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रेटिंग: चार स्टार
निर्माता: नवीन येरनेनी और वाई रवि शंकर
लेखक: सुकुमार और श्रीकांत विस्सा
निर्देशक: सुकुमार
कलाकार: अल्लू अर्जुन,रश्मिका मंदाना,फहद फासिल, जगदीश प्रताप भंडारी, जगपति बाबू, प्रकाश राज, राव रमेश, सौरभ सचदेवा, ब्रह्माजी और श्रीलीला
अवधिः तीन घंटा बीस मिनट
भाषाः तेलुगु, तमिल, हिंदी, कन्नड़, मलयालम
बॉलीवुड के फिल्मकार अपनी सफल फिल्म को भुनाने के लिए उसका सिक्वअल बनाते हैं,मगर सिर्फ किरदार पहली फिल्म के होते हैं, जबकि कहानी एकदम नई होती है. सच तो यह है कि पहली फिल्म के ही किरदार व कहानी को आगे बढ़ाते हुए सिक्वअल फिल्म में पेश करना सबसे बड़ी चुनौती होती है, जिसे करने से बॉलीवुड का फिल्मकार बचता रहता है. मगर इस चुनौती को स्वीकार करते हुए तेलुगु फिल्मों के मशहूर निर्देशक सुकुमार अपनी 2021 की सफलतम फिल्म 'पुष्पाः द राइज' का सिक्वअल "पुष्पा 2: द रूल" लेकर आए हैं. तीन घंटे 20 मिनट की लंबी अवधि वाली उनकी यह फिल्म अंत तक दर्शकों को बांधकर रखती है. कमाल का निर्देशन, कमाल के एक्षन द्रश्य और कलाकारों की परफार्मेंस भी कमाल की है. 'पुष्पाः द राइज' की सफलता में इसके वायरल संवाद और संगीत का बड़ा योगदान था. मगर 'पुष्पा 2: द रूल' का कमजोर पक्ष संगीत ही है. फिल्म के संवाद व कहानी पहले से बेहतर है. लाल चंदन की बड़े स्तर पर तस्करी कर लेबर यूनियन सिंडिकेट के अध्यक्ष पद पर पुष्पाराज (अल्लू अर्जुन) 3 साल पहले पुष्पा-द राइज में ही बैठ गया था और उसने अपनी प्रेमिका श्रीवल्ली (रश्मिका मंदाना) से शादी कर हैप्पी एंडिंग की थी. लेकिन उस दौरान उसका नया दुश्मन इंस्पेक्टर भवंर सिंह शेखावत (फहाद फासिल) भी तैयार हो गया थी और अब इसी बदले की कहानी को दिखाया गया है. इस बार लाल चंदन की कालाबाजारी नेशनल नहीं, इंटरनेशनल लेवल पर देखने को मिलती है.
कहानीः
पुष्पाराज (अल्लू अर्जुन) को अग्नि कहा जाता है, लेकिन उनका परिचय जल से होता है. फिल्म की शुरुआत जापान में चंदन की लकड़ी के कंटेनर पहुँचने से मचे हंगामे और पुष्पा के एक्षन व जापानी भाषा में बात करने से होती है. जापानी सुरक्षा बलो से मुठभेड़ के दौरान पुष्पा के दिल में गोली लगती है और वह पानी में गिर जाता है और यह द्रश्य अचानक खत्म हो जाता है. हकीकत में यह द्रश्य पुष्पा के सपने का हिस्सा है. इसके बाद कहानी वहीं से शुरू होती है, जहां पहले भाग की कहानी खत्म हुई थी. पुराने प्रतिद्वंद्वी श्रीनु (सुनील) और उसकी गुस्सैल पत्नी दक्षा (अनसूया भारद्वाज) उस तस्करी सिंडिकेट पर फिर से नियंत्रण हासिल करना चाहते हैं जिसे पुष्पा अब नियंत्रित करता है. पुलिस इंस्पेक्टर भंवर सिंह शेखावत (फहद फासिल) पुष्पराज से बदला लेना चाहता है. इसके लिए पुष्पा को नैतिक और पेशेवर रूप से हराने के लिए शेखावत, पुष्पा को उसी के अपने तस्करी के सिंडिकेट से बाहर करने योजना पर काम कर रहा है. लेकिन पुष्पराज काम में प्रतिभाशाली है, और वह हर बार शेखावत को पराजित और निःशब्द कर देता है. उनकी पत्नी श्रीवल्ली (रश्मिका मदनन्ना) और केशव (जगदीश प्रताप भंडारी) के नेतृत्व में उनके वफादार अनुयायी उनकी पूजा करते हैं. पुष्पा का अपने गले पर हाथ फिराने का इशारा अब एक नृत्य मुद्रा है. जब कहानी आगे बढ़ी है तो स्वाभाविक तौर पर पुष्पराज का चरित्र विकास भी हुआ है. अब उसके शारीर पर सोने के जेवर ही नजर आते हैं. उसके पास शक्ति है, तो वह किसी की कहां सुनने वाला. उसकी अहंकारी इच्छाएं और आत्म-सम्मान की जिद उसके दुश्मनों के लिए बहुत परेशानी का कारण बनती हैं. अब पुष्पा वह मजदूर नहीं रहा, वो बड़ा आदमी बन गया है. लेकिन आज भी श्रीवल्ली (रश्मिका मंदाना) उसे अपनी उंगलियों पर नचाती हैं. तभी तो एक तरफ पुष्पराज अपनी पत्नी श्री वल्ली की मुख्यमंत्री संग फोटो के लिए राज्य के मुख्यमंत्री को ही बदलवा देता है. तो वहीं श्रीवल्ली, पुष्पा की प्रतिष्ठा व मान सम्मान को बचाने के लिए पूरी दुनिया और यहां तक कि रिश्तेदारों से लड़ने के लिए तैयार है. अंततः भंवर सिंह शेखावत खुद ही अपने आपको खत्म करने पर मजबूर हो जाता है,तो दूसरी तरफ पुष्पराज का सौतेला भाई मोहन (अजय) उससे माफी मांग कर उसे अपने परिवार, खानदान व गोत्र का हिस्सा स्वीकार कर लेता है.
रिव्यूः
सबसे पहले तो मैं यही कहूंगा कि बॉलीवुड के हर कलाकार और फिल्म सर्जक को 'पुष्पा 2 द रूल' देखकर सबक लेना चाहिए. बॉलीवुड के दिग्गज कलाकार आज तक जो करनामा नही कर पाए, वह तेलुगु निर्देशक सुकुमार व अभिनेता अल्लू अर्जन ने अंजाम दे दिया. इस फिल्म के सामने 'स्त्री 2','सिंघम अगेन' और 'भूल भुलैया 3' की कमाई की चमक भी काफी फीकी होना तय है. 'पुष्पा 2: द रूल' देखने के बाद हम कह सकते हैं कि इस फिल्म का पहले दिन का बाक्स आफिस कलेक्षन, 'सिंघम अगेन' व 'भूल भुलैंया 3' के लाइफ टाइम कलेक्षन को भी मात देने वाला है. यॅूं तो फिल्म की कहानी बहुत छोटी सी है. एक तरफ पुष्पाराज व भावर सिंह शेखावत के बीच बदला लेने की कहानी है तो दूसरी तरफ पुष्पाराज द्वारा अपना हक व मान सम्मान पाने की लड़ाई है. मगर फिल्म की पटकथा कमाल की है. यॅूं तो फिल्म की लंबाई देखकर कुछ लोग कह सकते है कि फिल्म के शुरू होने पर पुष्पा राज का जापान वाला जो लंबा सपने का द्रश्य है, उसे काटकर फिल्म को छोटी बनाया जा सकता था और इससे कहानी पर असर नही पड़ता. लोगों की यह राय भी सही है. मगर निर्देशक शिवकुमार दूरदर्शी सोच वाले निर्देशक है. उन्होने इस सपने के द्रश्य को रूपक तौर पर पेश कर यह बताने का प्रयास किया है कि पुष्पाराज अब नेशनल नही इंटरनेशनल हो गया है और दूसरी बात यह कि पुष्पा 3' में कहानी जापान जा सकती है, क्योंकि फिल्म के पहले भाग में जिस मुद्दे को उठाया गया था, वह मुद्दा 'पुष्पा 2' में खत्म हो गया है, पर पुष्पा 2' के अंत में एक नए खलनायक के पैदा होने का संकेत भी दिया गया है. इसे कहते है लेखक व निर्देशक की अद्भुत और दूरदर्शी सोच. लेखक व निर्देशक सुकुमार ने साबित कर दिया कि उन्हें कंटेंट और दर्शकों की पसंद की नब्ज पता है और वह लंबी फिल्म में भी दर्शक को बोर न होने देने की कूवत रखते है. फिल्म के संवाद काफी अच्छे है. और इन संवादों को सुनकर दर्शक ताली बजाने से बाज नही आ सकता.
"फ्लावर समझे क्या? फायर है मैं" जैसे संवाद में अल्लू अर्जुन का स्वैग दर्शकों को ताली बजाने पर मजबूर करता है. बॉलीवुड तो आम इंसान को पसंद आने वाला सिनेमा बनाना भूल ही चुका है. फिल्म में एक्षन व सेक्स दोनो है. मगर 'एनीमल' से लाख गुना बेहतर है. और हर सीन जायज नजर आता है. दक्षिण की फिल्मों से अक्सर ये शिकायत रहती हैं कि इन फिल्मों में महिलाओं का सम्मान नहीं किया जाता, लेकिन अल्लू अर्जुन और सुकुमार ने मुझे सरप्राइज किया है. इन दोनों ने इस फिल्म में कुछ ऐसा कर दिखाया है कि जिसे करना किसी भी सुपरस्टार के लिए आसान नहीं होता. पर अल्लू अर्जुन ने वह हिम्मत दिखाई. बॉलीवुड का सुपर स्टार फिल्म में अपने किरदार की पत्नी के पैर छूते हुए या उसके पेर में मलहम लगाते नजर नही आ सकता. फिल्म में नारी सशक्तिकरण के साथ ही नारी सम्मान का बहुत बड़ा मुद्दा प्रभावशाली ढंग से उठाया गया है, मगर बिना किसी भाषणबाजी के. लेकिन निर्देशक जिस तरह से श्रीवल्ली को सेक्स की भूखी दिखाया है, उस पर कुछ लोगों को आपत्ति हो सकती है. फिल्म में कुछ वल्गर द्रश्य भी है. फिल्म के हर फ्रेम में एक नई सोच दिखाई देती है और यह नई सोच 'पुष्पा 2' के हर सीन को खास बना देती है. मसलन- फिल्म में एक सीन है, जहां पुष्पा के 200 से ज्यादा साथियों को शेखावत पकड़ लेता है. दर्शक सोचते हैं कि अब पुष्पा राज आएगा और मारधाड़कर अपने साथियो को छुड़ा ले जाएगा. मगर पुष्पाराज ऐसा कुछ नही करता, बल्कि वह जो काम करता है उसकी कल्पना बॉलीवुड के फिल्मकार कर ही नही सकते. फिल्म में तीन बड़े एक्शन द्रश्य और कुछ तस्करी के गुर शामिल हैं,जो निश्चित रूप से बी एंड सी सेंटर के लोगों का भी मनोरंजन करेंगे. जहां तक तकनीकी पक्ष का सवाल है तो फिल्म के कैमरामैन पोलैंड के मूल निवासी सिनेमैटोग्राफर कुबा ब्रोजेक मिरोस्लॉव बधाई के पात्र है. उन्होने चंदन के जंगलों की इंसानियत को शहरों के कंक्रीट दिलों की वहशियत के विरोधाभास के साथ सजाने में उन्होंने सौ में सौ नंबर पाए हैं. फिल्म का वीएफएक्स भी प्रभावषाली है. फिल्म का सर्वाधिक कमजोर पक्ष इसका संगीत है. श्रीलीला और अल्लू अभिनीत आइटम सांग 'किसिक' निराष करता है. गाना 'अंगारों का.' के वीडियो में एक बड़ा आश्चर्य है. 'पीलिंग्स' गाने का ऑडियो से निराश करता है.
एक्टिंगः
हक, मान सम्मान, पहचान हासिल करने के साथ ही सौतेले भाई के साथ बचपन से ही एक अजीब तरह की लड़ाई लड़ रहे पुष्पा राज के किरदार में अल्लू अर्जुन ने यादगार अभिनय किया है. गुस्सा, बेबसी, क्रूरता हर तरह के भावों को जितनी खूबी से अल्लू अर्जुन ने उकेरा है, वह बिरले कलाकारों के ही वष की बात है. श्रीवल्ली के किरदार में रश्मिका मंदाना का अभिनय उन्हे एक उत्कार्ष्ट अदाकारा के रूप में स्थापित करता है. इस फिल्म में रश्मिका मंदाना का अभिनय बॉलीवुड की हर दिग्गज अभिनेत्री के लिए चेतावनी है. मलयालम फिल्मों के सुपर स्टार हीरो फहद फासिल ने भवर सिंह शेखावत के किरदार में कमाल का अभिनय किया है. अन्य कलाकार अपनी अपनी जगह पर ठीक ठाक हैं.
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