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Kangana Ranaut On Politics: "न सम्मान मिलता है, न अधिकार", सांसद बनने पर फूटी कंगना की भड़ास

ताजा खबर: बॉलीवुड की 'क्वीन' कंगना रनौत जितनी चर्चाओं में अपने अभिनय के लिए रहती हैं, उतनी ही सुर्खियाँ अब वे अपने राजनीतिक बयानों से बटोर रही हैं.

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ताजा खबर: बॉलीवुड की 'क्वीन' कंगना रनौत (Bollywood actress kangana ranaut) जितनी चर्चाओं में अपने अभिनय के लिए रहती हैं, उतनी ही सुर्खियाँ अब वे अपने राजनीतिक बयानों से बटोर रही हैं. हाल ही में हिमाचल प्रदेश के मंडी से सांसद बनी कंगना (MP kangana ranaut) की बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में देरी से हुई यात्रा के बाद आलोचना का सामना करना पड़ा. इस बीच उन्होंने एक इंटरव्यू में अपनी पहली राजनीतिक पारी को लेकर जो बयान दिए, वो भी खूब चर्चा में रहे.कंगना ने खुलकर स्वीकार किया कि उन्हें सांसद बनने में कोई विशेष आनंद नहीं आ रहा. उन्होंने राजनीति को “बहुत महंगा शौक” बताया और कहा कि सांसदों की स्थिति ऐसी होती है जैसे “सांझ का उजाला” न राज्य सरकार के साथ पूरी पकड़, न ही केंद्र में पूरी पहुंच.

“हम कहीं के नहीं रहते”: कंगना का तंज

Kangana Ranaut

कंगना ने मीडिया को दिए इंटरव्यू में कहा, “जब आप अपने राज्य जाते हैं तो वहां कोई स्थायी जगह नहीं होती जहां आप कुछ चला सकें या जुड़े हुए महसूस करें. और जब आप दिल्ली आते हैं, तो मंत्रियों के दफ्तरों के बाहर लाइन में खड़े रहना पड़ता है.”उन्होंने यह भी कहा कि आजकल पंचायतों और विधायकों (MLA) के पास सांसदों से ज्यादा बजट होता है. “हम बात करते हैं आपस में कि हमें कोई विशेषाधिकार नहीं है, हम बस संघर्ष करते रहते हैं. हमें सम्मान नहीं मिलता.”

“Disha समिति जैसी योजनाएं ही सांसदों को कुछ अधिकार देती हैं”

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कंगना ने ज़िला विकास समन्वय और निगरानी समिति (Disha) की सराहना करते हुए कहा कि यह सांसदों के लिए बेहद आवश्यक पहल है. उन्होंने कहा, “अगर हमें ज़िलाधिकारियों या राज्य सरकार के अधीन काम करने वालों से सवाल पूछने का भी अधिकार न मिले, तो सांसद पद का कोई औचित्य नहीं बचेगा.”उनके अनुसार DISHA समिति सांसदों को वह भूमिका देती है जो उन्हें राज्य और केंद्र के बीच संपर्क की कड़ी के रूप में निभानी होती है. वे मानती हैं कि यह समिति सांसदों की उसी झुंझलाहट के चलते बनाई गई है, जब यह स्पष्ट नहीं था कि सांसद का असली काम क्या है.

“MLAs बेहद क्षेत्रीय होते हैं, मंत्री बिजी रहते हैं”

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कंगना ने यह भी आरोप लगाया कि विधायक बहुत ‘टेरिटोरियल’ यानी अपने क्षेत्र में हस्तक्षेप पसंद नहीं करते. वहीं, केंद्रीय मंत्री इतने व्यस्त रहते हैं कि सांसदों को उनसे मिलने में बहुत मेहनत करनी पड़ती है.कंगना का यह बयान दिखाता है कि वे राजनीति को भी उतनी ही बेबाकी से देखती हैं जितनी फिल्म इंडस्ट्री को. अपने अभिनय करियर में भी उन्होंने हमेशा बिना किसी लाग-लपेट के बातें की हैं, और अब संसद में रहकर भी वे वैसी ही शैली अपनाए हुए हैं

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