Kaantha: 1950 के दौर की फ़िल्मी दुनिया, ईगो क्लैश और एक अधूरी कहानी का दिलचस्प सफर
ताजा खबर: रेट्रो फिल्मों में हमेशा एक अलग आकर्षण रहता है. ये हमें उस दौर में ले जाती हैं, जिसके बारे में हम अक्सर सुनते तो हैं लेकिन महसूस नहीं कर पाते
ताजा खबर: रेट्रो फिल्मों में हमेशा एक अलग आकर्षण रहता है. ये हमें उस दौर में ले जाती हैं, जिसके बारे में हम अक्सर सुनते तो हैं लेकिन महसूस नहीं कर पाते. दुलकर सलमान की नवीनतम फिल्म ‘Kaantha’ भी दर्शकों को 1950 के दशक की उसी पुरानी फिल्मी दुनिया में ले जाती है. सवाल यह है कि क्या यह फिल्म पूरे 2 घंटे 45 मिनट तक दर्शकों को बांधे रख पाती है? आइए जानते हैं.
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फिल्म का ओपनिंग सीन बेहद इंटेंस है—भारी बारिश में खून से सने पांव के निशान और एक शूटआउट. इसके बाद कहानी चलती है ‘मॉडर्न स्टूडियो’ के मालिक मार्टिन (रविंद्र विजय) की ओर, जो निर्देशक अय्या (समुथिरकानी) को अपने अधूरे प्रोजेक्ट ‘सांथा’ को दोबारा शुरू करने के लिए मनाते हैं. यह वही फिल्म है जिसे अय्या और उसके शिष्य TK महादेवन (दुलकर सलमान) की टकराहट के कारण रोका गया था.अय्या और महादेवन का रिश्ता सिर्फ गुरु-शिष्य का नहीं बल्कि गहरे अहंकार और प्रतिस्पर्धा से भरा है.अय्या की प्रेरणा है उनकी दिवंगत मां, जिन पर बनी यह कहानी उनके दिल के बेहद करीब है.वहीं TK महादेवन अब अपने करियर की ऊंचाइयों पर हैं, एक सुपरस्टार बन चुके हैं.
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फिल्म की हीरोइन बनती हैं नई अदाकारा कुमारी (भाग्यश्री बोर्से), जो कहानी में भावनाओं का एक नया आयाम जोड़ती हैं. उनके जरिए दर्शक यह समझ पाते हैं कि गुरु-शिष्य के बीच आखिर क्या हुआ था, जिससे उनका रिश्ता टूट गया.‘सांथा’ को फिर से शुरू करने के बाद, दोनों के बीच शक्ति, महत्वाकांक्षा और अहंकार का लगातार बदलता समीकरण फिल्म की कहानी को दिलचस्प बनाता है.कुमारी की एंट्री महादेवन को एक अलग ही भावनात्मक दिशा देती है, जिससे कहानी और भी परतदार हो जाती है.
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फिल्म के मिड पार्ट में एक क्रू मेम्बर की हत्या होती है.यहीं पर एंट्री होती है राणा दग्गुबाती द्वारा निभाए गए इंस्पेक्टर देवराज की.हालांकि दूसरी हाफ में फिल्म एक इन्वेस्टिगेशन थ्रिलर बन जाती है, लेकिन यहीं इसकी गति धीमी हो जाती है.जांच बार-बार दोहराई हुई लगती है, और सुरागों की कमी इसे कमजोर बना देती है.
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दुलकर सलमान ने TK महादेवन के किरदार में सुपरस्टार और टूटे हुए इंसान दोनों रूपों को बखूबी निभाया है.
समुथिरकानी का अय्या गंभीर, सख्त और भावनात्मक सभी रूपों में दमदार है.
भाग्यश्री बोर्से इस फिल्म का भावनात्मक केंद्र बनती हैं.
राणा दग्गुबाती सीमित स्क्रिप्ट के बावजूद स्क्रीन पर असर छोड़ते हैं.
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फिल्म की सिनेमैटोग्राफी (Dani Sanchez-Lopez) बेहद खूबसूरत है,1950 के मद्रास फिल्म इंडस्ट्री का माहौल वास्तविकता से भरा हुआ है.म्यूजिक (Jhanu Chanthar और Jakes Bejoy) फिल्म की भावनाओं को और गहराई देता है.
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‘Kaantha’ एक खूबसूरत, तकनीकी रूप से मजबूत और दमदार अभिनय वाली फिल्म है,जिसमें ईगो, रिश्ते, पुरानी फिल्म इंडस्ट्री और मानवीय भावनाओं का बेहतरीन मिश्रण है.लेकिन कमजोर दूसरी हाफ इसे अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने नहीं देती.
फिल्म 1950 के दशक की मद्रास फिल्म इंडस्ट्री पर आधारित है.
मुख्य भूमिकाओं में दुलकर सलमान, समुथिरकानी, भाग्यश्री बोर्से और राणा दग्गुबाती हैं.
कहानी गुरु-शिष्य के बीच ईगो क्लैश, पुरानी फिल्म इंडस्ट्री, और एक अधूरी फिल्म "सांथा" से जुड़े संघर्ष पर आधारित है.
फिल्म आधी ड्रामा-इमोशनल है और दूसरी हाफ इन्वेस्टिगेशन थ्रिलर बन जाती है.
दुलकर सलमान और समुथिरकानी की दमदार परफॉर्मेंस, शानदार सिनेमैटोग्राफी और 1950s की सेटिंग.
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