बॉलीवुड में अपने करियर की शुरुआत की.

100 से अधिक फिल्मों के गीतकार (Asad Bhopali Best Songs)

असद भोपाली ने लगभग चार दशकों तक फिल्मों के लिए गीत लिखे. उन्होंने रोमांटिक, दर्दभरे, प्रेरणादायक और हास्य सभी तरह के गीतों को अपनी कलम से सजाया. उनके कुछ प्रसिद्ध गीत इस प्रकार हैं:

  • ‘वो जब याद आए, बहुत याद आए’ (फिल्म: पारसमणि)

  • ‘हंसता हुआ नूरानी चेहरा’ (पारसमणि)

  • ‘कबूतर जा जा जा’, ‘दिल दीवाना’, ‘मेरे रंग में रंगने वाली’ (मैंने प्यार किया)

सलमान खान की सफलता में अहम भूमिका

1989 में आई 'मैंने प्यार किया' फिल्म ने जहां सलमान खान को सुपरस्टार बना दिया, वहीं इसके गीतों ने असद भोपाली को फिर से नई पहचान दी. ‘दिल दीवाना’ के लिए उन्हें 1990 में फिल्मफेयर अवॉर्ड से नवाज़ा गया. दुर्भाग्यवश, उस समय वह पैरालिसिस की वजह से समारोह में शामिल नहीं हो सके.

उनके गीतों में थी गहराई और सादगी

असद भोपाली के गीतों में गहरी भावनाएं होती थीं. 1952 में आई फिल्म ‘मोती महल’ का गीत—
"जाएगा जब यहां से कुछ भी न पास होगा,
दो गज कफ़न का टुकड़ा तेरा लिबास होगा"
आज भी जीवन की सच्चाई को दर्शाने वाले श्रेष्ठ गीतों में गिना जाता है.

दो शादियां की थीं (Asad Bhopali Personal Life)

असद भोपाली का निजी जीवन भी संघर्षों से भरा रहा. उन्होंने दो शादियां की थीं. पहली पत्नी से उनके आठ बच्चे हुए, जबकि दूसरी पत्नी से एक बेटा ग़ालिब असद भोपाली, जो आगे चलकर खुद भी लेखक बने.अभिनेत्री तबस्सुम ने एक इंटरव्यू में बताया था कि असद अक्सर कहते थे, “मेरी सबसे वफादार साथी गरीबी रही है.”

अंतिम समय (Asad Bhopali Death)

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9 जून 1990 को उनका निधन  हो गया. उनका जीवन भले ही चकाचौंध से दूर रहा हो, लेकिन उनकी लेखनी ने बॉलीवुड संगीत को अमूल्य तोहफे दिए

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