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The Mehta Boys Movie Review: दिल को छू लेने वाली रिश्तों की दास्तां...

फोटोग्राफी करते करते अभिनेता बन गए बमन ईरानी ने अभिनय जगत में अपना डंका बजाया और अब 65 साल की उम्र में वह बतौर निर्देशक पहली फिल्म "द मेहता बॉयज" लेकर आए हैं...

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The Mehta Boys Movie Review A heart touching story of relationships
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रेटिंगः साढ़े तीन स्टार
निर्माताः बमन ईरानी , दानिश ईरानी , शुजात सौदागर और विपिन अग्निहोत्री
लेखकः बमन ईरानी और एलेक्स डाइनलारिस
निर्देशक: बमन ईरानी
कलाकारः बमन ईरानी, अविनाश तिवारी, श्रेया चैधरी और पूजा सरूप आदि
अवधि: एक घंटा 58 मिनट
ओटीटी प्लेटफार्म: अमेजान प्राइम वीडियो पर सात फरवरी से स्ट्रीमिंग

FILM REVIEW- THE MEHTA BOYS

FILM REVIEW- THE MEHTA BOYS

फोटोग्राफी करते करते अभिनेता बन गए बमन ईरानी ने अभिनय जगत में अपना डंका बजाया और अब 65 साल की उम्र में वह बतौर निर्देशक पहली फिल्म "द मेहता बॉयज" लेकर आए हैं, जिसका उन्होने सह लेखन फिल्म 'बर्डमैन' के लिए ऑस्कर जीत चुके एलेक्स डाइनलारिस के साथ किया है. एक विदेशी लेखक के साथ पटकथा लिखते हुए भी बमन ईरानी ने फिल्म में पूरी तरह से भारतीयता व रिश्तों की ही बात की है. कमर्शियल फिल्मों से कहीं अलग तरह से इसमें पिता पुत्र के रिश्ते केा गढ़ा गया है.

स्टोरी:

FILM REVIEW- THE MEHTA BOYS

FILM REVIEW- THE MEHTA BOYS

नवसारी गुजरात में लोगों को टाइपिंग सिखाते सिखाते शिव मेहता (बमन ईरानी) ने अपने बेअे अमय मेहता (अविनाश तिवारी) को आर्टिटेक्ट बना दिया. आर्टिटेक्ट की पढ़ाई पूरी करने के बाद अमय मेहता मुंबई में आकर बस गया. भवन निर्माण जगत में अमय एक बहुत बड़ा नाम है. मगर अब आर्टिटेक्ट/नक्शानवीस को अपने हुनर पर शायद भरोसा नहीं हो रहा है. उसकी दोस्त जारा गोंसाल्विस (श्रेया चैधरी) समझाती भी है कि दुनिया में औसत लोगों की ही भरमार है, पर अमेय में टैलेंट की कमी नही है. उसका टैलेंट सभी से इक्कीस है. जिस आफिस में अमय कार्यरत हे, वहां पर जहांगीर इंस्टीट्यूट के लिए भारतीय की पहचान दिलाने वाले नक्शे की जरुरत है. कंपनी के सभी नक्शानवीस इस काम में लगे हुए है. जारा चाहती है कि अमय अपने टैलेंट को उजागर कर सभी की बोलती बंद कर दे. पर अमय लापरवाह नजर आता है. इसी बीच अमय की मां की मौत हो जाती है. अमय अपने घर नवसारी पहुँचते है. जहां उनकी बहन अनु मेहता पटेल (पूजा सरुप) अमेरिका से पहले ही आ चुकी है. भाई बहन आपस में बात करते हैं, जिससे यह अहसास होता है कि पिता व बेटे के बीच बहुत ज्यादा मधुर सबंध नही है. पर पिता से मिलना तो पड़ेगा. बाप-बेटे दोनों में अपनी अपनी अकड़ है. दोनों एक दूसरे को दिल से बहुत चाहते हैं. पर लोगों को ऐसा नहीं लगता. अनु को भी ऐसा नहीं लगता. नवसारी से वापस मुंबई आने से पहले बह अनु के कहने पर अपने पिता से उनके कमरे में जाकर बताता है कि वह मुंबई वापस जा रहा है. तब पिता शिव बिस्तर से उठकर अमय के पास तक तो आते हैं, पर गले नहीं लगा पाते. अनु बता चुकी है कि अब शिव उनके साथ अमेरिका जा रहे है. अनु व शिव सामान बांधकर मुंबई से अमेरिका के लिए प्लेन पकड़ने के लिए पहुँचते है. एअरपोर्ट पर अमय भी पहुँच जाता है. पर कुछ समस्या के चलते शिव की टिकट दो दिन बाद की है और अनु रूक नही सकती. क्योंकि अमेरिका में उसके बच्चे अकेले है. मजबूरन अमय अपी बहन अनु से यह जिम्मेदारी लेता है कि वह पिता  शिव को अपने साथ अपने मकान पर ले जाएगा और दो दिन बाद उन्हें प्लेन में बैठा देगा. अमय के घर में पहुँचते ही मूसलाधार बारिश शुरू हो जाती है. इस बारिश के वक्त शिव के हाथ की बनाई गर्मागर्म नूडल्स खाते हुए बाप बेटे टीवी पर चार्ली चैपलिन की फिल्म देखते हुए पहली बार हंसते हैं. यहीं से पिता पुत्र के बीच की बर्फ पिघलनी शुरू होती है. इसके बाद क्या होता है  यह जानने के लिए तो फिल्म देखनी ही पड़ेगी.

रिव्यूः

FILM REVIEW- THE MEHTA BOYS

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पिता पुत्र के रिश्ते पर एक बेहतरीन फिल्म लेकर बमन ईरानी आए हैं. बाप-बेटे का रिश्ता शायद दुनिया का सबसे क्लिश्ट रिश्ता होता है. हमेशा पिता अपने बेटे को अपने हिसाब से कुछ बनाना चाहते हैं, अक्सर बेटे भी अपने पिता की सोच के अनुरूप बनना चाहते हैं,पर समय के साथ कहीं न कहीं इसी बात पर पिता पुत्र के बीच मतभेद/मनभेद पैसे को लेकर भेद भी हो जाते हैं, जिनके चलते रिश्ते कैसे बनते बिगड़ते हैं, इसे बड़ी चतुराई व सहजता के साथ बिना उपदेशात्मक भाशण बाजी के बमन ईरानी ने अपनी इस फिल्म में पिरोया है. पिता अपने अनुभवों व उम्र के आधार पर सदैव इस गुमान में रहता है कि उसे ही सब पता है. उधर बेटों को अक्सर पिता का जब देखो तब 'ज्ञान' बांटते रहना अच्छा नहीं लगता. यह फिल्म सिर्फ पिता पुत्र के रिश्ते की बात नही करती, बल्कि भाई बहन के रिश्ते की भी बात करती है. इस फिल्म में अनु व अमय के बीच का रिश्ता देखकर हर भारतीय रिलेट कर पाएगा, क्योंकि इसी तरह के रिश्ते हर भारतीय परिवार में भाई बहन के  बीच नजर आते है. पति व पत्नी के बीच के रिश्ते पर भी यह फिल्म बहुत कुछ कह जाती है. फिल्म मे मेलोड्रामा नही है. बेवजह का रोना धोना या आंसू बहाने वाले दृश्य नही रखे गए है. मगर लेखक व निर्देशक ने पिता व पुत्र के बीच  की दूरियों पर बहुत कम कहा है. फिल्म देखते समय कई दृश्यों के वक्त दर्शक के मन में सवाल उठता है कि बमन ने यह दृश्य क्यों रखा? मसलन- हैंडब्रेक पर उनके हाथ क्यों रहते हैं? उन्हें बेटे की ड्राइविंग पर क्यों भरोसा नहीं? कमरे की छत जब गिर जाती है, तो बार-बार वह क्यों सवाल करते हैं कि अगल-बगल का हिस्सा क्यों नहीं गिर सकता है. लेकिन बेटे की नक्शानवासी पर से उठ चुके विश्वास को अपनी बातों से अनजाने ही ऐसा हौसला दे जाते हैं  कि बेटा अमय एक बार फिर अपने टैलेंट का लोगों को मुरीद बना लेता है. कहा जाता है कि दो नावों की सवारी कर सागर पार नही किया जा सकता. मगर 'द मेहता बॉयज' में बमन ईरानी ने निर्माता, निर्देशन, लेखन के साथ ही पिता शिव का मुख्य किरदार भी निभाया है. फिल्म की कहानी तो पिता पुत्र की ही है. लेकिन फिल्म देखने के बाद कहा जा सकता है कि वह चार नावों की सवारी करते हुए बेहतरीन तरीके से सागर पार कर गए. मगर बॉलीवुड जिस तरह के बाजार वाद के चंगुल में जकड़ा हुआ है, उसी के चलते बमन ईरानी को अपने निर्देशन में बनी इस पहली फिल्म को थिएटर की बजाय ओटीटी प्लेटफार्म पर लाना पडा. बमन ईरानी ने फिल्म में कुछ कमाल के दृश्य रचे है. मसलन- पिता को घर में न पाकर उनकी तलाश में अमय का निकलना और फिर कमर तक सड़क पर भरे पानी में पिता को सामान लाते देखने वाला सीन कमाल है. पर फिल्म का कलायमेक्स कमजोर है. तकनीकी पक्श की बात करें तो एडीटिंग टेबल पर इसे कसा जा सकता था. कैमरामैन कृश मखिजा ने काफी निराश किया है.

एक्टिंगः

FILM REVIEW- THE MEHTA BOYS

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पिता शिव मेहता के किरदार में बमन ईरानी छा गए है. पत्नी के निधन के बाद आत्मनिर्भर पति बनने का प्रयास हो, अपने घर की हर एक यादगार चीज छोड़कर अमेरिका जाना हो या फिर मन में बेटे की चिंता के बावजूद चेहरे पर सख्ती बनाए रखने वाले दृश्यों हों, उन्होंने उसे बेहतरीन ढंग से निभाया है. इस फिल्म के असली हीरो वही हैं. उन्होंने एक बार फिर साबित कर दिखाया कि वह चाहे जितनी जिम्मेदारी एक साथ संभाल लें, पर अभिनय में उनका कोई सानी नही है. अनु के छोटे किरदार में भी पूजा सरुप अपनी छाप छोड़ जाती है. अमय मेहता के किरदार में अविनाश तिवारी का काम अच्छा ही है. लेकिन कुछ दृश्यों में वह कमजोर पड़ गए है. जारा के किरदार में श्रेया चैधरी के हिस्से करने को कुछ खास आया नहीं, पर वह ठीक ठाक व सुन्दर लगी हैं.

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