Remembering: Prem Dhawan वो शख्स थे, जिनकी अपनी ही एक अलग दुनिया थी बॉलीवुड संगीत जगत का वो गोल्डन ईरा, जब प्रत्येक गीत दिल को छू जाती थी, जब हर संगीत में सोज और साज़ का ऐसा तालमेल होता था जिसे सुनकर या तो आंखे नम हो जाती थी या दिल प्रेम की फुहार में भीग कर नाच उठता था या फिर... By Sulena Majumdar Arora 07 May 2024 | एडिट 07 May 2024 12:01 IST in गपशप New Update Listen to this article 0.75x 1x 1.5x 00:00 / 00:00 Follow Us शेयर बॉलीवुड संगीत जगत का वो गोल्डन ईरा, जब प्रत्येक गीत दिल को छू जाती थी, जब हर संगीत में सोज और साज़ का ऐसा तालमेल होता था जिसे सुनकर या तो आंखे नम हो जाती थी या दिल प्रेम की फुहार में भीग कर नाच उठता था या फिर, देश भक्ति के जज्बातों का ऐसा तूफान उठता कि देशवासी मरने मिटने को तैयार हो जाते थे। वो गोल्डन दौर था पचास से सत्तर के दशक का, और उसी दशक में कला के एक पुजारी ने बॉलीवुड की धरती पर अपने बहुमुखी प्रतिभा के कई रंग कुछ इस तरह बिखेर दिए कि संगीत जगत हरा हरा हो गया। मैं बात कर रही हूँ जीनियस गीतकार, संगीतकार, एक्टर और कोरियोग्राफर प्रेम धवन की जिनकी देशभक्ति के गीत, मेरा रंग दे बसंती चोला, ऐ मेरे प्यारे वतन, छोड़ो कल की बातें, ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी कसम, आज भी टॉप टेन देशभक्ति गीतों में शुमार किया जाता है। बात जब प्यार के मीठे चुहल, या विरह के दर्द और शिकायतों की आती है तो प्रेम धवन के लिखे ये गीत, ये पर्दा हटा दो ज़रा मुखड़ा दिखा दो, सैयां ले गई जिया तेरी पहली नजर, मुझे प्यार की जिंदगी देने वाले, जोगी हम तो लुट गए तेरे प्यार में, अगर बेवफा तुझको पहचान जाते, तेरी दुनिया से, होके मजबूर चला, सीने में सुलगते है अरमान, हाय जीया रोए रोए, ओ नन्हे से फरिश्ते तुझसे ये कैसा नाता, तुझे सूरज कहूँ या चंदा, सब कुछ लुटा के होश में आए तो क्या किया, हल्के हल्के चलो साँवरे, आराम है हराम, तेरी दुनिया से दूर चले होके मजबूर हमें याद रखना, तथा इस तरह के तमाम और गीत दिल के अरमान और जज़्बातों के तूफान को झकझोर देती है। प्रेम धवन के इतने प्रतिभाशाली होने के बावजूद उन्हें हिन्दी सिनेमा जगत में वो जगह नहीं मिली जिसके वे हकदार थे। ऐसा शायद इसलिए क्योंकि प्रेम धवन बेहद खुद्दार किस्म के इंसान थे और अवार्ड्स तथा सम्मान खरीदने या पकड़ने की कोशिश उन्होंने कभी नहीं की। तेरह जून 1923 को अंबाला में एक जेल सुपरिटेंडेंट के पुत्र के रूप में जन्मे प्रेम धवन बचपन से ही विद्रोही किस्म के थे, लाहौर में कॉलेज की पढ़ाई के दौरान वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के साथ जुड़ गए थे। वहीं उनकी मुलाकात मशहूर शायर साहिर से हुई थी जो उनके क्लासमेट भी थे। अक्सर दोनों कॉलेज के बाद शेरों शायरी की बातें किया करते और कई बार अंग्रेजों के खिलाफ अपना विद्रोह प्रकट करने की शायरी और कविताएं भी लिखकर अपने कॉलेज में पढ़ा करते थे। सिर्फ तेईस वर्ष की उम्र में ही उनकी प्रतिभा ने उन्हें लाहौर में ही, अहमद अब्बास की फिल्म 'आज और कल' में असिस्टेंट कम्पोज़र के रूप में नौकरी दिला दी। उनके सामने कला का आसमान खुल चुका था, उन्होंने अपने पंख पसारे और मुंबई की राह ली। लेकिन इतना आसान नहीं था उस जमाने में भी बॉलिवुड के पट खोलना। प्रेम धवन ने स्टूडियो स्टूडियो काम तलाशना शुरू किया और आखिर बॉम्बे टॉकीज से उन्हें असिस्टेंट डाइरेक्टर के पोस्ट के लिए बुलावा आ गया। और जब इंटरव्यू की बारी आई तो उनके सामने सिनेमा जगत की दो महान हस्तियां देविका रानी और अशोक कुमार बैठे थे। इंटरव्यू के बाद उन्हें असिस्टेंट डाइरेक्टर की नौकरी तो नहीं मिली लेकिन गीतकार के रूप में काम मिल गया। इस तरह फिल्म 'जिद्दी' के साथ सिनेमा जगत में उनकी यात्रा शुरू हुई। वक्त के साथ वे एक लेखक के तौर पर प्रगतिशील रंगमंच आंदोलनों से जुड़े और इस तरह इप्टा (इंडियन पीपल्स थिएटर एसोशियशन) में उनका प्रवेश हुआ, यहीं उनकी मुलाकात नृत्य के जादूगर उदय शंकर के महान डांस ट्रूप के सदस्य शांति रॉय बर्धन और लीजेंड पंडित रवि शंकर से हुई। उन दोनों दिग्गजों से उन्होंने कुछ ऐसा सीखा जो आगे चलकर उनके काम आया। शांति बर्धन से उन्होंने शास्त्रीय नृत्य सीखा तो सुप्रसिद्ध क्लासिकल संगीतकार रवि शंकर से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली और फिर उन्हें बतौर गीतकार 'धरती के लाल' में अपनी प्रतिभा दर्शाने का मौका मिला। हालांकि उस फिल्म में कई अन्य गीतकारों के साथ उन्हें काम करना पड़ा लेकिन फिर भी उनके कला की चमक उस फिल्म के कई गीतों 'अब ना ज़बान पर ताले डालो, आज सूखा खेतों में', आओ बादल आओ ' बीते हो सुख के दिन, से सबने पहचानी। अब उन्हें बतौर गीतकार स्वतंत्र रूप से फिल्में मिलने लगी जैसे,' जीत, आराम, तराना, आसमान, वचन, तांगे वाली, जागते रहो, हीरा मोती, गेस्ट हाउस, शोला और शबनम, तेल मालिश बूट पॉलिश, जबक, काबुलीवाला, मां बेटा, कोबरा गर्ल, शबनम, दारा सिंह आयरन मैन, आधी रात के बाद, दस लाख, एक फूल दो माली, मेरा नाम जोकर, नानक दुखिया सब संसार, पवित्र पापी, गीत, पूरब और पश्चिम, वगैरह। प्रेम धवन के गीत के बोल इतने प्रभावशाली होते थे कि एक बार मनोज कुमार ने उन्हें कहा कि वे सिर्फ गीतकार के रूप में ही नहीं बल्कि संगीतकार के रूप में भी देशभक्ति के गीत रच सकते है। मनोज की बातों से प्रेरित होकर प्रेम धवन ने देश को समर्पित गीत लिखे और संगीतबद्ध भी किया जैसे ऐ वतन ऐ वतन, मेरा रंग दे बसंती चोला, सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है। उनके एक और फिल्म 'पवित्र पापी' ने उन्हें शोहरत के शिखर पर पहुंचा दिया जिसमें किशोर कुमार का गाया वो गीत, उस जमाने का चार्ट बस्टर बन गया, ' तेरी दुनिया से होके मजबूर चला', ये वही गीत था जो बाद में किशोर कुमार के निधन के दिन खूब बजाया गया था। बहुमुखी प्रतिभा के धनी प्रेम धवन ने संगीतकार के रूप में भी अपनी पकड़ मजबूत रखी। फिल्म आधी रात के बाद, वीर अभिमन्यु, शहीद, पवित्र पापी, नानक दुखिया सब संसार, भारत के शहीद, मेरा देश मेरा धर्म, किसान और भगवान, भगत धन्ना जाट, द नक्सलाइट, रात के अंधेरे में, जैसी फिल्मों में उन्होंने गीत लिखने के साथ साथ संगीत भी दिए। क्लासिकल संगीत सीखने और पंडित रविशंकर के करीबी होने से उन्हें शास्त्रीय कला का खूब ज्ञान था। वे इतने वर्सेटाइल कलाकार थे कि उन्हें सिर्फ एक ही क्षेत्र में बंधे रहना उचित नहीं लगता था, अतः गीतकार, संगीतकार के रूप में स्थापित होने के बावजूद, बतौर नृत्य निर्देशक भी उन्होंने कई फिल्मों में काम किया जैसे मुन्ना, वक्त, धूल का फूल, सहारा, नया दौर (उड़े जब जब जुल्फें तेरी, उन्हीं की कोरियोग्राफ़ी थी) वाचन, दो बीघा जमीन, आरजू, शीश महल। बतौर अभिनेता भी उन्होंने फिल्म, 'लाजवाब' में काम किया। फिल्म 'गूँज उठी शहनाई' में बतौर एक्टर उन्होंने इतना खूबसूरत अभिनय किया कि उनके कलीग्स और परिवार वालों ने उन्हें सबकुछ छोड़कर एक्टर के रूप में ही करियर बनाने की राय दी लेकिन वे नहीं माने, उनका कहना था कि गीत लिखना उनका जीवन है, संगीत देना उनका शौक, नृत्य करना उनकी खुशी और अभिनय करना एक बदलाव था। बॉलीवुड में उनसे कमतर कितने कलाकारों को ना जाने कितने पुरस्कार और सम्मान से नवाजा गया लेकिन प्रेम धवन को अपने जीवन काल में चंद ही पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए , जैसे बेस्ट लिरिसिस्ट के तौर पर उन्हें 1971 में नैशनल अवार्ड हासिल हुआ, और 1970 में गवर्नमेंट ऑफ इंडिया द्वारा फोर्थ हाईएस्ट इंडियन सिविलियन अवार्ड पद्मश्री सम्मान प्राप्त हुआ। प्रेम धवन को कभी इस बात का अफसोस नहीं हुआ कि उन्हें पचासों अवार्ड्स नहीं मिले, उनका मानना था कि उनके एक-एक गीत उनके लिए अवार्ड है और भारत सरकार ने उनका इतना सम्मान किया वो हर अवार्ड पर भारी है। 7 मई 2001 को इस महान हस्ती का निधन मुंबई में हृदयघात से हो गया, जिसके बाद आज तक उनकी रिक्त जगह कोई नहीं भर पाया। JOGI HUM TO LUT GAYE O Mera Rang De Basanti Chola - Shaheed Main Koi Jhoot Boleya | Jagte Raho Read More: Fahadh Faasil ने फिल्म पुष्पा को लेकर दिया चौंका देने वाला बयान सिद्धिविनायक मंदिर पहुंचे हीरमंडी के ताजदार उर्फ Taha Shah Met Gala 2024 में शामिल होंगी Alia Bhatt, न्यूयॉर्क के लिए हुई रवाना मनीषा कोइराला नहीं बल्कि हीरामंडी के लिए रेखा थीं मेकर्स की पहली पसंद हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article