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ताजा खबर: khursheed bano death anniversary:हिंदी सिनेमा में कई ऐसे रत्न रहे हैं, जिन पर उसे गर्व है. हालांकि, भारत-पाकिस्तान के बंटवारे ने कुछ कलाकारों की जिंदगी को इस तरह तबाह कर दिया कि हिंदी सिनेमा उनके लिए तरसता रहा. उस दौर में कई कलाकारों को भारत छोड़कर पाकिस्तान में बसना पड़ा. इन्हीं में से एक थीं मशहूर गायिका और अभिनेत्री खुर्शीद बानो. अपनी आवाज के जादू से बॉलीवुड को कई बेहतरीन गाने देने वाली खुर्शीद बानो की पुण्यतिथि पर आइए आपको उनकी कहानी से रूबरू कराते हैं.
लाहौर में जन्म
प्रतिभाशाली खुर्शीद बानो का जन्म khursheed bano Birth Place)कराची में हुआ था. अपनी कला के बल पर उन्होंने भले ही खुर्शीद बानो के नाम से लोगों के दिलों पर राज किया हो, लेकिन उनका असली नाम khursheed bano Real Name) इरशाद बेगम था. एक जमाने में जब फिल्मों में आवाज नहीं होती थी, तब खुर्शीद बानो ने अपनी शानदार एक्टिंग से हिंदी सिनेमा को सजाया. खुर्शीद बानो ने साल 1931 में मूक फिल्म 'आई फॉर एन आई' से अपने फिल्मी सफर की शुरुआत की थी. सिनेमा की दुनिया में कदम रखने के बाद खुर्शीद बानो (khursheed bano family) ने एक के बाद एक कई फिल्मों में काम किया. ऐसे मिले थे हुनर को पंख
खुर्शीद बानो कई फिल्मों में काम करके सफलता की सीढ़ियां चढ़ रही थीं, लेकिन रंजीत मूवीटोन की फिल्मों ने उनके फिल्मी सफर को पंख दिए. अभिनेत्री ने लाहौर छोड़ दिया और मुंबई में केएल सहगल और मोतीलाल जैसे अभिनेताओं के साथ काम करना शुरू कर दिया। 1931 में शुरू हुए इस सफर में खुर्शीद बानो के जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए। हालांकि, उन्हें प्रसिद्धि चतुर्भुज दोषी की 1942 में रिलीज हुई 'भक्त सूरदास' और 1943 में रिलीज हुई 'तानसेन' से मिली. इस फिल्म में खुर्शीद बानो ने गायक-अभिनेता केएल सहगल के साथ काम किया, जो उनके करियर के लिए अच्छा साबित हुआ. अभिनय के साथ-साथ खुर्शीद बानो को उनकी आवाज के लिए भी याद किया जाता है। 'बरसो रे', 'अब राजा भई मोरे बालम' जैसे उनके कई गाने आज भी लोग बड़े चाव से सुनते हैं.
जब खुर्शीद ने छोड़ा भारत
फिर एक समय ऐसा आया जब खुर्शीद को अपने पति (khursheed bano Husband) लाला याकूब के साथ भारत छोड़कर पाकिस्तान जाना पड़ा भारतीय सिनेमा के लिए उनकी आखिरी फिल्म 'पपीहा रे' थी, जो 1948 में रिलीज हुई थी। इस फिल्म के बाद, अभिनेत्री ने उसी वर्ष हमेशा के लिए भारत छोड़ दिया। लाला याकूब एक अभिनेता होने के अलावा, भाटी गेट ग्रुप, लाहौर, पाकिस्तान के सदस्य भी थे। उनकी शादी लंबे समय तक नहीं चली। लाला याकूब से तलाक लेने के बाद खुर्शीद बानो ने यूसुफ भाई मियां से शादी कर ली. लैला मजनू, मुफलिस आशिक, नकली डॉक्टर, बम शेल और मिर्जा साहिबान, किमियागर, मधुर मिलन जैसी फिल्मों में नजर आईं
पाकिस्तान प्रवास
भारत में उनकी आखिरी फिल्म पपीहा रे (1948) थी, जो पाकिस्तान प्रवास से पहले एक बड़ी हिट रही थी, जिसने भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में उनकी छाप छोड़ी. खुर्शीद 1948 में स्वतंत्रता के बाद अपने पति के साथ पाकिस्तान चली गईं और कराची, सिंध, पाकिस्तान में बस गईं,उन्होंने 1956 में दो फिल्मों में काम किया, फ़नकार और मंडी, मंडी खुर्शीद और संगीतकार रफ़ीक ग़ज़नवी की वजह से उल्लेखनीय थी, लेकिन फ़िल्म के खराब संचालन के कारण, फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस पर सफल नहीं हुई. कराची में सेंट पॉल इंग्लिश हाई स्कूल में भौतिकी के शिक्षक रॉबर्ट मलिक द्वारा निर्मित दूसरी फ़िल्म फ़नकार का भी यही हश्र हुआ.
पर्सनल लाइफ
खुर्शीद ने अपने मैनेजर लाला याकूब (प्रसिद्ध भारतीय अभिनेता याकूब से भ्रमित न हों) से शादी की, जो कारदार प्रोडक्शंस के साथ एक छोटे समय के अभिनेता और भाटी गेट ग्रुप, लाहौर, पाकिस्तान के सदस्य थे. व्यक्तिगत समस्याओं के कारण, उन्होंने 1956 में याकूब से तलाक ले लिया. उन्होंने 1956 में यूसुफ भाई मियां से शादी की, जो शिपिंग व्यवसाय में थे. उनके तीन बच्चे थे और उन्होंने 1956 में अपनी आखिरी फिल्म के बाद फिल्मों में काम करना बंद कर दिया था.खुर्शीद बानो ने अपने 87वें जन्मदिन के चार दिन बाद 18 अप्रैल 2001 को अंतिम सांस ली. उस समय वह कराची, पाकिस्तान में थीं
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