यह वो फिल्म है जिसने एक सच्चे प्रेमी, एक अद्भुत कलाकार का दिल तोड़ने के बाद, उसे मर जाने पर मजबूर करने के बाद इतिहास रच दिया. एक अर्थपूर्ण नाम के साथ बनी फ़िल्म 'कागज़ के फूल' गुरुदत्त जैसे कल्पनाशील थिंकर के लिए वो अभिशाप जैसी फ़िल्म बन गई थी जिसे पहचाने जाने में दशकों लग गए. और जब तक काग़ज़ के फूल की जादुई खुशबू पूरी दुनिया के फिल्म मेकर की सोच को बदल देता, बहुत देर हो चुकी थी. लेकिन आखिर दो जनवरी 1959 में रिलीज हुई 'कागज के फूल' वो फिल्म साबित हुई जो भारतीय सिनेमा में गेम-चेंजर बन गई. महान फ़िल्म मेकर गुरु दत्त द्वारा निर्देशित, (जिन्होंने इसमें खुद मुख्य भूमिका भी निभाई थी) यह फिल्म अपने समय से बहुत आगे थी. गुरू दत्त की दूरदर्शिता इस फ़िल्म में अभूतपूर्व तकनीकी चमत्कार ले आई थी साठ के दशक से पहले बनी यह फिल्म सिनेमास्कोप में शूट की गई पहली भारतीय फिल्म थी.गुरुदत्त को कुछ अनोखा बनाने का इतना जुनून था कि उन्होंने इस एक ही फिल्म से भारतीय सिनेमाटोग्राफी में क्रांति ला दी थी . कागज के फूल की कहानी एक दिल दहला देने वाली साजिश जैसी थी कहानी एक प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक सुरेश सिन्हा (गुरु दत्त) की है, जिनका व्यक्तिगत जीवन टूट कर बिखर रहा है. पत्नी वीना (वीना) और पत्नी के परिवार को सुरेश सिन्हा का सुप्रसिद्ध फ़िल्म मेकर होना पसंद नहीं. लिहाजा उसकी शादी टूट रही है, और पत्नी से संबंधि विच्छेद हों जाने के कारण उसका अपनी नन्ही बेटी पम्मी (बेबी नाज़) से भी संबंध टूटने लगता है जो सुरेश के लिए असहनीय है. उन्ही दिनों उसकी मुलाकात एक सुंदर, युवा अनाथ लड़की शांति (वहीदा रहमान) से होती है. सुरेश उसे अपनी फ़िल्म में चांस देता है. फ़िल्म सुपर हिट हो जाती है और रातों रात शांति टॉप स्टार बन जाती है. धीरे धीरे अकेलेपन से जूझ रहे दो दिल सुरेश और शांति करीब आने लगते हैं. उधर पत्र पत्रिकाओं में उनके प्रेम को लेकर खूब गॉसिप होने लगती है. स्कूल में पढ़ रही सुरेश की बेटी पम्मी को इन गॉसिप की वजह से स्कूल में बहुत प्रताड़ना सहनी पड़ती है. एक दिन वो छिप कर शांति से मिलकर और उसे उसके पापा से दूर होने की बहुत गुज़ारिश करती है जिससे मजबूर हो कर शांति किशोर से दूर हो जाती है. उधर किशोर को डाइवोर्स के बाद कोर्ट ऑर्डर के अनुसार उसकी बेटी पम्मी की कस्टडी नहीं मिलती. बेटी के गम और प्रेमिका शांति को खो देने के कारण सुरेश दुख और अकेलेपन से डिप्रेशन और शराब में डूब जाता है. उसका फ़िल्म करिअर बर्बाद हो जाता है, उसका सब कुछ बिक जाता है, यहां तक कि बैठने के लिए उसके घर में कुर्सी भी नहीं होती है और वह बाल्टी को उल्टा करके कुर्सी का काम लेता है. अब उसे फिल्म डायरेक्शन का ऑफर नहीं मिलता है. उसकी यह दशा देखकर शांति उसे अपनी एक फ़िल्म में निर्देशक का काम दिलवाती है लेकिन सुरेश अपने, आत्म सम्मान के चलते वह ऑफर स्वीकार नहीं करता है और एक दिन अपने वैभवशाली अतीत को याद करते करते, बिल्कुल अकेले एक पुराने खाली स्टूडियो में कुर्सी पर बैठे बैठे दम तोड़ देता है. फ़िल्म में जॉनी वॉकर और महमूद की भी प्रमुख भूमिका है फिल्म का संगीत एस.डी. बर्मन का है. लीरिक्स कैफी आजमी की है. बर्मन असाधारण थे, इस फ़िल्म में वो सारे गीत 'वक्त ने किया क्या हसीं सितम', देखी जमाने की यारी बिछड़े सभी बारी-बारी',' सन सन सन वह चली हवा',' उड़ जा उड़ जा प्यासे भंवरे ',' हम तुम जिसे कहते हैं' इस फ़िल्म के सारे गीत क्लासिक बन गए. 20 सर्वश्रेष्ठ हिंदी फिल्मी गाने में' वक्त ने किया क्या हंसी सितम तीसरे सदा बहार फिल्मों में शुमार रही है. दिलचस्प बात यह है कि एस.डी. बर्मन ने गुरु दत्त को यह फिल्म न बनाने की चेतावनी दी थी क्योंकि उनके अनुसार यह फिल्म गुरुदत्त की मिलती जुलती जीवनी को दुनिया के सामने ला सकती है लेकिन गुरुदत्त के जिद करने पर एसडी बर्मन ने नाराजगी के साथ कहा था कि यह दत्त के साथ उनका आखिरी फ़िल्म होगी . फिल्म की कहानी दत्त के निजी जीवन के बहुत करीब बताई गई है. जब यह फिल्म रिलीज़ हुई तो पूरी तरह से बॉक्स ऑफिस पर असफल रही. लोगों को इसकी गहराई समझ नहीं आई. लेकिन धीरे धीरे 1980 के दशक तक आते आते , यह एक कल्ट क्लासिक में बदल गया था. फिल्म को बड़े पैमाने पर वैश्विक सराहना मिली. इस फ़िल्म को साइट एंड साउंड की महानतम फिल्मों की सूची में 160 वाँ स्थान मिला. ब्रिटिश फिल्म इंस्टीट्यूट की शीर्ष 20 भारतीय फिल्मों में इसे सूचीबद्ध किया गया. इस फ़िल्म को एनडीटीवी द्वारा "भारत की 20 महानतम फिल्मों" में से एक के रूप में मान्यता प्राप्त हुई. फ़िल्म के छायाकार वी.के. मूर्ति इतने असाधारण थे कि उन्होंने इस फ़िल्म के लिए फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सिनेमैटोग्राफर पुरस्कार जीता. अभिनेता शम्मी कपूर ने यहां तक कहा था कि मूर्ति ही फिल्म के असली सितारे थे. इस फिल्म की असफलता का गुरुदत्त पर गहरा प्रभाव पड़ा. उन्होंने कागज़ के फूल के बाद कभी भी आधिकारिक तौर पर किसी अन्य फिल्म का निर्देशन नहीं किया, जिससे एक अद्भुत निर्देशक की निर्देशन यात्रा का अंत हो गया. आज यह फिल्म कई फिल्म स्कूलों में पाठ्यक्रम का हिस्सा है. इसे भारत में अब तक बनी सबसे बेहतरीन आत्मचिंतनशील फिल्म माना जाता है, जो फिल्म इंडस्ट्री की क्रूर वास्तविकता को दर्शाती है. महान फिल्म निर्देशक गुरुदत्त की यह एक अद्भुत कृति जो अपने समय के हिसाब से बहुत आगे थी, कागज़ के फूल गुरु दत्त की अविश्वसनीय दृष्टि और कलात्मक प्रतिभा का प्रमाण है. "हम तुम जिसे कहते हैं शादी" गीत की धुन "क्यू सेरा, सेरा (जो कुछ भी होगा)" से प्रेरित थी, जिसे जे लिविंगस्टन और रे इवांस ने लिखा था और फिल्म द मैन हू न्यू टू मच (1956) में दिखाई दिया था. यह फिल्म अब भारतीय सिनेमा की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक मानी जाती है. यह क्लासिक लगभग 60 साल पहले के समय से आगे था. उस वक्त इस फिल्म की वजह से गुरुदत्त को काफी पैसों का नुकसान हुआ. इस फिल्म के बाद गुरु दत्त ने फिल्मों का निर्देशन करना बंद कर दिया और दुनिया ने एक महान निर्देशक खो दिया. कुछ पुराने फिल्मी जानकारों का कहना है कि यह फिल्म ज्ञान मुखर्जी के जीवन से प्रेरित है, जिनका गुरु दत्त के साथ घनिष्ठ संबंध था. कागज के फूल के बाद, गुरु दत्त ने फिल्मों का निर्देशन करना बंद कर दिया, लेकिन अपने मित्र अबरार अल्वी और एम. सादिक के साथ फिल्मों का निर्माण जारी रखा. अपने अंतिम दिनों में वह अपने मित्र देव आनंद को मुख्य भूमिका में लेकर एक रंगीन फिल्म निर्देशित करने की योजना बना रहे थे, लेकिन इससे पहले वे डिप्रेशन में डूब गए और उन्हें कभी वो समय नहीं मिला. इस फ़िल्म को 2002 में साइट एंड साउंड की सर्वकालिक शीर्ष 160 महानतम फिल्मों में स्थान दिया गया. माना जाता है कि गुरु दत्त को इस फिल्म से 17 करोड़ का नुकसान हुआ था. इस फिल्म के साथ मुंबई के बांद्रा में एक सिनेमाघर न्यू टॉकीज को सिनेमास्कोप में अपग्रेड किया गया था. आलोचकों के आधार पर 2022 की फिल्म चुप ने गुरु दत्त और कागज के फूल में उनके महान काम को श्रद्धांजलि दी. इस फिल्म का एक गीत, 'वक़्त ने किया क्या हसीं सितम' बारटेंडर द्वारा किया गया था. बारटेंडर मिकी मैक्लेरी की परियोजनाओं में से एक है जहां वह समकालीन टच और एक नए अनुभव के साथ बॉलीवुड क्लासिक्स की फिर से व्याख्या करते हैं. यह ट्रैक मौली डेव द्वारा गाया गया था और द बारटेंडर के पहले एल्बम, क्लासिक बॉलीवुड: शेकन, नॉट स्टिर्रेड में शामिल था. एक और गीत, 'तुम जिसे कहते हैं', डोरिस डे क्यू सेरा सेरा को शादी गाने में नमूना किया गया था. फिल्म की शुरुआत और एंड को 2016 में, मराठी फिल्म 'नटसम्राट' में भी प्रेरणा स्वरूप पिरोया गया था, जिसमें नाना पाटेकर एक भूले हुए मंच अभिनेता और निर्देशक की भूमिका निभाते हैं जो अपने अंतिम दिनों में कठिनाइयों का सामना करते हैं. 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