जब तक हम सेक्स को ढाई अक्षरों वाला एक शब्द मानते रहेंगे, तब तक इसके बारे में बात करने से शर्माते रहेंगे!
हमारे समाज में लोग सेक्स पर खुलकर बात नहीं करते है, लेकिन हम सब इस बात को समझते हैं और मानते हैं कि अगर ऐसा हो तो हमारा समाज एक स्वस्थ समाज होगा। ख़ानदानी शफाक़ाना एक हँसी-मज़ाक वाली, लेकिन सामाज से जुड़ी हक़ीक़त पर आधारित फिल्म के रूप में इस मुद्दे को उठाती ह